झूठ बोले कौआ काटे! टूट रहे 50% रिश्ते जो ऑनलाइन जुड़े

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भारत में तलाक की दर सबसे कम मात्र 1% है, लेकिन यह इस बात की गारंटी नहीं है कि सभी विवाहित जोड़े एक साथ खुश हैं। तलाक मामलों के विशेषज्ञ वकीलों के अनौपचारिक अनुमान के अनुसार, लगभग आधे वैवाहिक संबंध विच्छेद में वे पक्ष शामिल होते हैं जो ऑनलाइन मिले थे और प्रत्येक 10 में से लगभग सात मामले वैवाहिक वेबसाइटों के माध्यम से तय विवाह के होते हैं। दूसरी ओर, वैवाहिक विवाद के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट जज बी आर गवई की टिप्पणी थी, “ज्यादातर तलाक केवल प्रेम विवाह के कारण हो रहे हैं।”

तो क्या आभासी रिश्तों से बिना छानबीन के बने वैवाहिक संबंध तलाक का कारण बन रहे। ऑनलाइन पोर्टलों पर नकली या गलत जानकारी देकर प्रस्तुत वैवाहिक प्रोफाइल या फेसबुक/सोशल मीडिया प्रोफाइल के अनेक उदाहरण हैं। एक मैट्रीमोनियल साइट पर रिया अरोरा ने खुद को डॉक्टर बताते हुए जिस संस्था का नाम कार्यस्थल के रूप में दर्शाया, वह कोई अस्पताल या चिकित्सा संस्थान था ही नहीं। यही नहीं, जिस विश्वविद्यालय से एमबीबीएस करना प्रोफाइल में बताया, वहां यह पढ़ाई होती ही नहीं। रिया की प्रोफाइल ऐसी कि किसी भी क्षेत्र में कार्यरत 27 से 36 वर्ष तक की आयु के व्यक्ति से 100% मैचिंग।

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दूसरी ओर, काजल की कथित भाभी ने तो फोन पर बात करके बाकायदा लड़की के कुछ फोटो और एक संक्षिप्त परिचय (एकल परिवार का) भेजा। वर के पिता ने अपने परिवार का विवरण व्हाट्सएप  करके जब कथित भाभी से उनके परिवार का ब्यौरा मांगा तो ‘अभी बना नहीं है, भेज दूगी’ कह कर ऐसे लुप्त हुई, जैसे गधे के सिर से सिंग। एक मामले में तो वैवाहिक साइट से नंबर देख कर पहले कथित वर ने कन्या के पिता को फोन किया। जब उन्होंने कहा कि शादी की कोई बात वे वर के पिता से करेंगे तो अगले दिन कथित पिताजी का फोन आ गया। उनकी अंग्रेजी-हिंदी दोनों शानदार। लड़की की प्रोफाइल पर ऐसे फिदा कि वश चले तो अपने कथित पुत्र से ऑनलाइन ही तुरंत विवाह करा दें। उन्होंने अपने परिवार और रिश्तों का ऐसा बखान किया कि कन्या के पिता स्वयं को धन्य समझने लगे थे। लेकिन, जब कन्या के पिता ने बताए गए पारिवारिक विवरण को लिखित में मांग लिया तो वह पिता-पुत्र भी अंतर्ध्यान हो गए।

दरअसल, ऑनलाइन विवाह पोर्टलों में उम्र, धर्म, वेतन या वैवाहिक स्थिति के बारे में गलत जानकारी पोस्ट करना सबसे आम समस्या है। इसका एक बड़ा कारण साइबर पर्सोनेशन है, जो रिश्तों के लिए ऑनलाइन पोर्टल के आगमन के साथ बहुत आसान हो गया है। लोग अपने वर्चुअल प्रोफाइल पर बिना जांच के कुछ भी लिख सकते हैं।

ऐसे कई मामले हैं जहां लोगों को इस साइबर अपराध का शिकार होने का एहसास तब होता है जब उनकी पहले से ही ऐसे धोखेबाजों से शादी हो चुकी होती है, जब यह पता चलता है कि उनके पति या पत्नी के ऑनलाइन वैवाहिक प्रोफाइल में पूरी तरह से फर्जी विवरण थे।

