5. My Mother Aruna khare :-मेरी माँ की अंतिम इच्छा थी उनकी अस्थियां भारत में विसर्जित हो !

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5. My Mother Aruna khare
5. My Mother Aruna khare

एक अद्भुत और अद्वितीय व्यक्ति:”मेरी माँ “- 

माँ एक अद्भुत और अद्वितीय व्यक्ति है जो हर किसी के जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।   ‘मेरी माँ ‘श्रृंखला के माध्यम से हम अपनी माँ के प्रति अपना  सम्मान ,अपनी संवेदना प्रकट कर सकते हैं. आज इस श्रृंखला में लेखिका अपर्णा खरे अपनी माँ  अरुणा खरे के जीवन संघर्ष के बारे में अपनी माँ की आस्था को लेकर बता रही हैं कि माँ की कृष्ण भगवान में बहुत आस्था थी पापा की मृत्यु के बाद वो आस्था और बढ़ गई वो जहाँ जाती उनके एक झोले में भगवान और भागवत आदि किताबें होती थी यहां तक की अमेरिका भी भगवान उनके साथ गए| उनके हर कष्ट से लड़ने की ताकत उन्हें भगवान ही देते थे| पहले उनकी 10 वर्ष की बेटी की मृत्यु, फिर पापा और 58 साल की बेटी की कैंसर से मृत्यु, खुद की कैंसर की बीमारी, बेटे की 14 साल की शादी टूटना, उसकी 12 साल की बिटिया को पालना आदि ने उन्हें हर बार पहले से मजबूत ही किया| यह संस्मरण स्त्री  की जिजीविषा को बताता है। साथ ही एक और सोच सुन्दरता से गुण और काबिलियत  स्त्री या पुरुष  दोनों ही  में ज्यादा मायने रखती है।  एक भारतीय स्त्री का अंतिम समय विदेश में आ जाय तो  उनकी आत्मिक इच्छा क्या होती है,मंगलेश डबराल जी की पंक्तियों को दोहराते हुए आइये पढ़ते है उस इच्छा को  ————स्वाति तिवारी 

माँ ख़ुश होकर उनकी तरफ़ देखती
और जाते हुए भी उन्हें नमस्कार करती

हालाँकि उसकी उम्र के लिए यह ज़रूरी नहीं था
वह धरती को भी नमस्कार करती

कभी अकेले में भी
आख़िर में जब मृत्यु आई तो उसने उसे भी नमस्कार किया

और जैसे अपना जीवन उसे देते हुए कहा होगा
बैठो कुछ खाओ।-  मंगलेश डबराल

5 .My Mother Aruna khare:- मेरी माँ की अंतिम इच्छा थी उनकी अस्थियां भारत में विसर्जित हो !  

14 मई 1936 में जन्मी मेरी माँ अरुणा खरे का विवाह ग्यारहवीं पास करते ही जब कॉलेज लेक्चरर श्यामा चरण वर्मा के साथ हुआ तो परिवार बहुत खुश हुआ| हमारी नानी स्वयं 11 तक पढ़ी थी तो उनकी जिद थी कि बच्चों को ज्यादा से ज्यादा पढ़ा सकें पर मम्मी और बड़ी मौसी को वो इससे ज्यादा न पढ़ा पाई हालांकि अन्य बच्चों को उन्होंने अच्छे से पढ़ाया| उस ज़माने में भी मम्मी से किसी बहाने से पापा की फोटो दिखा कर नाना जी ने उनकी राय ले ली थी, दरअसल पापा काले रंग के थे और माँ बहुत गोरी पर माँ ने फोटो देख कर कहा कि रंग का क्या सोचना कितना पढा लिखा लड़का है जबकि उन्हें पता नहीं था कि उनकी शादी के लिए पूछा जा रहा है| एम. ऐ. में स्वर्ण पदक प्राप्त होने पर राष्ट्रपति डॉ राधा कृष्णन के हाथ से पदक लेते हुए पापा की फोटो अखबार में छपी थी और उस ज़माने में बिरले ही स्वर्ण पदक प्राप्त किया करते थे और वो भी राजनीति शास्त्र में|

ससुराल आने पर मेरी माँ की सुंदरता के चर्चे पूरे दमोह में फैल गए| उस समय दमोह में फिल्म सीमा लगी थी जिसकी हीरोइन नूतन थी सभी माँ की तुलना नूतन से करने लगे| घर की बड़ी बहू होने के कारण जिम्मेदारियों का काफी बड़ा भार मम्मी के ऊपर था जैसे बीमार ससुर, चार नंदो और एक देवर की पढ़ाई और शादी, दादी सास की सेवा आदि पर माँ ने सभी कुछ बहुत अच्छे से सम्भाला| बाबा की मृत्यु के बाद दूसरी दादी ( पहली दादी की मृत्यु हो चुकी थी)और बुआ चाचा लोगों को लेकर माँ जबलपुर आ गई थी जहाँ पापा की नौकरी थी| धीरे धीरे हम चार बहनों और एक भाई ने भी उनकी गृहस्थी को अपने आगमन से और हरा भरा कर दिया|

