जासूसी के साथ राजनीतिक दांव पेंच और सत्ता का लाभ

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जासूसी के साथ राजनीतिक दांव पेंच और सत्ता का लाभ

सरकार की गुप्तचर सेवा में रहने के दौरान अपनी राजनीतिक जमीन बनाकर स्वयं सत्ता में आना थोड़ा असामान्य कहा जा सकता है , लेकिन कुछ देशों में इसके प्रमाण हैं | अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जार्ज बुश ( 1989 से 1992 ) पहले कुख्यात जासूसी तंत्र सी आई ए ( सेन्ट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी ) के निदेशक रहे थे | रुस के वर्तमान राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भी सेना की सेवा में रहने के बाद सरकारी जासूसी एजेंसी के जी बी के प्रमुख रहे थे | ब्रिटेन के कंजर्वेटिव सांसद एंथोनी कोर्टने हाल में प्रधान मंत्री के उम्मीदवार बनने के प्रयास में थे और पहले ब्रिटिश गुप्तचर सेवा एम् आई – 6 से जुड़े रहे थे | ब्रिटेन के कुछ अन्य सांसद भी ब्रिटिश गुप्तचर सेवा में रहे थे | भारत में यह पहला अवसर है , जो गुप्तचर सेवा – इंटेलिजेंस ब्यूरो ( आई बी ) के बाद रिसर्च एनालिसिस विंग ( रॉ ) के सर्वोच्च पद से रिटायर हुए अमरजीत सिंह दुलत कांग्रेस नेता राहुल गाँधी की भारत जोड़ो यात्रा का खुला समर्थन करते हुए न केवल उसमें शामिल हुए हैं , बल्कि अपने गुप्तचर काल के दौरान रहे राजनेताओं से सम्बन्ध तथा कश्मीर समस्या और निदान के प्रयासों के विवादों पर अपनी  पुस्तक भी इन दिनों जारी की है | इसलिए यह मुद्दा उठा है कि देश की सर्वोच्च गुप्तचर सेवा की गोपनीय बातें सार्वजनिक करना और राजनीति में सक्रिय होना कितना उचित है ?

 अभी यह तय नहीं है कि दुलत कांग्रेस पार्टी में शामिल होकर किसी पद के दावेदार होंगे या नहीं , लेकिन उनकी नई पुस्तक ‘ ए लाइफ इन द शेडोस ‘ तथा उसके  सम्बन्ध में दिए गए कुछ इंटरव्यू में न केवल कश्मीर समस्या और उसके निदान के प्रयासों , भाजपा सरकार के नेताओं तथा प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवाल पर कई विवादास्पद बातें लिखी बोली हैं |भाजपा दुलत पर हमलावर हुई। भाजपा नेता अमित मालवीय ने  आरोप लगाया कि  ‘ पूर्व स्पाईमास्टर  दुलत अपने काम के प्रति कभी प्रतिबद्ध नहीं थे। वे अलगाववादियों और पाकिस्तान से प्रभावित थे। ‘  दुलत ने आईबी में रहते हुए  1990 के दशक के उथल-पुथल के दौरान कश्मीर इकाई का नेतृत्व किया। इसके बाद रॉ में 1999 से  2000  तक  निदेशक  की भूमिका निभाई। सेवानिवृत होने के बाद उन्होंने प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के  कार्यकाल में ही पीएमओ में जनवरी 2000 से मई 2004 तक कार्य किया। यहां उनका काम कश्मीर में केंद्र सरकार की शांति पहल की ‘निगरानी, प्रबंधन और निर्देशन’ करना था। कश्मीर मामलों के विशेषज्ञ माने जाने वाले दुलत पिछले साल अप्रैल में बॉलीवुड की फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ पर टिप्पणी कर चर्चा में आए थे। दुलत ने निर्देशक विवेक अग्निहोत्री की फिल्म को कोरा प्रचार  बताया था।  यह फिल्म 1990 के दशक में घाटी से कश्मीरी पंडितों के पलायन पर आधारित है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित सत्तारूढ़ भाजपा  के नेताओं ने इस फिल्म की बहुत सराहना की थी  | वहीं कांग्रेस ने इसे प्रोपगंडा बताकर खारिज कर दिया था। दुलत साल 1989 से 1990 तक कश्मीर में इंटेलिजेंस ब्यूरो के स्टेशन हेड थे। ये वही दौर था जब लाखों कश्मीरी पंडितों का पलायन हुआ था और वह घर छोड़ने को मजबूर हो गए थे।

