Walls of 2 New Hostels Cracked : तीन साल में दरकने लगी दो नए हॉस्टल की दीवारें!
Indore : पार्क रोड स्थित बालक और बालिका छात्रावासों के निर्माण को तीन वर्ष ही हुए हैं। ये दोनों ही बिल्डिंग दरकने लगे हैं। इनकी दीवारों पर लंबी-लंबी दरारें पड़ने लगी हैं, जो दूर से ही दिखाई दे रही है। इन्हें पुट्टी भरकर रंगरोगन कर निर्माण एजेंसी ने छिपाने की कोशिश जकी है। सबसे बड़ी बात की ये दोनों ही छात्रावासों को अभी तक निर्माण एजेंसी पीआईयू ने शिक्षा विभाग को हैंडओवर तक नहीं किया है।
यह भी एक और काबिले तारीफ बात है कि बगैर हैंडओवर लिए और कार्य पूर्णता प्रमाण-पत्र मिले ही स्कूल संचालक मंडल ने इन्हें चालू कर दिया है। ऐसे में बड़ा प्रश्न उठता है कि किसी प्रकार को हादसा होने पर उसका जिम्मेदार कौन होगा। जानकारी अनुसार पार्क रोड पर शासकीय उत्कृष्ट विद्यालय बाल मंदिर का बालक और बालिका छात्रावास स्थित है। स्कूल की प्राचार्य के अनुसार इन दोनों का निर्माण सरकारी एजेंसी पीआईयू (प्रोजेक्टर इंप्लीमेंटेशन यूनिट) ने किया है।
इन दोनों के निर्माण पर करीब दो से ढाई करोड़ रुपए खर्च किया गया है। इसके बाद भी ये दोनों होस्टल अपने निर्माण के तीन वर्ष में ही दरकने लगे हैं। अभी इसका कार्य पूर्णता प्रमाण-पत्र भी जारी नहीं हुआ है और न निर्माण एजेंसी ने इसे शिक्षा विभाग को सौंपा है। बताया तो यह जा रहा है कि घटिया निर्माण के चलते शिक्षा विभाग के अधिकारी इसे हैंडओवर लेने में आनाकानी भी कर रहे हैं। हालांकि, दोनों विभाग एक-दूसरे के खिलाफ कुछ भी कहने से बच रहे हैं। यहां तक इस घटिया निर्माण को देखने कोई मीडियाकर्मी अंदर जाना चाहे, तो शासकीय उत्कृष्ट विद्यालय बाल मंदिर की प्राचार्य पूजा सक्सेना उसे जिला शिक्षा अधिकारी से परमिशन लेने का कहकर रुकवा देती हैं। दूसरी तरफ जिला शिक्षा अधिकारी भी आनाकानी करते हैं।
हैंडओवर ही नहीं, तो शुरू कैसे
प्रश्न यह उठता है कि जब निर्माण एजेंसी पीआईयू ने इन दोनों ही छात्रावासों को शिक्षा विभाग और स्कूल प्राचार्य को हैंडओवर ही नहीं किया है तो इनमें करीब 175 छात्र-छात्राएं रह कैसे रही हैं। क्या उत्कृष्ट विद्यालय की प्राचार्य ने इन छात्रों को दरक रहे इन छात्रावासों में रहने की परमिशन दी है या फिर शिक्षा विभाग ने। ऐसे में यदि छात्रावास बिल्डिंग में किसी प्रकार का कोई हादसा हो जाता है उसका जिम्मेदार किसे माना जाएगा।
काली मिट्टी के मैदान में बने
जिस जगह ये दोनों छात्रावास बने हैं, वहां मैदान था और काली मिट्टी की बहुतायत रही है। बालक और बालिका छात्रावासों के निर्माण के पूर्व इन दोनों का मजबूत बैस भी नहीं बनाया गया। इस कारण दोनों छात्रावास निर्माण के तीन वर्ष में ही दरकने लगे हैं। यहां तक की दीवारों और छत की अच्छी तरह से पानी की तराई भी नहीं की गई है। दोनों की दीवारों पर गहरी दरारें पड़ गई हैं, जिन्हें पुट्टी और रंग-रोगन करके छिपाने की कोशिश की जा रही है।
छात्रावास में करीब 175 छात्र
बालक छात्रावास में करीब 80-90 छात्र रहते हैं। ये सभी इंदौर के बाहर के बताए जा रहे हैं। बताया तो यह भी जा रहा है कि सभी छात्र इंदौर में पढ़ाई करने आए हैं। वहीं पास ही स्थित बालिका छात्रावास में भी इतनी ही संख्या में छात्राएं रहती हैं, ये भी अन्य जिलों से इंदौर में रहकर पढ़ने आयी हैं।
जानकारी देने से बचते डीईओ
दोनों छात्रावासों के बारे में जब जानकारी लेने के लिए जिला शिक्षा अधिकारी मंगलेश व्यास से चर्चा की तो उन्होंने कहा कि आपको जो भी जानकारी चाहिए कार्यालय आकर प्राप्त कर लें। अभी छात्रावास को शिक्षा विभाग के हैंडओवर नहीं किया गया है।