अद्भुत व्यक्तित्व की मालकिन थी मेरी माँ, बचपन में हमको लगता था जैसे वो कोई जादू जानती हैं क्योंकि हम बच्चों की सारी बदमाशियां वो तुरंत पकड़ लेती थी, उनसे पूछने पर उन्होंने बताया कि मम्मी लोगों को सब पता होता है खैर न ही कभी हम लोगों की शैतानियाँ खत्म हुई और न ही उनकी पकड़| जब थोड़ा बड़े हुए तब उन्होंने बताया कि वो भी बचपन में बहुत शैतान थी और इसीलिए हमारी चोरियाँ पकडी जाती थी|

हम सभी को माँ ही पढ़ाती, साथ ही सिलाई, बुनाई, कढ़ाई, नाचना, गाना, मिट्टी के खिलौने, कपडे के गुड्डा गुड़िया बनाने से लेकर खाना आदि बनाने की भी शिक्षा उन्होंने ही दी| उस जमाने में तरह तरह की ट्यूशन आदि का बहुत प्रचलन नहीं था अब सोचते हैं तो लगता है कि क्या वो कोई परी थी जो हमलोगों को घर में ही सब कुछ सीखा देती थी जबकि ढोलक बजाना और नाचना तो उन्हें बिल्कुल नहीं आता था| घर के लोगों के अलावा गांव और रिश्तेदारों के भी कई बच्चे हमलोगों के साथ रह कर पढ़ते थे पर कभी पता ही नहीं चला कि इतने लोगों का खाना बनाना कपड़े धोना कोई परेशानी का कारण हो क्योंकि सभी लोग मिल-जुल कर काम कर लेते थे
माँ हमेशा बहुत खुश रहती थी हमलोगों के साथ खूब खेलती भी थी सिर्फ घर के अंदर ही नहीं ( ताश, अष्टा- चंगा, अंताक्षरी आदि)बाहर के बगीचे में भी कभी कभी खेलती थी जैसे पिट्टू, मार गेंद आदि पर कोई गलती करने पर पिटाई भी खूब खाते थे हमलोग| उनके काम सिखाने के तरीके में भी खेल शामिल होता जैसे बरी डालने के लिए तब दाल सिल पर पीसनी होती थी तो दो या अधिक सिल रख कर कभी अंताक्षरी या कोई कहानी के साथ और कभी कभी जो पीस रहा है उसके मनोरंजन के लिए हम छोटे बच्चों को नाटक और नाच करना होता था| कुल मिला कर खूब मज़ा आता था| पढ़ाने के लिए वो कहती की हमें समझाओ तो हमलोग उन्हें समझाते और वो रोटी बनाते बनाते, कुछ सन्दर्भित प्रश्न पूछती जाती और हम लोगों को कब वो पाठ समझ आ जाता पता ही नहीं चलता|
माँ पूरे मुहल्ले की बड़ी मम्मी हुआ करती थीं सब बच्चे अपने मन की बात उनसे ही बताते थे और सभी की डॉक्टर भी वही होती थी सभी महिलाओं की भी वो ही सलाहकार होती थी| यहाँ तक की जब भाई के पास अमेरिका में वो रहीं तो भी उन्होंने अपने बच्चों का एक बड़ा समूह बना लिया था सभी को वो एक माँ की तरह स्नेह देतीं और सभी उनका भी बहुत ध्यान रखते |यदि वो कैंप आदि के लिए जाती तो गिलहरी तितली मोर यहां तक की पेड़ पौधे भी उनके दोस्त होते और सब उनका जैसे कहना मानते हों|
माँ की कृष्ण भगवान में बहुत आस्था थी पापा की मृत्यु के बाद वो आस्था और बढ़ गई वो जहाँ जाती उनके एक झोले में भगवान और भागवत आदि किताबें होती थी यहां तक की अमेरिका भी भगवान उनके साथ गए| उनके हर कष्ट से लड़ने की ताकत उन्हें भगवान ही देते थे| पहले उनकी 10 वर्ष की बेटी की मृत्यु, फिर पापा और 58 साल की बेटी की कैंसर से मृत्यु, खुद की कैंसर की बीमारी, बेटे की 14 साल की शादी टूटना, उसकी 12 साल की बिटिया को पालना आदि ने उन्हें हर बार पहले से मजबूत ही किया|
उन्होंने अपनी मृत्यु से 6 साल पहले ही अपने नाखून एक डिब्बी में रख कर मुझे भारत लाने के लिए दे दिए थे क्योंकि उन्हें भान हो गया था कि वो अमेरिका में ही मृत्यु को प्राप्त होंगी और उनके नाखून के रूप में उनकी अस्थियां भारत में विसर्जित हो सके| उनकी मृत्यु के पश्चात हम उनके अस्थि कलश को भारत लाए और एक ओर उनकी अस्थियां प्रशांत महासागर में विसर्जित हुई वहीं गंगा, नर्मदा, और गोदावरी नदी में भी उनकी अस्थियां विसर्जित कर पाए|

माँ का प्रिय मंत्र- “कृष्ण हेतु कृष्ण अर्पण”

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अपर्णा खरे

सृजन कार्य में संलिप्त
नृत्य, संगीत, पठन पाठन, यू ट्यूब चैनल “अपर्णा के खिलौने”

4. My Mother: – मेरी अन्तर्मुखी माँ सुशीला नेमा एक बार फिर लौट आये।

1. Unique Person My Mother: -“मेरी माँ “- श्रीमती प्रीति जलज -सफलता की समर्पित सीढ़ी