Charm of Kathawachak’s : कथावाचकों के मोह में दोनों पार्टियों के नेता, कई जगह कथाएं!
Bhopal : इन दिनों कथावाचकों की पौबारह है। बागेश्वर धाम के धीरेंद्र शास्त्री, सीहोर के प्रदीप मिश्रा और जया किशोरी भारी डिमांड में है। कांग्रेस और भाजपा दोनों के ही नेता इन दोनों कथावाचकों के मुरीद बन गए। वे अपने क्षेत्र की जनता के लिए इन कथावाचकों के आयोजन ही नहीं करवा रहे, इनके शरणागत होने का भी कोई मौका नहीं छोड़ते! कथाओं के अलावा सावन के महीने में कई नेता अपने इलाकों में रूद्र यज्ञ भी करवा रहे हैं।
दरअसल, ये सब विधानसभा चुनाव की नजदीकी और वक़्त की नजाकत को देखते हुए किया जा रहा है। चुनावी मौसम में जनता में अपनी छवि बनाने के लिए वे जनता को कथा सुनवा रहे हैं। प्रदेश विधानसभा चुनाव होने में अभी कुछ महीने बाकी हैं, लेकिन सियासी हलचल तेज हो गई। जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहा है, राजनेताओं की बयानबाजी और आस्थाओं के जमावड़े तेज होते जा रहे हैं। ख़ास बात ये कि इस बार प्रदेश की राजनीति में राजनेताओं के अलावा साधु-संतों और कथावाचकों की एंट्री हो गई।
प्रदेश में भाजपा के साथ साथ कांग्रेस के नेता भी जगह-जगह भागवत कथा और भंडारे का आयोजन करा रहे हैं. इस तरह के आयोजन श्रद्धालुओं को अपनी तरफ आकर्षित करते है। प्रदेश में इन दिनों प्रदीप मिश्रा, जया किशोरी, बागेश्वर धाम के पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री, अवधेशानंद गिरी, देवकीनंद ठाकुर, पंडोखर सरकार, रावतपुरा सरकार समेत कई धार्मिक संत राजनीति में सक्रिय नजर आ रहे हैं। इनमें से कई कथावाचकों की भागवत कथा का आयोजन भी इन दिनों प्रदेश में तेजी से चल रहा है।
प्रदेश में कथावाचक धार्मिक मुद्दे को लेकर खूब बयानबाजी कर रहे हैं। इन बाबाओं के दरबार में कई दिग्गज राजनेता भी हाजिरी लगा रहे हैं। हालांकि प्रदेश की सियासय में बाबाओं और नेताओं का गठजोड़ बहुत पुराना है. साधु-संतों के द्वारा जमीनी स्तर पर पकड़ बनाकर नेता सत्ता पर कब्जा करने में बहुत पहले से माहिर हैं।
बागेश्वर धाम के पंडित धीरेंद्र शास्त्री, सीहोर वाले पंडित प्रदीप मिश्रा का अंतराष्ट्रीय लेवल पर पॉपुलर होना कहीं न कहीं मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है। राजनेता अपने-अपने क्षेत्र में वोटरों को लुभाने के लिए बाबाओं के कथा का आयोजन करा रहे हैं। ऐसे में कयास लगाएं जा रहे हैं कि क्या इस बार प्रदेश का विधानसभा चुनाव हिंदुत्व के मुद्दे पर होगा। लेकिन, लोकसभा चुनाव के बाद इन कथावाचकों को कौन बुलाता है, यह देखना दिलचस्प होगा। जो डिमांड इनकी अभी बनी हुई है, वो भी राजनीति का एक हिस्सा है। उसके बाद अगले 5 साल तक शायद ही कहीं इनकी कोई कथा होती दिखाई दे।