विश्व कविता दिवस पर:लेखिका संघ इंदौर से कुछ कवितायेँ
1
कविता 🙏
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कविता भाव,
अभिव्यक्ति आधार,
कवि ह्रदय,
उपहार स्वरूप,
कविता लिख जाते।
ह्रदय के तार,
वीणा से झंकृत हो,
मधुर गीत ,
दिल से निकलते,
दिल को छू जाते।
कविता जन्म,
भावनाओं का रेला,
शब्दों की लड़ी,
आंसुओं का निर्झर
कविवर कहते।
दिल की बात,
कह जाती कविता,
प्रार्थना भक्ति,
भाव भरे अंतस,
प्रभु प्रसन्न होते।
रचनाकार,
रहे न रहे किन्तु,
कविता उसे,
सदा सदा के लिए,
अमर कर जाती।
कवि ह्रदय,
गूंथे शब्द संसार,
खुशी के रंग,
प्राकृतिक वर्णन,
दिल मे उतर जाते।
-प्रभा जैन
2
शब्दो के कुछ बीज
चुन चुन कर
सहेज कर रखे थे
अब उन्हें
बोने की बारी आई है
पुरुषार्थ कहो
या ,अपने आप को
ढालने की बारी आई है
जानती हूं
बोने के बाद
शब्दो के ये बीज
मेरे नही रहेंगे
इन बीजों से निकले
पुष्प ,फल
कहला सकते है
कविता कहानी
मेरे साथ
जीवन पथ पर चल रहे साथी
इसे पढ़े सुने,
ओर मेरे पीछे आ रही
नव पीढ़ी
इस सम्हाले
इनमें से संचित करे
नव बीज
ओर बना ले
एक वट वृक्ष साहित्य का
सीमा शाहजी
3
एक कविता पढ़ लें
सूरज की
रेशमी किरणों बैठ
नयन तारो की
डोली से
कविता
मन हृदय
आती है।।
मस्तिष्क की
संगीत सभा मे
सप्त सुरो मे
गाती है।।
पंच तत्वो के
संग
नव लय ताल
मे
गुनगुनाती
है।।
नव रसों के
संग
मन,जीवन के
गीत सुनाती
है।।
वन्दिता श्रीवास्तव
4
करोना काल की कविता
दौर मुश्किल है मगर
जाएगा एक दिन गुज़र
फिर नया सूरज उगेगा
चांद का डोला सजेगा
झूमते वृक्षों पै कोयल
गीत गाएगी मधुर
दौर मुश्किल,,,,
इस धरा के जीव जंतु को
सुरक्षा का विश्वास होगा
तब पर्वतों के शीश से
बहने लगेगी सरिता लहर
दौर मुश्किल,,,,,,
इंसान की इंसानियत से
खिल उठेगी वसुंधरा
दोनों में होगा संतुलन
होंगै सुखी सब चर-अचर
दौर मुश्किल
फिर ना बुझने देंगे हम
संवेदना के दीप को
जिनसे मिला जीवन हमें
उनकी करेंगे हम बस़र
दौर मुश्किल
वक्त की इस धूप में जो
जलते हुए जो चलते रहे
नवसृजन के नींव पाथर
वो लिखेंगे नई स़हर
दौर मुश्किल—
हौसलें जिनके बुलंदी
छूते हैं आकाश की
वह प्रेरणा बनकर रहेंगे
चेतना के खोल ,पर
दौर मुश्किल—
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-मीना गोदरे, अवनि
मन की बात,कविता के साथ
मैं कविता में कहना चाहूं,
कुछ ऐसा कर दिखलाएं हम।
लेखिका संघ ऊंची उड़ान भर ले,
उल्लसित मन से ऐसा लिख दें ।
ऐसा उत्कृष्ट कार्य जोड़ दें,
लेखिका संघ का परचम फहरा दें।
सभी दांतों तले उंगली दबा दें,
हतप्रभ हम सबको कर दें।
जैसे बिन मौसम बरसात हो रही,
लगता जैसे सावन आ गया।
दो सावन का वर्ष है सखियों,
कितने सावन देखें हम !🤔
लोग हमें भी यूं ही कहें,
कितनी प्रगति हम देखें।
संस्था के अलावा कुछ दिखे नहीं,
हमारे कदम कभी अब रुकें नहीं।
सखियों, यही है न सही,
हर बात, पूरे मन से कही।
कविता दिवस तभी सार्थक,
करनें होंगे प्रयास अथक।
–मंजुला भूतड़ा
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