अमेरिका की तरह राजनेता ”नेशन फ़र्स्ट“ को करें आत्मसात
विश्वशक्ति अमेरिका का 250 साल पुराना लोकतंत्र अपनी बहुत सारी खूबियों को समाहित किए हुए है जो कि सभी लोकतांत्रिक देशों के लिए सबक़ भी है। विशेष रूप से विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत के लिए,और वो भी सभी राजनीतिक नेताओं के लिए।
ऐसा नहीं है कि अमेरिका में भ्रष्टाचार,हिंसा,पक्षपात नहीं है। वहाँ ट्रम्प है,हिंसा भी है,लेकिन सामान्य रूप से राष्ट्रहित पहले है। ”नेशन फ़र्स्ट “मात्र नारा नहीं है,बल्कि उसे क्रियान्वित भी करते हैं।इसका उदाहरण विगत सप्ताह की दो छोटी से बातों से होता है।
गत सप्ताह अमेरिकी सरकार ने उनके पूर्व राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन (1913-1994) का 21 मार्च 1994 का पत्र डिक्लासिफाई किया है। यह पत्र अपने आप में अमेरिकी लोकतंत्र का बहुत ही सुंदर उदाहरण ही नहीं बल्कि राजनीतिक सूझबूझ का नमूना है।
हम इस पत्र के तथ्यों में जाने के पहले यह समझ ले कि निक्सन अमेरिका के रिपब्लिकन पार्टी के नेता थे। वे 1969 से 1974 तक राष्ट्रपति थे और उन्हें बहुत बे आबरु होकर वाटरगेट कांड में स्तीफा देकर जाना पड़ा था। उन्ही निक्सन को रिपबब्लिकन पार्टी की धुरविरोधी पार्टी डेमक्रैटिक पार्टी के तत्कालीन राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने 1994 में अमरीकी विदेश नीति के विस्तार के लिए रुस,यूक्रेन,जर्मनी व इंग्लेंड चार देशों की यात्रा में देश के प्रतिनिधि के रूप में भेजा था। विदेश यात्रा से लौट कर निक्सन ने क्लिंटन को जो पत्र लिखा है वह अमेरिका के विजन व दूरदर्शिता तथा लोकतंत्र की परिपक्वता को दर्शाता है।
निक्सन के 7 पेज के पत्र में बहुत ही स्पष्ट रूप से क्लिंटन को लिखते हैं कि वे अपने निर्णयों में नौकरशाही पर निर्भर ना होकर सीधे निर्णय करें और वो भी ऐसा ही करते थे,क्योंकि नौकरशाही स्पष्ट निर्णय ना लेकर सिर्फ़ विषय टालती है।
उसके बाद निक्सन लिखते हैं कि क्लिंटन का इन चारों देशों में बहुत सम्मान है,यह उनके लिए शुभ समाचार है और इसे बहुत ही स्पष्ट रूप से क्लिंटन को बता रहें है। फिर निक्सन लिखते हैं की इस विदेश यात्रा में पत्रकार उनसे वाइट वाटर स्कैंडल के बारे में पूछते है। इस स्केंडल में क्लिंटन आरोपित थे,जिस पर निक्सन ने स्पष्ट रूप से पत्रकारों को बोला कि वे विदेश यात्रा में घरेलू राजनीति में बात नहीं करते। इस प्रकार उन्होंने क्लिंटन का बचाव किया जो उनके राजनीतिक विरोधी थे। निक्सन ने आगे यह भी कहा कि घरेलू मुद्दों को विदेश की महत्वपूर्ण विदेश नीति में हावी नहीं होने देंगे और देश के दोनो रजनीतिक दल राष्ट्रपति का समर्थन करेंगे।
पत्र में वो रुस के तत्कालीन राजनीतिक स्थितियों का विस्तृत विश्लेषण कर क्लिंटन को सुझाव दे रहें कि रुस के संदर्भ में क्या विदेश नीति होनी चाहिए। उल्लेखनीय है कि निक्सन वर्ष 1994 में चीन की बढ़ती हुई आर्थिक प्रगति व यूक्रेन की बिगड़ती हुई स्थिति को रेखांकित कर रहें हैं जो उनकी दूरदर्शिता को बता रहा है और देश की नीति क्या होनी चाहिए उस पर सुझाव दे रहें हैं।
पत्र के आख़िर में निक्सन अपने राजनीतिक विरोधी को शुभकामना दे रहें हैं बल्कि आशा कर रहें हैं कि क्लिंटन के नेत्रत्व में देश की विदेश नीति ऐसी रहेगी जो की बीसवीं शताब्दी में अमेरिका के हितों को सुरक्षित रखेगी।
अमेरिका के लोकतंत्र की एक ख़ूबसूरती और सामने तब आयी जब अमेरिका-चीन के बिगड़ते रिश्तों को सम्भालने के लिए डेमक्रैटिक पार्टी के राष्ट्रपति जो बाइडन ने 100 वर्षीय हेनरी किसिंगर को देश के विशेष प्रतिनिधि के रूप में गत सप्ताह चीन भेजा है।उल्लेखनीय है कि किसिंगर रिपब्लिक पार्टी के नेता रहें हैं व निक्सन के विदेश मंत्री 50 साल पहले थे।चूँकि किसिंगर के शिंग जी पिन से पुराने सम्बंध रहें हैं,इसलिए उन्हें चीन भेजा गया। शि जिन पिंग ने उन्हें मिलने का भी समय दिया जो की उनकी अहमियत बताता है।
उपरोक्त विश्लेषण का आशय यह है की सभी देशों के नेताओं में “नेशन फ़र्स्ट”होना चाहिए ना की राजनीतिक हित। हमें ऐसा अनुभव नरसिंहराव-अटल बिहारी वाजपेई के समय हो चुका है,लेकिन वर्तमान में ऐसा लग रहा है की घरेलू राजनीति विदेशी भूमि में ज़्यादा लड़ी जा रही है क्योंकि वहाँ के दो ईकोसिस्टम भारत को नुक़सान पहुँचाने के लिए ना सिर्फ़ पैसा खर्च कर रहें हैं बल्कि पूरी ताक़त इस प्रकार लगाये हुए हैं कि जैसे कि वो अगले चुनाव में खुद ही सत्ता में आना चाहते हैं।
अपेक्षा है कि देश के सभी नेता लोकतांत्रिक मूल्यों का सम्मान करते हुए सुरक्षित और विकसित राष्ट्र के सपनों को पूरा करने के मार्ग में चलेंगे अन्यथा जनता को ही निर्णय करना पड़ेगा की राष्ट्रहित के लिए क्या करना चाहिए।