मेरे मन/मेरी स्मृतियों में मेरे पिता-
पिता को लेकर mediawala.in में शुरू की हैं शृंखला-मेरे मन/मेरी स्मृतियों में मेरे पिता। इस श्रृंखला की 48th किस्त में आज हम प्रस्तुत कर रहे है
पिता को लेकर मीडिया वाला एवं आदरणीय स्वाति दीदी ने जो शृंखला प्रारम्भ की है वह बहुत ही सराहनीय है। इसीशृंखला में यह मेरा एक छोटा सा प्रयास है। मैं लेखिका तो नहीं हूँ बस अपने कुछ संस्मरण आप सबसे साझा करना चाहती हूँ। पिता तो बरगद की छाँव की तरह होते हैं , उस छाया के वर्णन तो शब्दों में नहीं किया जा सकता। मेरे पिताजी तो बहुत जल्दी इस दुनिया से चले गए।
मैं छोटी ही थी जब वे हमें छोड़ गए थे, लेकिन बचपन की यादों के झरोखे में बहुत सी खूबसूरत यादें हैं जो मैं आपसे बांटना चाहती हूँ।
किसने देखा है भविष्य को आज इसी से तुम मुस्काओ,
जीवन को संगीत समझ कर चलते चलते गाते जाओ।
अपनी प्रतिभा के सौरभ से जग को आज सुवासित कर दो,
कहने की निमित्त मत जियो , जीने के हित रोटी खाओ।
उपरोक्त सुन्दर पंक्तियाँ मेरे पिताजी श्री रवींद्र नाथ जी व्यास द्वारा रचित एवं प्रकाशित रोटी नमक काव्य से है. जिसमे उन्होंने संवेदनशील एवं मार्मिक ढंग से विश्व की ज्वलंत समस्या भूख एवं रोटी पर पद्य रचना की है। पिताजी विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। बचपन से ही पढ़ने लिखने में उनकी रूचि थी और इसीलिये धार जैसी छोटी जगह में भी असुविधाएं कभी भी उनके अध्ययन मार्ग में बाधाएं नहीं बनी। उन्होंने हिंदी में स्नातकोत्तर ( ड । ) उपाधि प्राप्त की थी और अपनी रूचि के अनुसार ही जीवन यापन के लिए शिक्षक बनकर हिंदी अध्यापन को ही चुना। उनके द्वारा पढ़ाये छात्र आज भी उनकी अध्यापन कला, भाषा की पैठ एवं मंत्रमुग्ध कर देने वाली वाणी को याद करते नहीं थकते। पिताजी एक अच्छे शिक्षक होने के साथ साथ एक अच्छे लेखक व कवि भीथे। अवसरों के अभाव में उनकी कई रचनाएँ पाण्डुलिपि ही रह गयीं और प्रकाशित नहीं हो पाईं और उनकी प्रतिभा का सही आकलन नहीं हो पाया। अपने समकालीन कवियों एवं लेखकों से उन्होंने सतत संपर्क बनाये रखा था इनमे आदरणीय श्री हरीवंश राय बच्चन जी , शरद जोशी जी का नाम उल्लेखनीय है। बच्चन जी से तो उनका वर्षों तक पत्र व्यवहार चलता रहता था उनके द्वारा रचित रोटी नामक पद्य रचना की प्रस्तावना भी बच्चन जी ने लिखी थी। श्री हरीवंश राय बच्चन जी ने पिताजी को काव्य जगत का चमकीला सितारा कहा था।
पिताजी की रचनाओं के विषयों में जितना विस्तार है उतनी गहराई भी। उनके द्वारा रचित साहित्य में बेरोजगारी, गरीबी , भुखमरी जैसे ज्वलंत सामाजिक मुद्दे थे तो देशप्रेम और राष्ट्र भक्ति की रचनाएँ वीर रस से ओतप्रोत थी। तुलसी , कबीर , रैदास के प्रति श्रद्धांजलि हो या ईश्वर से साक्षात्कार की तड़प हो , हर विषय को उन्होंने सहजता और गहराई से छुआ था।
उनके द्वारा रचित रचनायें हैं – रोटी , औरों के लिए, मेरा क्या , स्वप्न ,एकलव्य , अंतर ध्वनि , आर्थिक युग , खोटा सिक्का , बहुत दिनों के बाद ,मेरी डाली के खिलते फूल, इत्यादि।
पिताजी के साथ बचपन की यादे जुड़ी है। मैं माँ से नहीं पढ़ती थी इसलिए जब भी मेरी परीक्षाएं होती थी पिताजी छुट्टी लेकर मुझे पढ़ाने आते थे। वे ही मुझे पढ़ाते थे। सारे विषय किस्से कहानियों में मुझे याद करवा दिया करते थे। गणित जैसे विषय भी खेल खेल में सीखा देते थे। उनके जैसे शिक्षक और पिता तो शायद कई जन्मो में भी मुझे नहीं मिलेंगे। मेरे पिताजी ज्ञान का सागर थे , नियति के सामने हम कुछ नहीं कर सकते।
उनके असमय महाप्रयाण ने हमसे बहुत कुछ छीन लिया , हमने बहुत कुछ खो दिया। अब जब भी अकेले में सोचती हूँ , जब वे हमारे साथ थे तो हम नासमझ थे या यों कहें कि हमें समझ ही नहीं थी। उनसे कितना कुछ सीख सकते थे। आज स्वाति दीदी के आग्रह पर मैंने अपने बचपन के बंद कर दिए पन्नों में झांककर यह थोड़ा सा प्रयास किया है। आज उनको इस दुनिया से अलविदा कहे लगभग ४० बरस बीत चुके हैं। पिता तो आसमान कि तरह होते हैं इसलिए शायद जैसे आसमान की बराबरी नहीं की जा सकती पिताजी की भी बराबरी कोई नहीं कर सकता।