एक विश्व एक पहचान की संकल्पना में भोपाल का योगदान
भोपाल के लिए इस बार 12 जनवरी काफी महत्वपूर्ण होने वाली है क्योंकि इसी दिन भेल क्षेत्र के निवासी और बिरला प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान संस्थान (बिट्स पिलानी) के छात्र ऋषभ गर्ग ने वास्तविक जीवन में ब्लॉकचैन की वास्तुकला, पारिस्थितिकी तंत्र और संभावित अनुप्रयोगों की कल्पना पर एक विशिष्ट पुस्तक लिखी है जिसके प्रिंट संस्करण का विमोचन 12 जनवरी को न्यूयॉर्क से किया जाएगा। अंतरराष्ट्रीय बाजार में 130 अमेरिकी डॉलर (लगभग 11,000 रुपए) बिकने वाली यह पुस्तक अगले कुछ दिनों में दुनिया भर में उपलब्ध होगी।
पुस्तक का प्राक्कथन मध्य प्रदेश सरकार के पूर्व अपर मुख्य सचिव इंद्रनील शंकर दाणी ने लिखा है।पुस्तक के अंशों का 51 अंतर्राष्ट्रीय भाषाओं में अनुवाद किया गया है। इस पुस्तक का डिजिटल संस्करण 19 दिसंबर 2022 को जॉन विली एंड संस, न्यू जर्सी, अमेरिका द्वारा जारी किया गया है।
खेलने की उम्र में कल्पना
2001 में भोपाल में जन्मे और कैंपियन और डीपीएस, भोपाल में प्रारंभिक शिक्षा हासिल करने के दौरान ही पूत के पांव पालने में दिखने लग गए थे।
ऋषभ गर्ग ने 12 वर्ष की उम्र में ही एक विश्व-एक पहचान पर काम करना शुरू कर दिया था। 2013 में, ऋषभ गर्ग ने सभी उद्देश्यों के लिए एकल पहचान की अवधारणा प्रस्तुत की थी। सीएसआईआर इनोवेशन अवार्ड 2016 से सम्मानित करते हुए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने ऋषभ को उनके विचार एक विश्व-एक पहचान को इंडिया विजन 2022 के अनुरूप तैयार करने के लिए प्रोत्साहित किया था। तब वे दसवीं कक्षा के छात्र थे। कार्यक्रम के आयोजक विज्ञान भारती, विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय तथा पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा ऋषभ को उनकी उपलब्धियों के लिए सम्मानित किया गया था। इसके बाद वे निरंतर नीति आयोग के साथ नवाचार साझा करते रहे। वर्ष 2017 में इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा ऋषभ के नवोन्मेष की प्रशंसा की गयी और भारत सरकार के राष्ट्रीय नवप्रवर्तन प्रतिष्ठान द्वारा उसे पंजीकृत किया गया और भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा राष्ट्रपति सम्मान प्रदान किया गया था।
एकल पहचान की सुरक्षा
बिट्स पिलानी में प्रौद्योगिकी की पढ़ाई के दौरान, ऋषभ ने एकल पहचान की सुरक्षा और व्यक्तिगत जानकारी की गोपनीयता से संबंधित तमाम मुद्दों पर काम करना शुरू किया। इस अवधारणा पर आधारित उनकी पहली पुस्तक ‘सेल्फ सॉवरेन आइडेंटिटीज’ जर्मनी, फ्रांस, रूस, इटली, स्पेन, पुर्तगाल और मोल्दोवा में प्रकाशित हुई थी।
ऋषभ गर्ग द्वारा लिखी गयी नवीनतम पुस्तक ब्लॉकचैन को वास्तविक दुनिया के कार्यों से जोड़कर एक नई अंतर्दृष्टि प्रदान करती है। उन्होंने इस हालिया उभरती हुई तकनीक के साथ दिन-प्रतिदिन की सामाजिक समस्याओं को हल करने का प्रयास किया है। पाठकों को यह एक सुखद क्रांति लगेगी, जो उनकी विचार प्रक्रियाओं और दैनिक गतिविधियों में आमूलचूल परिवर्तन लाएगी, ठीक उसी तरह जैसे कुछ वर्षों पहले इन्टरनेट ने सारी दुनिया को हमारे कंप्यूटर स्क्रीन पर समेट कर रख दिया था।
