Tradition-gai-gohri : गाय से क्षमा मांगने का सालाना पर्व ‘गाय गोहरी’ मना
झाबुआ से कमलेश नाहर की रिपोर्ट
Jhabua : आदिवासी अंचल में शुक्रवार को ‘गाय गोहरी पर्व'(Tradition-gai-gohri)मनाया गया। इस दिन ग्वाले मत्रत पूरी करने के लिए गायों के पैरों के नीचे लेटे और गाये उन्हें कुचलकर निकलती गई। ये परंपरा (Tradition)गोवंश से क्षमा के रूप में मानी जाती है। ये क्षमा सालभर में काम के दौरान या चराई में गोवंश को दिए गए कष्ट के बदले मांगी जाती है। इस आयोजन को देखने दूर दूर से लोग यहां पहुंचते हैं। दर्शन करने वालों की भी संख्या हजारों में होती है।
गोधन का करता विशेष श्रृंगार
आदिवासी समाज में गाय गोहरी के लिए गायों को सजाने का काम दो दिन पहले से शुरू कर दिया जाता है। रूप चौदस पर गायों को नदी या तालाब में ले जाकर नहलाया जाता है। दिवाली के दिन उन्हें सजाने के लिए तैयारी की जाती है। अब बाजार से रंग खरीदे जाने लगे, लेकिन पुराने समय में पेड़-पौधों और पत्तियों से हर्बल रंग बनाते थे। सजावट के लिए भिंडी, गिलकी, खीरा, आलू को आधा काटकर उससे रंगीन छापे लगाते थे। हाथ के पंजों से भी छापे लगाकर नाम लिखे जाते हैं। सिंग पर बांधने के लिए फूल और सजावटी सामान बाजार से खरीदे जाते है।
आदिवासी समाज मे गोधन का बड़ा महत्व है। ये उनके लिए सम्मानित है। इसलिए वो उन्हें दिए कष्ट के बदले माफी मांगते हैं। झाबुआ में मुख्य कार्यक्रम गोवर्धननाथ हवेली पर होता है। यहां पूजन और पाठ के साथ परिक्रमा की जाती है।
परिक्रमा करने वालों के पीछे ग्वाले गायों को लेकर चलते हैं। मंदिर के सामने मन्नतधारी गोधन के सामने सड़क पर लेट जाते हैं। भगोर, राणापुर, कल्याणपुरा, रामा सहित अनेक गांवों में इस पर्व (Tradition-gai-gohri)के आयोजन होंगे।
डेढ़ दशक पहले तक झाबुआ में गाय गोहरी(Tradition-gai-gohri )के दौरान मुख्य आयोजन स्थल गोवर्धननाथ मंदिर आमने-सामने आतिशबाजी की खतरनाक परंपरा रही थी। बाद में प्रशासन ने इसे बंद करा दिया। क्योंकि, इसमें कई लोग घायल हो जाते थे।