Vallabh Bhawan Corridors To Central Vista : भाजपा में दो अनुभवी नेताओं की अनदेखी!
भाजपा में इन दिनों रूठों को मनाने का दौर चल रहा है। पिछले तीन सालों में जो भी अनुभवी और पुराना नेता रूठकर बैठे हैं या जो कार्यकर्ता संगठन के कामकाज और खुद को न पूछे जाने से नाराज हैं, उन्हें विधानसभा चुनाव से पहले मनाने का काम जारी है। कई नेताओं को मना भी लिया गया है। लेकिन, अभी भी दो नेता ऐसे हैं, जिनकी पार्टी अनदेखी कर रही है या यह समझ रही है कि उनकी नाराजी से पार्टी को कोई फर्क नहीं पड़ता।
इनमें से एक है उमा भारती जिन्होंने 2003 में भाजपा को 173 सीटें जिताकर इतिहास रचा था। वैसे तो उमा भारती का प्रभाव पूरे मध्यप्रदेश में है लेकिन बुंदेलखंड में और लोधी वोट बैंक वे आज भी प्रभावित करती है।
दूसरे हैं विक्रम वर्मा जो पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष से लगाकर प्रदेश में मंत्री और केंद्र में भी मंत्री रहे। 5 बार विधायक और दो बार राज्यसभा सदस्य रह चुके हैं। अब पार्टी इन दोनों नेताओं को पार्टी भाव नहीं दे रही।
अभी तक घोषित किसी समिति में पार्टी ने इन दोनों नेताओं को जगह नहीं दी। संगठन की तरफ से ऐसी कोई गतिविधि भी दिखाई नहीं दे रही कि इन्हें चुनाव के लिए सक्रिय किया जा रहा है। इसका कारण जो भी हो, लेकिन फिर भी इन दोनों नेताओं की हैसियत को नकारा नहीं जा सकता।
दिग्विजय सिंह की मेहनत का असल मंतव्य!
विधानसभा चुनाव को देखते हुए कांग्रेस में कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के बीच बेहद निकटता दिखाई दे रही है। बार-बार दिग्विजय सिंह यह संदेश दे रहे हैं कि यदि कांग्रेस की सरकार बनने की स्थिति आई तो कमलनाथ ही अगले मुख्यमंत्री होंगे। कहा जा रहा है कि दिग्विजय सिंह को ज्योतिरादित्य सिंधिया के मामले में अपनी गलती का एहसास हो गया है, जिस कारण कमलनाथ को अपनी सरकार गवानी पड़ी थी।
यह बात दिग्विजय सिंह के दिमाग में है और अब वे अपनी गलती को सुधारने के लिए एक बार फिर कमलनाथ को मुख्यमंत्री बनाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं। वह गलती क्या थी, यह किसी से छिपी नहीं है। सिंधिया तब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनना चाहते थे और दिग्विजय सिंह ने ऐसा होने नहीं दिया। इसी का नतीजा था सिंधिया ने विद्रोह किया और कांग्रेस की सरकार गिर गई। इस बार दिग्विजय सिंह इसी के लिए मेहनत कर रहे हैं कि किसी तरह कमलनाथ की सरकार बने और उनसे जो जाने-अनजाने में गलती हुई है उसकी पूर्ति हो जाए।
आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग से सनसनी!
मध्यप्रदेश में बरसों से आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग उठती रही है। लेकिन, कांग्रेस और भाजपा दोनों ने कभी इस बात को गंभीरता से नहीं। लिया दोनों ही पार्टियां आदिवासियों को अपना वोट बैंक समझती है। उन्हें समझाने, मनाने और लालच देने की हरसंभव कोशिश जरूर करती हैं। बरसों पहले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शिवभानु सिंह सोलंकी मुख्यमंत्री बनते-बनते रह गए थे। उन्हें उप मुख्यमंत्री बनकर संतोष करना पड़ा।
इसके बाद जमुना देवी ने इस मुद्दे को बहुत ताकत के साथ उठाया था। लेकिन, वे भी उप मुख्यमंत्री की कुर्सी तक ही पहुंच सकी। इसके बाद यह बात ठंडी पड़ गई और आदिवासी सिर्फ वोट बैंक बंद कर रह गए। लेकिन, अब इस मुद्दे को गंधवानी के विधायक उमंग सिंगार ने फिर से सुलगा दिया। उन्होंने कहा कि जब तक मध्यप्रदेश में आदिवासी मुख्यमंत्री नहीं बनेगा हम चुप नहीं बैठेंगे।
आदिवासियों की एक रैली को संबोधित करते हुए उन्होंने यह भी कह दिया की यह मांग में अपने लिए नहीं कर रहा हूं। अब उनकी इस बात का क्या असर होता है यह देखना होगा। क्योंकि, आदिवासियों की ताकत दोनों पार्टियां बखूबी जानती है। कांग्रेस ने तो अपना सीएम चेहरा एक तरह से सामने रख दिया है। ऐसी स्थिति में पार्टी का नजरिया क्या होता है, इसके लिए इंतजार करना होगा।
गायब डॉक्टरों ने कमिश्नर के खिलाफ मोर्चा खोला!