 मार्च 2019 में एएस दुलत ने पुलवामा हमले को आम चुनाव से पहले बीजेपी को तोहफा बताया था। इसके बाद उनकी तीखी आलोचना हुई थी। दरअसल, हैदराबाद में भारतीय आर्थिक व्यापार संगठन द्वारा आयोजित एशियाई अरब पुरस्कार 2019 के मौके पर दुलत ने कहा था, “यह आम चुनावों से पहले भाजपा के लिए एक तोहफा था और भारत के पास पाकिस्तान में आतंकवादी शिविरों पर सर्जिकल स्ट्राइक करने का अधिकार था।” इससे पहले एएस दुलत ने पूर्व पाकिस्तानी जासूस दुर्रानी के साथ “द स्पाई क्रॉनिकल्स: रॉ, आईएसआई एंड द इल्यूजन ऑफ पीस” नामक पुस्तक लिखी थी जिसके कारण भी वह विवादों में घिर गए थे।

एक अन्य पुस्तक ‘ कश्मीर – द वाजपेयी इयर्स ‘ में  उन्होंने 2015 में  यह आरोप लगाकर सनसनी फैला दी थी कि कंधार  विमान अपहरण  मामले में वाजपेयी सरकार  ने  लापरवाही बरती थी। दुलत साल 1989 से 1990 तक कश्मीर में इंटेलिजेंस ब्यूरो के स्टेशन हेड थे। ये वही दौर था जब लाखों कश्मीरी पंडितों का पलायन हुआ था और वह घर छोड़ने को मजबूर हो गए थे। दुलत पर अक्सर पाकिस्तान के लिए एक सॉफ्ट कॉर्नर रखने वाले व्यक्ति होने का आरोप लगाया जाता है। विमान अपहरण कांड में आतंकवादियों के साथ दुलत ही समझते पर बात कर रहे थे | इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना के कारण जैश-ए-मोहम्मद प्रमुख मसूद अजहर सहित तीन खूंखार आतंकवादियों को रिहा कर दिया गया।

एएस दुलत पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई की जमकर तारीफ करने के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने इसे दुनिया की सबसे अच्छी खुफिया एजेंसी बताया। पूर्व रॉ अधिकारी ने आईएसआई के बारे में अपने दावे का खुलासा भी किया। यह दुलत ही थे जिन्होंने आईएसआई प्रमुख असद दुर्रानी के साथ “द स्पाई क्रॉनिकल्स: रॉ, आईएसआई एंड द इल्यूजन ऑफ पीस” पुस्तक का सह-लेखन किया था। संयोगवश से, यह पुस्तक तत्कालीन भारतीय प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह की उपस्थिति में दिल्ली में लॉन्च की गई थी। इस पुस्तक के जारी होने पर, पाकिस्तानी प्रतिष्ठान ने दुर्रानी को देश छोड़ने पर रोक लगा दी। तब एएस दुलत थे, जिन्होंने अपने दोस्त, पूर्व आईएसआई प्रमुख असद दुर्रानी के बचाव में बात की थी। दुलत ने उनका बचाव करते हुए कहा था कि कोई कारण नहीं था कि सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल असद दुर्रानी को उनकी राय के लिए विवाद का सामना करना पड़े।

एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के पूर्व प्रमुख अमरजीत सिंह दुलत ने अपनी किताबों में कहा कि भारतीय खुफिया एजेंसियों ने अक्सर आतंकवादियों और अलगाववादियों के साथ-साथ कश्मीर में मुख्यधारा के राजनेताओं और राजनीतिक दलों को आईएसआई का मुकाबला करने के लिए पैसे दिए।  दुलत ने कश्मीर में पैसे के इस्तेमाल का बचाव करते हुए कहा कि यह आतंकवादियों और अलगाववादियों को उलझाने की उम्मीद में किया गया था। उन्होंने कहा कि ‘ किसी को पैसे से भ्रष्ट करना उसे मारने से ज्यादा नैतिक और उचित  है।’  जबकि यासीन मलिक एक  खतरनाक आतंकवादी है जिसने 80 के दशक के अंत और 90 के दशक की शुरुआत में भारतीय वायु सेना के अधिकारियों और कई अन्य आम कश्मीरियों को मार डाला था। द कश्मीर फाइल्स देखने के बाद अब हर कोई कश्मीरी हिंदुओं के नरसंहार के पीछे यासीन मलिक की भूमिका से वाकिफ है, और लोग मांग कर रहे हैं कि यासीन मलिक को  उसके पापों के लिए   कड़ा दंड मिलना  चाहिए। यासीन मलिक के सवाल पर एक रिपोर्टर का जवाब देते हुए दुलत ने कहा था कि ‘ तीन दशक बाद यासीन मलिक को फांसी देकर हमें क्या हासिल होगा? ‘

