सुरक्षा तंत्र की जासूसी को मीडिया की आज़ादी से जोड़ना अपराध

732

सुरक्षा तंत्र की जासूसी को मीडिया की आज़ादी से जोड़ना अपराध

बचपन से हम सब सुनते रहे हैं – ‘ जाने किस भेस में मिल जाए भगवान ‘ या ‘ पता नहीं किस भेस में आ जाए दानव रावण ‘ | राहुल गाँधी तो एक जिम्मेदार कांग्रेसी नेता हैं और अपनी दादी इंदिरा गाँधी और पिता राजीव गाँधी की बातों का हवाला देते हैं | उनके कई सलाहकार , सहयोगी नेता अधिक न सही पिछले पचास वर्षों के राजनैतिक और भारत समर्थक या विरोधी शक्तियों के प्रयासों के जानकार हैं | तब भी राहुल गाँधी या उनके नए नवेले साथियों को यह कैसे नहीं समझ में आ रहा है कि भारत विरोधी और सुरक्षा तंत्र में सेंध लगाने अथवा भारत की एकता अखंडता को नष्ट करने वाले जासूस पत्रकार , व्यापारी . अधिकारी के रुप में सक्रिय हो सकते हैं | यदि यह समझ होती तो अमेरिका के नेशनल प्रेस क्लब में हाल ही में भारतीय सुरक्षा तंत्र की जासूसी के गंभीरतम मामले में कथित पत्रकार विवेक रघुवंशी की गिरफ्तारी पर अमेरिकी पत्रकार के सवाल पर भारत में मीडिया की आज़ादी पर हमलों से जोड़कर एक प्रमाण के रुप में पेश नहीं करते |

PM Narendra Modi

प्रेस ही नहीं अभिव्यक्ति , लोकतंत्र पर वर्तमान प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार द्वारा हमलों और खतरों के लिए राहुल गाँधी और उनके कुछ करीबी साथी , कांग्रेस प्रवक्ता देश विदेश में अतिरंजित दुष्प्रचार कर रहे हैं | मीडिया की आज़ादी और उसकी आत्म अनुशासन – आचार संहिता , संवैधानिक संरक्षण पर निरंतर जागरुकता निश्चित रुप से आवश्यक है | लेकिन उसके साथ इस आज़ादी का दुरुपयोग , भारत के सुरक्षा तंत्र की जासूसी पर नज़र तथा कठोर कानूनी भी बहुत जरुरी है | पत्रकार के भेस में विदेशी ताकतों , गुप्तचर एजेंसियों के लिए जासूसी और रक्षा सम्बन्धी महत्वपूर्ण गोपनीय दस्तावेज जुटाने वाले विवेक रघुवंशी , राजीव शर्मा पर मोदी सरकार की क़ानूनी कार्रवाई अथवा मीडिया के नाम पर विदेशी कंपनियों अथवा संस्थाओं से अवैध रुप से करोड़ों रुपया – विदेशी मुद्रा लेने वालों पर भारत सरकार की जांच एजेंसियों के छापों पर कांग्रेस या अन्य दलों के नेता क्यों आपत्ति उठा रहे हैं | इस सन्दर्भ में मझे कांग्रेस के सत्ता काल में भी पत्रकार कहलाने वाले लोगों पर जासूसी के आरोपों में हुई कार्रवाई पर ध्यान दिलाना उचित लगता है | राजीव गाँधी के सत्ता काल में तो राहुल कम उम्र के थे , लेकिन कुछ अन्य वरिष्ठ नेताओं या पुराने अधिकारियों और सरकारी या मीडिया रिकार्ड से अब भी इस बात की पुष्टि हो सकती है |

