पुष्प की तरह सुगंध बिखेर इंद्र की तरह स्वलोक को चले गए बाबा…

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पुष्प की तरह सुगंध बिखेर इंद्र की तरह स्वलोक को चले गए बाबा…

होली का यह त्यौहार पत्रकार जगत को शोक में डुबोकर चला गया। होली से एक दिन पहले होलिका दहन के एक दिन पहले सुबह सुबह से आई सूचना सबका दिल तोड़कर चली गई। सूचना थी कि पुष्पेन्द्रपाल सिंह नहीं रहे। विस्तार था कि माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय के पूर्व प्राध्यापक, ‘रोज़गार और निर्माण’ अखबार के संपादक प्रो. पुष्पेन्द्रपाल सिंह का आज सुबह हृदयाघात से निधन हो गया। प्रो. सिंह पब्लिक रिलेशन्स सोसायटी ऑफ इंडिया के मप्र चैप्टर के अध्यक्ष भी थे। वे अपने छात्रों के बीच ‘पी.पी. सर’ के नाम से मशहूर थे। अनगिनत छात्रों को उन्होंने पढ़ाई के अलावा उपयुक्त रोजगार पाने में बहुत मदद की। साहित्यिक-सांस्कृतिक गतिविधियों से उनका गहरा लगाव था।

यह सूचना ह्रदय विदारक थी। इसे सुनकर सभी को सदमा लगा और सभी का दिल टूटा। मन में बार-बार यही विचार आया कि ईश्वर कितना निष्ठुर हो जाता है कभी-कभी। मन में बार-बार यही आया कि यह सूचना अफवाह साबित हो जाए। पर इसकी गुंजाइश कतई नहीं बची थी। यह सत्य बड़ा बेरहम होकर उनके चहेतों पर कहर बनकर टूट चुका था। और ऊपर वाले का फैसला अंतिम था कि अब पुष्पेंद्र पाल जी की चाहत उन्हें भी है। पृथ्वी लोक पर उनके चहेतों के बीच रहने को शायद ईश्वर ने उन्हें इतना ही समय दिया था।  पुष्पेंद्र पाल सिंह जी से मिलकर ऐसा कोई अपवाद ही होगा, जिसे अच्छा न लगे। जो उनके अपनेपन, मान-सम्मान की खुशबू से सुगंधित हुए बिना रह पाया हो। ऊंचे पूरे, आकर्षक व्यक्तित्व के धनी, बोलने का अंदाज मानो मिठास घोल दे और मदद चाहने वाले के लिए सबसे बड़ा सहारा साबित होते थे पुष्पेंद्र पाल सिंह जी। कर्तव्य के प्रति पूरी तरह से समर्पित और परिश्रम की पराकाष्ठा से अविचलित पुष्पेंद्र पाल जी की खूबियों को लिखने में शब्दकोश भी समर्थ नहीं हो सकता।

पी.पी.सर को लोग सम्मान से ‘बाबा’ भी पुकारते थे। फेसबुक और व्हाट्स एप जैसे माध्यम उनके जाने से गमगीन और आंसू बहाते रहे। उनकी यादों को तरोताजा करते रहे। किसी ने लिखा कि न आप जैसा कोई था और न कभी होगा,अलविदा ‘बाबा’। किसी ने लिखा कि हम सबके लिए बहुत ही दुखद क्षण हैं। विश्वास ही नहीं हो रहा हमारे बड़े भाई मीडिया और शिक्षा जगत का जाना पहचाना चेहरा श्री पी पी सिंह जी का निधन हो गया। बहुत ही मिलनसार चुंबकीय व्यक्तित्व के धनी थे। विद्यार्थियों के लिए वह अभिभावकों से अधिक हितैषी और उनके हीरो थे।भावभीनी श्रद्धांजलि। तो किसी ने लिखा कि पत्रकारिता के हजारों छात्रों के स्थानीय अभिभावक, हमेशा मदद के लिए तत्पर रहने वाले प्रिय प्रोफेसर पुष्पेंद्र पाल सिंह सर का अचानक छोड़कर चले जाना अत्यंत दुःखदाई है…। आप जहां भी रहें, इसी भूमिका में हमेशा रहें बाबा।विनम्र श्रद्धांजलि।

तो श्रद्धांजलि देने वालों का तांता लगा रहा और उनके प्रशंसकों के दिल में वह हमेशा जिंदा रहेंगे। ऐसा व्यक्तित्व यदा कदा ही जन्म लेता है। देह स्वरूप में मुस्कराहट संग जीता है और सभी चेहरों पर मुस्कराहट लाने का हर जतन करते-करते वापस अपने लोक को चला जाता है। पत्रकारिता के इस पुरोधा का जाना अपूरणीय क्षति है। ‘बाबा’ का इतनी जल्दी जाना कुछ यूं ही रहा कि मानो एक देवात्मा इस पृथ्वीलोक में देह धारण कर आई हो और पुष्प की तरह अपनी सुगंध बिखेरकर इंद्र की तरह अपने लोक को लौट गई हो…।

गीता का यह श्लोक आत्मा का वर्णन करता है कि ‘न जायते म्रियते वा कदाचिनायं भूत्वा भविता वा न भूयः। अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे॥’ अर्थात आत्मा का न तो कभी जन्म होता है न ही मृत्यु होती है और न ही आत्मा किसी काल में जन्म लेती है और न ही कभी मृत्यु को प्राप्त होती है। आत्मा अजन्मा, शाश्वत, अविनाशी और चिरनूतन है। शरीर का विनाश होने पर भी इसका विनाश नहीं होता।

परमपिता परमेश्वर से यही प्रार्थना है कि अगली बार ‘बाबा’ को इतनी लंबी आयु देकर पृथ्वीलोक पर भेजना ताकि उनके चहेतों को सदमा न लगे, आघात न लगे और उनकी विदाई पर गीता का निम्न श्लोक चरितार्थ होकर उनके चहेतों को ढांढ़स बंधा सके।

“वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्वाति नरोऽपराणि। तथा शरीराणि विहाय जीर्णा न्यन्यानि संयाति नवानि देही॥” अर्थात जिस प्रकार से मनुष्य अपने फटे पुराने वस्त्रों को त्याग कर नये वस्त्र धारण करता है, उसी प्रकार मृत्यु होने पर आत्मा पुराने तथा व्यर्थ शरीर को त्याग कर नया शरीर धारण करती है।