Javed Akhtar : ‘यह लोग तय नहीं करेंगे कि कौन सी फिल्म चले कौनसी नहीं!’

अगर कहीं गड़बड़ है, तो सीन काटने का काम सेंसर बोर्ड का,  लोगों का!   

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Sunday Special 

Javed Akhtar : ‘यह लोग तय नहीं करेंगे कि कौन सी फिल्म चले कौनसी नहीं!’

New Delhi : मशहूर गीतकार, शायर और संवाद लेखक जावेद अख्तर ने फिल्मों को लेकर अक्सर होने वाले विवादों को लेकर टीवी चैनल NDTV से बात की। उन्होंने कहा कि फिल्मों के बॉयकाट का चलन हो गया है। हमारा फिल्म सर्टिफिकेशन का ऑर्गनाइजेशन है, यह सरकारी है जो फिल्म को देखता है। उसमें बताते हैं कि यह गलत है, इसको हटा दीजिए। इस ऑर्गनाइजेशन को हम सेंसर बोर्ड कहते हैं।

सरकार को अपने इंस्टीट्यूशन की इज्जत रखनी चाहिए। बाहर के लोग तय करें कि कौन सी फिल्म चलनी चाहिए, कौन सी नहीं, तो सर्टिफिकेशन की ज़रूरत क्या है! उन्होंने कहा कि यह तो सही बात नहीं है। यह स्टेट की जिम्मेदारी है कि फिल्मों को बचाए। सरकार के दिए सर्टिफिकेट की इज्जत करिए। मैंने भी टीवी पर ऐसी चीजें देखी हैं। यह तरीका ठीक नहीं है। अगर गड़बड़ है तो काटने का काम सेंसर बोर्ड का होता है।

जावेद अख्तर ने कहा कि जो लोग हिंदू-मुसलमान देख रहे हैं, देखने दें। लेकिन, यह सही नहीं है। हमें सिनेमा की इज्जत करनी चाहिए। दुनिया में हॉलीवुड के टक्कर में भारतीय सिनेमा है। दुनिया के लोग भारत के एक्टरों का नाम जानते हैं। यह गुडविल पूरी दुनिया में है। बॉलीवुड नहीं बंट रहा है, सब ठीक है। उन्होंने कहा कि, हर एक की राय अलग हो सकती है। हिन्दी फिल्म के टाइटल को ध्यान से देखिए, हर धर्म प्रदेश के लोग एक साथ काम कर रहे हैं। यह नहीं रहा तो फिल्में खत्म हो जाएंगी।

क्या लिखा गया ‘जादूनामा किताब में 

अरविंद मंडलोई ने जावेद अख्तर पर किताब ‘जादूनामा’ लिखी है। इस किताब को लेकर अरविंद मंडलोई ने चैनल से कहा कि रिसर्च करने में चार साल का समय लगा। इसकी भूमिका जावेद साहब के 75 वें जन्मदिन पर तय हो गई थी। जावेद साहब की कही हुई बातों पर किताब लिखी। यह किताब दुनिया भर में फेमस हुई। यह किताब जीवन की प्रेरणा से शुरू हुई। यह किताब एक फिल्म की तरह रही।

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‘जादूनामा’ को लेकर जावेद अख्तर ने कहा कि,  ‘जादू’ अभी भी लोग मुझे बुलाते हैं। 15 दिन पहले मैंने किताब देखी। देखकर मैं हैरान हो गया। इसमें बातें बहुत पुरानी हैं। कई लोगों को कवर किया है। मैंने कई तस्वीरें पहली बार इस किताब में देखी। किताब में बहुत अच्छा काम किया है। उन्होंने कहा कि पिक्चर देखने के लिए टिकट लिया था, पता नहीं था जिसकी फिल्म देखी, एक दिन उनके साथ स्क्रिप्ट होगी।

जमाना बदला, चीज़ें कॉर्पोरेट हो गई

जावेद अख्तर ने कहा कि तकलीफ तो कोई भी नहीं भूलता, हर इंसान को सब याद रहता है। जिसने तकलीफ में सहारा दिया उसे भी हमेशा याद रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि जमाना बदला भी है, नहीं भी बदला इसलिए क्योंकि चीज़ें कॉर्पोरेट हो गई। अब चीज़ें काफी बदल गई। फिल्मों को अब बड़े-बड़े लोग फाइनेंस करते हैं। हिन्दी फिल्म 3-4 महीने में बन जाती है। पहले 2 से 3 साल में बनती थी। काम का तरीका भी बदल गया। बिजनेस में ऊंच-नीच चलता रहता है। साउथ की फिल्में काफी चली हैं। कुछ तो इनमें बात है, लोग इन्हें पसंद करते हैं, इससे सीखना चाहिए। अच्छी फिल्में बन रही हैं।