कानून और न्याय: मौत की सजा और राष्ट्रपति को क्षमा का अधिकार

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कानून और न्याय: मौत की सजा और राष्ट्रपति को क्षमा का अधिकार

क्षमा करने की शक्ति भारत के राष्ट्रपति को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 72 के तहत और एक राज्य के राज्यपाल को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 161 के तहत दी गई है। इस तरह की एक संवैधानिक योजना कठोर और अन्यायपूर्ण कानूनों से या अन्याय के परिणामस्वरूप न्याय सुनिश्चित करने के लिए प्रदान की गई है। सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों के अनुसार राज्य के राज्यपाल के पास कैदियों को क्षमा करने का अधिकार है। हाल ही में भारत के राष्ट्रपति ने सिख धर्म के संस्थापक गुरू नानक जी की 550वीं जयंती समारोह के उपलक्ष्य में मानवता की भावना दर्शित करते हुए एक अभियुक्त की मौत की सजा को क्षमादान में परिवर्तित करने का फैसला किया। गत 9 वर्षों में राष्ट्रपति ने गृह मंत्रालय की सिफारिशों के आधार पर लगभग 20 अभियुक्तों की मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदला है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 72 में प्राप्त न्यायिक शक्ति के तहत अपराध के लिए दोषी करार दिए व्यक्ति को राष्ट्रपति क्षमा अर्थात राहत और माफी प्रदान कर सकते हैं।

मारू राम बनाम भारत संघ मामले में भारत के सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक पीठ ने कहा है कि अनुच्छेद 72 के तहत शक्ति का प्रयोग केंद्र सरकार की सलाह पर किया जाना चाहिए। राष्ट्रपति के लिए यह सलाह बाध्यकारी है। हाल ही में केंद्र द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के सामने यह तर्क दिया गया कि राष्ट्रपति के पास यह तय करने के लिए ‘अनन्य शक्तियां’ हैं कि दोषियों को क्षमा करना है अथवा नहीं। सर्वोच्च न्यायालय ने मामले को निर्णय के लिए सुरक्षित रखा है।

संविधान के अनुच्छेद 72 के तहत राष्ट्रपति के पास मौत की सजा से दंडित होने वाले अपराधों के लिए दोषी ठहराए गए किसी भी व्यक्ति की सजा को माफ करने राहत देने, छूट देने या निलंबित करने, हटाने या कम करने की शक्ति प्राप्त है। राष्ट्रपति सरकार से स्वतंत्र होकर अपनी क्षमादान की शक्ति का प्रयोग नहीं कर सकते। कई मामलों में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि राष्ट्रपति को दया याचिका पर फैसला करते समय मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य करना होता है। इन मामलों में वर्ष 1980 का मारूराम बनाम भारत संघ और वर्ष 1994 का धनंजय चटर्जी बनाम पश्चिम बंगाल राज्य में दिया गया निर्णय शामिल है। राष्ट्रपति, कैबिनेट की सलाह के लिए दया याचिका को गृृह मंत्रालय को अग्रेषित करते हैं। मंत्रालय इसे संबंधित राज्य सरकार को अग्रेषित करता है। उसके जवाब के आधार पर यह मंत्रिपरिषद की और से अपनी सलाह तैयार करता है।

राष्ट्रपति मंत्रिमंडल से सलाह लेने के लिये बाध्य है। लेकिन, अनुच्छेद 74 (1) उन्हें एक बार पुनर्विचार के लिये इसे वापस करने का अधिकार भी देता है। यदि मंत्रिपरिषद किसी परिवर्तन के विरूद्ध निर्णय लेती है, तो राष्ट्रपति के पास उसे स्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। राज्यपाल, राज्य के नाममात्र का कार्यकारी (एग्जिक्यूटिव) प्रमुख होते हैं और उन्हें भारत के राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त करते हैं। राज्यपाल को भारतीय संविधान के तहत अनेक शक्तियां प्रदान की गई हैं। इन्हें मोटे तौर पर कार्यकारी, विधायी, वित्तीय और न्यायिक शक्तियों में विभाजित किया जा सकता है।

