49.In Memory of My Father-Shri Ravindra Nath Vyas :श्री हरिवंश राय बच्चन ने पिताजी को काव्य जगत का चमकीला सितारा कहा था.

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मेरे मन/मेरी स्मृतियों में मेरे पिता-

पिता को लेकर mediawala.in में शुरू की हैं शृंखला-मेरे मन/मेरी स्मृतियों में मेरे पिता। इस श्रृंखला की 49th किस्त में आज हम प्रस्तुत कर रहे है भोपाल की पूनम व्यास को .पिता और पुत्री का रिश्ता दुनिया में सबसे अनमोल रिश्ता होता है। यह ऐसा रिश्ता है, जिसमें कोई शर्त नहीं होती, यह बिल्कुल निस्वार्थ होता है। पुत्री, पिता के सबसे करीब और पिता का अभिमान भी होती है। एक बेटी को सबसे ज्यादा प्यार और गर्व अपने पिता पर होता है। पूनम अपने पिता की सबसे छोटी बेटी है।रवींद्र नाथ व्यास एक साहित्यिक अभिरुचि के आदर्श शिक्षा शास्त्री थे। आध्यात्मिक अभिरुचि  पूनम को अपनी मां से मिली है। श्री रवींद्रनाथ व्यास की बहुचर्चित काव्य रचना रोटी की भूमिका शीर्षस्थ कवि श्री हरिवंश राय बच्चन ने लिखी थी और उनके कविता संग्रह पर चर्चा निराला जी ने की थी। बच्चन जी के पत्र और अपने पिता जी की पांडुलिपियों को बेटी धरोहर के रूप में सुरक्षित रखे हुए हैं. एक दिन ये किताबें भी प्रकाशित होंगी। बेटी का स्वाभिमान, सशक्त व्यक्तित्व और सोच उसके पिता को परिभाषित करते हैं…। अपने समय के प्रतिभावान कवि पिता को याद करते हुए उनके साहित्य से प्रेरणा लेकर अपने जीवन मूल्यों को सहेजते हुए  भावांजलि दे रही हैं उनकी पुत्री पूनम व्यास……

49.In Memory of My Father-Shri Ravindra Nath Vyas: श्री हरिवंश राय बच्चन ने पिताजी को काव्य जगत का चमकीला सितारा कहा था.

पिता को लेकर मीडियावाला एवं आदरणीय स्वाति दीदी ने जो शृंखला प्रारम्भ की है वह बहुत ही सराहनीय है। इसी शृंखला में यह मेरा एक छोटा सा प्रयास है। अपने  कुटुंब की साहित्यिक विरासत मेरी चचेरी बड़ी बहन डॉ. स्वाति तिवारी ने संभाली है, स्वाति दीदी ने अपने परिवार  की साहित्यिक विरासत को ऊँचाइयाँ दी है.आज भी साहित्य जगत में हमारे परिवार की भागीदारी जारी है. मैं लेखिका तो नहीं हूँ बस अपने कुछ संस्मरण आप सबसे साझा करना चाहती हूँ। पिता तो बरगद की छाँव की तरह होते हैं , उस छाया के वर्णन तो शब्दों में नहीं किया जा सकता। मेरे पिताजी तो बहुत जल्दी इस दुनिया से चले गए।

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मैं छोटी ही थी जब वे हमें छोड़ गए थे, लेकिन बचपन की यादों के झरोखे में बहुत सी खूबसूरत यादें हैं जो मैं आपसे बांटना चाहती हूँ…..

