58. In Memory of My Father-मेरे पिता ने हर परिस्थिति में सहज एवं संयमित रहने की प्रेरणा दी!

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मेरे मन/ मेरी स्मृतियों में मेरे पिता

पिता को लेकर mediawala.in ने शुरू की हैं शृंखला-मेरे मन/मेरी स्मृतियों में मेरे पिता।इस श्रृंखला की 58 th किस्त में आज हम प्रस्तुत कर रहे है इंदौर की लेखिका हास्ययोग राजदूत,कैलीग्राफिस्ट डॉ अंजुल कंसल को ,वे लखनऊ की हैं। कई ललित कलाओं में रूचि रखती है। उन्होंने अपने पिताजी को संबोधित करते हुए अपनी बात कही है ,उनके पिताजी लखनऊ के बड़े व्यवसायी थे।   पिता का अपनी पहली संतान से अलग रिश्ता बनता है ,और खास कर बेटी से। सालों बाद भी इस रिश्ते की महक महसूस की जा सकती है।अमीर खुसरो की मशहूर रचना: काहे को ब्याहे बिदेस…कितनी याद आती है —

काहे को ब्याहे बिदेस, अरे, लखिय बाबुल मोरे
काहे को ब्याहे बिदेस

भैया को दियो बाबुल महले दो-महले
हमको दियो परदेस
अरे, लखिय बाबुल मोरे
काहे को ब्याहे बिदेस
तारों भरी मैनें गुड़िया जो छोडी़
छूटा सहेली का साथ
अरे, लखिय बाबुल मोरे
काहे को ब्याहे बिदेस

58. In Memory of My Father-मेरे पिता ने हर परिस्थिति में सहज एवं संयमित रहने की प्रेरणा दी!

डॉ. अंजुल कंसल

बचपन के बहुत से भाव उमड़ घुमड़ रहे हैं उन्हें कलम बद्ध कर रही हूं। मेरे पिता नरेश चंद चंद्रा जी पांच भाइयों में सबसे छोटे थे। पिता और बेटी का रिश्ता बहुत ही कोमल और ऊर्जा से भरा हुआ है, उन्हें सादर नमन कर रही हूं।आज जब लिखने बैठी तो पिता का प्यार कैसे पन्नों में उतारूं। दो-चार दिन से पापा की बहुत याद आ रही है। उनके लिए लिख पाना मेरे लिए बहुत मुश्किल हो रहा है। पापा आपको रोज-रोज याद करना भी आसान नहीं है न! जाने कितनी स्मृतियां ने डेरा डाल लिया, और मैं उलझ गई कि कहां से शुरू करूं और कहां खत्म करूं। आपकी स्मृतियों का खजाना है मेरे पास। मैं आपकी बड़ी बेटी, बड़ी लाडली रही हूं न!

1924 में उनका जन्म हुआ लखनऊ में। जब छै महीने के थे, तो उनकी माँ नहीं रहीं। तब उनकी बुआ बुलंदशहर ले गईं, उन्होंने ही पालन पोषण किया। मेरे दादा धनपाल चंद्रा जी ने उस जमाने में एक विधवा महिला जो अग्रवाल थी से शादी कर ली थी। फिर नै माँ ने मेरे पापा की परवरिश की।
दादाजी लखनऊ पॉलिटेक्निकल कॉलेज के प्रिंसिपल थे। इस इंस्टीट्यूट से पापा ने मैकेनिकल इंजीनियरिंग की, और साइकिल की फैक्ट्री लगाई ऐशबाग रोड पर। एक दुकान भी ले ली लाटूश रोड पर। उसको ताऊजी और पापा दोनों देखते थे।
पापा मुझे याद है, जब फोर्थ क्लास में मैं फर्स्ट आई थी, तो आपने मुझे लाल रंग का पेन ला कर दिया था, जिसमें मेरा नाम Anjula Chandra लिखा था।मैं खुशी से फूल गई थी। फिर आपने छठी कक्षा में एचएमटी की हाथ घड़ी दिलाई, वह पहनकर मैं नाचती रही।मैं आपकी बहुत लाडली बेटी थी। आप हमेशा बेटा- बेटा कहते थे। हम पांच भाई बहनों में आप मुझे बहुत प्यार करते थे।

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\अग्रसेन जयंती के अवसर में आपने टेबल टेनिस भी सिखाया और मुझे पार्टिसिपेशन का सर्टिफिकेट भी मिला। आपने मुझे साइकिल सिखाई और गोल्डन रंग की साइकिल दिलाई थी। फिर जब कुछ बड़े हुए तो आप रेलवे इंस्टिट्यूट के स्विमिंग पूल में तैरना सिखाते थे। मुझे आज सब सिलसिलेवार याद आ रहा है। आपकी बहुत याद आ रही है। मैंने अक्सर देखा, सोने से पहले मम्मी आनंद मठ और कुछ कहानियां सुनाती थीं। आपको सुनने में बहुत मजा आता था, पढ़ने में उतना नहीं।

