राज-काज:कभी भी मुसीबत में फंस सकते हैं पंडित धीरेंद्र शास्त्री….!
– छतरपुर जिले स्थित बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर धीरेंद्र शास्त्री कभी भी मुसीबत मोल ले सकते हैं, ऐसा अकेले हम नहीं उनके अनन्य भक्त भी कहने लगे हैं। शास्त्री ऐसे आचार्य हैं, जिन्होंने कम उम्र और कम समय में सोहरत की बुलंदियों को छुआ है। लाखों लोग उनके मुरीद हैं। पर चर्चा में रहने की भूख के कारण वे अपना और श्रद्धालुओं का नुकसान करने की ओर अग्रसर हैं। उनकी वाकपटुता के भी अधिकांश लोग कायल हैं, यह अब बड़बोलेपन में बदल रही है। शिखर पर पहुंच रहे शास्त्री में अहंकार अंकुरित होने लगा है, तभी वे किसी को भी चुनौती दे देते हैं। किसी को भी अपमानित कर देते हैं। पहले उन्होंने संत तुकाराम के बारे में बोलकर उनके अनुयायियों को क्रोधित किया, अब सहस्त्रबाहु पर टिप्पणी कर कलचुरी समाज को।
संत तुकाराम को लेकर बवाल मचा तो उन्होंने यह कह कर खेद जताया कि उन्होंने एक कहानी सुनाई थी लेकिन उससे किसी को ठेस पहुंची है तो वे क्षमा मांगते हैं। यही उन्होंने हय हय क्षत्रिय समाज के गुस्से को शांत करने के लिए किया। सवाल है कि इतनी ख्याति अर्जित कर चुके शास्त्री के मुख से नपे-तुले शब्द नहीं निकलने चाहिए? क्या उन्हें बेवजह ज्यादा बोलने की अपनी आदत में सुधार नहीं करना चाहिए? यदि उन्होंने ऐसा न किया तो वे कभी भी बड़ी मुसीबत में फंस सकते हैं। शिखर पर पहुंचे कई धमार्चार्य इसके उदाहरण हैं।
*राजनीति के गिरते स्तर का प्रतीक ‘कोरोना वायरस’…*
– कोरोना वायरस अब राजनीति के मैदान में है। जब राजनीति में नैतिकता, मयार्दा और चरित्र का कोई स्थान नहीं है तो ‘कोरोना वायरस’ भी क्यों पीछे रहे। लिहाजा, राजा-महाराजा अर्थात दिग्विजय सिंह एवं ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच आरोप प्रत्यारोप के दौरान एक स्वामी भक्त ने ‘कोरोना वायरस’ की एंट्री करा दी। सिंधिया के खास सिपहसलार तुलसी सिलावट ने दिग्विजय को ‘कोरोना वायरस’ ही कह डाला।
उन्होंने कहा कि दिग्विजय कांग्रेस और मप्र के लिए ‘कोरोना वायरस’ साबित हुए हैं। जवाब दिग्विजय ने भी दिया। उन्होंने कहा कि हां मैं ‘कोरोना वायरस’ हूं लेकिन भाजपा और आरएसएस के लिए। अब बारी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की थी, वे भी लड़ाई में कूद गए। उन्होंने कहा कि दिग्विजय ने खुद ही स्वीकार कर लिया कि वे ‘कोरोना वायरस’ हैं। चौहान ने कहा कि दिग्विजय और कमलनाथ दोनों ने मप्र को ‘कोरोना वायरस’ की तरह नुकसान पहुंचाया है। शिवराज ने यह भी बताया कि किस तरह भाजपा सरकार ने कोरोना पर काबू पाया। सवाल यह है कि क्या किसी ऐसे राजनेता जो 10 साल तक प्रदेश का मुख्यमंत्री रहा हो, उसे ‘कोरोना वायरस’ कहना स्वस्थ राजनीतिक बहस का हिस्सा है? क्या राजनीति में चरित्र, मयार्दा और नैतिकता को पूरी तरह से तिलांजलि दे दी जाना चाहिए? यह सभी के सोचने का विषय है।
*विधायकों के मोह भंग से सकते में रणनीतिकार….*
– भाजपा के रणनीतिकार पार्टी नेताओं, विधायकों की नाराजगी की खबरों से सबसे ज्यादा परेशान हैं। हर प्रमुख बैठक में इस बात पर मंथन होता है कि कैसे इस नाराजगी को दूर किया जाए। पार्टी के दिग्गज नेताओं को इसकी जवाबदारी सौंपी गई है फिर भी असंतुष्टों को मनाने में कामयाबी नहीं मिल पा रही है। ताज्जुब की बात यह है कि पंचायत से लेकर विधानसभा और लोकसभा तक भाजपा ही भाजपा है, बावजूद इसके भाजपा के विधायकों का पार्टी से मोह भंग थमने का नाम नहीं ले रहा है। विंध्य अंचल में पहले से पार्टी की हालत खस्ता है।