झूठ बोले कौआ काटेः

विवाह की सफलता जोड़े की अनुकूलता, वे एक साथ जीवन की चुनौतियों से कैसे निपटते हैं, और उनके अभिभावकों का कितना हस्तक्षेप, इस पर निर्भर करता है। यदि विवाह की बुनियाद ही गलतबयानी, फर्जीवाड़े पर टिकी होगी तो ऐसे रिश्ते कितना, कहां तक चलेंगे, चाहे वे मैट्रीमोनियल साइट से बने हों या ऑनलाइन अफेयर से, या फिर व्यवस्थित विवाह यानी, अरैंज्ड मैरिज ही क्यों न हो।

साइबर युग में पारंपरिक प्रेम विवाह और अरैंज्ड विवाहों का स्थान ऑनलाइन अफेयर्स और डिजिटल रूप से अरैंज्ड विवाहों ने ले लिया है। डेटिंग वेबसाइटें और ऑनलाइन वैवाहिक वेबसाइटें हैं, जहां आप बस अपने साथी की अपेक्षाओं को पूरा करते हैं और संभावित संगत जोड़ों की उपलब्ध सूची से अपनी पसंद का जोड़ा बनाते हैं। कहने को इन माध्यमों पर पंजीयन निःशुल्क होता है, लेकिन इनकी सेवाएं प्राप्त करने के लिए जेब ठीकठाक ढीली करनी पड़ती है।

साइबरस्पेस अपने साथ गुमनामी और व्यक्तिगत संपर्क की कमी जैसे कई खतरे लेकर आता है, जो वास्तविक दुनिया में स्वस्थ संबंधों के लिए महत्वपूर्ण तत्व हैं। तो क्या, वैवाहिक साइटें बिल्कुल विश्वसनीय नहीं है? ऐसा भी कहना उचित नहीं है।

प्रमुख भारतीय वैवाहिक साइटें जीवनसाथी की तलाश में परिवार और दोस्तों की भागीदारी का समर्थन करती हैं; वे जीवनसाथी के चयन के लिए विस्तृत जानकारी प्रदान करती हैं, जो एक व्यवस्थित विवाह में जीवनसाथी खोजने की प्रक्रिया का अभिन्न अंग है; और, उपयोगकर्ताओं को धोखे और संदिग्ध प्रथाओं से बचाने के लिए प्रोफ़ाइल विवरण के सत्यापन का विकल्प (अनिवार्य नहीं) भी प्रदान करती हैं। ऐसे में रिश्ता चाहने वालों की ही जिम्मेदारी बनती है कि प्रोफाइल की छानबीन करें। वर्ना, विवाह के पश्चात् बात संबंध विच्छेद तक पहुंचना स्वाभाविक है। किंतु, डेटिंग वेबसाइटों में तो ये तीन विशेषताएं भी उपलब्ध नहीं हैं। ऐसे में, ऑनलाइन अफेयर से विवाह की दहलीज तक पहुंचे संबंध कितना टिकाऊ सिद्ध होंगे, सोचने वाली बात है।

जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संजय करोल की पीठ जब मई 2023 में एक वैवाहिक विवाद की सुनवाई कर रही थी, वकील ने सुप्रीम कोर्ट की पीठ को सूचित किया कि जोड़े ने प्रेम विवाह किया था, तो न्यायमूर्ति गवई ने कहा, “ज्यादातर तलाक प्रेम विवाह से ही होते हैं।” अंततः पीठ ने जोड़े को मध्यस्थता का निर्देश दिया।

शीर्ष न्यायालय द्वारा की गई यह मौखिक टिप्पणी संभवतः ऐसे ही वैवाहिक संबंधों को ध्यान में रख कर की गई है, जहां छल-प्रपंच से या भावातिरेक में रिश्तों को अंजाम दिया गया। वर्ना, प्रेम सबसे महत्वपूर्ण कारकों में से एक है जो विवाह को जोड़े रखता है और इस रिश्ते को मजबूत बनाने में परस्पर सामंजस्य के साथ ही अभिभावकों की भी बड़ी भूमिका होती है।

