झूठ बोले कौआ काटे! मुर्मू तो बहाना हैं, मोदी पर निशाना है
राष्ट्रपति चुनाव में द्रौपदी मुर्मू के विरूद्ध वोट देने वाले, अपशब्द कहने वाले, उनके पहले बजट अभिभाषण का बहिष्कार करने वाले, राष्ट्रपति पर इतना मोहाये हैं कि पूछिये नहीं। वे चाहते हैं कि 28 मई को राष्ट्रपति ही सेंट्रल विस्टा पर नए संसद भवन का उद्घाटन करें। वरना, कुछ विपक्षी दलों को छोड़ दें, तो कांग्रेस समेत अनेक दल कार्यक्रम का बहिष्कार करेंगे। चर्चा है कि उस दिन वीर सावरकर की जयंती होना भी बहिष्कार का एक अघोषित कारण है। ‘सेंगोल’ ने सेक्युलरों-वामपंथियों के जले पर नमक छिड़कने का काम अलग किया है।
कांग्रेस समेत 19 विपक्षी दलों ने उद्घाटन समारोह के बहिष्कार की घोषणा की है, तो भाजपा सहित 25 दल कार्यक्रम में भाग लेंगे। विपक्षी दलों का कहना है कि राज्यसभा व लोकसभा के साथ राष्ट्रपति संसद का अविभाज्य हिस्सा हैं और ऐसे में प्रधानमंत्री का नए संसद भवन का उद्घाटन करना संवैधानिक नियमों और गरिमा दोनों के खिलाफ है। विपक्ष ने इसे भारत की राष्ट्रपति के अपमान के रूप में परिभाषित किया है। तो, असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने एक ट्वीट लिखकर सवाल किया कि क्या ये विपक्षी दल आगे राम मंदिर के उद्घाटन का भी विरोध करेंगे?
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने पहले संसद की नई इमारत के शिलान्यास और अब उद्घाटन दोनों ही मौकों पर राष्ट्रपति को नहीं बुलाए जाने को लेकर सरकार पर सवाल दागे। दिसंबर 2020 में जब पीएम मोदी ने नए संसद भवन का शिलान्यास किया था, तब कांग्रेस ने इस कार्यक्रम का बहिष्कार किया था।
11 जुलाई, 2022 को संसद के नए भवन की छत पर 20 फीट ऊंचे अशोक स्तंभ का अनावरण किया गया, तब भी विपक्ष ने एक नया विवाद खड़ा करने की कोशिश की थी। विपक्षी दलों ने आरोप लगाया कि नए अशोक स्तंभ में शेर को आक्रामक दिखाया गया है, जबकि असली चिह्न में शेर सौम्य दिखाई देता है।
उधर, पिछले साल तेलंगाना केसीआर सरकार ने विधानमंडल के दोनों सदनों में एक प्रस्ताव पास किया जिसमें मोदी सरकार से नए संसद भवन का नाम डॉ. भीम राव अंबेडकर के नाम पर रखने का अनुरोध किया गया। उसी दिन बिहार के पूर्व सीएम जीतन राम मांझी ने भी सेंट्रल विस्टा नाम को गुलामी का प्रतीक बताया। उन्होंने पीएम मोदी से सेंट्रल विस्टा का नाम बदलकर “बाबा साहेब भीम राव अंबेडकर परिसर” करने की मांग की।
झूठ बोले कौआ काटेः
नए संसद भवन का ड्रीम तो कांग्रेस ने देखा था, लेकिन पीएम नरेंद्र मोदी ने इसे अपना ड्रीम प्रोजेक्ट बना लिया तो विरोध होना स्वाभाविक ही है। नये संसद भवन का विरोध तो सुप्रीम कोर्ट तक हुआ, पर वहां भी सफलता हाथ नहीं लगी। तीन जजों की बेंच ने 2:1 के बहुमत से फैसला दिया। इस फैसले के बाद एक बार फिर मोदी सरकार विपक्ष के निशाने पर आ गई।
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यूपीए सरकार के समय जयराम रमेश नया संसद भवन बनाने की जरूरत बता रहे थे। मौजूदा संसद भवन के पुराने ढांचे के साथ भविष्य की चिंताओं के कारण 2010 में मौजूदा संसद भवन के स्थान पर एक नए संसद भवन का प्रस्ताव आया था। तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने 2012 मे वर्तमान भवन के लिए विकल्पों का सुझाव देने के लिए एक समिति का गठन किया था। इसके पूर्व लोकसभा अध्यक्ष के रूप में शिवराज पाटिल ने भी नए लोकसभा भवन की आवश्यकता जताई थी। संसद की मौजूदा इमारत 100 साल पुरानी है और समय के साथ इस इमारत में अनेक समस्याएं जन्म ले चुकी हैं।
