लघुकथा : गलता एसिड—

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” गलता एसिड—“

 * सुषमा व्यास 

वो एसिड की बोटल लेकर चौराहे पर पान की दुकान के पास खड़ा हो गया था।
काॅलेज से आयेगी तो यहीं से गुजरेगी , ड़ाल दूंगा चेहरे पर, बड़ी अपने आपको बेहद सुंदर समझती है।
कितनी बार प्रेम संदेश भेजे, आगे पीछे घुमा , कोई जवाब नहीं ! अकड़कर बिना देखे निकल जाती है, आज बताता हूं इसको, जिंदगी बरबाद करके रख दूंगा।
इसी सोच के साथ वो एक भरी हुई एसिड को बोतल लेकर तैयार था।
कुछ ही देर में वो आती दिखी। बोतल पर उसकी ऊंगलियां कस गयी, उसने उत्तेजना में मुंह दबाकर दांत भिंच लिये,
लेकिन ये क्या?
उसके साथ अपनी छोटी बहन को ऊंगली पकड़कर आते देख वो आगे बढने से रूक गया।
ध्यान से देखा दोनों लुहलुहान थी। बहन की स्कूल ड़्रेस जगह जगह से फटी हुई थी, हाथ पैर छिल गये थे , खून बह रहा था
और
वो – वो उसकी तो कुर्ती की एक बांह ही गायब थी। चेहरे पर बेतरहा चोट के निशान थे। आंखों के ऊपर तो काला घेरा था, आंख सूजकर कुप्पा थी।
फिर भी वो छुटकी का हाथ कसकर पकड़े थी , कंधे पर छुटकी का स्कूल बैग भी टंगा था।
पास आते ही भाई को देखकर छुटकी दौड़कर भाई से लिपट गयी और फूटफूटकर रो पड़ी।
रोते रोते उसने बताया , आज दीदी के कारण मैं बच गयी। दो आदमी जबरदस्ती मुझे एक गाड़ी में धकेलकर बैठा रहे थे, दीदी ने उन्हें देख लिया और दौड़कर मुझे कसकर पकड़ लिया।
बहुत छीना झपटी , मारामारी हुई परन्तु दीदी ने मुझे नहीं छोड़ा।
लोग इकठ्ठा होते देख वो दीदी के चेहरे पर चाकू मारकर चले गये।
स्तब्ध सा खड़ा वो उसके खून से भरे चेहरे को देखता रह गया।
तबतक वो उसे स्कूल बैग थमाकर जा चुकी थी।
अचानक उसके हाथ से एसिड की बोतल छूटकर चकनाचूर हो गयी और सारा एसिड़ बह बहकर पास की ही गंदी नाली में समा गया।
साथ ही बहने लगे उसकी आंखों से पश्चाताप के आंसू।

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सुष’राजनिधि’ इंदौर 

लगभग सभी विधाओं पर समान अधिकार
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