Vallabh Bhawan Corridors To Central Vista :’महाराज’ का गढ़ ढहने सा क्यों लगा!
चुनावी साल में ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थक तेजी से महाराज का दामन छोड़ रहे हैं। पिछले दिनों ज्यादातर उन्हीं भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं ने पार्टी का दामन छोड़ा जो सिंधिया के साथ कांग्रेस छोड़कर गए थे। राजनीति के गलियारों में अब यह पूछा जाने लगा है कि क्या महाराज अपनी प्रजा को संभाल नहीं पा रहे। जबकि, अपनी सफाई में सिंधिया गुट का तर्क है कि कि लोग कांग्रेस में जा रहे हैं, उनका कोई अपना जनाधार नहीं बचा।
विधानसभा चुनाव से पहले जिस तरह भाजपा से नेताओं का पार्टी छोड़ने का सिलसिला चल रहा है, ऐसा पहली बार देखा गया। महाराज के इलाके शिवपुरी जिले में दो महीने में भाजपा के चार बड़े नेताओं ने पार्टी का साथ छोड़ दिया। इनमें तीन तो सिंधिया समर्थक हैं। इन नेताओं के पार्टी छोड़ने के पीछे चर्चा यह है कि जिले की पांच सीटों में से ज्यादातर सीटों पर भाजपा से टिकट मांगने वालों की लिस्ट लंबी हो गई। ऐसे में इन नेताओं को टिकट मिलने के आसार कम थे।
कोलारस सीट पर सिंधिया समर्थक बैजनाथ सिंह यादव, रघुराज धाकड़ ने भाजपा छोड़ दी। शिवपुरी विधानसभा क्षेत्र से सिंधिया समर्थक राकेश गुप्ता ने भी उनका साथ छोड़ दिया। ये तीनों कांग्रेस में शामिल हो गए। कोलारस सीट से टिकट मांग रहे भाजपा के जितेंद्र जिला पंचायत के पूर्व अध्यक्ष रह चुके हैं। उन्होंने भी पार्टी छोड़ दी। माना जा रहा है कि वो भी कांग्रेस में जा सकते हैं। सिंधिया के खास समर्थक रहे समंदर पटेल ने भी उनका साथ छोड़ कांग्रेस ज्वाइन कर ली है।
2020 में सत्ता बदलाव के बाद सिंधिया के साथ कई लोग भाजपा में आए थे। ऐसे में सिंधिया समर्थकों ने उन भाजपाइयों के समीकरण बिगाड़ दिए जो भाजपा से जुड़े थे। पांचों विधानसभा सीटों पर एक टिकट के लिए 5 से 6 दावेदार हैं। सिंधिया समर्थकों के भाजपा में आने के बाद टिकट चाहने वालों की यह लिस्ट और लंबी हो गई। कई को लगने लगा है कि भाजपा में पहले से ज्यादा नेता हैं और उनका नंबर वहां पर लगने वाला नहीं। इसलिए वे भाजपा छोड़कर कांग्रेस का दामन थाम रहे हैं।
कांग्रेस की सेंधमारी, कांटे से कांटा निकालने की कोशिश!
इस बार कांग्रेस की चुनावी रणनीति भाजपा को भाजपा से लड़वाने की लग रही है। यही कारण है कि कई ऐसी सीटों पर कांग्रेस ने सेंधमारी शुरू कर दी, जहां भाजपा अपने आपको ताकतवर समझती है। कांग्रेस की नजर उन विधानसभा सीटों पर ज्यादा है, जहां सिंधिया समर्थक मंत्री हैं। कांग्रेस की कोशिश है कि वहां के नाराज बड़े भाजपा नेताओं को कांग्रेस में लाया जाए और इन मंत्रियों के सामने खड़ा किया जाए।
कांग्रेस की ये भी योजना है कि भाजपा अगर उपचुनाव हारे सिंधिया समर्थक मंत्रियों को टिकट देती है, तो उनके खिलाफ मजबूत उम्मीदवार को उतारा जाए। माना जा रहा है कि 2018 का इतिहास एक बार फिर अपने आपको दोहरा सकता है। जैसे भाजपा ने कांग्रेस की सरकार गिराई थी, उसी तरह कांग्रेस भी जीत हासिल करने की कोशिश में है। बताते हैं कि इस पर अमल भी शुरू कर दिया गया।
दतिया के बड़े भाजपा नेता अवधेश नायक कांग्रेस में शामिल हो गए। ये अनुमान है कि विधानसभा चुनाव में कांग्रेस उन्हें नरोत्तम मिश्रा के खिलाफ मैदान में उतार सकती है। इसके अलावा तुलसी सिलावट, डॉ प्रभुराम चौधरी, राजवर्धन सिंह दत्तीगांव, हरदीप सिंह डंग के खिलाफ भी चुनाव मैदान में ताकतवर उम्मीदवार उतारने के लिए भाजपा में सेंधमारी की जा रही है। यह भी कहा जा रहा कि इसमें दिग्विजय सिंह प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं। अब देखना है कि उनकी कोशिशों का क्या नतीजा निकला।
‘जन आशीर्वाद यात्रा’ जैसे सीएम के दौरे!