राज्यपाल की न्यायिक शक्तियों में क्षमा करने की शक्ति भी शामिल है। सभी दंडों का प्राथमिक उद्देश्य लोक कल्याण होता है। सजाओं के निलंबन के साथ-साथ उनके निष्पादन को भी प्रोत्साहित किया जाता है। यह क्षमा करने की शक्ति के आधार के रूप में कार्य करता है। संविधान के अनुच्छेद 161 के तहत एक दोषी को क्षमा करने की राज्यपाल की शक्ति एक संवैधानिक कर्तव्य है। यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 72 के तहत राष्ट्रपति को दी गई शक्ति के समान है। इसलिए अधिकार या स्वीकृति विषेषाधिकार के स्थान पर एक संवैधानिक जवाबदारी है।

क्षमा, अनुग्रह (ग्रेस), दया या माफी की अवधारणा है, जिसका उपयोग एक समय में ब्रिटिश क्राउन द्वारा किसी अपराध के आरोपी व्यक्ति को माफ करने और क्षमा करने या दंडित करने के लिए किया जाता था। क्षमा करने की शक्ति भारत के राष्ट्रपति को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 72 के तहत और एक राज्य के राज्यपाल को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 161 के तहत दी गई है। इस तरह की एक संवैधानिक योजना कठोर और अन्यायपूर्ण कानूनों से या अन्याय के परिणामस्वरूप न्याय सुनिष्चित करने के लिए प्रदान की गई है। सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों के अनुसार राज्य के राज्यपाल के पास कैदियों को क्षमा करने का अधिकार है। इनमें मृत्युदंड भी शामिल है। भले ही इसके पहले वे 14 साल की कैद पूरी कर चुके हों या नहीं।

क्षमा करने की राज्यपाल की शक्ति भारतीय संविधान के अनुच्छेद 161 के तहत लागू की गई है। इसमें कहा गया है कि राज्यपाल के पास क्षमा आदि की शक्ति होगी। कुछ मामलों में सजा को निलंबित करने, हटाने या कम करने की शक्ति भी होगी। किसी राज्य के राज्यपाल के पास किसी ऐसे मामले से संबंधित किसी भी कानून के खिलाफ किसी भी अपराध के लिए दोषी ठहराए गए किसी भी व्यक्ति की सजा को माफ करने, राहत देने या छूट देने या निलंबित करने, हटाने या कम करने की शक्ति होगी। इससे क्षमा व्यक्ति को न केवल दंड या अपराध के दंडात्मक परिणामों से बल्कि सिविल अयोग्यता से भी मुक्त होता है।

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 161 सभी अपराधों के लिए क्षमा करने की शक्ति प्रदान करता है। हालांकि, राज्यपाल के पास ऐसी शक्ति का प्रयोग करने का अधिकार केवल तभी होगा जब विचाराधीन अपराध किसी ऐसे कानून से संबंधित हो, जिस पर राज्य की कार्यकारी शक्ति का विस्तार होता है।

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अनुच्छेद 72 के तहत राष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति का दायरा अनुच्छेद 161 के तहत राज्यपाल की क्षमादान शक्ति से अधिक व्यापक है। राष्ट्रपति कोर्ट मार्शल के तहत सजा प्राप्त व्यक्ति की सजा माफ कर सकता है लेकिन अनुच्छेद 161 राज्यपाल को ऐसी कोई शक्ति प्रदान नहीं करता है। राष्ट्रपति उन सभी मामलों में क्षमादान दे सकता है जिनमें मृत्युदंड की सजा दी गई है। राज्यपाल की क्षमादान की शक्ति मृत्युदंड के मामलों में नहीं है।

इस संबंध में स्वर्ण सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य में दिया गया फैसला महत्वपूर्ण है। वर्तमान मामले में यूपी के राज्यपाल जोगिंदर सिंह की हत्या के अपराध के लिए दोषी पाए गए कुछ अन्य व्यक्तियों के साथ राज्य विधानमंडल के मंत्री को आजीवन कारावास की सजा से छूट दी गई थी। सर्वोच्च न्यायालय ने राज्यपाल के आदेश को रोक दिया। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि, यह सच है कि उनके पास अनुच्छेद 161 के अनुसार राज्यपाल द्वारा दिए गए आदेश में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है। लेकिन, न्यायालय यह हस्तक्षेप तब कर सकता है जब उस शक्ति का मनमाने ढंग से दुर्भावनापूर्ण से इस्तेमाल किया गया हो। यह भी कहा गया कि इस तरह के आदेश को कानून की मंजूरी नहीं मिल सकती है। इस तरह के मामलों में न्यायिक हस्तक्षेप किया जाना चाहिए।

