विशेष – निर्जला एकादशी
आज है , निर्जला एकादशी जानिए महत्व व्रत विधि ओर पौराणिक कथा ज्योतिर्विद राघवेंद्र रविश राय गौड़ से :-
(प्रस्तुति डॉ घनश्याम बटवाल मंदसौर)
यूं तो वर्ष भर त्यौहार हैं , व्रत उपवास विधान हैं पर सनातन और हिंदू धर्म में एकादशी या ग्यारस का विशेष महत्व बताया गया है । जो श्रद्धालु साल की सभी चौबीस एकादशियों का उपवास करने में सक्षम नहीं है उन्हें केवल निर्जला एकादशी उपवास करना चाहिए क्योंकि निर्जला एकादशी उपवास करने से दूसरी सभी एकादशियों का लाभ मिल जाता हैं। इस वर्ष एकादशी 31 मई को है ।
॥निर्जला एकादशी व्रत का महत्व॥
साल की सभी चौबीस एकादशियों में से निर्जला एकादशी सबसे अधिक महत्वपूर्ण एकादशी है। बिना पानी के व्रत को निर्जला व्रत कहते हैं और निर्जला एकादशी का उपवास किसी भी प्रकार के भोजन और पानी के बिना किया जाता है। उपवास के कठोर नियमों के कारण सभी एकादशी व्रतों में निर्जला एकादशी व्रत सबसे कठिन होता है। निर्जला एकादशी व्रत को करते समय श्रद्धालु लोग भोजन ही नहीं बल्कि पानी भी ग्रहण नहीं करते हैं।
॥निर्जला एकादशी पूजा का शुभ मुहूर्त, पारण का समय ॥
ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी तिथि समाप्त – 31 मई 2023, दोपहर 01.47
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• लाभ (उन्नति) – सुबह 05.24 – सुबह 07.08
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• अमतृ (सर्वोत्तम) – सुबह 07.08 – सुबह 08.51
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• शुभ (उत्तम) – सुबह 10.35 – दोपहर 12.19
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• व्रत पारण समय – सुबह 05.23 – सुबह 08.09 (1 जून 2023)
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• उदया तिथि के कारण इस वर्ष एकादशी 31 मई को है ।
निर्जला एकादशी से सम्बन्धित पौराणिक कथा के कारण इसे पाण्डव एकादशी और भीमसेनी या भीम एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। पाण्डवों में दूसरे भाई श्री भीमसेन खाने-पीने का अत्यधिक शौक़ीन थे और अपनी भूख को नियन्त्रित करने में सक्षम नहीं थे इसी कारण वह एकादशी व्रत को नही कर पाते थे । भीम के अलावा बाकि पाण्डव भाई और द्रौपदी साल की सभी एकादशी व्रतों को पूरी श्रद्धा भक्ति से किया करते थे। भीमसेन अपनी इस लाचारी और कमजोरी को लेकर परेशान रहते। उन्हें को लगता था कि वह एकादशी व्रत न करके भगवान विष्णु का अनादर कर रहे है। इस दुविधा से उभरने के लिए भीमसेन महर्षि व्यास की शरण में गए तब महर्षि व्यास ने भीमसेन को साल में एक बार निर्जला एकादशी व्रत को करने कि सलाह दी और कहा कि निर्जला एकादशी साल की चौबीस एकादशियों के तुल्य है। इसी पौराणिक कथा के बाद निर्जला एकादशी भीमसेनी एकादशी और पाण्डव एकादशी के नाम से प्रसिद्ध हो गयी।
एकादशी के व्रत को समाप्त करने को पारण कहते हैं। एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है। एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना अति आवश्यक है। यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो गयी हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के बाद ही होता है। द्वादशी तिथि के भीतर पारण न करना पाप करने के समान होता है।
एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी नहीं करना चाहिए। जो श्रद्धालु व्रत कर रहे हैं उन्हें व्रत तोड़ने से पहले हरि वासर समाप्त होने की प्रतिक्षा करनी चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि है। व्रत तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल होता है। व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्यान के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए। कुछ कारणों की वजह से अगर कोई प्रातःकाल पारण करने में सक्षम नहीं है तो उसे मध्यान के बाद पारण करना चाहिए।
निर्जला एकादशी व्रत रखने वाले लोगों को कुछ गलतियों से बचना चाहिए. यहां तक कि जो लोग निर्जला एकादशी का व्रत नहीं रख रहे हैं, उन्हें भी इस दिन यह काम नहीं करने चाहिए.
– शास्त्रों के अनुसार निर्जला एकादशी व्रत रखने से पहले और बाद की रात में चावल नहीं खाना चाहिए. एकादशी व्रत में चावल का सेवन करना बड़ा पाप माना गया है.
निर्जला एकादशी व्रत में व्रती को नमक का सेवन नहीं करना चाहिए. वैसे तो इस व्रत में पानी तक नहीं पीना चाहिए लेकिन ऐसा संभव न हो तो फल आदि ही लें. नमक का सेवन बिल्कुल नहीं करें.
– व्रत के दिन झूठ नहीं बोलें. किसी को अपशब्द नहीं कहें. ब्रम्हचर्य का पालन करें.
जो लोग निर्जला एकादशी का व्रत नहीं कर रहे हैं वे भी इस दिन चावल, मसूर की दाल, मूली, बैंगन और सेम का सेवन न करें.
जो व्यक्ति एकादशी के दिन विष्णुसहस्रनाम का पाठ करता है, उस पर भगवान विष्णु की अनंत कृपा होती है।
॥भगवान नारायण के इन मंत्रों का करें जाप ॥
निर्जला एकादशी के दिन भगवान विष्णु को प्रसन्न करने और उनसे मनोवांछित फल प्राप्त करने के लिए निम्नांकित मंत्रों का जाप करें।
॥विष्णु मूल मंत्र ॥
ॐ नमोः नारायणाय॥
उपरोक्त मंत्र भगवान विष्णु का मूल मंत्र है। इस मंत्र का जाप करने से भगवान नारायण अवश्य प्रसन्न होते हैं।
॥भगवते वासुदेवाय मंत्र ॥
॥ॐ नमोः भगवते वासुदेवाय॥
भगवान नारायण का जो भी साधक इस मंत्र का जाप करते हुए ध्यान लगाता है उसे भगवत कृपा की प्राप्ति होती है।
॥विष्णु गायत्री मंत्र ॥
॥ॐ श्री विष्णवे च विद्महे वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्॥
विष्णु गायत्री मंत्र के जाप से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।
॥भगवान नारायण मंत्र ॥
॥मंगलम भगवान विष्णुः, मंगलम गरुणध्वजः। मंगलम पुण्डरी काक्षः, मंगलाय तनो हरिः॥
उपरोक्त भगवान नारायण मंत्र जीवन के सभी दुखों को दूर करके जीवन में सुख और समृद्धि प्रदान करता है।
शान्ताकारं भुजंगशयनं पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगन सदृशं मेघवर्ण शुभांगम्
लक्ष्मीकांत कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं
वन्दे विष्णु भवभयहरं सर्व लौकेक नाथम् ॥