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह लगता है इन दिनों बहुत जल्दबाजी में हैं। इस बार उनकी ‘जन आशीर्वाद यात्रा’ का आयोजन खटाई में पड़ गया, तो वे उससे पहले ही ज्यादातर विधानसभा सीटें तक पहुंचकर जनता तक अपनी बात पहुंचाना चाहते हैं। जब से भाजपा के दिल्ली दरबार ने विधानसभा चुनाव के लिए दो प्रभारी भूपेंद्र यादव और वैष्णव और चुनाव अभियान समिति के लिए नरेंद्र तोमर को जिम्मेदारी सौंपी है, मुख्यमंत्री और ज्यादा ही सक्रिय दिखाई देने लगे।
ये लगभग तय है कि इस बार भाजपा जन आशीर्वाद यात्रा के बजाय विजय संकल्प यात्राएं निकालने की तैयारी में है। 42 सीटों के लिए एक यात्रा होगी। ऐसी पांच यात्राएं पांच नेता निकालेंगे। जबकि, पिछले तीन चुनाव से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ही अकेले ही अपनी यात्राएं निकालते रहे हैं। जब उन्हें लगा कि वे चुनावी यात्राओं से प्रदेश कवर नहीं कर सकेंगे, तो उन्होंने लाड़ली बहना सम्मेलनों के बहाने दौरे करके उन्हें यात्राओं का रूप दे दिया।
लापरवाही कम जल्दबाजी ज्यादा
अभी कुछ दिन पहले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने भिंड का दौरा किया था। इस दौरे में ऐसा कुछ ख़ास नहीं था जिसका उल्लेख किया जाए। पर सबसे ख़ास बात थी फ्लैक्स बनाने वालों से जल्दबाजी में हुई गलती। दरअसल ये लापरवाही कम जल्दबाजी ज्यादा थी। आश्चर्य की बात यह थी कि न तो किसी अधिकारी का इस पर ध्यान गया और न किसी नेता का। जिसने भी पढ़ा होगा मुख्यमंत्री ही पढ़ा होगा।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के कार्यक्रम के ज्यादातर होर्डिंग और बैनरों पर ‘मुख्यमंत्री’ की जगह ‘मुख्यन्त्री’ लिखा देखा गया। हैरानी की बात यह थी कि हर जगह एक जैसी ही गलती हुई। इंट्री गेट से लगाकर रास्तों पर सभी जगह लगे सैकड़ों बैनर और होर्डिंग्स में ‘मुख्यन्त्री’ ही लिखा देखा गया।
चर्चा थी 4 की लेकिन 2 ही रिटायर्ड IAS अधिकारियों ने थामा बीजेपी का दामन!
