मेरे मन/मेरी स्मृतियों में मेरे पिता
पिता को लेकर mediawala.in में शुरू की हैं शृंखला-मेरे मन/मेरी स्मृतियों में मेरे पिता। इस श्रृंखला की 44th किस्त में आज हम प्रस्तुत कर रहे है पूर्व असिस्टेंट साॅलीसीटर जनरल एवं वरिष्ठ अधिवक्ता, सुप्रसिद्ध लेखक श्री विनय झैलावत को .उनके पिता श्री हस्तीमल जी झैलावत एक अच्छे वकील होने के साथ-साथ हस्तरेखा विशेषज्ञ एवं ज्योतिष भी थे. आतिथ्य सत्कार हमारी संस्कारित परम्परा है, यह इस संस्मरण से सीखा जाने वाला भारतीय व्यावहारिक मूल्य है. ‘अतिथि देवो भव’ एक संस्कृत वाक्यांश है जिसका अर्थ है, ‘अतिथि भगवान है‘. यह वाक्यांश तैत्तिरीय उपनिषद के शिक्षावली के 11वें अनुवाद की दूसरे स्रोत में लिखा है. इसमें लिखा गया एक श्लोक कुछ इस तरह से है : अभ्यागतं श्रान्तमनुव्रजन्ति देवाश्च सर्वे पितरोSग्नयश्च। तस्मिन् द्विजे पूजिते पूजिता: स्यु-र्गते निराशा: पितरो व्रजन्ति।। अर्थात, जब थका हुआ अतिथि (अभ्यागत) घर पर आता है, तब उसके पीछे-पीछे समस्त देवता, पित्रदेव और अग्नि भी पदार्पण करते हैं। इस सुंदर भाव को अपने संस्कार में ढाल चुके उनके उत्तराधिकारी बेटे अपने पिता के स्वभाव की विनम्रता और उनके जीवन मूल्यों को रेखांकित करते हुए उन्हें अपनी सादर भावांजलि अर्पित कर रहे हैं …..
सम्पादन- डॉ. स्वाति तिवारी
44.In Memory of My Father-Shri Hastimal Jhelawat: सम्मोहित करने वाले अभिनव व्यक्तित्व थे मेरे पिता- विनय झैलावत
बेहद आकर्षक, प्रभावी, स्थाई मुस्कान एवं सम्मोहित करने वाले व्यक्तित्व का नाम था श्री हस्तीमल जी झैलावत। एक मुस्कान उनके चेहरे पर हमेशा विद्यमान रहती थी। उनका जन्म 30 अगस्त 1929 को मंदसौर जिले में हुआ था। उन्हें हम ‘‘पापा‘‘ कहते थे। वे एक अच्छे वकील होने के साथ-साथ शौकिया हस्तरेखा विशेषज्ञ एवं ज्योतिष भी थे। सामान्यतः हस्तरेखा के जानकार तारीख के आधार पर घटनाओं का विश्लेषण एवं जानकारी नहीं देते हैं। लेकिन ‘‘पापा‘‘ इसके अपवाद थे। वे तारीख सहित आगामी घटनाक्रम बताते थे। इसके कई उदाहरण व उनके मुरीद आज भी विद्यमान है, जो उनको आदर के साथ आज भी याद करते हैं। उन्होंने अपने इस शौक को विशुद्ध शौक ही रखा। उन्होंने कभी भी एक पैसा अथवा भेंट इस शौक के लिए नहीं ली। कभी कोई कुछ लेकर भी आता था तो वे अत्यंत स्नेह, अपनत्व एवं विनम्रता पूर्वक इंकार कर देते थे। लेकिन वे कभी भी इस आशय से आने वाले व्यक्ति को निराश नहीं करते थे। अनेक ऐसे उदाहरण थे जब वे खाना खाने बैठने वाले ही होते थे, तब कोई घर की घंटी बजाता था। भले ही आने वाले व्यक्ति अनजान होते थे अथवा किसी अन्य परिचित व्यक्ति का संदर्भ लेकर आते थे, लेकिन ‘‘पापा‘‘ खाना बाद में खाने का कहकर पहले उनका हाथ देखते थे। उनकी शंका का समाधान करते थे, दुखी व्यक्ति को हिम्मत देते थे, तब फिर खाना खाते थे। भले ही इसमें कितना भी समय लगता था।
दुसरा उनके जीवन का महत्वपूर्ण पहलू था, वह था आतिथ्य सत्कार। वे एक अच्छे मेजबान भी थे। वे हमेशा यह कहते थे कि वे भाग्यशाली लोग होते हैं जिनके यहां अतिथि आते हैं। उनका आतिथ्य सत्कार होना चाहिए। सभी आने वाले लोगों को उनके निर्देशानुसार चाय-नाश्ता से आतिथ्य सत्कार किया जाता था। दुसरा निर्देश यह था कि आने वाले को घर के बाहर मुख्य दरवाजे तक छोड़ने जाना चाहिए। वे स्वयं जाते थे। लेकिन भीड़ अधिक होने के कारण यदि वे किसी दूसरे अतिथि के हाथ देखने में व्यस्त होते तो, हम अतिथि को मुख्य द्वार तक छोड़ने जाते थे।
