कानून और न्याय: स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों में चुनाव आयोग की भूमिका

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कानून और न्याय: स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों में चुनाव आयोग की भूमिका

चुनाव खर्च को नियम के तहत निर्धारित वैधानिक सीमा के भीतर रखने के लिए चुनाव नियम, 1961 के संचालन और बेहिसाब खर्च को रोकने के लिए चुनाव आयोग ने चुनाव के दौरान चुनाव व्यय की निगरानी के लिए एक मजबूत तंत्र की शुरूआत की है। चुनाव आयोग ने धन बल के खतरे को रोकने के लिए बार-बार विभिन्न उपायों को अपनाया है। स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव किसी भी देश के उत्तम शासन, समग्र विकास और लोगों के जीवन की गुणवत्ता के लिए महत्वपूर्ण है। यह स्वतंत्र और न्यायपूर्ण समाज की आधारशिला है। देश में प्रत्येक व्यक्ति की आवाज एक समान सुनी जाए, ऐसा स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के माध्यम से ही संभव है। भारत के चुनाव आयोग ने हाल ही में 12 जनवरी को सर्वोच्च न्यायालय को आश्वस्त किया है, कि उसने चुनावों में ‘धन-बल’ के खतरे को रोकने के लिए अब तक विभिन्न उपायों को अपनाया है। सर्वोच्च न्यायालय को सूचित किया गया कि केंद्रीय नियामक निकाय, राजनीतिक दलों के बढ़ते चुनावी खर्च के संबंध में आयोग चिंतित है। आयोग चुनाव के संचालन नियमों द्वारा निर्धारित वैधानिक सीमा के भीतर चुनाव खर्च को रखने के लिए पहले से ही एक ‘मजबूत तंत्र’ बना चुका है। इस लोकहित याचिका में अत्यधिक चुनावी खर्च को रोकने के लिए दिशा-निर्देश मांगे गए थे।

चुनाव खर्च को नियम के तहत निर्धारित वैधानिक सीमा के भीतर रखने के लिए चुनाव नियम, 1961 के संचालन और बेहिसाब खर्च को रोकने के लिए चुनाव आयोग ने चुनाव के दौरान चुनाव व्यय की निगरानी के लिए एक मजबूत तंत्र की शुरूआत की है। चुनाव आयोग ने धन बल के खतरे को रोकने के लिए बार-बार विभिन्न उपायों को अपनाया है। हलफनामे में कहा गया है कि आयोग भविष्य में भी ऐसा करना जारी रखेगा। इस याचिका में याचिकाकर्ता ने चुनाव आयोग को उचित दिशा-निर्देश देने की प्रार्थना की है। ताकि चुनाव में होने वाले अतिरिक्त खर्च को रोकने के लिए कार्रवाई की एक व्यापक योजना तैयार की जा सके। यह भी मांग की गई है कि इसमें दोषी उम्मीदवारों और राजनीतिक दलों के खिलाफ कार्रवाई के कड़े और प्रभावी प्रावधान होने चाहिए।

आयोग ने याचिकाकर्ता की प्रार्थनाओं को ‘अस्पष्ट और आधा-अधूरा’ बताया। याचिकाकर्ता की ईमानदारी और सार्वजनिक उत्साह पर भी सवाल उठाए। आयोग ने याचिका को प्रथमदृष्टया ही खारिज करने का आग्रह किया। आयोग ने चुनाव में बढ़ती धन शक्ति के मुद्दे से निपटने के लिए एक व्यापक कार्य योजना तैयार करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय में याचिकाकर्ता की सहायता मांगे जाने पर आपत्ति जताई। हलफनामे में कहा गया कि ‘याचिकाकर्ता ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया है कि ऐसा तंत्र पहले से विद्यमान है।’

