Both Election Together: क्या पांच विधानसभा के साथ लोकसभा चुनाव भी होंगे?

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Both Election Together: क्या पांच विधानसभा के साथ लोकसभा चुनाव भी होंगे?

Both Election Together: क्या पांच विधानसभा के साथ लोकसभा चुनाव भी होंगे?

अभी यह सुनने में थोड़ा अजीब लगता है, लेकिन सुनने में फिर भी यह आ रहा है कि नवंबर-दिसंबर में होने जा रहे पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के साथ ही लोकसभा चुनाव कराने की तैयारी मोदी सरकार कर रही है। यदि किसी रणनीति के तहत उसने ऐसा किया और चुनाव आयोग ने हरी झंडी दे दी तो संयुक्त चुनाव की रेलगाड़ी लोकतांत्रिक प्रक्रिया की पटरी पर दौड़ने लग जायेगी। मुद्द‌ा यही है कि क्या ऐेसा भी हो सकता है?

वैसे तो यह हाल-फिलहाल चर्चा के स्तर पर है, जो अफ‌वाह भी हो सकती है,अनुमान भी,हकीकत भी और बेफिजूल की बात भी। किसी भी बात के हो जाने तक ये तमाम संभावनायें मौजूद रहती हैं, जो कि हैं ही। मसला यही है कि ऐसा करने की जरूरत क्या हो सकती है? तो बस यही एक बात पते की है और उसके जवाब खोजे जा रहे हैं।

दरअसल,पहले हिमाचल,फिर कर्नाटक में भारतीय जनता पार्टी को मिली हार के बाद छत्तीसगढ़,मप्र,राजस्थान,तेलंगाना व मिजोरम राज्यों के चुनाव की घड़ी नजदीक आने के साथ ही इन राज्यों में भाजपा की स्थिति को लेकर संतोषजनक या अनुकूल संकेत नहीं मिल रहे हैं। तेलंगाना में भाजपा है नहीं, न आने वाली है। मिजोरम के कोई मायने नहीं । छत्तीसगढ़ में कांग्रेस बढ़त पर है। राजस्थान में कांग्रेस सरकार है, लेकिन वह शर्तिया हार रही हो ऐसा नहीं है, क्योंकि भाजपा में भी प्रतीक्षारत मुख्यमंत्रियों की लंबी कतार की रस्साकशी चल रही है,जैसे कांग्रेस में अशोक गेहलोत व सचिन पायलट के बीच चलती रहती है। मप्र में भाजपा-कांग्रेस अभी बराबरी की टक्कर में मानी जा रही है,क्योंकि यहां तो कांग्रेस सरकार ही थी और जोड़तोड़ से भाजपा का राज्यारोहण हुआ है। ऐसे हालात में यदि बाजी नहीं पलटी तो अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और गैर भाजपा विपक्ष भाजपा पर टूट पड़ेगा। इसका तोड़ हो सकता है लोकसभा और इन पांच राज्यों के चुनाव एकसाथ करवाना ।

Both Election Together: क्या पांच विधानसभा के साथ लोकसभा चुनाव भी होंगे?

इसका भाजपा को क्या फायदा हो सकता है? फायदा तो संभावित है। भाजपा के भीतरखाने में यह चिंता बाढ़ की तरह फैलती जा रही है कि मप्र व राजस्थान में संशयात्मक स्थिति है।छत्तीसगढ़ उसके पाले में नहीं है। अब यदि परिणाम अनुकूल नहीं निकले तो कांग्रेस और संयुक्त विपक्ष की भाजपा के खिलाफ मारक क्षमता बढ़ जायेगी। अभी जो विपक्षी एकता एक सूत्र में गूंथी नहीं जा सकी है, वह संभव है कि बदले हालात में एकजुट हो जाये। साथ ही कांग्रेस का नैतिक बल भी बढ़ेगा ही। वह भाजपा और मोदी पर तीखे हमले तो करेगा ही,इस बात को भी भरपूर भुनायेगा कि देश बदलाव चाहता है,इसीलिये पांच राज्यों में लगातार कांग्रेस की सरकार आई है। भाजपा को इसका जवाब देना और ढ़ूंढ़ना मुश्किल हो जायेगा।
भाजपा के सामने महाराष्ट्र को लेकर भी काफी द्वंद्व है। हाल ही में राकांपा से टूटकर अजित पवार का भाजपा-शिवसेना नीत सरकार को समर्थन देना और सरकार में शामिल हो जाने के बाद शरद पवार और उद्ध‌व ठाकरे छुरे पर धार लगा रहे हैं। कांग्रेस कसमसा रही है। तो भाजपा इन पांच राज्यों के साथ ही संभव है कि महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव भी करा ले, जो कि वैसे अक्टूबर 2024 में होने हैं। यह भी एक कारण हो सकता है लोकसभा-विधानसभा चुनाव एकसाथ कराने के पीछे। हालांकि न तो अभी यह स्पष्ट है, न कोई हलचल है। तो फिर वो मोदी और शाह ही कैसे हुए, जो स्पष्ट संकेत दे दें या राजनीतिक लोग इसे महसूस कर लें।

भाजपा के ऐसा सोचने या कर गुजरने के पीछे एक और ठोस वजह नजर आती है। यदि भाजपा इन विधानसभा चुनाव में शिकस्त खा जाती है और लोकसभा चुनाव तयशुदा समय पर मई 2024 में ही होते हैं तो विपक्षी एकता के लिये पर्याप्त समय मिल जायेगा। तब संभव है कि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी भी साथ आ जायें। तेलंगाना नरेश चंद्रशेखर राव को मना लिया जाये। गैर भाजपा, गैर कांग्रेसी विपक्षी दल कांग्रेस का नेतृत्व स्वीकार कर लें। तब भाजपा के लिये हालात मुश्किल भरे हो सकते हैं। इसके विपरीत यदि नवंबर-दिसंबर 2023 में लोकसभा-विधानसभआ चुनाव साथ करा लिये जायें तो विपक्ष को एकजुट होने की न तो सूझ पड़़ेगी, न वे न्यूनतम साझा कार्यक्रम बना पायेंगे, न सीटों के बंटवारे पर सहमत होने का समय मिलेगा। यह स्थिति भाजपा के लिये निश्चित रूप से लाभदायक रहेगी।

अब बड़ा सवाल यह है कि यह कैसे होगा? जाहिर-सी बात है कि भाजपा यदि ऐसा करना चाहेगी तो उसे सरकार का इस्तीफा राष्ट्रपति को सौंपना होगा। राष्ट्रपति लोकसभा भंग कर नये चुनाव का आदेश दे सकती हैं। तब चुनाव आयोग को चुनाव की तैयारी करना होगा। यह तभी हो सकता है, जब अगस्त तक सरकार इस्तीफा देकर लोकसभा भंग करने का प्रस्ताव रख दे। मोदी सरकार ऐसा तभी करेगी, जब चुनाव आयोग आश्वस्त कर दे कि वह दोनों चुनाव साथ करवा सकती है।

अब राजनीति के इस खेल में, जहां शह और मात के लिये हर दांव चलना जायज है,कौन जाने, ऐसा भी हो जाये। यूं देखा जाये तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी काफी अरसे से देश में प्रमुख चुनाव एकसाथ कराने की पैरवी करते रहे हैं। संभव है, वे बयान इसी भावना के तहत दिये जाते रहे हों।