उनकी स्वभावगत विशेषता कभी गुस्सा न करना तथा एक मुस्कुराहट के साथ आगंतुक से भी मिलना होता था। उन्होंने कभी भी हम बच्चों पर गुस्सा नहीं किया। हम बच्चों को, असफलता में हिम्मत और सफलता में सराहना की। उनसे मिलने वाला भले ही बच्चा हो, बेहद आत्मीयता महसूस करता था। कई बच्चे उनके पास घंटों तक बैठे रहते थे। अपने भविष्य, पढ़ाई और केरियर को लेकर गंभीर मंत्रणा होती रहती थी। एक छोटे बच्चे को वे लखपति कहकर संबोधित करते थे। आज वह बच्चा बड़ा व्यवसायी है तथा अकसर उन्हें याद करता है। लेकिन उन्होंने कभी भी घर के लोगों के हाथ नहीं देखे। इसे वे नीतिशास्त्र के विरूद्ध मानते थे।
एक जमाने में उन्हें वकील के रूप में कम तथा डाॅक्टर अधिक माना जाता था। उस जमाने में शहर के अधिकांश सुप्रसिद्ध चिकित्सक उनके अभिन्न मित्र थे। महाराज यशवंत राव चिकित्सालय के अधिकांश प्रोफेसर व चिकित्सक उनसे घर मिलने आते थे तथा वे भी उनसे नियमित रूप से मिलने जाते थे।
उनसे मिलने कई संत व साधु भी आते थे तथा उनसे अत्यंत ही आत्मीय आध्यात्मिक संबंध थे। उनमें भी अपना भविष्य एवं पदवी मिलने की जिज्ञासा होती थी। एक साधु महाराज का उस समय इन्दौर में हल्ला मचा हुआ था। वे शायद राजकीय अतिथि भी थे। रात को लगभग दस बजे उनके भक्त का फोन आया कि वे घर दर्शन देने आना चाहते है। पिताजी ने कहा उनका स्वागत है। घर पर कंकू के पैर चिन्ह उन्होंने सफेद कपड़े पर अंकित किए तथा पिताजी से कुछ देर आधात्म पर चर्चा कर जाने लगे।
मुख्य दरवाजे पर पापा ने उन ‘‘महाराज‘‘ को कुछ क्षणों के लिए अपने पास अलग बुलाया तथा कहा कि वे कल के कार्यक्रम निरस्त कर दे। कल सुबह से आपका स्वास्थ्य खराब होने वाला है। वे महाराज ज्योतिष के जानकार भी थे। उनके यहां अपना भविष्य जानने लंबी-लंबी कतारें लगती थी। अगले दिन सुबह ही उनके किसी भक्त का फोन आया कि महाराज ने पापा को तुरन्त बुलाया है। मालूम पड़ा कि सुबह ही उनका स्वास्थ्य खराब हो गया है तथा उन्होंने सभी कार्य भी निरस्त कर ‘‘पापा‘‘ को बुलाया है। बाद में एक भक्त के यहां साथ भोजन के लिए भी ‘‘पापा‘‘ तथा ‘‘मम्मी‘‘ को बुलाया गया था।
‘‘पापा‘‘, मम्मी सोहन बाला झैलावत के साथ आदर्श दम्पत्ति के उदाहरण थे। उस जमाने में उन्होंने उनसे प्रेम किया तथा घरवालों की सहमति से विवाह किया। साथ ही वे एक आदर्श दादा जी तथा नानाजी रहे। उन्होंने कभी अपने पोते तथा पोती को दुपहिया वाहन चलाने नहीं दिया। शायद वे बच्चों की लापरवाही से डरते थे। बच्चों को जहां जाना होता था वे खुद उन्हें अपने वाहन से छोड़ने जाते थे। एक ट्यूशन पर तो वे सुबह जल्द उन्हें टीचर के यहां छोड़ने जाते थे तथा खुद कार पार्क कर ‘‘मम्मी‘‘ के साथ माॅर्निंग वाॅक के लिए निकल जाते थे तथा छुटने का समय होने पर बच्चों को लेकर घर आते थे। सुनय, उनका पोता इंजीनियरिंग कालेज बेंगलोर जाने के पूर्व तक अलग कमरा होने के बावजूद अपने दादा-दादी के बीच सोता था। जब इस पर हम उलाहना देते थे तो वे मुसकुराकर कहते थे जब हमें तकलीफ नहीं है तो आपको क्या तकलीफ है। अपनी पोती विधि को ‘‘जीजी‘‘ कहते थे तथा वह कुछ भी अच्छा काम करती तो उसकी सराहना करते थे। उन्होंने अपने दोनों बेटियों मंजू तथा रेणु तथा उनके बच्चों को बेहद प्यार किया। अपने नाती/पोतो/पोती के प्रति उनकी आसक्ति और आत्मीयता अद्भूत थी।
