story 3rd installment; अनुगूँज

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Story second installment ; अनुगूँज

वह बड़ी हैरान है कि ज़िंदादिल जेठानी गुरमीत दिन भर घर के वातवरण को बहुत ख़ुशनुमा रखती और उसे छोटी बहनों की तरह प्यार करती पर रात को पता नहीं उसे क्या हो जाता है; पति की बेरुख़ी वह सह नहीं पाती और ज्यों-ज्यों रात बीतती है, बिखरती जाती है।
उसकी रातें भी तो गुरमीत की तरह ही बीतती हैं। वह अपने बारे में बहुत सोचने लगी है। उसका पति पम्मी शराब में बेसुध सुबह चार बजे से पहले कभी घर नहीं आता और आते ही शेखी बघारने लगता है – ‘मनप्रीत यार, बीस गैस स्टेशन, चालीस सबवे, पचास टैक्सियाँ; इतना बड़ा व्यापार सँभालते-सँभालते सुबह हो जाती है। आई होप यू अंडरस्टैंड.…।’ और बिस्तर पर लुढ़कते ही शुरू हो जाते हैं उसके ख़र्राटे; उसकी साँस के उतार-चढ़ाव के साथ शराब की बदबू के उठते भभकों से मनप्रीत को कई बार मतली आ जाती है। विदेश में रहने वालों की वह जो कल्पना करती थी, इस घर में आने के बाद, वह कल्पना टूटकर किरचों में बिखर गई। अंदर तक वह गहरे ज़ख्मीं हुई है। अमीर गँवारू उसने अपने देश में तो कई देखे थे। यहाँ इस देश में भी…।
विचारों में उलझी मनप्रीत ने खुद को घसीट कर बिस्तर से अलग किया, लाइट जलाई और कमरे से बाहर आ गई। उसका कमरा घर के निचले हिस्से में है, उसकी जेठानी का तीसरी मंज़िल पर और बीच में पड़ती हैं गोल सीढ़ियाँ; जो इस तरह से बनाई गई हैं कि तीनों मंज़िलों पर रहने वाले एक दूसरे को देख सकें। तीसरी मंज़िल की लॉबी में बीजी, बाऊजी, जेठ और जेठानी खड़े झगड़ रहे हैं। गुरमीत उसे देखते ही लॉबी की रेलिंग पकड़ कर ज्वालामुखी-सी फट पड़ी- ‘मनप्रीत तुम्हारा हाल भी मेरे जैसा होने वाला है। पम्मी इस समय सोफ़ी के घर पर है। इन्हें बहुएँ नहीं, नौकरानियाँ चाहिए। बहुएँ तो इनकी गोरियाँ हैं। नौकरानियाँ यहाँ मँहगी पड़ती हैं। ये शादी की आड़ में हमें नौकरानियाँ बना कर लाएँ हैं। भाग जा यहाँ से, वरना मेरी तरह रोज़ हड्डियाँ तुड़वाएगी।’
बीजी ने पीछे से उसकी पीठ पर धौल जमाई – ‘चुपकर मरजानिये।’ गुरमीत ने बड़ी मुश्किल से अपना संतुलन ठीक किया। इससे पहले कि वह बीजी की तरफ मुड़ती, हट्टे-कट्टे सुखबीर ने, छरहरी गुरमीत को अपनी बाँहों में ऊपर उठाया और उसके देखते ही देखते तीसरी मंज़िल की लॉबी से नीचे फैंक दिया। लकड़ी के फ़र्श पर ‘घड़ाम’ की आवाज़ के साथ गुरमीत की दिल चीरती चीख निकली और पूरा घर काँप गया। गुरमीत को सामने फ़र्श पर पड़ा देखकर मनप्रीत जड़वत् हो गई।
बीजी ने दहाड़ मार कर कहा -” हाय, सुखबीरे यह क्या किया।” और तेज़ी से नीचे की ओर भागती हुई उसकी ओर देख इशारा कर कहने लगीं-‘ मनप्रीत जा अपने कमरे में, तुमने कुछ नहीं देखा, कुछ नहीं सुना।’ बाऊजी ने पहला फ़ोन पम्मी को किया कि वह वकील को लेकर आए और दूसरा एम्बुलेंस के लिए।
मनप्रीत वहीं अपने कमरे के सामने बेसुध सी खड़ी रही। वह अपने शरीर को हिला ही नहीं सकी।
बाऊजी अभी फ़ोन पर बात कर ही रहे थे कि पुलिस के सायरन की आवाज़ आने लगी। पड़ोसन जिल वुलेन ने लड़ाई की आवाज़ें, चीख और ‘घड़ाम’ की आवाज़ सुन कर पुलिस को फ़ोन कर दिया था। पुलिस के पहुँचने में तीन-चार मिनट भी नहीं लगे। आस-पास के घरों की बत्तियाँ जल गईं। लोग घरों से बाहर आ गए।
‘गुरमीत तूने आत्महत्या क्यों की? मैंने तुम्हें कितना समझाया कि सब कुछ ठीक हो जाएगा। मैं सो रही थी…और तुमने छलाँग लगा दी।’ बीजी ने छाती पीट-पीट कर रोना शुरू कर दिया। ‘हे रब्बा, मैं क्यों सो गई….. जागती रहती तो यह कभी न होता ….।’
सुखबीर सीढ़ियों पर बैठकर रोने लगा। बाऊजी बीजी के साथ खड़े होकर रोने लगे।
गुरमीत सिर के बल गिरी और उसका सिर फट गया। उसी पल उसके प्राण-पखेरू उड़ गए। एम्बुलेंस के साथ आई टीम ने उसे मृतक घोषित कर दिया। एम्बुलेंस ऑटोप्सी करने के लिए उसकी लाश लेकर चली गई और पुलिस अपनी कार्यवाही करने लगी।
डरी, सहमी मनप्रीत की सोचने-समझने की शक्ति ही नहीं रही। वह बस आवाज़ें सुन रही है। तभी पम्मी पहुँच गया। उसके कान में उनके वकील ने कुछ कहा और उसने मनप्रीत को बाँहों में लेकर सीने से लगा लिया। पुलिस सार्जेंट ने जब उससे कुछ पूछना चाहा तो पम्मी ने निवेदन किया कि इस समय उसकी पत्नी सकते में है, उसकी मानसिक स्थिति बहुत नाज़ुक है, कृपया उसे सम्भलने का समय दीजिए। वह अपना बयान ज़रूर देगी।
अंत्येष्टि गृह में बैठी मनप्रीत को केवल इतना याद है कि एक डॉक्टर आई थी और उसकी हालत देख कर उसे नींद की गोलियाँ दे गई थी। वह कब तक सोई रही, उसे कुछ याद नहीं। पम्मी उसे तैयार करके यहाँ ले आया। कर्मकाण्डों के दौरान गुरमीत के लिए बीजी, बाऊजी और सुखबीर का ज़ार-ज़ार रोना मनप्रीत को बहुत चुभा, उसे बेइंतिहा तकलीफ़ हुई।  उसे यह सब पाखंड और दिखावा लगा। सुसराल वालों के प्रति उसके मन में घृणा पैदा हो गई है। सुरक्षा कवच बना पम्मी हर समय उसके साथ रहता है। गुरमीत को वह बड़ी बहन के रूप में चाहने लगी थी। अपनी आँखों के सामने उसे इस तरह जाता देख, भयंकर तूफ़ान में उखड़े, टूटे वृक्ष सा वह स्वयं को महसूस कर रही है।

