अंग्रेजी सरकार को चुनौती देने वाले आलीराजपुर के क्रांतिकारी ‘छीतू’ को याद कीजिए! 

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अंग्रेजी सरकार को चुनौती देने वाले आलीराजपुर के क्रांतिकारी ‘छीतू’ को याद कीजिए! 

अनिल तवर की खास रिपोर्ट 

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प्रदेश के आलीराजपुर जिले के ग्राम सोरवा में देश के महान क्रांतिकारी और भील योद्धा छीतू किराड़ का जन्म हुआ था। वे सोरवा के पटेल थे और उन्होंने सन 1883 एड़ी में ब्रिटिश शासन के कुशासन के विरुद्ध क्रांतिकारियों के साथ युद्ध अभियान छेड़ दिया थाI बचपन से ही वे साहसी व दूसरों के दुख को समझनेवाले, फुर्तीले गुण वाले संपन्न व्यक्ति थे। समाज के प्रति सोचते थे उस समय पूरा भारत अंग्रेजों का गुलाम था अंग्रेजों की अधीनता में भारतीय राजाओं और जागीरदारों द्वारा कर के रूप में कर वसूली करते थे।

एक समय ऐसा आया जब आलीराजपुर क्षेत्र में भारी अकाल पड़ा। उस अकाल के चलते उस समय पूरे ग्रामीण इलाकों में भुखमरी का वातावरण बन गया था। किसानों के घर जो थोड़ा बहुत कुछ अनाज था, उसे जागीरदारों के माध्यम से अंग्रेज सरकार छीन लेती थी। इस कारण गाँवों में अत्याचार बढ़ने लगा था, राजाओं के हरकारे गरीब जनता पर बेइंतहा अत्याचार करते थे। गाँव में लोग भूखे मर रहे थे। खाने को कुछ भी नहीं मिल रहा था। ऐसी गंभीर विपरीत परिस्थितियों में छीतूसिंह किराड़ ने पहले जनता का दुख राजा.और जागीरदारों को बताया, पर अंग्रेजो के गुलाम बने राजाओं और उनके जागीरदारों ने छीतूसिंह की एक बात न सुनी। तब छीतूसिंह किराड़ ने अपने आस-पास के गाँवों में संघर्षशील और साहसी लोगों की टीम बनाई तथा सबके साथ मिलकर गाँव के गरीब.और असहाय जनता को उस अकाल की भुखमरी से बचाने के लिए कुछ अन्न धान कहीं से लाने की सोची। छीतूसिंह किराड़ और उनके साथियों को बड़ा आश्चर्य हुआ। गाँवों में कहीं पर अतिरिक्त अनाज नहीं था। कहीं पर था तो वह सिर्फ और सिर्फ राजाओं के गोदामों में था, वह अनाज उस समय के अंग्रेज अधिकारियों के बिना.निकाला.नहीं जा सकता था।

अंग्रेजों की हुकूमत में न दया थी न करुणा। मजबूर होकर छीतूसिंह और उनके साथियों ने अंगेजों के अनाज से भरे गोडाउन से अनाज निकालने की योजना बनाई। सोरवा से करीब तीस-चालीस किलोमीटर दूर नानपुर के पास गोडाउन थे। उन गोडाउन से अनाज लाकर गाँवों में हर घर घर के चूल्हे फिर से जल सकते थे। मन में बच्चे बूढ़ों की दुर्दशा को दूर करने के भाव से छीतूसिंह किराड़ के नेतृत्त्व में नानपुर में बड़ा डाका डाला गया। अंग्रेजों के गोदाम से अनाज सामग्री भरी पड़ी थी ताले तोड़कर गोदाम से अनाज निकाला और 300 से ज्यादा लोग ने रातों-रात सिर पर रखकर उठा लिया और गाँव गाँव में जाकर बांट दिया। रातोँ-रात लोगों ने चैन की सांस ली। फिर बाद में अंग्रेजों को पता चलते ही अंग्रेजों ने मिलकर उन्हें अनाज लूटने के जुर्म में चोर घोषित कर दिया उनके गाँव को चोरों का गाँव घोषित कर दियाI

