59. In Memory of My Father -Shri Vijay Shankar Joshi: पिताज़ी की सीख “कोई भी गलती सीखने के लिए होती है”

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मेरे मन/ मेरी स्मृतियों में मेरे पिता

पिता को लेकर mediawala.in ने शुरू की हैं शृंखला-मेरे मन/मेरी स्मृतियों में मेरे पिता।इस श्रृंखला की 59  th किस्त में आज हम प्रस्तुत कर रहे है इंदौर की शिक्षिका /लेखिका  माधुरी व्यास ” नवपमा ” को। माधुरी साहित्य जगत में एक उभरता हुआ नाम है ,वे अपने बचपन का एक किस्सा याद करते हुए बता रह हैं जो  बेटी के साइकल पर बैठने और घायल होने पर पिता के द्रवित मन और व्याकुलता को दर्शाता है। उनके पिता स्वर्गीय श्री विजय शंकर जोशी जिनके लिए वे लिख रही हैं सांझ ढले लौटते थे वे और बेटी इन्तजार में सो नहीं पाती थी उनके आने तक। आइये पढ़ते है इस छोटी सी भावांजलि को —ऋतु जी की प्यारी सी कविता को यहाँ याद कर रही हूँ ,मुझे बहुत पसंद है ये पंक्तियाँ —

रात का पहरा बन जाते हैं 

और जब निकलते हैं सुबह 

तिनकों की खोज में 

जब सांझ ढले लौटते हैं घर 

माँ की चूड़ियाँ खनकती हैं 

नन्ही गुड़ियां चहकती हैं 

सबके सपने साकार होते हैं 

पिता उस वक्त अवतार होते है —-ऋतु

59. In Memory of My Father -Shri Vijay Shankar Joshi : पिताज़ी की सीख ” कोई भी गलती सीखने के लिए होती है”

माधुरी व्यास ” नवपमा “

हर एक बच्चे के जीवन में उसके पिता का स्थान अद्भुत–अनुपम अनुभूति देने वाला होता है । प्रत्येक संतान की अपने पिता के साथ अपनी एक अलग दुनिया होती हैं । दुनिया भर की खूबियां ,अच्छाइयां और आदर्श संतान को अपने पिता में दिखाई देता है । बेटियों के लिए तो पिता का अपने जीवन में स्थान अवर्णनीय है। जिसे शब्दों में लाख कोशिश करने पर भी बयां नहीं किया जा सकता। मैं जब पापा को याद करती हूं और अपने बचपन की कोई उनके साथ की याद को याद करनेका प्रयास करूं तो बस वह इंतजार ही याद आता है , जब रात को कभी– कभार पापा देर से आते । यूँ तो रोज शाम अंधेरा होने से पहले वे घर में होते थे पर साल में दो–चार दिन जब किसी खास वजह से देर से आते तो आंख फाड़–फाड़ कर जगत हुए उनका इंतजार करना। जैसे ही उनके जूतों की आहट कानों में पढ़ती, मैं नींद के गहरे आगोश में समा जाती थी। यही याद मुझे हमेशा रहती हैं ।