संसद के मौजूदा भवन में लोकसभा में 550 जबकि राज्यसभा में 250 सदस्यों के बैठने की व्यवस्था है। भविष्य की जरूरतों को देखते हुए संसद के नवनिर्मित भवन में लोकसभा में 888 और राज्यसभा में 384 सदस्य बैठ सकेंगे। गौरतलब है कि भारत सरकार दिल्ली में अलग-अलग दफ्तरों के लिए लगभग 1000 करोड़ रूपए सालाना किराए के रूप में भवन मालिकों को देती है। यह किराया पिछले 70 साल से अधिक समय से दिया जा रहा है और हर साल बढ़ता भी है।
सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट किराए के इस बोझ को ख़त्म करेगा, साथ ही सभी ऑफिस एक जगह पर होने के चलते ट्रैफिक की समस्या और ईंधन के खर्च से भी निजात मिलेगी। अर्थात्, एक बार पूरा बन जाने के बाद भारत के करदाताओं का प्रत्येक साल 1000 करोड़ रूपए बचेगा, जो कि अन्य योजनाओं में काम आएगा। लेकिन, कांग्रेस सहित विरोध करने वाला विपक्ष इस प्रोजेक्ट का दुष्प्रचार ऐसे कर रहा है जैसे सेंट्रल विस्टा भारत की नहीं बल्कि पीएम मोदी की निजी सम्पति हो।
एनडीए सरकार ने जब नया संसद भवन बनाने का निर्णय किया, तब कांग्रेस विरोध में खड़ी हो गई। जबकि, बीते 9 सालों में झारखंड, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और असम जैसे गैर-भाजपा शासित 5 राज्यों में नई विधानसभा का शिलान्यास या उद्घाटन मुख्यमंत्री या पार्टी अध्यक्ष ने किया। किसी भी आयोजन में राज्यपाल या फिर राष्ट्रपति को आमंत्रित नहीं किया गया। ऐसे में कांग्रेस को भी ये बताना चाहिए कि अगस्त 2020 में किस हैसियत से सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने छत्तीसगढ़ के नए विधानसभा भवन का भूमि पूजन किया था? तब, राज्यपाल अनसुइया उइके को क्यों नहीं बुलाया गया। वह भी जानजातीय समुदाय से आती हैं। 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पुराने संसद भवन की एनेक्सी का उद्घाटन किया था। बाद में सांसद राहुल गांधी ने संसद के पुस्तकालय का शिलान्यास किया। कांग्रेस को कभी राष्ट्रपति की याद तब नहीं आयी?
बिहार के सीएम नीतीश कुमार को भी बताना चाहिए कि 17 साल में उन्होंने कितने सरकारी भवनों का शिलान्यास और उद्घाटन राज्यपाल से कराया? पटना में विधानमंडल के नये भवन का उद्घाटन भी मुख्यमंत्री ने किया था और किसी ने उस कार्यक्रम का बहिष्कार नहीं किया था।
कांग्रेस और विपक्ष के एक धड़े द्वारा विरोध का एक अघोषित कारण यह भी बताया जा रहा कि 28 मई को स्वतंत्रता सेनानी विनायक दामोदर सावरकर की 140वीं जयंती है। ब्रिटिश शासन के दौरान वीर सावरकर को अंडमान की जेल में डाल दिया गया था। नए संसद भवन के उद्घाटन की तारीख भी यही होने के कारण, खास कर, कांग्रेस-वामपंथी तिलमिलाए हुए हैं। मालूम हो कि 26 फरवरी 2003 को जब अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली भाजपा सत्ता में थी, संसद के सेंट्रल हॉल में वीर सावरकर के चित्र का अनावरण किया गया था, तब भी कांग्रेस और वामपंथी दलों ने समारोह का बहिष्कार किया था। बीते दिनों कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने तंज कसा था कि वह गांधी हैं, सावरकर नहीं, जिसकी भाजपा ने कड़ी आलोचना की थी।