 

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इस महान क्रांतिकारी छीतू किराड़ को अंग्रेजों ने बंदीगृह में सजा देकर घोर यातनाएं दी, जिसका उल्लेख ब्रिटिश इतिहासकार सीई लूअर्ड ने अपनी पुस्तक ‘वेस्टर्न स्टेट्स गज़ेटियर ऑफ़ मालवा’ में भी किया हैं जिसे सन 1908 एड़ी में ब्रिटिश इंडिया प्रेस मुंबई द्वारा प्रकाशित किया गया था I इस पुस्तक के मुख्य अंश निम्नलिखित हैंI

सन 1901 एड़ी में आलीराजपुर रियासत की 50,185 के लगभग जनसंख्या थी और आलीराजपुर इसकी राजधानी थीI 18वीं शताब्दी के उत्तरार्ध के आसपास आलीराजपुर रियासत द्वारा प्रशासनिक संरचना को अपनाया गया, जब रियासत की राजधानी को आली से राजपुर में सुक्कड़ नदी के किनारे ले जाया गया था। जब 19वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में यह क्षेत्र के आधिपत्य में आया, तब इस रियासत के प्रशासन को और अधिक केंद्रीकृत करने के लिए मजबूत किया गया था I आलीराजपुर स्टेट में जब राजपूत जाति के राठौर राजपरिवार का जब वर्चस्व हुआ था तब राणा जसवंत सिंह, प्रताप सिंह आदि के शासनकाल से ही आलीराजपुर में भील, भिलाला, ब्राह्मण, वैश्य, बोहरा आदि के साथ ही बलूचिस्तान के मकरान क्षेत्र के योद्धाओं को भी अलीराजपुर रियासत में नियुक्त किया गया, जिसमें मुसाफिर मकरानी ने इस रियासत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थीI

सन 1818 एड़ी में भारत में ब्रिटिश शासन के वर्चस्व की स्थापना के बाद आलीराजपुर रियासत मुख्य रूप से मुसाफिर मकरानी के आधिपत्य में था, जो कि आलीराजपुर स्टेट शासक राणाप्रताप सिंह (प्रथम) के दरबार में एक मंत्री के रूप में कार्य करता थाI राणा प्रताप सिंह की मौत बाद मंत्री मुसाफिर मकरानी ने राणा के पुत्र राणा जसवंत सिंह को उत्तराधिकारी मानकर राज्य का प्रबंधन आरंभ किया था। परन्तु उनका विरोध दिवंगत शासक के भतीजे केसरी सिंह ने किया, जो राणा जसवंत सिंह को राजगद्दी से हटाना चाहते थे। ब्रिटिश अधिकारियों ने भी राणा जसवंत सिंह को उत्तराधिकारी बनाने का समर्थन किया और इसके साथ ही उन्होंने मुसाफिर मकरानी को अल्प समय के लिए आलीराजपुर रियासत का प्रबंधक बनाए जाने का भी समर्थन किया थाI