स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए सबसे महत्वपूर्ण है कि चुनाव में लोगों के मताधिकार की स्वतंत्र अभिव्यक्ति प्रतिबिंबित हो। इसे साकार करने के लिए चुनाव पारदर्शी, समावेषी और जवाबदेही पूर्ण होना चाहिए। मतदान करने और चुनाव में शामिल होने के लिए सभी व्यक्तियों के पास समान अवसर होना चाहिए। एक स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव में राजनीतिक स्वतंत्रता और मतदान के लिए निष्पक्ष प्रक्रियाएं शामिल होती हैं। स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव में सभी योग्य और इच्छुक उम्मीदवार चुनाव लड़ सकते हैं। साथ ही सभी योग्य नागरिक मतदाता के रूप में बिना किसी भय और दबाव के मतदान कर सकें, यह व्यवस्था भी होनी चाहिए। सभी मतों की गणना के उपरांत चुनाव परिणाम की घोषणा हो और ये परिणाम सभी दलों, व्यक्तियों, उम्मीदवारों के द्वारा सहर्ष स्वीकार किया जाए ऐसी व्यवस्था भी हों। स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए उन सभी नागरिकों को मतदान करने के लिए पंजीकृत किया जाना चाहिए जो मतदाता बनने के लिए आवश्यक पात्रता पूरी करते हों। साथ ही सभी नागरिकों को यह भी अधिकार होना चाहिए कि यदि निर्धारित पात्रता रखते हो तो वे चुनाव में उम्मीदवार के रूप में शामिल हो सकें। इससे कोई वंचित नहीं रहना चाहिए।

सरकार को ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए कि सभी मतदाता वास्तव में अपने मताधिकार का प्रयोग सकें। इस उद्देश्य के लिए मतदान स्थलों तक पहुंच की उचित व्यवस्था की जानी चाहिए। ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सभी मतदाता, जिनमें विकलांग, या अन्य खराब स्वास्थ्य स्थिति वाले मतदाता भी अपने मताधिकार का प्रयोग कर सकें। एक स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए सभी मतदाताओं को उम्मीदवारों और राजनीतिक दलों के बारे में भी पर्याप्त सूचना होना तय किया जाना चाहिए ताकि वे यह तय कर सकें कि उनके लिए सबसे अच्छा उम्मीदवार कौन है। इस संबंध में, निष्पक्ष मीडिया लोगों को उम्मीदवारों के बारे में सूचित करने और शिक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।

स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए चुनाव के दौरान और चुनाव से पहले किसी भी समय किसी भी मतदाता को भयभीत नहीं किया जाना चाहिए। धमकी या डराने-धमकाने से लोग अपने मताधिकार का प्रयोग स्वछन्द तरीके से करने से डरेंगे। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि मतदान की गोपनीयता बनाए रखने के लिए मतदाता के अलावा कोई भी मतदान के समय मतपत्र को नहीं देख सकता है। जिससे मतदाता मतदान करते समय अपने आपको सुरक्षित महसूस करें और अपनी पसंद के अनुसार उम्मीदवार के लिए मतदान करे। यह भी व्यवस्था होनी चाहिए कि प्रत्येक पात्र मतदाता केवल एक मत डालने में सक्षम होना चाहिए, कोई भी व्यक्ति अवैध रूप से एक से अधिक मतपत्र नहीं डाल सके। सभी मतपत्रों की गणना करना और परिणाम घोषित करने के लिए सटीक रिपोर्टिंग करना एक स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए अत्यंत आवष्यक है। निष्पक्ष परिणाम के लिए चुनाव के दौरान डाले गए प्रत्येक मतपत्र की गणना की जानी चाहिए। उन्हें बदला या फेंका नहीं जाना चाहिए और निष्पक्ष गणना के बाद परिणाम घोषित किया जाना चाहिए और सभी दलों, व्यक्तियों, उम्मीदवारों को परिणाम का सम्मान करना चाहिए।