भाजपा मुख्यालय पर रविवार को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की मौजूदगी में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने भारतीय प्रशासनिक सेवा के रिटायर्ड अधिकारी कवींद्र कियावत और रघुवीर श्रीवास्तव को भाजपा की सदस्यता दिलाई। कियावत भोपाल संभाग के कमिश्नर रह चुके हैं और रघुवीर श्रीवास्तव आयुक्त पंचायत राज रहे।
पहले जानकारी मिली थी कि चंबल-ग्वालियर संभाग के कमिश्नर रहे रविंद्र मिश्रा और जबलपुर नगर निगम के कमिश्नर रहे वेद प्रकाश भी इसी समारोह में भाजपा ज्वाइन करने वाले है। लेकिन, दो रिटायर्ड अधिकारियों ने ही भाजपा की सदस्यता ली।
पता चला है कि रविन्द्र मिश्रा और वेद प्रकाश इसलिए भोपाल नहीं आए कि वे उनके गृह नगरों में ही भाजपा की सदस्यता लेना चाहते हैं। उनका मानना है कि भोपाल में उनके सदस्यता लेने से उतना प्रभाव नहीं पड़ेगा जो जबलपुर और ग्वालियर में आयोजित कार्यक्रमों से होगा।
रवींद्र मिश्रा तो नरेंद्र सिंह तोमर की मौजूदगी में ही शामिल होंगे, ऐसी चर्चा है।
भारतीय जनता पार्टी के बड़े नेता इन दिनों कई रिटायर आईएएस और आईपीएस और अन्य अधिकारियों के संपर्क में हैं। आने वाले दिनों में कई और रिटायर्ड अधिकारी भी भाजपा का दामन थाम सकते हैं!
केन्द्र में अगले हफ्ते आधा दर्जन सचिवों की नियुक्ति की चर्चा
केंद्र सरकार में स्वतंत्रता दिवस के बाद करीब आधा दर्जन सचिवों की नियुक्ति हो सकती है। इनमे कुछ के विभाग में परिवर्तन भी संभावित है। फिलहाल दूरसंचार और रक्षा उत्पादन मे सचिव के पद खाली है। सी आई एस एफ डीजी भी इसी महीने रिटायर हो रहे हैं।
डीजी रैंक में हुए एम्पैनल, तैनाती का इंतज़ार
मध्य प्रदेश काडर के 1991 बैच के एक आई पी एस अधिकारी आलोक रंजन केंद्र में डीजी के लिए एम्पैनल हुए हैं। उन्हें केन्द्र मे कब तैनाती मिलती है,यह कहना फिलहाल जल्दबाजी होगी।
दिल्ली में वरिष्ठ अधिकारी केजरीवाल के मातहत काम नही करना चाहते!
अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आप को लेकर दिल्ली के सत्ता के गलियारों में तरह तरह की चर्चा चल रही है। कथित दुर्व्यवहार के कारण पार्टी के दो सांसद क्रमशः राज्य सभा और लोकसभा से निलंबित कर दिये गये। तमाम लाबिंग के बावजूद राज्य सभा में केजरीवाल दिल्ली सेवा अध्यादेश पर सभी विपक्षी दलों का साथ लेने मे असफल रहे। जानकारों का कहना है कि दिल्ली सरकार के वरिष्ठ अधिकारी केजरीवाल के मातहत काम नही करना चाहते।
इसके लिए आप नेताओं का व्यवहार जिम्मेदार बताया जाता है। उनका कहना है कि केजरीवाल अभी तक इस सच्चाई को नही स्वीकार कर पा रहे हैं कि वे संघ शासित राज्य के मुख्यमंत्री है जहां सी एम को सीमित अधिकार है। वे बिना मतलब चुनी हुई सरकार का राग अलाप रहे हैं। दिल्ली कांग्रेस भी विधेयक के समर्थन में है। अगर चर्चा पर विश्वास किया जाए तो आप के राजनीतिक भविष्य की चमक फीकी पडने लगी है।
दिल्ली सरकार में अधिकारियों के व्यापक फेरबदल की संभावना
दिल्ली सरकार मे अधिकारियों के व्यापक फेरबदल की संभावना है। बताया जाता है कि अध्यादेश को संसद की मंजूरी मिलने के बाद कुछ खास अधिकारियों को दिल्ली पदस्थ किया जा सकता है। यह उलटफेर भी 15 अगस्त के बाद संभावित है।
रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष लाहौटी का बढाया जा सकता है कार्यकाल
गलियारों में चल रही ताजा गपशप के अनुसार रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष अनिल कुमार लाहौटी का कार्यकाल बढाया जा सकता है। वे इसी महीने रिटायर हो रहे हैं। इस पर फैसला 25 अगस्त के आसपास संभव है।