एक और अघोषित कारण तिलमिलाने का है, इस अवसर पर ‘सेंगोल’ (राजदंड) की प्रथा को फिर से शुरू करने की घोषणा। गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि यह अंग्रेजों से भारतीयों को मिली सत्ता का प्रतीक था। अमित शाह ने बताया कि पीएम नरेंद्र मोदी इस नए संसद भवन के उद्घाटन से पहले तमिलनाडु से सेंगोल प्राप्त करेंगे। प्रधानमंत्री इसके बाद इसे नए संसद भवन के अंदर रखेगें। सेंगोल स्पीकर की सीट के पास रखा जाएगा।
तमिल भाषा के ‘सेम्मई’ शब्द से निकले सेंगोल शब्द का अर्थ; धर्म, सच्चाई और निष्ठा है। सेगोल राजदंड भारतीय सम्राट की शक्ति और अधिकार का प्रतीक हुआ करता था।
जवाहरलाल नेहरू ने 14 अगस्त 1947 को 10:45 बजे के करीब तमिलनाडु की जनता से इस सेंगोल को स्वीकार किया था। आजादी के समय जब लॉर्ड माउंट बेटन ने पंडित नेहरू से पूछा कि सत्ता हस्तांतरण के दौरान क्या आयोजन होना चाहिए? नेहरू जी ने अपने सहयोगियों से चर्चा की। नेहरू जी ने फिर गोपालाचारी से पूछा। गोपालाचारी ने सेंगोल प्रक्रिया के बारे में उन्हें बताया। इसके बाद इसे तमिलनाडु से मंगाया गया और आधी रात को पंडित नेहरु ने स्वीकार किया। यह अंग्रेजों से इस देश के लोगों के लिए सत्ता के हस्तांतरण का संकेत था। बोले तो, इसे इलाहाबाद के एक संग्रहालय में रख दिया गया था और अब इसे नए संसद भवन में ले जाया जाएगा। इसकी मुठिया के सिरे पर भगवान शिव के वाहन नंदी की प्रतिकृति स्थापित है। जो, तथाकथित सेक्यूलरों-वामपंथियों के गले से नीचे नहीं उतरने वाला।
ले-देकर, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के बहाने निशाने पर पीएम नरेंद्र मोदी हैं। वजहें और भी हैं ही!
और ये भी गजबः
वर्तमान संसद भवन का निर्माण 1921 से 1927 के दौरान ब्रिटिश आर्किटेक्ट सर एडविन लुटियन और हर्बट बेकर के बनाए डिजाइन के अनुसार हुआ था। मूल रुप से इसे “काउंसिल हाउस” कहा जाता था। यह भवन आज लगभग 100 साल पुराना हो चुका है और हेरिटेज ग्रेड-1 बिल्डिंग में शामिल है। समय के साथ संसदीय गतिविधियों में तेजी से बढ़ोतरी हुई और इसमें काम करने वाले और आगंतुकों की संख्या काफी अधिक हो गई है।
संसद भवन का निर्माण पूर्णकालिक लोकतंत्र के दो सदनों के अनुसार नहीं किया गया था। लोकसभा में सीटों की संख्या 1971 की जनगणना के अनुसार 545 ही है। 2026 के बाद लोकसभा की सीटों में बढ़ोतरी होने का अनुमान है जब सीटों की कुल संख्या पर लगी रोक हट जाएगी। सेंट्रल हाल में सिर्फ 440 लोगों के बैठने की व्यवस्था है और दोनों सदनों के संयुक्त सत्र के दौरान अक्सर बैठने की समस्या का सामना करना पड़ता है। नई लोकसभा में सांसदों के बैठने की सुविधा के साथ 888 सीटों के साथ तीन गुना बड़ी होगी। एक बड़े राज्यसभा हॉल की क्षमता 384 सीटों तक होगी।
सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट विभिन्न सरकारी मंत्रालयों, विभागों को एक ही स्थान पर उच्चस्तरीय सुविधाओं के साथ काम करने का अवसर देगा। सभी 51 मंत्रालयों के एक ही स्थान पर काम करने से बेहतर समन्वय होगा और अधिकारियों और कर्मचारियों को अत्याधुनिक सुविधाओं के साथ विश्वस्तरीय सुविधाओं का लाभ मिलेगा। इससे निश्चित रूप से कार्य क्षमता में वृद्धि होगी।