असल में ऐसे मामलों पर मैंने स्वयं रिपोर्टिंग की है और आरोपियों द्वारा प्रारम्भिक दौर में क़ानूनी नोटिस तक भेजे गए , जबकि बाद में वे जेल भी गए | जैसे राजीव राज के दौरान 9 अक्टूबर 1985 को मैंने एक प्रमुख हिंदी अख़बार में पहले पेज पर खबर लिखी कि एक जासूसी कांड में पत्रकार और चार कांग्रेसी नेताओं – मंत्रियों के नाम आ रहे हैं | जाँच एजेंसी इस जासूसी कांड के प्रमुख आरोपी को गिरफ्तार करने वाली है और जांच से सरकार के लिए भी परेशानी की स्थिति पैदा होगी | मुख्य आरोपी ने अपने एक नामी वकील से मुझे और अख़बार के संपादक को मानहानि का क़ानूनी नोटिस भेजा |वह नोटिस आज भी मेरे निजी रिकार्ड में है | प्रामाणिक खबर होने के कारण मैंने उसका जवाब नहीं दिया | दो तीन हफ्ते में इस जासूसी कांड के मुख्य आरोपी की गिरफ्तारी हो गई | वह आरोपी बिजनेसमेन , समाजसेवी , अख़बारों का कॉलमिस्ट पत्रकार कहता था | उसके तथा उसकी संस्थाओं के बैंक खातों में लाखों रुपए की विदेशी मुद्रा संदिग्ध ढंग से आई थी | वह कई नेताओं , सांसदों , संपादकों , पत्रकारों , अधिकारियों को पटाने , विदेश यात्राओं के प्रबंध करने का धंधा करने के साथ रक्षा मामलों की जानकारियां मुंबई और श्रीनगर में बैठे विदेशी सूत्रों के माध्यम से भिजवाता था | इस मामले में जांच एजेंसियों ने दो तीन पत्रकारों से गहन पूछताछ की | इनमें एक क्षेत्रीय हिंदी अख़बार का संपादक भी था | उस पर विदेशी दूतावास से संपर्क और धन मिलने के सबूत भी मिले | करीब तीन महीने बाद अदालत में मुख्य आरोपी की चार्जशीट दाखिल होने से एक दिन पहले 29 जनवरी 1986 को राजीव गाँधी सरकार के दो प्रमुख मंत्रियों के इस्तीफे करवाए गए , क्योंकिं चार्जशीट में उनका नाम भी आने वाला था | इनमें से एक मंत्री भी पहले संपादक रहा था | एक पूर्व मंत्री कांग्रेसी नेता एक आयोग का अध्यक्ष था | उसका भी इस्तीफा हुआ | स्वाभाविक है यह क़ानूनी मामला लम्बे समय तक चला | सरकार के सम्बन्ध अमेरिका से भी सुधर रहे थे | क्षेत्रीय संपादक पहले दिल्ली के अख़बार में भी ब्यूरो प्रमुख रहा था और उसने जांच एजंसियों के समक्ष अधिकाधिक जानकारी दे दी और सरकारी गवाह की तरफ जेल जाने से बच गया और फिर हमेशा के लिए अमेरिका भाग गया |

WhatsApp Image 2023 02 23 at 8.00.39 PM

कांग्रेस राज का ही दूसरा मामला तो अधिक पुराना नहीं और दिलचस्प है | एक पत्रकार और पूर्व कांग्रेसी सांसद परिवार के बेटे को भी रक्षा मामलों की गोपनीय जानकारी हथियारों के सौदागरों तक पहुँचाने के आरोपों में गिरफ्तार किया गया | अदालत में पर्याप्त प्रमाण होने के कारण उसे करीब पांच साल जेल में रहना पड़ा | मनमोहन सिंह सरकार के पहले कार्यकाल में थोड़ी राहत मिली , लेकिन उसके बैंक खाते अब तक सील हैं और अदालत में सुनवाइयां जारी है | मजेदार बात यह है कि जेल से आने के बाद इस आरोपी ने एक अंग्रेजी पत्रिका के प्रकाशक का चोगा पहन लिया , ताकि सत्ता के गलियारों में घूमना आसान रहे | क़ानूनी मामले होने से मैंने किसी नाम का उल्लेख यहाँ नहीं किया है , लेकिन राहुल गांधी और उनके नजदीकी सलाहकार तो बहुत ज्ञानी हैं | सारे नाम रिकार्ड समझ लेंगे | उन्हें कम से कम यह अहसास तो हो जाएगा कि पत्रकार के नाम पर ठगी और अपराध करने वालों को मीडिया की आजादी के आधार पर बचाना अनुचित है | ऐसी जासूसी पाकिस्तान , चीन ही नहीं अमेरिका या यूरोपीय देशों की गुप्तचर एजेंसियों या रक्षा के सौदागरों के लिए भी हो सकती है |