भारत में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के विकास ने इंदिरा गांधी बनाम राज नारायण से लेकर सुब्रमण्यम स्वामी बनाम चुनाव आयोग के मामले तक में एक काफी लंबी दूरी तय की है। इस फैसले में रायबरेली निर्वाचन क्षेत्र से इंदिरा गांधी के चुनाव को रद्द घोषित किया गया था। उन्हें छह साल के लिए निर्वाचित पद पर रहने से रोक दिया गया था। हाईकोर्ट ने रिश्वतखोरी के आरोपों को खारिज करते हुए उन्हें चुनाव प्रचार के लिए सरकारी मशीनरी के दुरूपयोग का दोषी पाया था। इंदिरा गांधी ने सुप्रीम कोर्ट के सामने फैसले के खिलाफ अपील की। 24 जून 1975 को न्यायमूर्ति वीआर कृष्णा अय्यर की अवकाशकालीन पीठ ने फैसले पर सशर्त स्टे देते हुए श्रीमती गांधी को प्रधानमंत्री पद पर बने रहने की अनुमति दी, हालांकि उन्हें संसद में मतदान करने से रोक दिया।

7 नवंबर 1975 को सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को पलट दिया। हालांकि न्यायमूर्ति एच.आर. खन्ना ने यह जरूर लिखा था कि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव का सिद्धांत लोकतंत्र का एक अनिवार्य आधार है। यह संविधान की बुनियादी संरचना को जोड़ता है जो कि अतिआवष्यक है। सुब्रमण्यम स्वामी बनाम चुनाव आयोग प्रकरण में अपीलकर्ता डाॅ. सुब्रमण्यम स्वामी ने न्यायालय के समक्ष तर्क दिया था कि ईवीएम की वर्तमान प्रणाली, अंतर्राष्ट्रीय मानकों की सभी आवष्यकताओं को पूरा नहीं करती है। चुनाव आयोग का कहना था कि ईवीएम का हैक नहीं किया जा सकता है।

स्वतंतत्र और निष्पक्ष चुनाव में व्यय सीमा का अत्यधिक महत्व है। जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 77 में कहा गया है कि चुनाव में प्रत्येक उम्मीदवार चुनाव के संबंध में किए गए या उसके द्वारा अधिकृत सभी खर्चों का एक अलग और चालू खाता रखेगा जो यह दर्शा सके कि वह खर्च चुनाव की दी हुई व्यय सीमा से अधिक न हो। सुप्रीम कोर्ट के सामने कई बार यह मुद्दा आया कि क्या इस खर्च को कुल चुनावी खर्च के हिस्से के रूप में लिया जाना चाहिए। कुछ प्रकरणों में सर्वोच्च न्यायालय ने माना है कि राजनीतिक दल, रिश्तेदारों और दोस्तों द्वारा वहन किए गए खर्च धारा 77 के तहत कवर नहीं किए गए थे।

हालांकि, 1975 में सक्रिय रूख अपनाते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने अमरनाथ चावला के चुनाव को इस आधार पर लोकसभा के लिए रद्द कर दिया था कि उन्होंने कानून द्वारा निर्धारित व्यय की सीमा का उल्लंघन किया है। न्यायालय ने उनकी पार्टी द्वारा किए गए खर्च को उम्मीदवार के खर्च में शामिल किया था। न्यायालय का कहना था कि ‘असंतुलित रूप से अत्यधिक संसाधनों की उपलब्धता भी राजनीतिक दल या ऐसे संसाधनों से युक्त व्यक्ति द्वारा उपयोग या दुरूपयोग करने के लिए खुद को दान देने की संभावना है।’

स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए अत्यावश्यक है। चुनाव आयोग को कार्यपालिका और विधायिका के किसी भी प्रभाव से मुक्त होना चाहिए। इसे सभी राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के लिए निष्पक्षता सुनिश्चित करनी चाहिए। चुनाव आयोग को चुनाव कराने और मतदाता सूची की तैयारी और प्रबंधन में शामिल अधिकारियों और अन्य कर्मियों को निर्देष देने के पूरे प्रशासनिक अधिकार प्राप्त है। देष में स्वतंत्र चुनाव के लिए यह आवश्यक भी है।