20 अप्रैल को दुर्लभ हाइब्रिड सूर्यग्रहण: आंशिक, वलयाकार और पूर्ण , तीनों ग्रहण
संभागीय ब्यूरो चीफ चंद्रकांत अग्रवाल की विशेष रिपोर्ट
नर्मदापुरम। जंतुओं की हाईब्रिड, फसलों की हाईब्रिड वैरायटी तो आमशब्द हो गये हैं लेकिन ग्रहण भी हाईब्रिड हो यह कम ही लोग जानते हैं । कल 20 अप्रैल की अमावस्या को चांद, सूरज पर हाईब्रीड सूर्यग्रहण लगाने जा रहा है। कल गुरूवार को ,20 अप्रैल को जब आप सुबह सबेरे सूर्य दर्शन कर रहे होंगे तब ऑस्ट्रेलिया में सूर्य होगा ग्रहण के साये में। सम्पूर्ण विश्व में कल कहीं सूर्यदर्शन तो कहीं सूर्यग्रहण दिखाई देगा। चंद्रमा से पृथ्वी की दूरी ही तय करती है हाईब्रिड ग्रहण। यदि आप यह खबर कल सुबह पढ़ रहे होंगे तो गुरूवार को (20 अप्रैल) जब आप सुबह सबेरे सूर्यदर्शन कर रहे होंगे तब ऑस्ट्रेलिया दुर्लभ हाईब्रिड सोलर इकलिप्स के साये में होगा ।
यह ग्रहण भारत में तो नहीं दिखेगा लेकिन इस ग्रहण को ऑनलाईन देखा जा सकता है। नेशनल अवार्ड प्राप्त विज्ञान प्रसारक सारिका घारू ने मीडियावाला को बताया कि सूर्यग्रहण के समय पश्चिम ऑस्ट्रेलिया से सूर्य की दूरी 15 करोड 2 लाख 67 हजार किमी से कुछ अधिक है । वहीं चंद्रमा 3 लाख 75 हजार 934 किमी दूर है । सूर्य और चंद्रमा की दूरी का अनुपात लगभग 400 है जो कि सूर्य और चंद्रमा के आकार के अनुपात के बराबर है । इस कारण संकर सूर्यग्रहण की घटना हो रही है।सारिका घारू ने बताया कि इस सूर्यग्रहण के बाद 5 मई को उपछाया चंद्रग्रहण होगा जो भारत में भी रहेगा। इस साल अगला सूर्यग्रहण 14 अक्टूबर को तथा अगला हाईब्रिड सोलर इकलिप्स 15 नवंबर 2031 को होगा लेकिन वह भी भारत में नहीं होगा।
भारत में सूर्यग्रहण का प्रत्यक्ष अवलोकन करने के लिये अब इसके बाद 2 अगस्त 2027 तक का इंतजार करना होगा। सारिका ने बताया कि कल का सूर्य ग्रहण की तरह केवल पूर्ण (टोटल सोलर इकलिप्स) या केवल वलयाकार (एन्यूलर सोलर इकलिप्स,नहीं होगा बल्कि इस बार ये दोनो प्रकार के ग्रहण एक ही दिन में घटित होने जा रहे हैं । इसके आसपास के क्षेत्र में आंशिक सूर्यग्रहण (पार्शियल सोलर इकलिप्स) भी होगा । दुर्लभ माने जाने वाले इस ग्रहण की विस्तार से जानकारी देते हुये नेशनल अवार्ड प्राप्त विज्ञान प्रसारक सारिका घारू ने मीडियावाला को इसका वैज्ञानिक मर्म बताया कि तीनों ग्रहण एक साथ दिखाई देने के कारण ही इसे हाईब्रिड सोलर इकलिप्स कहा जाता है। यह ग्रहण वैसे भारत में नहीं दिखेगा लेकिन इसे पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के अलावा दक्षिणी गोलार्द्ध में देखा जा सकता है । सारिका घारू ने बताया कि जब पृथ्वी की परिक्रमा करता चंद्रमा , सूर्य और पृथ्वी के बीच और एक रेखा में आ जाता है तो सूर्यग्रहण होता है । इस दौरान चंद्रमा पृथ्वी के नजदीक होता है तो सूर्य को पूरी तरह ढक लेता है और उस भाग में पूर्ण सूर्यग्रहण दिखता है। यदि चंद्रमा दूर रहता है तो सूर्य एक कंगन के रूप में चमकता दिखता है , इसे वलयाकार सूर्यग्रहण) कहते हैं। अगर चंद्रमा न तो ज्यादा दूर हो और न ही बहुत पास तो हाईब्रिड सोलर इकलिप्स की स्थिति बनती है ।
सारिका घारू ने बताया कि एक रिसर्च के अनुसार इस दुर्लभ ग्रहण में पूर्ण या वलयाकार ग्रहण की स्थिति को दुनिया के सिर्फ लगभग 4 लाख से कुछ कम ही लोग देख पायेंगे । यह विश्व की अनुमानित जनसंख्या का 0.004 प्रतिशत है । वहीं लगभग 70 करोड् लोग आंशिक ग्रहण को देख सकेंगे जो कि उस भौगोलिक क्षेत्र में निवास करते हैं। दुर्लभ हाईब्रिड सोलर इकलिप्स इस सदी के दौरान होने वाले 224 सूर्यग्रहण में से सिर्फ 7 बार ही होगा अर्थात इसकी भागीदारी सिर्फ 3.1 प्रतिशत ही होगी। सारिका सभी जिज्ञासुओं से कह रही हैं कि इसे समझने के लिये हो जाईये तैयार। साइंस, संकर सूर्यग्रहण का वैज्ञानिक मर्म । पिछले तथा आगामी हाईब्रिड सोलर इकलिप्स – इसके पूर्व 4 अक्टूबर 1986, 29 मार्च 1987, 9 अप्रैल 2005, 3 नवम्बर 2013, को इस तरह के सूर्य ग्रहण हो चुके हैं। आगामी समय में 20 अप्रैल 2023
15 नवम्बर 2031, 25 नवम्बर 2049, 21 मई 2050, 6 दिसम्बर 2067 को होंगे।