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक का दौरा हो चुका है, फिर भी नारायण त्रिपाठी अलग पार्टी का झंडा थामे खड़े हैं। भाजपा विधायक उमाकांत शर्मा इस कदर नाराज हैं कि उन्होंने पहले खुद को जान का खतरा बताते हुए कहा कि मैरी हत्या हो सकती है, इसके बाद नाराज होकर अपनी सुरक्षा लौटाने का ऐलान कर दिया। पार्टी के पूर्व विधायक और अपेक्स बैंक के पूर्व अध्यक्ष भंवर सिंह शेखावत ने बगावती तेवर अख्तियार कर रखे हैं। उन्हें सिंधिया के साथ भाजपा में आए एक मंत्री से नाराजगी है। इनके अलावा भी कई विधायक और पूर्व विधायक अभी से टिकट कटने की आशंका में कांग्रेस सहित दूसरे दलों में अपनी संभावनाएं तलाशने लगे हैं। इनके पास अब भीम आर्मी, जयस, सपा और बसपा जैसे विकल्प भी हैं।
*पहले ही लिख गई थी सिद्धार्थ की वापसी की पटकथा….*
– भाजपा के कद्दावर नेता पूर्व मंत्री जयंत मलैया के बेटे सिद्धार्थ मलैया को पार्टी में फिर वापस ले लिया गया। सवाल यह है कि जब उप चुनाव में भितरघात के आरोप में सिद्धार्थ को भाजपा से निष्कासित किया गया था तब पार्टी का निर्णय सही था, या अब जो किया वह सही है। पार्टी प्रत्याशियों को हराने वाले नेताओं को इसी तरह वापस लिया जाता रहेगा, तो क्या मैसेज जाएगा? सच यह है कि दमोह में कांग्रेस विधायक राहुल लोधी का इस्तीफा कराना और भाजपा से चुनाव लड़ाना ही गलत फैसला था।
क्योंकि तब सरकार बचाने के लिए ना तो विधायकों की जरूरत थी और ना ही लोधी समाज को साधने के लिए राहुल की। समाज के प्रहलाद पटेल पहले ही दमोह से सांसद हैं और लोधी समाज के अधिक स्वीकार्य नेता भी। ऐसे में एक उपचुनाव थोपना और पार्टी की स्थापना से संघर्षरत रहे मलैया परिवार को दरकिनार करना भाजपा के रणनीतिकारों की बड़ी गलती थी। जब यह गलती कर ही दी थी तो फिर भाजपा से चुनाव लड़े और हारे राहुल की शिकायत पर सिद्धार्थ का पार्टी से निकालना भी सही था। अब उन्हें वापस लेकर भितरघाती नेताओं का हौसला बढ़ाया गया है। हालांकि इसकी पटकथा तभी लिख गई थी जब 75 वें जन्मदिन पर जयंत मलैया को बधाई देने मुख्यमंत्री, प्रदेश अध्यक्ष सहित पार्टी के सभी प्रमुख नेता दमोह पहुंचे थे और मलैया की तारीफ में कसीदे पढ़े थे।
‘ *कर्नाटक’ के बाद बदलाव की अटकलों में कितना दम….*
– कर्नाटक चुनाव के नतीजे आने के बाद मप्र विधानसभा चुनाव के लिए लगभग 6 माह का समय बचेगा। ऐसे समय नेतृत्व में बदलाव को फायदेमंद नहीं माना जाता। हालांकि उत्तराखंड इसका अपवाद है। उत्तराखंड में चुनाव से लगभग 6 माह पहले नेतृत्व परिवर्तन कर भाजपा ने फिर सत्ता हासिल कर ली थी। ऐसी कोई संभावना यहां नहीं है, इसकी वजह हैं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, जो दिन-रात जनता के बीच हैं। बावजूद इसके कर्नाटक के बाद प्रदेश में कई तरह के राजनीतिक बदलाव की अटकलों का दौर जारी है। यह बदलाव कर्नाटक के नतीजों को देखकर करने की बात कही जा रही है। कोई सरकार में परिवर्तन की बात करता है, कोई भाजपा संगठन में। किसी की राय है कि मंत्रिमंडल में फेरबदल कर फिर जीत को पुख्ता करने की कोशिश होगी। क्योंकि कई जगह मंत्रियों की कार्यशैली के कारण भाजपा का माहौल खराब है। पार्टी की रणनीतिक बैठकों में भी नेता और प्रभारी पार्टी के अंदर असंतोष का मुद्दा उठा रहे हैं। इस पर काबू पाने भाजपा के दिग्गजों को मैदान में उतार रखा गया है। भाजपा सूत्रों का कहना है कि पार्टी नेतृत्व कर्नाटक चुनाव के बाद एक बार और प्रदेश के राजनीतिक हालात की समीक्षा करेगा। इसमें जो तथ्य उभर कर सामने आएंगे, इसके आधार पर सरकार और संगठन में जरूरी बदलाव किए जा सकते हैं।
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