राजा-महाराज के बीच पिसते ‘ महाकाल ‘
उज्जैन के ‘ महाकाल ‘ परेशान हैं. वे राघौगढ़ के राजा और ग्वालियर के महाराज के बीच पिस रहे हैं .दोनों महाकाल से एक-दूसरे के खिलाफ प्रार्थनाएं कर रहे हैं .महकाल किसकी मनोकामना पूरी करें और किस खाली हाथ वापस करें ये समस्या है .महाकाल के तीसरे भक्त कैलाश विजयवर्गीय ने राजा और महाराज को बीच का रास्ता अपनाने का सुझाव दिया है.
आपको बता दूँ कि पिछले दिनों उज्जैन में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए कहा था कि -‘हे भगवान, हे महाकाल कांग्रेस में अब कोई दूसरा ज्योतिरादित्य सिंधिया पैदा मत करना ‘. वहीं, केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने दिग्विजय सिंह पर पलटवार करते हुए अपने ट्विटर हेंडल पर लिखा था कि-‘ हे प्रभु महाकाल दिग्विजय सिंह जैसा देश विरोधी और बंटाधार भारत में पैदा न हो’.
राजा और महाराज की जंग पुरानी है. पीढ़ियों पुरानी .यानि दिग्विजय सिंह के पिता से पहले की।
दिग्विजय के बयान के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सिंधिया का समर्थन किया था.
इस मामले में सूप तो सूप छलनियाँ भी उछ्लकोंड करने लगीं . सिंधिया समर्थक पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री महेंद्र सिंह सिसोदिया ने दिग्विजय के पाकिस्तान में पैदा होने की बात कही. उसके बाद जल संसाधन मंत्री तुलसी सिलावट ने कहा कि-‘ दिग्विजय सिंह कांग्रेस के कोरोना हैं. कोरोना की उत्पत्ति चीन से हुई है. इसलिए कांग्रेस के इस कोरोना पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को भी चीन में ही जन्म लेना चाहिए. ये मेरी महाकाल से प्रार्थना है. सिलावट ने कहा कि कांग्रेस वैसे ही नेतृत्वहीन पार्टी है. दिग्विजय सिंह बची कुची कांग्रेस का भी बंटाढार कर देंगे. मेरी तो महाकाल से प्रार्थना है कि वे उन्हें सद्धबुद्धी दें, ताकि वे पवित्र स्थान को उनकी टिप्पणियों से अछूता रखें.’
जुबानी जंग रुकने का नाम नहीं ले रही. जब सिंधिया और सिंधिया की फ़ौज बोल चुकी तो एक बार फिर दिग्विजय सिंह ने सबके लत्ते ले लिए. दिग्विजय सिंह ने कहा कि-‘ न मैं पाकिस्तान जाऊंगा, न ही चीन जाऊंगा, मैं इनकी छाती पर मूंग दलता रहूंगा ‘. उन्होंने कहा कि-‘ मुझे तो हंसी आती है कि उनके पास मेरे खिलाफ कहने को कुछ है ही नहीं. न मेरे पास ईडी भेज सकते हैं, न सीबीआई भेज सकते हैं. उनके पास जब कुछ नहीं बचा तो यही कहने लगे कि पाकिस्तान में जन्म लो, चाइना चले जाओ.’
भाजपा और कांग्रेस नेताओं की इस जुबानी जंग में महाकाल फिलहाल मौन हैं. उनके पास कोई दूसरा चारा है भी नहीं. हालांकि मौन बदजुबानी करने वाले नेताओं को होना चाहिए किन्तु वे कहाँ किसी की सुनने वाले हैं ?