उसी समय, मुसाफिर मकरानी और धार दरबार के बीच एक समझौता हुआ जिसके एवज में आलीराजपुर रियासत में कर वसूली या लगान वसूलने के कार्य को धार दरबार को सौंप दिया गया। इस प्रणाली ने दोनों राज्यों के दरबार के अधिकारियों के बीच अंतहीन विवाद को जन्म दिया, और अंततः 1821 एड़ी में एक व्यवस्था प्रभावी हुई, उस समय जब धार दरबार ने भोपाल के समीप स्थित बैरसिया के परगना को ब्रिटिश प्रबंधन को सौंप दिया था, इसके एवज में ब्रिटिश सरकार को धार दरबार को एक वर्ष में 10 हज़ार रूपए का भुगतान करने की संधि हुई थी। वहीँ आलीराजपुर रियासत से ब्रिटिश राज्य को 11 हज़ार रूपए एकत्र करना थे। धार दरबार और ब्रिटिश शासन के मध्य हुए इस नए समझौते से धार राज्य के आलीराजपुर रियासत से कर या लगान वसूलने के सभी सामंती अधिकार समाप्त हो गए थे। जसवंत सिंह की मृत्यु 1862 एड़ी में हुई। उनके वसीयतनामा दस्तावेज के अनुसार आलीराजपुर रियासत को उनके दो पुत्रों के बीच विभाजित किया जाना था, तब सरकार ने, पड़ोसी प्रमुख राज्यों से परामर्श करने के बाद, इस लिखित वसीयतनामा को अलग कर दिया और स्व राणा जसवंत सिंह के सबसे बड़े बेटे गंग देव को प्रमुख उत्तराधिकारी बनाया गया।

उनके छोटे भाई के लिए भी शासन करने के उपयुक्त प्रावधान बनाए थे I मगर इसके बाद सन 1869 एड़ी में राणा गंग देव को अयोग्यता के कारण शासक के पद से निष्कासित कर दिया गया था और राज्य प्रशासन के कुशल नेतृत्व का प्रबंध अब राणा गंगदेव के छोटे भाई राणा रूप सिंह को सौंपा गया थाI सन 1871 एड़ी में राणा गंग देव की मृत्यु हो गई और उनके छोटे भाई राणा रूप देव को पूर्ण रूप से का उत्तराधिकारी घोषित किया गया था। सन 1881 एड़ी में राणा रूप देव की मृत्यु हो गई जो निःसंतान थे। हालांकि उनके द्वारा किसी को भी गोद लेने की कोई भी सनद राज्य के अधिकारियों के पास नहीं थी। इसी का लाभ लेते हुए ब्रिटिश सरकार ने आगे आकर राजद्रोह करने का फैसला किया और सोंडवा ठाकुर के परिवार से सम्बंधित विजयसिंह नामक एक युवक को आलीराजपुर रियासत का राज्य-प्रबंध सौंपने का फरमान जारी कर दिया।

ब्रिटिश शासन के इस निर्णय को आलीराजपुर रियासत के मकरानी समुदाय के लोगों और फूलमाल के ठाकुर जीतसिंह ने बिलकुल भी स्वीकार नहीं कियाI उन्होंने इसे आलीराजपुर रियासत के शासकों की राजगद्दी की सामंती राणा परंपरा का अपमान बताया और इसे ईश्वर के आदेश के उल्लंघन के समान माना गयाI उन्होंने इसे ब्रिटिश शासन की तानाशाही और एक थोपा हुआ निर्णय बतायाI इसके बाद फूलमाल के जीत सिंह ठाकुर भी असंतुष्ट मकरानियों के साथ ब्रिटिश शासन के विरुद्ध विद्रोह में सम्मिलित हो गए, जो इस राज्य में अपनी बहुत अधिक शक्ति खो चुके थे। दूसरी तरफ जीत सिंह का साथ देने के लिए भील समुदाय के लोग थे जो कि ब्रिटिश शासन की दमनकारी नीतियों के कारण परेशान थेI