इंदौर के नए कमिश्नर मानसिंह भयडिया ने ज्वाइन करते ही अपनी सख्ती का अहसास करा दिया। उन्होंने एमवाय हॉस्पिटल और एमटीएच (हॉस्पिटल) का अचानक निरीक्षण किया और वहां कई खामियां निकाल दी। उन्होंने करीब हर डिपार्टमेंट में गलतियां निकाली और सुझाव दिए और साथ में हिदायत भी दी। कमिश्नर ने यह भी कहा कि मैं कभी भी आ सकता हूं। रात को भी आ सकता हूं और स्टिंग ऑपरेशन भी कर सकता हूं।
उनका मकसद सरकारी अस्पतालों की व्यवस्थाओं को सुधारना है। लेकिन, उनकी यह कोशिश डॉक्टरों का रास नहीं आ रही। क्योंकि, उन्होंने ओपीडी से गायब डॉक्टरों नोटिस देने के निर्देश दिए। इसके खिलाफ डॉक्टर लामबंद हो गए और इस कार्यवाही का विरोध शुरू कर दिया। उन डॉक्टरों ने डीन से मुलाकात की और ओपीडी से गायब डॉक्टरों को नोटिस दिए जाने पर आपत्ति ली।
उनका कहना था कि डीन ने कमिश्नर के सामने डॉक्टरों का पक्ष सही ढंग से नहीं रखा। लेकिन, सवाल उठता है कि यदि कमिश्नर ने डॉक्टरों को गैरहाजिर पाया, तो फिर किसी पक्ष की जरूरत ही महसूस नहीं होती। ऐसे में लगता है कि कमिश्नर ने जो और रवैया अख्तियार किया, वह बिल्कुल सही है। क्योंकि, सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की लापरवाही के कई किस्से चर्चित हैं। बस मुद्दे की बात यह है कि एक बड़े अधिकारी ने उस पर मुहर लगा दी।
हर संभाग में कैलाश विजयवर्गीय नहीं!
पिछले सप्ताह भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता और केंद्र सरकार के गृह मंत्री अमित शाह ने इंदौर में एक चुनावी कार्यक्रम आयोजित किया था। इसमें इंदौर संभाग के 9 जिलों के बूथ कार्यकर्ताओं को बुलाकर उन्हें चुनावी रणनीति समझाई और उसके लिए तैयार किया। अमित शाह ने कहा कि इस तरह के आयोजन हर संभाग में आयोजित किए जाएंगे।
अमित शाह का मकसद वहां के बूथ कार्यकर्ताओं को चुनाव के लिए तैयार करने की हर संभव कोशिश करना है। लेकिन, सवाल उठता है 72 घंटे में जिस तरह का आयोजन कैलाश विजयवर्गीय की टीम ने कर लिया, क्या हर संभाग में वह संभव है! यदि नहीं है, तो पार्टी को मानसिक रूप से तैयार रहना चाहिए कि आयोजन वाले संभागों को पहले से बता दिया जाए। क्योंकि, हर नेता के पास कैलाश विजयवर्गीय जैसी टीम नहीं होती, जिसने 72 घंटे में पूरी तैयारी करके ले।
केंद्र में वरिष्ठ नौकरशाहों को सेवा विस्तार देने का सिलसिला जारी
आखिर जैसी कि संभावना व्यक्त की गई थी, उसी लाईन पर चलते हुए मोदी सरकार ने केंद्र के दो वरिष्ठ नौकरशाहों को एक और सेवा विस्तार दे दिया। केबिनेट सचिव राजीव गौबा और गृह सचिव अजय कुमार भल्ला अपने – अपने पदों पर एक साल तक और बने रहेंगे। इन दोनों अधिकारियों को सेवा विस्तार दिए जाने से एक बात स्पष्ट हो गयी कि प्रधानमंत्री का इन दोनों अधिकारियों पर काफी विश्वास है और अपने दूसरे कार्यकाल तक इन्हें नहीं छोडेंगे।
वरिष्ठ IAS चंद्रा दूरसंचार विभाग में नियमित सचिव नियुक्त किए जा सकते हैं
केंद्र में अभी दूरसंचार विभाग मे सचिव का पद खाली है। इस कालम में आशा व्यक्त की गई थी कि इस पद का चार्ज किसी सचिव को अतिरिक्त दिया जायेगा। उसी के अनुसार सूचना तथा प्रसारण सचिव अपूर्व चंद्र को इस विभाग का अतिरिक्त प्रभार सौंपा गया है। वे महाराष्ट्र काडर के आईएएस अधिकारी है। सूत्रों का कहना है कि चंद्रा दूरसंचार विभाग में नियमित सचिव नियुक्त किए जा सकते हैं और सूचना तथा प्रसारण मंत्रालय को नया सचिव मिल सकता है।
रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष लाहोटी को मिल सकता है सेवा विस्तार
अगस्त में ही रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष सह सीईओ अनिल कुमार लाहौटी रिटायर हो रहे हैं। हालांकि सूत्रों का कहना है कि उन्हे कुछ महीनों का सेवा विस्तार मिल सकता है। इस बीच तीन वरिष्ठ अधिकारी भी अपना भाग्य आजमा रहे हैं। ये है – बोर्ड मे तैनात सदस्य, इंफ्रास्ट्रक्चर, सदस्य, वित्त और मध्य रेलवे के महाप्रबंधक। बोर्ड के नये मुखिया के भाग्य का फैसला इस महीने के अंत तक होने की संभावना है।