थोड़ी उजली–सी याद जब हर दशहरे पर दशहरा मैदान तक ले जाते तब लगभग पैतालीस मिनिट पैदल चलकर रावण दहन स्थल पहुंचते थे। पूरे रास्ते तो गोद में किसी को नहीं उठाते । लेकिन रावण दिखाने के लिए सभी बच्चों को एक-एक बार कंचे पर जरुर बिठाते। साइकिल उनका एकमात्र वाहन जिसे ऑफिस व आसपास की अन्य जगह पर जाते थे। उसी पर बिठाकर मम्मी और दादी तक को ले जाया करते थे । साइकल के हैंडल पर एक बास्केटनुमा बक्सा होता था । छोटे बच्चे को उसमें बिठाते थे। जब मैं थोड़ी बड़ी हुई तो साइकल पर पीछे बैठने का अवसर मिलने लगा। राजेंद्र नगर से अन्नपूर्णा मंदिर पहली बार साइकल के पीछे बैठकर जा रही थी । सड़क के आसपास के नजारे निहार ने में बहुत व्यस्त थी । बड़ा आनंद आ रहा था ।जाते वक्त तो उन्होंने पिछली सीट पर दोनों तरफ पैर डालकर बिठाया लेकिन वापसी में मैंने इच्छा जाहिर की की मुझे अन्य लड़कियों और मम्मी की तरह एक साइड पैर करके बैठना है । शुरू में पापा ने मना किया बोले– ” एक तरफ दोनों पांव होने से गिरने का डर होता है और पहली बार  पीछे बैठी हो तो दोनों तरफ पैर डालकर ही बैठो। ” लेकिन ज्यादा मनवार करने पर वह मान गए । वापसी में वैशाली नगर तक ही पहुंचे थे कि उनको साइकल चलाना मुश्किल होने लगा । कुछ दूर तक तो  उन्होंने ध्यान नहीं दिया किंतु पेडल घुमाने में ज्यादा परेशानी होने लगी तो अचानक रुक गए। उनका रुकना था और मेरी सहनशक्ति की समाप्ति ! घबराहट और भय चरम पर पहुंच चुका था ।अब मुझे उनका कोपभाजन होना पड़ेगा, बहुत डर लगने लगा । मेरे दाहिने पैर की एड़ी लगातार पहिए की ताड़ियों से टकरा– टकराकर बुरी तरह घायल हो चुकी थी। मैं बगैर आवाज के रो रही थी। मुझे देखते ही उन्होंने गोद में उठाया, लाड किया, चुप किया। घर आकर डॉक्टर को दिखाने ले गए, ड्रेसिंग करवाई । तब तक उन्होंने बहुत धैर्य रखा, दादी की डाट भी सुनी पर शांत रहे । उन्हें मेरे घायल होने से भीतर ही भीतर बहुत तकलीफ हो रही थी । मेरे काका जैसे ही घर आए उनके गले लगकर फूट –फूटकर रो लिए । तब जाकर उनका जी हल्का हुआ होगा। वह हमेशा इस घटना को याद करके हम सबको यही सिख देते थे कि – ” कोई भी गलती सीखने के लिए होती है और हम भविष्य में उस गलती को कभी भी उसको दोहराएं नहीं, यही उनकी सीख है। यदि कोई गलती बार-बार हो तो वह गुनाह ना बने बल्कि उसके पहले ही उसको सुधार लेना चाहिए । गलती का एहसास मनुष्य को जितना ज्यादा द्रवित करता है , वह गलती उतनी ही जल्दी सुधर जाती है । गलती को स्वीकार कर उसको सुधारने वाला ही संसार में सबसे बहादुर इंसान होता है।

मेरे पिता स्वर्गीय श्री विजय शंकर जोशी शिक्षा विभाग (इंदौर)में अकाउंटेंट थे। उन्होंने इतिहास में  एम. ए. किया था। उनका जन्म 1 मार्च 1944 को इंदौर में हुआ था।  उनकी मत्यु 03 जनवरी 1992 को हुई थी।

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माधुरी व्यास ” नवपमा “

शैक्षणिक योग्यता – डी.एड.,बी. एड., एम. ए.(हिन्दी साहित्य), एम.फिल. (इतिहास)

प्रकाशन– एक काव्य संग्रह “चाँद की गवाही” प्रकाशित हुआ है।
विभिन्न मासिक व त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिकाओं के साथ अनेक दैनिक समाचार पत्रों (दैनिक भास्कर, पत्रिका, नईदुनिया, साहित्य सान्दीपनि उज्जैन, इन्दौर समाचार, अखबार जगत, अग्निबाण आदि) में लगातार प्रकाशन।

सम्मान–साहित्य अकादमी मध्य प्रदेश हरिकृष्ण देवसरे (बाल साहित्य) सम्मान 2023,चोइथराम ह्यूमेनीटेरियन ट्रस्ट इंदौर द्वारा श्रेष्ठ शिक्षक सम्मान,डॉक्टर एस. एन. तिवारी स्मृति साहित्य सम्मान 2023

सम्प्रति –व्याख्याता (हिन्दी),
चोइथराम फाउंटेन हायर सेकंडरी स्कूल, श्रीराम तलावली, धार रोड़, इन्दौर (म.प्र.)पता – *, व्ही.आई.पी. परस्पर नगर, इन्दौर संपर्क नं. – 99770***.
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