उचित पर्यवेक्षण के अभाव में, इन भोलेभाले जनजातीय किसानों पर ब्रिटिश शासन के पटवारियों और जिले के अधिकारियों ने उन लोगों से मनचाहा कृषि लगान वसूलना आरम्भ कर दिया था। चारों और बस ब्रिटिश कुशासन की तानाशाही का बोलबाला था। फूलमाल के जीतसिंह ठाकुर ने सोरवा ग्राम के भील योद्धा छीतू किराड़ जो कि सोरवा ग्राम के पटेल भी थे और टोकरिया-झीरन ग्राम के भुवान तड़वी के साथ मिलकर बागियों को इकठ्ठा किया और ब्रिटिश शासन के अत्याचार के विरुद्ध पूरी आलीराजपुर रियासत में आंदोलन चलाया। इसके बाद देश के इन क्रांतिकारियों ने नानपुर, छकतला और भाबरा के गाँवों में ब्रिटिश शासन के सरकारी ठिकानों पर हमलाकर उनके हथियारों को लूट लिया। वहीँ उन्होंने समीप के क्षेत्र राजपुर रियासत को भी स्थानीय लोगो के प्रति अत्याचार नहीं करने की चेतावनी दी, जो ब्रिटिश शासन के आधिपत्य में थीI

उस समय आलीराजपुर रियासत में मकरानियों का मुखिया दाद मुहम्मद थाI वह उत्साह से भरपूर व्यक्ति था और उसने आलीराजपुर रियासत के क्रांतिकारी छीतू किराड़, भुवान तड़वी, ठाकुर जयसिंह आदि के साथ ही खानदेश, छोटा उदयपुर और गुजरात से योद्धाओं को अपने साथ मिलाकर अपनी ताकत को और बढ़ा लिया था। चूंकि उस समय ब्रिटिश शासन का खुफ़िया तंत्र मजबूत थाI आलीराजपुर रियासत के क्रांतिकारियों के विद्रोह से डरकर ब्रिटिश शासन का राजनीतिक अभिकर्ता मेजर जॉन बिडुलफ ने ब्रिटिश शासन के अंतर्गत आने वाली मध्य भारत की सेना (कॉर्प्स) के साथ घोड़ों पर सवार होकर भालों और अस्त्र -शस्त्र से लैस होकर अलीराजपुर राज्य के क्रांतिकारियों के विरुद्ध एक अभियान चलायाI

सोरवा की घाटी पर ब्रिटिश सैनिकों और दाद मुहम्मद के क्रांतिकारियों के मध्य एक भयंकर युद्ध हुआ, जिसमें छीतू किराड़ के नेतृत्व में हजारों भील योद्धाओं ने भी ब्रिटिश शासन के विरुद्ध संघर्ष किया और आलीराजपुर रियासत में राणा की हुकूमत को वापस राजगद्दी दिलाने के लिए अभियान भी चलायाI परंतु, आधुनिक हथियारों से लैस ब्रिटिश सेना ने इस अभियान के प्रमुख दाद मकरानी की हत्या कर दी जिसके परिणामस्वरूप क्रांतिकारियों का विद्रोह समाप्त हो गया। इसके बाद आलीराजपुर रियासत के प्रमुख क्रांतिकारी जीत सिंह, छीतू किराड़ और भुवान तड़वी को छोड़कर अन्य सभी विद्रोहियों को माफ़ी दे दी गई I

छीतू किराड़ और भुवान तड़वी गुप्त ठिकाने से जाम्बू घोड़ा नामक स्थान की ओर निकल गए और वहां क्रांतिकारियों को इकठ्ठा करने लगे। परन्तु, ब्रिटिश शासन के सैनिको ने उन्हें पकड़ लिया और इंदौर में कैद के लिए भेज दिया गया। जहाँ बंदीगृह में उन्हें घोर यातनाएं दी गई थीI वहीँ फूलमाल के ठाकुर जीतसिंह गुजरात की और चले गए जहां उनकी मृत्यु हो गई। उनकी संपत्ति को ब्रिटिश शासन द्वारा जब्त कर लिया गयाI इस प्रकार आलीराजपुर के सोरवा ग्राम के महान बलिदानी क्रांतिकारी छीतू किराड़ ओर अन्य क्रांतिकारियों का नाम इतिहास के स्वर्ण अक्षरों में लिखा गयाI अब निश्चित ही उनके बलिदान के रूप में एक भव्य स्मारक आलीराजपुर जिले में स्थापित होना चाहिएI