story final installment ;अनुगूँज

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सदमे से मनप्रीत ख़ामोश हो गई। अब बस उसकी गवाही ही सुसराल वालों को बचा सकती थी, पर वह ख़ामोश है। उसके सामने जब भी कोई अकस्मात् घटना घटती, बचपन से ही उसकी जीभ तालू के साथ चिपक जाती है। घटना की प्रत्यक्षदर्शी होते हुए भी वह बोल नहीं पाती और सही समय पर सच न बोल पाने के कारण बाद में वह स्वयं को कोसती रहती। कई सच वह कह नहीं पाई और झूठ जीतता रहा, उसका मलाल उसे अब तक है। बचपन की बातें तो बचपन के साथ ही चली गईं। आज जिस दुर्घटना की वह प्रत्यक्षदर्शी गवाह है; उससे पैदा हुए द्वंद्व में घिरी हुई वह निढाल और परेशान है। उसकी मानसिक यातना दुर्घटना में जुड़े अपनों और रिश्तों को लेकर है। उसकी ज़ुबान खुल गई तो उसे इसकी बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी, परदेश में उसका घर छूट जाएगा और अगर नहीं बोली तो भी वह उस घर में जी नहीं पाएगी। दुर्घटना उसकी आँखों के सामने हुई है। वह क्या करे…इन परिस्थितियों में इस देश में उसका मार्गदर्शन करने वाला कोई नहीं। मार्गदर्शन करने वाली जेठानी तो यह दुनिया छोड़ कर जा चुकी है। वह उसकी बहुत अच्छी सहेली भी थी। उसी ने मनप्रीत को अनजाने देश को अपनाना सिखाया। वह अपने घर में भी किसी को फ़ोन नहीं कर सकती। उससे मोबाइल फ़ोन ले लिए गया है। जिल उसे बार-बार कह चुकी है-‘मन, टेल्ल द ट्रुथ। गॉड विल हेल्प यू।’ वह जिल को कैसे समझाए कि सच बोल दिया तो देश लौटने के लिए पासपोर्ट कहाँ से लाएगी, वह भी सुसराल वालों के पास है। वापिस जाने के लिए टिकट कहाँ से खरीदेगी। उसे एहसास हो गया है कि वह एक मकड़जाल में फँस चुकी है। लगता है उसे सुसराल वालों की बात माननी पड़ेगी, वही कहना पड़ेगा; जो उसके सुसराल वालों का वकील चाहता है।
कोर्ट में मुक़दमा शुरू हो चुका है। उसे एक प्रत्यक्षदर्शी गवाह के रूप में पेश किया जाएगा। पम्मी के साथ वह कचहरी के कॉरिडोर में बैठी है। जज अपनी कुर्सी पर आकर बैठ गया है और ज्यूरी ने भी अपनी-अपनी सीटें सम्भाल लीं हैं। पुलिस और डॉक्टर की गवाही और उनके साथ वकीलों की प्रश्नोत्तरी शुरू हुई। उसकी बारी आने वाली है, बचाव पक्ष के लिए उसकी गवाही बहुत महत्त्वपूर्ण है। वह बहुत नर्वस है। जब तक कोर्ट की कार्यवाही चल रही है, कॉरिडोर में बैठी वह स्वयं को मज़बूत कर रही है। उसके भीतर लगातार संवाद चल रहा है। विवेक रिश्तों को किनारे रख सच बोलने के लिए कह रहा है। उसका मन रिश्तों को प्राथमिकता दे रहा है। रिश्तों के टूटने से डर रहा है। ऊहापोह की स्थिति में उसका सिर दुखने लगा है। पिछली कई रातों से वह सो नहीं पाई। पम्मी आजकल हर समय उसके साथ रहता है और बार-बार उसे वे वाक्य याद करवाता है ; जो वकील उससे कोर्ट में कहलवाना चाहता है। पर उसे वही याद है; जो उसने देखा है। वह क्या करे…एक-एक क्षण चलचित्र सा उसकी आँखों के सामने घूमता रहता है। गुरमीत के साथ बिताया एक-एक पल याद आता है…
इस देश की भाषा बोलने में वह असमर्थ थी। गुरमीत ने हँसते हुए कहा था- ‘मन ( मनप्रीत से वह सबकी मन हो गई थी) मुझे भी पहले-पहल यहाँ की अंग्रेज़ी समझने में परेशानी हुई थी। मैंने तो खूब टीवी प्रोग्राम देखे और पड़ोसन जिल से बातें की, बस भाषा को बोलने की झिझक निकल गई तो भाषा पकड़नी आसान हो गई।’ गुरमीत ने उसे जिल से मिलवाया था।