एक अन्य मामला पुरू सुधाकर बनाम आंध्र प्रदेश मामले के आरोपी को एक राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी की हत्या के लिए मौत की सजा सुनाई गई थी। इस सजा की पुष्टि आंध्र प्रदेश के उच्च न्यायालय द्वारा भी की गई थी। राज्यपाल द्वारा आरोपी को दी गई क्षमा को बाद में सर्वोच्च न्यायालय ने रद्द कर दिया। न्यायालय ने माना कि अगर राज्यपाल द्वारा क्षमा करने की शक्ति का प्रयोग जाति, धार्मिक या राजनीतिक विचार के आधार पर किया गया जाता है, तो उसे रद्द किया जा सकता है। क्षमा करने के राष्ट्रपति या राज्यपाल के निर्णय को बदला जा सकता है, यदि वह मनमाने ढंग से, उचित विचार के बिना, दुर्भावनापूर्ण विचार के साथ या ऐसे मामलों के संबंध में किया गया हो, जो पूरी तरह से असंगत है।

वर्तमान प्रकरण में पेरारिवलन नामक व्यक्ति को पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के लिए दोषी ठहराया गया था। उसे भारतीय दंड संहिता, विस्फोटक पदार्थ अधिनियम, 1908, वायरलेस टेलीग्राफ अधिनियम, 1933, विदेशी अधिनियम, 1946, शस्त्र अधिनियम 1951 और आतंकवादी और विघटनकारी (डिसरप्टिव) गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1987 के तहत किए गए अपराधों के लिए मौत की सजा सुनाई गई थी। उसकी सजा को बाद में वर्ष 2014 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा आजीवन कारावास में बदल दिया गया था। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 161 के तहत एक याचिका राज्य मंत्रिमंडल की उसकी सजा की छूट के लिए सिफारिशों के बाद कई साल तक लंबित रही। सर्वोच्च न्यायालय ने बाद में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत उसकी रिहाई का आदेश दिया। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि पेरारिवलन को क्षमा करने के लिए राज्य मंत्रिमंडल की सलाह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 161 के तहत राज्यपाल पर बाध्यकारी थी।

चूंकि राष्ट्रपति या राज्यपाल की क्षमा करने की शक्ति या अवशिष्ट (रेसिड्यूरी) संप्रभु शक्ति है, उनमें से कोई भी क्रमश: अनुच्छेद 161 और अनुच्छेद 72 के तहत निहित अपनी क्षमा शक्ति को समाप्त नहीं कर सकता है। जी. कृष्णा गौड़ और जे. भूमैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य के मामले में मौत की सजा पर वैश्विक राय में बदलाव जैसे प्रासंगिक तथ्यों का पुनर्मूल्यांकन करने से न्यायालय को नहीं रोकता। क्षमा करने की शक्ति काफी व्यापक है और इसका उपयोग कब, कैसे या किन परिस्थितियों में किया जा सकता है, इस पर कोई प्रतिबंध नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को तमिलनाडु के राज्यपाल के खिलाफ कार्रवाई करने की सलाह दी है, जिन्होंने एक दोषी को रिहा करने के लिए राज्य मंत्रिमंडल की बाध्यकारी सलाह को ‘‘अनदेखा‘‘ करने का विकल्प चुना। इस मामले में राज्यपाल ने राज्य मंत्रिमंडल की सलाह को नजरअंदाज करते हुए कहा कि राष्ट्रपति को दया याचिका पर निर्णय लेने का अधिकार है।

कार्यपालिका की क्षमा शक्ति बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह न्यायपालिका की त्रुटियों को ठीक करती है। यह प्रतिवादी के अपराध या निर्दोषता को संबोधित किए बिना दोषसिद्ध के प्रभाव को समाप्त करता है। क्षमा एक निर्दोष व्यक्ति को न्याय के प्रावधानों के विरूद्ध अथवा संदिग्ध सजा के मामलों में दंडित होने से बचाने में काफी हद तक मदद कर सकती है। क्षमा करने की शक्ति का उद्देश्य संभावित न्यायिक त्रुटियों को ठीक करना है, क्योंकि न्यायिक प्रशासन की कोई भी मानवीय प्रणाली खामियों से मुक्त नहीं हो सकती है।