इसी तरह मीडिया पर राजनीतिक दबाव की स्थिति केंद्र या राज्यों की कांग्रेस सरकारों या प्रदेशों में गैर कांग्रेसी सरकारों में क्या कम रहे हैं ? कांग्रेस के एक मुख्यमंत्री के सहयोगी ही नहीं उसका बेटा दिल्ली में प्रतिष्ठित अख़बार , पत्रिका के दफ्तर में आकर धमकियां देता था | कांग्रेस के ही एक बड़े नेता तक को धमकी देने की खबर जब हमने छाप दी तो उसने जबानी धमकी के साथ कानूनी कार्रवाई का नोटिस भी भेज दिया | हमने जवाब देने के बजाय उसके कारनामों पर सीरीज चलाने की सूचना भिजवाई , तब अन्य बड़े नेताओं के मार्फ़त माफ़ी मांग ली | बिहार में लालू यादव के पहले कार्यकाल में जब मैंने चारा कांड के दस्तावेज प्रकाशित किए , तो उनके समर्थकों ने धमकियों के साथ प्रकाशन संस्थान के प्रिंटिंग यूनिट पर हमला कर आग तक लगा दी | लालू यादव को सजा तो कई वर्षों के बाद हुई | पश्चिम बंगाल में तो हाल के वर्षों में सत्तारूढ़ पार्टी और नेताओं की जानकारी क्या कांग्रेस के नेताओं को नहीं है ? तमिलनाडु और केरल के प्रकाशक संपादक भी पिछले दशकों में रहे दबावों और हमलों के भुक्तभोगी हैं | हाँ जो मीडिया हाऊस या पत्रकार सत्ता से कोई स्वार्थ सिद्ध करना चाहते हों या अवैध रुप से धनार्जन करते हों तो वे सरकारों के दबाव में आते हैं या क़ानूनी कार्रवाई झेलते हैं | जिन्हें ईमानदारी और आचार संहिता से पत्रकारिता करनी होती हैं , वे निर्भीक रहकर काम कर रहे हैं | दिल्ली ही पूरा भारत नहीं है | देश के विभिन्न हिस्सों में हजारों पत्रकार ईमानदारी और निष्ठापूर्वक काम भी कर रहे हैं |

Author profile
ALOK MEHTA
आलोक मेहता

आलोक मेहता एक भारतीय पत्रकार, टीवी प्रसारक और लेखक हैं। 2009 में, उन्हें भारत सरकार से पद्म श्री का नागरिक सम्मान मिला। मेहताजी के काम ने हमेशा सामाजिक कल्याण के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया है।

7  सितम्बर 1952  को मध्यप्रदेश के उज्जैन में जन्में आलोक मेहता का पत्रकारिता में सक्रिय रहने का यह पांचवां दशक है। नई दूनिया, हिंदुस्तान समाचार, साप्ताहिक हिंदुस्तान, दिनमान में राजनितिक संवाददाता के रूप में कार्य करने के बाद  वौइस् ऑफ़ जर्मनी, कोलोन में रहे। भारत लौटकर  नवभारत टाइम्स, , दैनिक भास्कर, दैनिक हिंदुस्तान, आउटलुक साप्ताहिक व नै दुनिया में संपादक रहे ।

भारत सरकार के राष्ट्रीय एकता परिषद् के सदस्य, एडिटर गिल्ड ऑफ़ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष व महासचिव, रेडियो तथा टीवी चैनलों पर नियमित कार्यक्रमों का प्रसारण किया। लगभग 40 देशों की यात्रायें, अनेक प्रधानमंत्रियों, राष्ट्राध्यक्षों व नेताओं से भेंटवार्ताएं की ।

प्रमुख पुस्तकों में"Naman Narmada- Obeisance to Narmada [2], Social Reforms In India , कलम के सेनापति [3], "पत्रकारिता की लक्ष्मण रेखा" (2000), [4] Indian Journalism Keeping it clean [5], सफर सुहाना दुनिया का [6], चिड़िया फिर नहीं चहकी (कहानी संग्रह), Bird did not Sing Yet Again (छोटी कहानियों का संग्रह), भारत के राष्ट्रपति (राजेंद्र प्रसाद से प्रतिभा पाटिल तक), नामी चेहरे यादगार मुलाकातें ( Interviews of Prominent personalities), तब और अब, [7] स्मृतियाँ ही स्मृतियाँ (TRAVELOGUES OF INDIA AND EUROPE), [8]चरित्र और चेहरे, आस्था का आँगन, सिंहासन का न्याय, आधुनिक भारत : परम्परा और भविष्य इनकी बहुचर्चित पुस्तकें हैं | उनके पुरस्कारों में पदम श्री, विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा डी.लिट, भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार, गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार, पत्रकारिता भूषण पुरस्कार, हल्दीघाटी सम्मान,  राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार, राष्ट्रीय तुलसी पुरस्कार, इंदिरा प्रियदर्शनी पुरस्कार आदि शामिल हैं ।