वहीं खड़ी पड़ोसन जिल वुलेन का रोना रुक नहीं रहा। उसे बीजी, बाऊजी और सुखबीर का नाटक सुहाया नहीं। वह गुरमीत की पक्की सहेली थी। दोनों एक दूसरे के दुःख-सुख की साथी थीं। उसने पुलिस को अंत्येष्टि गृह से बाहर ले जाकर वह हर बात बता दी; जो गुरमीत ने उसके साथ साझी की थी और साथ ही अपनी शंका भी जताई कि यह आत्महत्या नहीं, हत्या है। यहाँ की पुलिस बहुत सतर्क और गति में तेज़ होती है। जिल वुलेन के शक पर गहरी छानबीन की गई। ऑटोप्सी रिपोर्ट ने भी आत्महत्या नहीं बताया; स्वयं गिरना और उठाकर गिराए जाने में चोटों के अन्तर को उन्होंने स्पष्ट किया। ऑटोप्सी में उसके शरीर पर मार-पीट के निशान भी उन्हें मिले। जिससे पुलिस के निर्णय को पुष्टि मिली। सुखबीर और उसके माँ-बाप को हिरासत में ले कर पुलिस ने मुक़दमा दायर कर दिया।
     भारतीय समुदाय में हलचल मच गई। समाचार पत्रों के पहले पृष्ठ पर यह खबर छपी। जिल वुलेन ने निडरता से पत्रकारों से बात की। सबकी सहानुभूति गुरमीत के साथ थी। लोगों ने गुरमीत के लिए इंसाफ की मांग की।
     सदमे से मनप्रीत ख़ामोश हो गई। अब बस उसकी गवाही ही सुसराल वालों को बचा सकती थी, पर वह ख़ामोश है। उसके सामने जब भी कोई अकस्मात् घटना घटती, बचपन से ही उसकी जीभ तालू के साथ चिपक जाती है। घटना की प्रत्यक्षदर्शी होते हुए भी वह बोल नहीं पाती और सही समय पर सच न बोल पाने के कारण बाद में वह स्वयं को कोसती रहती। कई सच वह कह नहीं पाई और झूठ जीतता रहा, उसका मलाल उसे अब तक है। बचपन की बातें तो बचपन के साथ ही चली गईं। आज जिस दुर्घटना की वह प्रत्यक्षदर्शी गवाह है; उससे पैदा हुए द्वंद्व में घिरी हुई वह निढाल और परेशान है। उसकी मानसिक यातना दुर्घटना में जुड़े अपनों और रिश्तों को लेकर है। उसकी ज़ुबान खुल गई तो उसे इसकी बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी, परदेश में उसका घर छूट जाएगा और अगर नहीं बोली तो भी वह उस घर में जी नहीं पाएगी। दुर्घटना उसकी आँखों के सामने हुई है। वह क्या करे…इन परिस्थितियों में इस देश में उसका मार्गदर्शन करने वाला कोई नह
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