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान आखिर चुप कैसे बैठते ? दिग्विजय सिंह ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को गद्दार कहा तो शिवराज सिंह बोले-‘ सिंधिया गद्दार नहीं बल्कि खुद्दार हैं। कांग्रेस में रहते आखिर कितना अपमान सहते। चुनाव लड़ा सिंधिया के नाम पर और मुख्यमंत्री बुजुर्ग कमलनाथ को बनाया।’ शिवराज सिंह ने ये भी कहा कि -‘हम किसी की मेहरबानी पर सरकार नहीं चला रहे। सिंधिया ने इस्तीफा दिया। चुनाव लड़ा और शान से जीतकर आए, लेकिन कांग्रेस में छोटेपन और ओछेपन की होड़ लगी है। हर नेता दूसरे नेता को छोटा करने बयान देना चाहता है। इस होड़ में कमलनाथ और दिग्विजय सिंह समेत सब शामिल हैं। सूत न कपास, जुलाहों में लट्ठम-लट्ठा। कांग्रेस का क्या होगा भगवान जाने।’
इस विवाद से केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने अपने आपको अलग रखने की कोशिश की ,लेकिन मजबूरी में उन्हें कहना पड़ा कि -‘भाजपा दिग्विजय सिंह के बयानों को कांग्रेस भी गंभीरता से नहीं लेती। वे टाइम पास के लिए बयान देते हैं।’ दरअसल नरेंद्र सिंह तोमर के लिए भाजपा में सिंधिया का आना सबसे बड़ी परेशानी का सबब है,क्योंकि अब वे जो भी करते हैं,सिंधिया उसका श्रेय खुद ले उड़ते हैं .
कांग्रेस की अठारह महीने की सरकार गिरने का सबसे ज्यादा नुक्सान सहने वाले दिग्विजय सिंह शुरू से ही सिंधिया की खिल्ली उड़ाते रहे हैं. आपको याद हो कि पूर्व में दिग्विजय सिंह ने कहा था कि-’15 महीने में हमारे धनाढ्य विधायक कमाई में लग गए और बिक गए। हमारे अनुसूचित जाति-जनजाति के विधायकों को भी ऑफर आए थे। उन्होंने 25-25, 50-50 करोड़ के ऑफर ठुकरा दिए, लेकिन बड़े-बड़े महाराजा बिक गए। आगामी चुनाव में विशेष ख्याल रखेंगे कि इस बार हमारा प्रत्याशी टिकाऊ हो, ना कि बिकाऊ।’.
जैसा कि मैंने पहले ही कहा कि राजा और महाराज की अदावत पुरानी है. इस अदावत के बारे में आपको बता दूँ कि जहां, सिंधिया परिवार ग्वालियर रियासत से जुड़ा है, वहीं पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का परिवार राघोगढ़ रियासत से जुड़े हुआ है. कहा जाता है कि 1802 में ग्वालियर रियासत के तत्कालीन महाराज दौलत राव सिंधिया ने तत्कालीन राघोगढ़ रियासत के महाराज राजा जयसिंह को युद्ध में पराजित किया था. इसके बाद राघोगढ़ रियासत ग्वालियर स्टेट के अधीन आने लगी, तभी से यह अदावत शुरू हुई थी और आज राजनीति के मैदान में भी यह अदावत जारी है.
प्रदेश की राजनीति में जब तक माधवराव सिंधिया का हस्तक्षेप रहा तब तक खुद दिग्विजय सिंह उनके खिलाफ मोर्चा सम्हाले रहे और जब ज्योतिरादित्य सिंधिया ने माधवराव सिंधिया की विरासत सम्हाली तो दिग्विजय ने अपने बेटे जयवर्धन सिंह को उनके सामने ला खड़ा किया और खुद भी मोर्चे से नहीं हटे .
कुल जमा अब गेंद महाकाल के पाले में है. महाकाल का ठिकाना पुरानी सिंधिया रियासत के उज्जैन शहर में है .लेकिन वे त्रिकालदर्शी हैं .पक्षपात नहीं करने वाले .वे सबकी सुन रहे हैं और गुन रहे हैं। भले ही भाजपा ने उनका कॉरिडोर बना दिया हो लेकिन वे इससे प्रभावित नहीं जान पड़ते.इसलिए उनका मौन रहस्य्पूर्ण है .अब जो कुछ होना है सो छह महीने बाद जनता की अदालत में होना है .तय महाकाल को नहीं जनता को करना है कि उसे राजा पसंद है या महाराज ?