‘ब्लॉकचैन फॉर रियल वर्ल्ड एप्लीकेशंस’ के लेखक ऋषभ गर्ग मानते हैं कि “ब्लॉकचैन जैसी सशक्त प्रौद्योगिकी को बिटकॉइन का पर्याय मानकर उससे दूरी बनाना हमारी एक बड़ी गलती करने जैसा है, हमें इस क्रांति को समझना होगा और इसके अग्रदूत बनना होगा, तभी हम अपने राष्ट्र या अपने संगठनों के लिए जरूरी अधोसंरचना विकसित कर पाएंगे। अगर हम आज ब्लॉकचैन के ज्ञान और कौशल से खुद को शिक्षित और प्रशिक्षित करते हैं, तभी कल हम प्रशासन और प्रबंधन की सीढ़ी के ऊंचे पायदान हासिल कर पाएंगे। नीति- निर्माताओं और विद्वानों को इस अभूतपूर्व तकनीक के लिए खुद को तैयार करने और अमेरिका और यूरोप की तरह अपने सिस्टम को अपग्रेड करने की जरूरत है, ताकि हमें कभी भी दुनिया का अनुकरण न करना पड़े।”
वंचितों को होगा लाभ
दुनिया में एक अरब से अधिक लोग ऐसे हैं जो जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं से वंचित हैं क्योंकि उनकी कोई आधिकारिक पहचान नहीं है।घर (बिजली का बिल, पता), बैंक खाता, शिक्षा या नौकरी के अभाव में, उनके पास पहचान-पत्र प्राप्त करने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं होते हैं और चूंकि उनके पास कोई पहचान प्रमाण नहीं होता है, इसलिए वे राज्य की कल्याणकारी योजनाओं से वंचित रह जाते है।इसके अलावा, प्रत्येक पहचान दस्तावेज केवल एक सीमित उद्देश्य की पूर्ति करता है, जैसे यात्रा के लिए पासपोर्ट, वाहन चलाने के लिए ड्राइविंग लाइसेंस, चुनाव के लिए मतदाता पहचान पत्र, आदि विभिन्न पहचान दस्तावेजों के बीच समन्वय के अभाव में, भ्रष्टाचार, अपराध या अराजक गतिविधियों पर अंकुश लगाना संभव नहीं होता।
इसके अलावा नागरिक की सारी जानकारी एक केंद्रीय डेटाबेस में रखने का सबसे बड़ा खतरा है व्यक्तिगत जानकारी की गोपनीयता और डेटा की सुरक्षा का उल्लंघन, यह बात तब और भी प्रासंगिक हो जाती है जब हमें अक्सर यह सुनने को मिलता है कि भारत का ‘आधार’ डेटाबेस सुरक्षित नहीं है या अब तक करोड़ों लोगों की निजी जानकारी लीक हो चुकी है. अगर आपका लॉग-इन पासवर्ड चोरी हो गया है तो आप उसे बदल सकते हैं, लेकिन अगर आपके फिंगरप्रिंट चोरी हो गए हैं तो आप अपनी उँगलियों को कैसे बदल पाएंगे?
पहचान को सुरक्षित बनाना
पहचान को पूरी तरह से सुरक्षित, निजी और स्व-संप्रभु बनाने के उद्देश्य से, ऋषभ ने एक वितरित बहीखाता प्रणाली का उपयोग किया, जिस पर क्रिप्टोकरेंसी संचालित होती है, और जिसे ब्लॉकचैन के रूप में जाना जाता है। इस तरह प्रस्तावित एक विश्व-एक पहचान प्रणाली किसी देश की संप्रभुता के अधीन न रहकर स्वचालित, पारदर्शी, सुरक्षित जवाबदेह, अपरिवर्तनीय और परीक्षित रूप से प्रत्येक नागरिक के जन्म से लेकर मृत्यु तक समस्त गतिविधियों (जन्म-प्रमाण, स्कूल एवं कॉलेज में दाखिला, शैक्षणिक प्रगति, रोज़गार, दस्तावेजों का सत्यापन, निर्वाचन, सम्पति, क्रय विक्रय, हस्तांतरण, विरासत, बैंकिंग, व्यवसाय, व्यापार, निर्माण, आपूर्ति श्रृंखला आदि) का सञ्चालन और उसका पृथक-पृथक डाटाबेस में कूटलेखन कर संधारण करेगी। अलग-अलग डाटाबेस में जानकारी कूटलिपि में होने के कारण कोई भी हैकर उसके तार जोड़कर जानकारी एकजाई नहीं कर सकेगा। इसके अलावा एक बार कोई प्रमाण-पत्र जारी हो जाने के पश्चात उसमें छेडछाड संभव नहीं हो सकेगी। सम्पूर्ण जीवनकाल में एक बार सत्यापन के पश्चात उसी जानकारी को दोबारा कभी सत्यापित नहीं करना पड़ेगा, वह तब तक वैद्य और सत्यापित बनी रहेगी जब तक कि जारीकर्ता उसे खारिज नहीं कर देता।
