धार से छोटू शास्त्री की ख़ास रिपोर्ट
Dhar : पांच दिवसीय मांडू उत्सव भले समाप्त हो गया हो, किंतु इवेंट कंपनी से जुड़े विवाद समाप्त नहीं हो रहे! बल्कि इससे बड़ी सरकार की उदारता इस कंपनी के प्रति क्या होगी की मांडू उत्सव उस कंपनी ने संपादित कर दिया जिसको उसे करने के लिए ऑर्डर नहीं मिला! आज 12 जनवरी तक भी उक्त टेंडर को वेबसाइट पर ऑनलाइन प्रक्रिया में पूरा नहीं बताया गया है।
सरकार और पर्यटन विभाग इस इवेंट कंपनी पर कितनी मेहरबान है, कि ऑनलाईन टेंडर हुए बिना और प्रकिया बगैर पूरा किए कंपनी को काम करने दिया गया। मप्र पर्यटन विभाग द्वारा ‘मांडू उत्सव’ के लिए 6 दिसंबर को ऑनलाईन टेंडर जारी किया था। जिसकी अंतिम तारीख 15 दिसम्बर निर्धारित की गई थी। दो इवेंट कंपनियों ने इस टेंडर प्रक्रिया में भाग लिया। ये थी गुजरात की ‘लल्लूजी एंड संस’ और दिल्ली की ई-फैक्टर!’
इन दोनों ने ही टेंडर भरा, किंतु शर्तों के आधार पर बड़ी चतुराई से विभाग के अधिकारियो ने ई-फेक्टर को लाभ पहुंचाने की नीयत से 50% अंक प्रेजेंटेशन के लिए निर्धारित किए। इसलिए कि अधिकारी अपनी चहेती कंपनी को टेंडर दे सकें। उन्होंने ये 50% अंक अपनी चहेती कंपनी ई-फेक्टर को दे दिए, लेकिन कागजों पर प्रक्रिया को आजतक पूरा नहीं किया गया। जानकारी के लिए बता दें कि ये कंपनी दिल्ली के एक बड़े बीजेपी नेता के भाई की है। इसी कंपनी के नजदीक हनुवंतिया में भी काम मिला है, जिसकी अकसर शिकायतें सामने आती रहती है।
पहली बार सरकारी टेंडर में यह देखने आया कि कोई विभाग किसी कंपनी को 70% राशि कार्य के पहले एडवांस देने का प्रावधान रखा गया हो! किंतु, इवेंट कंपनी को जमकर लाभ पहुंचाने के मकसद से टेंडर में यह उदार शर्त भी जोड़ दी गई, ताकि चहेती इवेंट कंपनी को काम पूरा करने के पहले ही बड़ा अमाउंट मिल जाए। यह अनोखी शर्त मप्र पर्यटन निगम ने रखने का दुसाहस किया, अन्यथा कभी भी शासकीय स्तर पर ऐसी अनोखी शर्त नहीं रखी जाती।
विभाग के कर्ताधर्ताओं को शासन के नियम-कायदों से क्या लेना देना, उन्हें तो ऊपर के इशारे पर अपनी चहेती ‘ई-फेक्टर’ को फ़ायदा पहुंचाना था। ‘मांडू उत्सव’ का टेंडर भी कम विवादित नहीं रहा और आज 12 जनवरी तक जब ‘मांडू उत्सव’ एक दिन पहले समाप्त हो गया, अभी तक सिर्फ ऑनलाइन टेंडर की तकनीकि बिड ही खोली गई है। जबकि वित्तीय बिड अभी तक खोलने का कष्ट नहीं उठाया गया। जब वित्तीय बिड खोली ही नहीं गई, तो यह माना जाता है कि टेंडर प्रकिया ही पूरी नहीं हुई, पर सारी गड़बड़ियां ‘मांडू उत्सव’ करने वाली ‘ई-फेक्टर’ के लिए की गई!
विभाग की वेबसाईट पर अभी भी वित्तीय बिड नहीं खोली गई, यानी आजादी के बाद यह पहला ऐसा मामला सामने आया कि बगैर टेंडर खोले ही कंपनी को काम दे दिया। जिस काम के लिए टेंडर खोला जाना या उस टेंडर को कार्य पूरा होने के बाद भी खोलने की जहमत नहीं उठाई गई। अभी भी ऑनलाईन टेंडर नहीं खोला गया। इससे बडी ओर उदारता क्या होगी, कि जब टेंडर प्रक्रिया ही पूरी नहीं अपनाई गई, तो इवेंट कंपनी को 70% राशि किस मद में और कैसे दे दी गई!
मंत्री को भी क्या सच्चाई नहीं पता!
इन अधिकरियों के मंसूबे इतने स्पष्ट और मजबूत हैं, कि वे विभाग की मंत्री उषा ठाकुर को भी गुमराह करने से नहीं हिचके! उन्हें भी विभाग के इस काले कारनामे की खबर नहीं लगने दी गई। जब उषा ठाकुर उद्घाटन करने आई, तो वहां के लोगों ने कंपनी की हठधर्मिता और ‘मांडू उत्सव’ की सार्थकता पर सवाल उठाए थे! इस पर मंत्री ने पत्रकारों से चर्चा में कहा था कि मैने इवेंट कंपनी को डांट लगाई है। वे यहां तक बोल गई थी कि छः दिन पहले ही कंपनी को आर्डर मिला, इसलिए परेशानी आ रही है। अगली बार हम टेंडर प्रक्रिया छः महीने पहले कर देंगे।
लेकिन, मंत्री को यह भी नहीं मालूम कि टेंडर प्रक्रिया ही पूरी नहीं अपनाई गई और विभाग ने अपनी चहेती कंपनी को काम दे दिया। खास बात यह कि 7 जनवरी को मंत्री ने कहा कि छः दिन पहले ही ऑर्डर दिया यानी कि 1 जनवरी को ऑर्डर कंपनी को मिलना था। लेकिन, इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या होगा की कंपनी को कार्यक्रम समाप्त होने के बाद भी ऑर्डर नहीं देकर काम करवा लिया गया और उसे आर्थिक लाभ से भी नवाज दिया गया।