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जब भी पापा की याद आती है मन अशांत हो जाता है। मैं यह सोचती थी, पापा किस मिट्टी के बने होते हैं। सुबह नौ बजे नाश्ता करके सफेद मक्खन जींस की पेंट और कमीज़ पहनकर साइकिल से फैक्ट्री चले जाते थे। लखनऊ में दोपहर में असह्य गर्मी पड़ती है, फिर भी वह हम सबके लिए गर्मियों में दशहरी आम लेकर आते थे और साथ में तरह-तरह के फल भी। फालसे लीची खाने का बहुत शौक था, खुद भी खाते थे और हम लोगों को भी खिलाते थे। उस समय हमारे घर में कूलर था, वह चला लेते थे,  इतनी गर्मी में भी  पापा को हमने कभी थकते नहीं देखा।
बच्चों को लेकर प्रदर्शनी दिखाने का बहुत शौक था। हम सब का हाथ पकड़े रहते थे। हम सबको बड़े-बड़े झूले पर बिठाते थे, खूब खिलाते पिलाते थे।  आप हमारी प्रेरणा रहे। आपकी कर्मठता ने मुझे सदा प्रभावित किया।
आपको खांसी का एक ठसका आ जाता था, तो मैं सो नहीं पाती थी, तुरंत जाग जाती थी। आपको दवाई आदि देती थी। जब हम और छोटी बहन अर्चना अग्रसेन जयंती में डांस करते थे, तो आप ग्रीन रूम में राम आसरे के मलाई पान और न जाने कितनी चीजें लाते थे। हम लोग खा कर बहुत खुश होते थे।
पापा मुझे याद है, आपको 1969 में धनतेरस के दिन हार्ट अटैक हुआ था। डॉक्टर मंसूर अली ने घर पर आकर ई.सी.जी.किया तब मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया था। हमारी छोटी दिवाली, बड़ी दिवाली सब अस्पताल में हुई थी।
उस समय मैं एम ए आर्कियोलॉजी में कर रही थी। मेरी बहन बी एस सी में और छोटा भाई हाई स्कूल में, उससे छोटा भाई 8th में था। एक भाई आलोक आई आई टी खड़कपुर में पढ़ रहा था। मैं सबसे बड़ी थी। पापा नवंबर में अस्पताल में दाखिल हुए और फरवरी में घर वापस आ पाए। घर का वातावरण बहुत गमगीन हो गया था। छोटे-छोटे भाई बहन सब मायूस से रहने लगे। मार्च में इम्तिहान आ गए बीच वाले भाई की हाई स्कूल में प्रथम डिवीजन आई। पापा बहुत खुश हुए उन्हें सब बच्चों को पढा़ने का बहुत शौक था। पांचो भाई बहन खूब पढ़ लिख लिये। पापा अब बीमार रहने लगे फिर भी फैक्ट्री जाते थे कभी-कभी। कोर्ट केसेस भी चलते थे, उसे भी निपटाते थे।
पापा 14 साल बीमार रहे।आखिर के 14 महीने लकवा ग्रस्त हो गए। केवल राम-राम बोलते थे। भाइयों ने पापा की बहुत सेवा की। उनके लिए मेल नर्स भी रखा गया। उसने भी बहुत सेवा की। *मम्मी ने भी गजब की सेवा की। सुबह से काम करती रहती थीं और ग्यारह बजे नहा कर कुछ खाती थीं। पापा मम्मी की हर हां में हां करते थे, और ना में ना। वह मम्मी को बहुत मानते थे।
पापा मैं आपसे एक दिल की बात कहना चाहती हूं कि आपने जो मुझे लाल पेन नाम लिखवा कर दिया था, शायद उसका ही असर है कि आज मैं लिख रही हूं। मैं जब भी लिखती हूं मुझे आपका दिया पेन याद आ जाता है। पापा मैंने आपके पेन को सार्थक कर दिया। मुझे बहुत खुशी होती है, आपने पेन दिया, शायद इसी से मुझे प्रेरणा मिली और मैं हमेशा लेखन के समय आपको याद करती रहती हूं। कई बार तो मेरे आंसू भी कागज पर गिरते जाते हैं। पर अगर आप आज होते तो कितना खुश होते, मैं यह सोच कर भाव विभोर हो जाती हूं। *मेरी पांच किताबें भी प्रकाशित हो चुकी हैं। आपने हम पांचों भाई बहनों को इतनी अच्छी शिक्षा दी, हम सब अपने-अपने क्षेत्र में सफल हैं।
पापा आपकी स्मृतियों का खजाना है मेरे पास। मैं आपकी बड़ी बेटी, बड़ी लाडली रही हूं। आपका खुश मिजाज होना और हर समय हंस-हंसकर बात करना हमेशा मुझे याद आता रहता है।
पापा मम्मी, आप दोनों ने मुझे उच्च शिक्षित किया, सुसंस्कार भी दिए, साथ ही जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण भी विकसित किया। हर परिस्थिति में सहज एवं संयमित रहने की प्रेरणा भी दी।

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डॉ.  अंजुल कंसल कनुप्रिया
कवयित्री,लेखिका हास्ययोग राजदूत
कैलीग्राफिस्ट, एक्यूप्रेशर थैरेपिस्ट
इंदौर मध्य प्रदेश
मो- 7772068243

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