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मेरी अत्यंत प्रिय दिवंगत पत्नी विवाहोपरांत जब रांची जैसे शहर से देवरिया आईं तो उनकी पहली प्रतिक्रिया यही थी कि भैया ने कहां गांव में शादी कर दी… हाहाहाहा। उन दिनों मैं वकालत के साथ पत्रकारिता भी कर रहा था, तो पत्नी को समय भी कम दे पाता था। उन्होंने नाराज होकर एक दिन मेरी शिकायत करते हुए भाभी मां (उनके पिता जी का स्वर्गवास, जब वे बहुत छोटी थीं तभी हो चुका था, मां जीवित थीं, पर सारी जिम्मेदारी बड़े भैया-भाभी ने ही उठाया था) को मार्मिक पत्र लिखा। खूबी देखिये कि मुझे ही कंटेंट बता कर रजिस्ट्री करने के लिए भी दे दिया। मैंने बिना पत्नी की जानकारी के पत्र उत्सुकतावश पढ़ा और फिर अपनी व्यस्तता का कारण बताते हुए 5-6 लाइन सबसे अंत में लिख कर भेज दिया। फिर, भाभी मां ने पत्नी को ही डांट लगाते हुए सामंजस्य बैठाने के लिए समझाते हुए वह पत्र अपने जवाब के साथ मेरे पास भेज दिया। दोनों पत्र आज भी मेरे पास सुरक्षित है। हां, पत्नी के पत्र से मुझे भी उनके प्रति अपनी जिम्मेदारी का अहसास हुआ। काम और परिवार के बीच संतुलन बनाना जरूरी होता है। फिर तो, समय के साथ हम दोनों भी परिपक्व होते गए, सामंजस्य बढ़ता गया।

अरैंज्ड विवाह में धांधली या फर्जी जानकारी की संभावनाएं कम होती हैं, लेकिन प्रोफाइल मैच कर रहा हो, यह आवश्यक नहीं है। आज भी, विवाह करने का ‘आदर्श’ और ‘सामाजिक रूप से स्वीकृत’ तरीका आपके माता-पिता को आपके लिए आपका साथी चुनने की अनुमति देना है (जाति और समुदाय के आधार पर) और विवाह में समस्याओं को हल करने का ‘आदर्श’ तरीका ‘समझौता’ है (चाहे यह कितना भी कठिन क्यों न हो), और तलाक नहीं।

इसलिए, प्रेम विवाह हो, ऑनलाइन संबंधों से बने रिश्ते हों, या फिर अरैंज्ड विवाह! तलाक तब तक नहीं रूकेंगे जबतक कि दोनों पक्षों में परस्पर सामंजस्य नहीं होगा,पारदर्शिता नहीं रहेगी।

और ये भी गजबः

सऊदी अरब में तलाक दर 37 प्रतिशत है तो भारत में मात्र 1 प्रतिशत। भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में 25 सालों से अलग रह रहे पति-पत्नी की शादी को भंग कर दिया। न्यायालय ने कहा कि दंपती को शादी के बंधन में बंधे रहने के लिए कहना ‘क्रूरता को मंज़ूरी देना है।  जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने दिल्ली के इस जोड़े के विवाह को खत्म करते हुए कहा कि हमारे सामने एक ऐसा शादीशुदा जोड़ा है जो मुश्किल से चार साल तक जोड़े के रूप में साथ रहा और पिछले 25 सालों  से अलग रह रहा है। उनका कोई बच्चा भी नहीं है।

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इनका वैवाहिक बंधन पूरी तरह से टूटा हुआ है और ‘मरम्मत’ से परे है। हमें इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह रिश्ता खत्म होना चाहिए क्योंकि इसकी निरंतरता ‘क्रूरता’ को मंज़ूरी देना होगा। न्यायालय ने कहा कि लंबी जुदाई व सहवास नहीं होना और सभी सार्थक बंधनों का पूरी तरह से विराम और दोनों के बीच मौजूदा कड़वाहट को हिंदू विवाह अधिनियम के तहत ‘क्रूरता’ के रूप में पढ़ा जाना चाहिए। उनका वैवाहिक संबंध खत्म करने से सिर्फ वहीं दोनों प्रभावित होंगे क्योंकि उनका कोई बच्चा नहीं है।