भारत में महिलाओं के लिए #IAS और #IPS के दरवाज़े 1948 में ही खुल गए थे पर तालीबान का हालिया रवैया महिला सम्मान व स्वतंत्रता पर बदनुमा दाग

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IAS-IPS

भोपाल: अमेरिका के 245 साल के इतिहास में एक भी महिला राष्ट्रपति के पद पर नहीं पहुँच सकी है । कमला हैरिस के रूप में 244 साल बाद अमेरिका को पहली महिला उपराष्ट्रपति मिली है, जबकि भारत में प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति के पद पर काफी पहले ही श्रीमती इंदिरा गांधी व श्रीमती प्रतिभा ताई पाटिल पहुंच चुकी हैं। भारत में मुख्यमंत्री व राज्यपाल के पदों को भी अनेक विदुषी महिलाएं सुशोभित कर चुकी हैं।1947 में भारत को आज़ादी मिली।उसके एक साल के अंदर ही तत्कालीन उपप्रधानमन्त्री व गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने जुलाई 1948 में ही सभी राज्यों से मशविरा कर के #IAS और #IPS के महिलाओं के लिए खुलवा दिए थे। उनका मानना था कि भारतीय समाज में महिलाओं को हमेशा पूजा जाता रहा है।महिलाओं के लिए शीर्ष प्राशासनिक सेवा में दरवाज़े नहीं खोले गए तो देश का समग्र विकास प्रभावित हो जाएगा।महिलाएं किसी भी समाज में संवेदनशील विषय रही हैं और आज इसी को मुद्दा बनाकर हिन्दुओं की धार्मिक आस्थाओं पर प्रश्नचिन्ह लगाए जा रहे हैं।
यह हम सब जानते हैं कि हमारे सबसे पुराने ग्रंथ मनुस्मृति में कहा गया है –“जहाँ नारी की पूजा होती है वहाँ देवताओं का वास होता है” यह हमारे धर्म में नारी की स्थिति बताने के लिए काफी है।

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जिस समय पश्चिमी सभ्यता पुरुष और नारी में समानता के अधिकार की बातें करती थी उससे कहीं पहले भारतीय ग्रंथों में नारी को पुरुष के समान नहीं उससे ऊँचा दर्जा प्राप्त था।जहाँ पश्चिमी सभ्यता में स्त्री की पहचान एक माँ,बहन, बेटी तक ही सीमित थी,भारतीय संस्कृति में उसे देवी का स्थान प्राप्त था।मानव सभ्यता के तीन आधार स्तंभ –बुद्धि,शक्ति और धन तीनों की अधिष्ठात्री देवियाँ हैं ।यह गौर करने योग्य विषय है कि बुद्धि की देवी सरस्वती, धन की देवी लक्ष्मी,शक्ति की देवी दुर्गा,काली समेत नौ रूप,
वेदों की देवी गायित्री, धरती के रूप में सम्पूर्ण विश्व का पालन करने वाली धरती भी माँ स्वरूपा है।
जल के रूप में प्राणीमात्र का तर्पण करने वाली गंगा,जमुना,सरस्वती तीनों माँ स्वरूप हैं और सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि इन सभी रूपों को पुरुषों द्वारा पूजा जाता है।
हिन्दू वैदिक संस्कृति में स्त्री को पुरुष की अर्धांगिनी एवं सहधर्मिणी कहा जाता है अर्थात जिसके बिना पुरुष अधूरा हो तथा सहधर्मिणी अर्थात जो धर्म के मार्ग पर साथ चले।इस विषय में यहाँ पर इस तथ्य की ओर ध्यान दिलाना आवश्यक है कि भारतीय संस्कृति में पुरुष बिना पत्नी के कोई भी धार्मिक अनुष्ठान नहीं कर सकते।रामायण में भी संदर्भ उल्लिखित है कि जब श्रीराम चन्द्र जी को अश्वमेध यज्ञ करना था और सीता माता वन में थीं तो अनुष्ठान में सपत्नीक विराजमान होने के लिए उन्हें सीता माता की स्वर्ण मूर्ति बनवाना पड़ी थी।

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इसके विपरीत 2021 में अफगानिस्तान में तालिबानी आये यानी अफगानिस्तान में तालिबान ने कब्जा कर लिया है।राष्ट्रपति अशरफ गनी देश छोड़कर जा चुके हैं।बाकी आम लोग भी अपनी जान बचाने में जुटे हुए हैं।लेकिन इन सबके बीच महिलाओं में एक अजीब सा डर फिर पैदा हो गया है।अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी का खौफ कितना खतरनाक है, इसकी दास्तान भारत में रह रहीं अनेक अफगान महिलाओं ने सुनाई।
तालिबान की ओर से दावा किया जा रहा है कि उसकी वापसी से लोगों को डरने की जरूरत नहीं है, लेकिन महिलाओं में उसकी वापसी के बाद से ही एक अजीब खौफ पैदा हो गया है।
दिल्ली के भोगल में अफगान मूल के कई लोग रहते हैं।यहीं अरफा भी रहती हैं, जो अफगानिस्तान के मजार-ए-शरीफ की रहने वालीं हैं।अरफा कहती हैं, तालिबान भले ही कह रहा है कि महिलाओं को आजादी होगी।उनके साथ अत्याचार नहीं होगा,लेकिन पहले तालिबान राज में सबने देखा है कि क्या हुआ था।
उन्होंने बताया, उस वक्त महिलाओं खासतौर से युवा लड़कियों के साथ बहुत अत्याचार हुआ।अरफा बताती हैं, उस समय तालिबान के लड़ाके आते थे, लड़कियों को उठाते थे, जबरन शादी करते थे, गलत काम करते थे और छोड़ देते थे।उसके बाद से किसी भी महिला को इन पर भरोसा नहीं है।