पहली मुलकात में ही जिल ने उसके हाथों को पकड़ कर कहा था-‘मन, यू आर एन इनोसेंट नेचुरल ब्यूटी।’ और उस दिन के बाद वह उससे बतियाने लगी थी। जिल ने उसे और उसकी जेठानी को अंग्रेज़ी बोलने में सशक्त किया था।
परिकल्पना की ओढ़नी ओढ़कर वह उन नायिकाओं के देश में आई थी; जो छुटपन से सुनी कहानियों में होती थीं। गोरी-चिट्टी, लम्बे सुनहरे बालों वालीं, नखरा करतीं सलोनी हूरें। पर जिल नखरे वाली बिलकुल नहीं थी। गुरमीत के लिए वह उतनी ही दुःखी थी; जितना देश में उसका परिवार। जिल ने तो गुरमीत के परिवार को फ़ोन करके कहा था कि वह गुरमीत के लिए लड़ेगी।
जज ने उनके वकील यानी बचाव पक्ष के वकील को अगली गवाह लाने के लिए कहा। वकील की असिस्टेंट पैटी कचहरी के कमरे से बाहर कॉरिडोर में उसे लेने आई। उसका दिल ज़ोरों से धड़कने लगा। उसे लगा कि उससे खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा, पैटी ने उसे पकड़ा और कोर्ट के कटघरे तक ले आई। वहाँ उसे एक कुर्सी पर बिठा दिया गया; जहाँ उसके सामने माइक था।
जज ने उसे बड़े प्यार से पूछा -‘आर यू कम्फर्टेबल।’
उसने ‘हाँ’ में सिर हिला दिया।
जज ने वकील की ओर देख कर कहा-‘यू मे प्रोसीड।’
बाइबल पर हाथ रख कर सच बोलने की कसम दिलवाई गई। वकील ने मनप्रीत को देखकर कहा- ‘नाओ टेल देम व्हाट हैपन्ड दैट नाइट।’
मनप्रीत को लगा, उसकी सब इन्द्रियों ने काम करना बंद कर दिया है, बस उसका दिल धड़क रहा है; जिसकी आवाज़ वह सुन रही है और उसकी जीभ तालू के साथ चिपक गई है। उसका पति, सास, ससुर और जेठ सामने बैठे उसे घूर रहे हैं। उसका शरीर पसीने से भीग गया। उन सबके ठीक सामने, कोर्ट की ज़मीन पर उसे गुरमीत की लाश पड़ी दिखाई दे रही है और उसकी बेबस खुली आँखें, जो उसने उस रात देखी थीं; उसी की ओर देख कर सच बोलने की गुहार लगा रही हैं। वह ज़मीन की ओर देख रही है। खून से लथपथ उसे अपनी लाश भी वहाँ नज़र आ रही है। दुर्घटना वाले दिन से लेकर आज तक उसे कई बार महसूस हुआ है कि वह ज़िन्दा नहीं। वह अपनी आत्मा है; जो पम्मी के साथ खुद को घसीट रही है।
वकील ने उसे इशारा किया। पर वह वकील द्वारा पढ़ाए गए सब वाक्य भूल चुकी है। पूरे कोर्ट में सन्नाटा है और उसके बोलने का इंतज़ार हो रहा है। कई पलों तक वह ज़मीन की ओर ही फटी, डरी और सहमी आँखों से तकती रही। लोगों की स्थिरता टूटने लगी। ज्यूरी के सदस्यों ने पहलू बदलना शुरू कर दिया। जज ने स्थिति भाँप ली। उसने बड़ी नम्रता से पूछा -‘ऑर यू ओके मैम।’ उसे कुछ सुनाई नहीं दिया। उसे तो बस गुरमीत की आँखें ही दिखाई दे रही हैं; जिन्होंने उसके भीतर कुछ फूँक दिया कि उसकी तालू से चिपकी जीभ छूट गई और वह बोलने लगी और बोलती गई.…सही और सच्ची घटना वर्णित करके ही रुकी और अंत में उसकी आँखें उससे भी अधिक कह गईं। पम्मी की आँखों में क्रोध की अग्नि जल उठी और तपश उस तक पहुँच गई। अपने आपको सम्भालते हुए उसने एक निवेदन पत्र जज साहब को आदर सहित प्रस्तुत किया; जो उसने हाथ से लिखा था कि सच बताने के बाद इस देश में अब उसके पास कोई घर नहीं रहेगा और वह अपने देश भी नहीं लौट सकती; क्योंकि उसका पासपोर्ट सुसराल वालों के पास है। उसकी मदद की जाए।
गवाही के बाद उसके शरीर में सरसराहट हुई, संवेगों और भावनाओं का उछाल आया। वह अपनी आत्मा नहीं… जीती-जागती मनप्रीत है, महसूस कर खुश हो गई। दुर्घटना के बाद पम्मी ने उसके कन्धों पर झूठ का बोझा लाद दिया था। उसके नीचे वह दब-घुट गई थी। उसे उतार कर वह बहुत हल्का-फुल्का महसूस कर रही है।
जिल ने उसे बाँहों में भर लिया और उन दोनों को आभास हुआ कि गुरमीत भी उनसे लिपट गई है…