“आप हम सब की चिर स्मृति में बने रहेंगे-आनंद भाऊ”-सादर नमन
कहते हैं कि
‘मंजिल तो तेरी यहीं थी, इतनी देर लगा दी आते-आते,
क्या मिला तुझे जिंदगी से, अपनों ने ही जला दिया जाते-जाते।’
यह वाक्य कई जगह लिखा मिल जाता है। लेकिन आज हम जिनकी बात कर रहे हैं, वह इसके एकदम विपरीत है भोपाल के हतवलने परिवार ने एक अनोखा उदाहरण प्रस्तुत किया है।
जुलाई 2021 में श्रीमती सुरेखा हतवलने का निधन हुआ तो परिजनों ने देहदान करवाया। यह कार्य सुरेखा जी की इच्छा का सम्मान था और समाज में एक प्रेरणादायक उत्तम कार्य भी.
सच यह है कि किसी परिजन की मृत्यु परिवार पर एक वज्रपात होती है जो दुखद और असहनीय भी होती है, बावजूद इसके अगर परिवार अपने दुख के आगे समाज का हित रखते हुए काम करता है तो यह एक अनुकरणीय और अविस्मरणीय कार्य है.
सुरेखा जी की देह का दान उनके पति आनंद हतवलने जी की उपस्थिति में किया गया था. आज आनंद हतवलने जी नहीं रहे। उन्होंने भी देहदान का संकल्प लिया था तो उनके बेटे बेटी ने देहदान की उनके संकल्प का सम्मान करते हुए उनका पार्थिव शरीर भी निजी चिकित्सा महाविद्यालय में चिकित्सकों की टीम को सौंपा.
देहदान का अर्थ है ‘देह का दान’ अर्थात किसी उत्तम कार्य के लिए अपना जीवन ही दे देना। देहदान से व्यक्ति मरणोपरांत भी किसी को जीवनदान दे जाता है। यही नहीं, वह ऐसे चिकित्सक को गढ़ने में भागीदार होता है, जो वर्षों तक चिकित्सा सेवा के माध्यम से देश-विदेश में हजारों लोगों की जान बचाता है।
श्री आनंद हतवलने जनसंपर्क विभाग मध्यप्रदेश शासन में फिल्म अधिकारी के पद पर रहे. जनसंपर्क में रहते हुए कई बार आनंद जी से मुलाकात होती रही थी. कई बार तो फोटोग्राफी में मेरी रूचि की वजह से मैं उनसे कुछ जानकारी लेती थी. वे एक सहज स्वभाव के खुशमिजाज व्यक्ति थे जो कई बार बातचीत में कलात्मक फोटोग्राफी की बारीकियों से भी अवगत करा देते थे.
एक मध्यमवर्गीय परिवार में ये दंपत्ति एक महान सोच के साथ दुखद प्रसंग के बाद भी जो अनूठी मिसाल पेश कर गए वो सामाजिक क्षेत्र में विशेषकर चिकित्सा शिक्षा क्षेत्र में उनका सर्वोच्च अवदान कहा जा सकता है. प्रचार प्रसार से दूर जनसंपर्क विभाग के ये पूर्व अधिकारी सपत्निक देह दान का संकल्प पूरा कर हम सभी को दुःख के अवसर पर भी गौरवान्वित कर गए। देहदान के महत्व के प्रति जागृति का इससे बड़ा उदाहण और क्या होगा, पत्नी की देह दान के बाद पति ने भी वही पथ चुना अपने जाने का.
—–निशब्द होने के बाद भी उन्होंने एक सन्देश समाज को दिया है कि यह शरीर नश्वर है। मृत्यु के बाद देह मिट्टी हो जाती है। पर अब विज्ञान की प्रगति के साथ-साथ यह मृत देह भी अमर हो सकती है। मरने के पश्चात् भी आंखें देख सकती हैं, कान सुन सकते हैं और दिल धड़कता रह सकता है। निष्प्राण-जीर्ण शरीर, शिक्षा और विज्ञान की अमूल्य सेवा कर सकता है। मैं आपके इस अवदान पर नम आँखों के बावजूद गर्वित हूँ. मैंने आनंद भाऊ के साथ जनसम्पर्क विभाग में शासकीय सेवा करते हुए काम किया है. मैं आपके इस दान को दधीचि देहदान की अगली कड़ी मानते हुए सादर नमन करती हूँ. आप हम सब की चिर स्मृति में बने रहेंगे. मीडियावाला परिवार आपको अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करता है.