अंतरराष्ट्रीय जरूरतों पर केंद्रित
इस पूरी प्रणाली को ऋषभ ने 416 पृष्ठों में वर्णित कर पुस्तक को ब्लॉकचैन फॉर रियल वर्ल्ड एप्लीकेशंस’ नाम दिया है। यथार्थ जीवन के प्रत्येक अनुप्रयोग को तकनीकी भाषा, रेखांकन एवं कोड्स के द्वारा प्रस्तुत किया है. प्रकाशक ने पुस्तक की पाठ्य सामग्री का विन्यास बफ़ेलो विश्वविद्यालय, न्यूयॉर्क, स्टैनफोर्ड, कॉर्नेल, आक्सफोर्ड और कोलंबिया बिजनेस स्कूल, नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर आदि में प्रचलित पाठ्यक्रम को ध्यान में रखते हुए किया है ताकि पुस्तक प्रशासकों, प्रबंधकों, व्यवसायियों के अलावा विश्वविद्यालयीन छात्रों के पठन हेतु उपयोगी सिद्ध हो।
पुस्तक के सम्बन्ध में ई-प्लेटफॉर्म गुडरीड्स, कोबो, बार्नेस एंड नोबल आदि पर एक समीक्षक, कैली जॉनसन लिखती हैं, “यह ब्लॉकचैन जैसी नई तकनीक पर एक व्यापक पाठ्यपुस्तक है. मुझे पाठ के साथ चित्र का संयोजन बहुत पसंद है”।
ज्ञानार्जन की अदम्य चाहत
विगत चार वर्षों में, बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड साइस पिलानी से प्रौद्योगिकी का अध्ययन करते हुए उन्होंने दूरस्थ मुक्त ऑनलाइन पाठ्यक्रमों के ज़रिये मिशिगन विश्वविद्यालय, जिनेवा विश्वविद्यालय, स्विट्ज़रलैंड से निवेश प्रबंधन और बफेलो विश्वविद्यालय, न्यूयॉर्क से ब्लॉकचेन में स्पेशलाइजेशन किया। इसके अलावा उन्होंने स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी, कैलिफोर्निया से इंटरनेट ऑफ थिंग्स जॉन हॉपकिंस विश्वविद्यालय, मैरीलैंड से वेब विकास के लिए एचटीएमएल, सीएसएस, जावास्क्रिप्ट का भी अध्ययन किया।
ऋषभ ने बताया कि जब वह कक्षा आठ में था तब एक ऐसा कैलेंडर डेवलप किया जो दस लाख सालों की गणना कर सकता है। इसके लिए सितंबर 2016 को नई दिल्ली के विज्ञान भवन में काउंसिल ऑफ साइंटिफिक इंडस्ट्रीज रिसर्च के प्लेटिनम जुबली समारोह में ऋषभ को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सीएसआईआर इनोवेशन अवार्ड 2016 से सम्मानित किया।
नासा ने भी माना लोहा
नेट और डिस्कवरी चैनल पर अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के प्रोजेक्ट को लेकर ऋषभ की खासी दिलचस्पी थी। जब वह आठवीं में पढ़ रहे थे, उन्हें नासा के मंगल प्रोजेक्ट की जानकारी मिली। तब नासा इस पर काम कर रहा था। उसे कुछ ऐसे पत्थरों की तलाश थी, जिन्हें खगोलीय विकिरण का परिणाम जानने के लिए मंगल पर भेजा जा सके।
नासा ने इसकी आवश्यक्ता अपनी वेबसाइट पर भी जाहिर की थी और लोगों से इसमें सहयोग मांगा था। ऋषभ ने आसपास के क्षेत्र में खोजबीन कर नासा की जरूरत के मुताबिक एक ऐसी शिला खोज निकाली जो मंगल ग्रह पर भेजी जा सके। नासा ने इसे स्वीकार किया। इस शिला का नाम 12093 दिया गया। ऋषभ के इस योगदान को नासा ने सराहा। इसके चलते ऋषभ को नासा के करीब एक दर्जन प्रोजेक्ट पर सलाह देने और कुछ में तो काम करने का भी अवसर मिला।