 दुलत की नई किताब के बाद यह मुद्दा उठ गया है कि क्या वह सरकार द्वारा जून 2021 में जारी अधिसूचना के निर्देशों  के विरुद्ध काम कर रहे हैं और उन पर कार्रवाई हो सकती है ? इस अधिसूचना के अनुसार ”  सुरक्षा व्यवस्था में रहे सेवानिवृत अधिकारी अपने कार्यकाल के दौरान हुए कामकाज और मिली जानकारियों को बिना किसी पूर्व स्वीकृति के सार्वजनिक रूप से नहीं  लिखेंगे या बोलेंगे | ”  एक पत्रकार द्वारा यह सवाल पूछे जाने पर दुलत ने चतुरता से उत्तर दे दिया कि उन्हें किसीने इस निर्देश की जानकारी नहीं दी है और उन्होंने स्वयं भी नहीं देखी | जबकि उनकी तरह कुछ पुराने सरकारी तथ्य सार्वजनिक करने वाले कुछ मामले सामने आने के बाद यह अधिसूचना प्रसारित की गई थी | जहाँ तक दुलत के कश्मीर सम्बन्धी विचार और कांग्रेस से संबंधों की बात है , हम जैसे पत्रकारों को पहले से मालूम है कि पूर्व मुख्यमंत्री फारुक अब्दुल्ला और कांग्रेसी नेताओं से उनके गहरे सम्बन्ध रहे हैं | इंदिरा और राजीव गाँधी के बाद सोनिया और अब राहुल से उनका निजी लगाव सर्व विदित है | फारुक को तो वह सर्वाधिक महत्व देते हैं और उनकी राय में फारुक और गाँधी परिवार के सदस्य तथा आतंकवादी समूह के चुनिंदा नेता ही कश्मीर समस्या का समाधान कर सकते हैं | उनकी नजर में फारुक के बिना कश्मीर और कश्मीरियत की चर्चा ही नहीं हो सकती है |

  अपनी नई पुस्तक में उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जेलसिंह के साथ संबंधों और उनके साथ विदेश यात्राओं के आनंद , शराब के जाम के सुख की विस्तार से चर्चा की है | लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि उनके करीबी रहते वह गाँधी परिवार के कैसे प्रिय पात्र हैं ? जैलसिंह और राजीव गाँधी के बीच बाद के वर्षों में गहरा तनाव था और एक समय वह राजीव को प्रधान मंत्री पद से बर्खास्त करने की तैयारी कर रहे थे | यों दुलत ने इस मामले को महत्वहीन दिखाने की कोशिश की है | इसी तरह दुलत ने अर्जुन सिंह , कमलनाथ , माधवराव सिंधिया , राजेश पायलट , दिग्विजय सिंह से संबंधों को भी विस्तार से लिखा है | दिलचस्प बात यह है कि अर्जुन ,दिग्विजय सिंह और सिंधिया में गहरे टकराव की स्थिति थी | वहीँ दुलत ने नरसिंह राव , चंद्रास्वामी के विवादों या फारुक पर लगे भ्रष्टाचार आदि के गंभीर आरोपों पर मौन साधा हुआ है |

इस तरह पुस्तकों और उनकी गतिविधियों से दुलत के पूर्वाग्रह , भाजपा से नाराजगी , अटल सरकार में जम्मू कश्मीर का राज्यपाल न बनाए जाने और अब पूर्व प्रतियोगी साथी अजीत डोवाल द्वारा भी महत्व न दिए जाने की बात समझ में आ सकती है | राजनीति या सत्ता से कुछ खोने पाने की बात भविष्य में पता चलेगी , फिलहाल वह सुर्ख़ियों में बने रह सकते हैं |

( लेखक आई टी वी नेटवर्क इण्डिया न्यूज़ और आज समाज के सम्पादकीय निदेशक हैं )