उम्र के अंतिम पड़ाव तथा उन्हें कोई बीमारी नहीं थी। मिठाई के बेहद शोकीन थे। बाहर कहीं भी जाने पर मेरी जिज्ञासा यह होती थी कि वहां की प्रसिद्ध मिठाई कौनसी है। वह लेकर आता था तो ‘‘पापा‘‘ बेहद प्रसन्न होते थे तथा शौक से उस मिठाई को तारीफ करते हुए खाते थे। मेरी माताजी तथा धर्मपत्नी सुनीता भी उनकी पसंद की मिठाइयां अकसर बनाती रहती थी। लेकिन इन मिठाइयों का स्वाद कैसा है यह जानने के लिए सबसे पहले मिठाई उन्हें चखाई जाती थी। वे हमारे घर परिवार के आफिशियल ‘‘टेस्टर‘‘ थे। उनके द्वारा स्वीकृति मिलने पर ही उस मिठाई को अंतिम स्वरूप दिया जाता था।
पूरे परिवार, बेटे, बेटियों, बहुओं से उनके आत्मीयता से परिपूर्ण स्नेहिल संबंध रहे। कई परिचित एवं रिश्तेदारों के लड़की दामाद अपने ससुराल से अधिक अधिकार, आत्मीयता, स्नेह एवं अपनत्व से हमारे घर ‘‘पापा‘‘ से मिलने आते थे। उन्होंने जीवन में अपने रिश्तेदारों के लिए भी यथा संभव खूब मदद की। जिसकी जितनी मदद हो सकती थी वह की। मेरे छोटे मामा तो उनकी बदोलत ही इंजीनियर बने तथा अंत तक उनके आभारी रहे। ऐसे ही अनेकानेक लोग थे जो उनका आभार मानते रहे तथा आज भी उन्हें आत्मीयता एवं आदर के साथ याद करते है।
वह कई वर्षों तक गुजराती विधि महाविद्यालय में मानद प्राध्यापक रहे तथा उनके विद्यार्थी उन्हें उनके पढ़ाने की शैली तथा आत्मीयता के कारण आज भी याद करते हैं ।उनके पढ़ाए हुए विद्यार्थियों में से कई आज न्यायाधीश एवं विधि के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्यरत है।
उनका जीवन अत्यंत ही संघर्षपूर्ण रहा ।रतलाम महाराज के स्टेनो भी रहे तथा शासकीय तथा अशासकीय सेवाओ में भी रहे ।खराब दिनों के खराब अनुभवो को उन्होंने भुला दिया था। लेकिन शिक्षा के तौर पर वे उसे हमेशा याद रखते थे और बताते थे ।वे दोस्तों के दोस्त थे। प्रारंभिक जीवन काल में बने उनके दोस्त बल्कि दोस्तों का समूह उनके जीवनकाल के अंतिम क्षणो तक उनके साथ रहे।
उनके आत्मीय एवं गहरे संबंध न्याय क्षेत्र में भी अनको न्यायाधीशों से रहे। इसमें सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय तथा जिला न्यायालय के न्यायाधीश शामिल रहे। एक सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश ने तो अपने पुत्र की शादी में उनके आगमन के लिए एयर टिकिट भी भेजे। भारत के पूर्व वरिष्ठ मंत्रि ने उन्हें लेने उनके दामाद को भेजा था। लेकिन उन्होंने कभी भी इन तथ्यों को अपने जीवन काल में कभी प्रकट नहीं किया और ना ही इसका कभी दुरुपयोग किया। अंत तक वे एक सामान्य व्यक्ति ही बने रहे।
वे एक आदर्श व्यक्तित्व के मालिक थे। उनका देहावसान 16 मार्च 2011 को अचानक पोते की शादी से कुछ माह पूर्व हो गया। लेकिन ऐसे व्यक्तित्व कहीं जाते कहां है ? वे हमेशा हमारे साथ थे, साथ है और साथ रहेंगे। गहरे अंधकार में वे आज भी प्रकाश पूंज की तरह हमारा मार्गदर्शन हमेशा करते थे और करते रहेंगे। एक आदर्श पति, पिता, दादा, नाना एवं सबसे बड़े आत्मीय मित्र एवं व्यक्तित्व बिरले ही होते हैं। उनकी याद परिवार के साथ-साथ अनेक उनके चाहने वालों को खूब आती है।
विनय झैलावत
(लेखक पूर्व असिस्टेंट साॅलीसीटर
जनरल एवं वरिष्ठ अधिवक्ता हैं)
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