किसने देखा है भविष्य को आज इसी से तुम मुस्काओ,

जीवन को संगीत समझ कर चलते चलते गाते जाओ।

अपनी प्रतिभा के सौरभ से जग को आज सुवासित कर दो,

कहने की निमित्त मत जियो , जीने के हित रोटी खाओ।

उपरोक्त सुन्दर पंक्तियाँ मेरे पिताजी श्री रवींद्र नाथ जी व्यास द्वारा रचित एवं प्रकाशित रोटी  नामक काव्य से है. जिसमे उन्होंने संवेदनशील एवं मार्मिक ढंग से विश्व की ज्वलंत समस्या भूख एवं रोटी पर पद्य रचना की है। पिताजी विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। बचपन से ही पढ़ने लिखने में उनकी रूचि थी और इसीलिये धार जैसी छोटी जगह में भी असुविधाएं कभी भी उनके अध्ययन मार्ग में बाधाएं नहीं बनी।  उन्होंने हिंदी में स्नातकोत्तर  उपाधि प्राप्त की थी और अपनी रूचि के अनुसार ही जीवन यापन के लिए शिक्षक बनकर हिंदी अध्यापन को ही चुना। उनके द्वारा पढ़ाये छात्र आज भी उनकी अध्यापन कला, भाषा की पैठ एवं मंत्रमुग्ध कर देने वाली वाणी को याद करते नहीं थकते। पिताजी एक अच्छे शिक्षक होने के साथ साथ एक अच्छे लेखक व कवि भी थे । अवसरों के अभाव में उनकी कई रचनाएँ पाण्डुलिपि ही रह गयीं और प्रकाशित नहीं हो पाईं और उनकी प्रतिभा का सही आकलन नहीं हो पाया। अपने समकालीन कवियों एवं लेखकों से उन्होंने सतत संपर्क बनाये रखा था इनमे आदरणीय श्री हरिवंश राय बच्चन जी , शरद जोशी जी का नाम उल्लेखनीय है। बच्चन जी से तो उनका वर्षों तक पत्र व्यवहार चलता रहता था. उनके द्वारा रचित रोटी नामक पद्य रचना की प्रस्तावना भी बच्चन जी ने लिखी थी।  श्री हरिवंश राय  बच्चन जी ने पिताजी को काव्य जगत का चमकीला सितारा कहा था। दिनांक 25 अप्रैल 56 को लिखिए इस प्रस्तावना में महानतम कवि बच्चन जी मैं मेरे पिता की भरपूर प्रशंसा करते हुए जो शब्द लिखे हैं वह आप स्वयम देखिए और पढ़िए।

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पिताजी की रचनाओं के विषयों में जितना विस्तार है उतनी गहराई भी। उनके द्वारा रचित साहित्य में बेरोजगारी, गरीबी , भुखमरी जैसे ज्वलंत सामाजिक मुद्दे थे तो देशप्रेम और राष्ट्र भक्ति की रचनाएँ वीर रस से ओतप्रोत थी। तुलसी , कबीर , रैदास के प्रति श्रद्धांजलि हो या ईश्वर से साक्षात्कार की तड़प हो , हर विषय को उन्होंने सहजता और गहराई से छुआ था।

उनके द्वारा रचित रचनायें हैं – रोटी , औरों के लिए, मेरा क्या , स्वप्न ,एकलव्य , अंतर ध्वनि , आर्थिक युग , खोटा सिक्का , बहुत दिनों के बाद ,मेरी डाली के खिलते फूल, इत्यादि।

पिताजी के साथ बचपन की यादे जुड़ी है। मैं माँ से नहीं पढ़ती थी .पिताजी मुझे अपनी नौकरी से अवकाश लेकर बैरागढ़ भोपाल आते थे जहां हम मां के साथ रहते थे। मां और पिताजी दोनों नौकरी में थे। पिताजी मध्यप्रदेश के एक  राजकीय विद्यालय में थे और मां बैरागढ़ विद्यालय में शिक्षिका। रेहटी ज्यादा दूर नहीं था। वह आ जाते थे और हम लोगों की देखभाल करते थे लेकिन परीक्षा के दिनों में विशेष कर छुट्टी लेकर पूरे समय हम लोगों को पढ़ाते थे। । वे ही मुझे पढ़ाते थे। सारे विषय किस्से कहानियों में मुझे याद करवा दिया करते थे। गणित जैसे विषय भी खेल खेल में सीखा देते थे। उनके जैसे शिक्षक और पिता तो शायद कई जन्मो में भी मुझे नहीं मिलेंगे। मेरे पिताजी ज्ञान का सागर थे , नियति के सामने हम कुछ नहीं कर सकते।

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उनके असमय महाप्रयाण ने हमसे बहुत कुछ छीन लिया , हमने बहुत कुछ खो दिया। अब जब भी अकेले में सोचती हूँ , जब वे हमारे साथ थे तो हम नासमझ थे या यों कहें कि हमें समझ ही नहीं थी। उनसे कितना कुछ सीख सकते थे। आज स्वाति दीदी के आग्रह पर मैंने अपने बचपन के बंद कर दिए पन्नों में झांककर यह थोड़ा सा प्रयास किया है। आज उनको इस दुनिया से अलविदा कहे लगभग ४० बरस बीत चुके हैं। पिता तो आसमान की तरह होते हैं इसलिए शायद जैसे आसमान की बराबरी नहीं की जा सकती पिताजी की भी बराबरी कोई नहीं कर सकता।

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पूनम व्यास

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