क्या सच में, मैं तुम्हारी माँ हूँ?
तुम मुझे माँ कहते हो ना ।यह सच है कोई मुझे नदी नहीं कहता है।
हाँ मेरा नाम नर्मदा है।किंतु समाज मुझे माँ नर्मदा कहता है।हाँ जब गंगा नहीं थी तब भी मैं थी यह इस बात का प्रमाण है कि स्कंद पुराण में ” रेवा खण्ड” पूरा मुझे ही समर्पित है।अमरकंटक मेरा उद्गम है एक छोटी सी धारा के रूप में मैं वहाँ से प्रकट होती हूँ।पत्थरो , चट्टानों ,पहाड़ो और मैदानों से होती हुई मैं कुल 1312 किलोमीटर की यात्रा तय करते हुए भरूच (भृगु कच्छ) की खाड़ी में समुद्र को अपने जल से पवित्र करती हूँ।जहाँ अमरकंटक में एक छोटा बालक मुझ पर से कूद जाता है वहाँ भरूच में मेरा पाट 20 किलोमीटर चौड़ा हो जाता है।मैं पूर्व दिशा से पश्चिम दिशा में बहने वाली एकमात्र नदी कहलाती हूँ।विश्व मे मैं एक मात्र नदी ऐसी हूँ जिसकी परिक्रमा समाज नर्मदे हर बोलते हुए करता है।पत्थरों ,पहाड़ों के बीच मैं उछलती ,कूदती और प्रसन्नता के साथ लोगों के कंठ की प्यास बुझाती हूँ इसलिए ऋषियों ने मेरा नाम “रेवा” रख दिया।
युग बीत गए करोड़ों लोगों ने मेरी परिक्रमा कर ली ।निरक्षर लोगों से लेकर विद्वान सन्तों को मैंने आध्यात्म के सही मायने समझाए।कई लोग तो अपनी गौ माता को मेरी परिक्रमा करवाते हैं।
हाँ एक आश्चर्य जनक बात तुम्हें बताती हूँ।मेरे उदर से जो भी पत्थर निकलता है वह शिवलींग के आकार का होता है।वही पत्थर शिवलींग के रूप में स्वयं सिद्ध होकर पूजा जाता है।
*अब अपनी व्यथा कहती हुँ*
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तुम मुझे माँ कहते हो, तुम मुझे जीवन रेखा कहते हो , तुम मुझे देखते ही नर्मदे हर कहते हो किन्तु आज तुम्हारी माँ ह्रदय को चीरकर अपनी व्यथा तुम्हारे सामने रख रही है। कृपा करके मेरी बात सुनलो—-
युग बीते ,सदियाँ बीती मैंने स्वयं को बदल लिया ।निर्बाध गति से बहने वाली तुम्हारी माँ की छाती पर तुमने बड़े बड़े बांध बना लिए।मैंने यह स्वीकार कर लिया क्योंकि माँ हूँ ना तुम्हारे कंठ की प्यास बुझानी है मुझे,तुम्हारे खेतों को नहरों द्वारा सींच कर तुम्हे अन्न देना है।जानते हो तुम्हे मैं जल विहीन नहीं देख सकती हूँ।मैं नर्मदा ही तुम्हारी वह माँ हूँ जब भी तुम मुझमे डुबकी लगाने आते हो तुम्हारे पैरों को सबसे पहले स्पर्श करती हूँ।मैं तो तुम्हारी वह माँ हूँ जो पहले तुम्हारे चरण पखारती हूँ किन्तु दुखी हूँ इस बात से पुराण कहते है मेरी बहन गँगा में डुबकी लगाने से पाप कटते हैं मेरे तो दर्शन मात्र से ही दुख दूर हो जाते हैं।तुम मुझमे डुबकी लगाने नहीं आते हो तुम तो मुझमे स्नान करने आते हो साबुन लगाते हो, शेम्पू लगाते हो और कपड़े धोते हो मेरा आँचल दूषित होता है।शायद माँ की इस बात का तुम्हे अहसास ही नहीं है।मेरे किनारे पर कई शहर बसे हैं उनकी ओद्योगिक गंदगी मुझमे डालते हो, अपने घरों से निकलने वाली गन्दी नालियों और मल को मुझमे डालकर तुम मेरे आँचल को गन्दा करते हो।
मेरे किनारे कई तीर्थ स्थान हैं वहाँ की स्थिति तो और भी ज्यादा विकट है ।पूजा के बाद के फूल, प्लास्टिक की थैलियों तथा घर का सारा सामान मुझमे बहा देते हो।माँ हूँ तुम्हारी सभी बातों को स्वीकार कर लेती हूँ।स्थान स्थान पर गन्दगी ही शायद तुम्हारी माँ की नियति हो गयी है।
याद करो युगों से तुम्हारी माँ तुम्हारी इन ज्यादतियों के बाद तुम्हारी सेवा कर रही है।मेरी बहन क्षिप्रा को भी तुमने समाप्त कर दिया ।उज्जैनी में आकर मैंने अपनी बहन क्षिप्रा को नवजीवन दिया।
और कितना दर्द तुम्हारे सामने रखूँ ।
क्या कभी अपनी माँ की करुण पुकार तुम तक पहुंच पाएगी।
मेरे बच्चों यदि तुमने अपनी माँ को नहीं संभाला तो आने वाली पीढ़ी मुझे माँ नर्मदा नहीं “नर्मदा नदी” कहेगी और मैं युगों से तुम्हारी सेवा करती तुम्हारी माँ विलुप्त नर्मदा के रूप में जानी जावेगी।
नर्मदे हर।।
श्री कृष्ण शरणम मम।।