Politico-Web : कांटों से बेखौफ शिवराज (CM Shivraj) Fast Track पर
जनजाति महानायक बिरसा मुंडा की जयंती का दिन हर वर्ष जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाने की शुरूआत मध्यप्रदेश से कराने व भोपाल की अंतिम हिन्दू शासक रानी कमलापति के नाम पर रेलवे स्टेशन का नामांतरण करने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (CM Shivraj) को पिछले सप्ताह केंद्र सरकार व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिली शाबाशी अब रंग दिखाने लग गई है।
गत सप्ताह इसी कालम में मैंने लिखा था कि कुल मिलाकर नए हालात में अब शिवराज सिंह चौहान का कद बढ़ा तो है ही साथ ही अब वे मप्र को ज्यादा फ्री हैंड से चला सकेंगे। उन्होंने रविवार को लगभग 40 साल से लंबित भोपाल व इंदौर के लिए पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू करने की घोषणा कर के साबित कर दिया कि अब प्रदेश की लगाम पूरी तरह से उनके हाथ में ही है।
उन्होंने यह फैसला कर के स्वयं को प्रदेश के उन मुख्यमंत्रियों (सर्वश्री सुंदर लाल पटवा, दिग्विजय सिंह) से आगे कर लिया जो इस प्रस्ताव पर चर्चा व विचार विमर्श तो करते रहे पर इस पर क्रियान्विति की हिम्मत न जुटा सके थे।
मध्यप्रदेश में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू करने का प्रस्ताव पहली बार कैबिनेट ने 3 जून 1981 को पारित किया था। इसके तहत भोपाल, इंदौर, ग्वालियर और जबलपुर में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू की जानी थी। फिर इसके बाद यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया।
27 मार्च 1997 को तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की सरकार ने इस प्रणाली के अध्ययन के लिए समिति बनाई थी। समिति ने दिल्ली सहित कई बड़े शहरों का दौरा किया था पर कोई फैसला नहीं ले सकी।
फिर इसके बाद वर्ष 2000 में दिग्विजय सिंह सरकार में कमिश्नरी प्रणाली को लेकर एक बार फिर मंथन हुआ। विधेयक विधानसभा में प्रस्तुत किया गया। विधानसभा से प्रस्ताव पारित होने के बाद अनुमोदन के लिए राज्यपाल के पास भेजा गया लेकिन तत्कालीन राज्यपाल स्वर्गीय भाई महावीर ने इसे स्वीकृति नहीं दी थी।
फिर लंबे अंतराल बाद वर्ष 2012 में राज्यपाल के अभिभाषण पर धन्यवाद ज्ञापित करते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (CM Shivraj) ने भोपाल और इंदौर में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू किए जाने के संबंध में घोषणा की पर ठोस कार्रवाई नहीं हो सकी। वर्ष 2018 में राजस्व विभाग ने प्रणाली को लेकर प्रस्ताव भी तैयार किया था जिसे कैबिनेट में प्रस्तुत नहीं किया जा सका था।
दीर्घकाल से लंबित इस घोषणा के साथ ही IPS Lobby की पुरानी मांग भी पूरी हो गई है। इस मांग को लेकर मध्य प्रदेश IPS Association के पदाधिकारियों ने 2019 में तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ से भेंट कर अपनी मांग पर जोर भी दिया था।करीब चार दशक से अटका पुलिस कमिश्नर सिस्टम 2020 में 15 अगस्त को लागू किया जाना था ।
उस वक्त पर घोषणा किन्हीं अदृश्य कारणों से टाल दी गई थी। पुलिस मुख्यालय कई बार पुलिस कमिश्नर सिस्टम के लिए विभाग को प्रस्ताव भेज चुका है। हालांकि मुख्यमंत्री के इस निर्णय से IAS Lobby में काफी सुगबुगाहट बढ़ गई है। कांग्रेस ने तो आरोप लगा दिया है कि मुख्यमंत्री की इस घोषणा ने IAS और IPS Lobby को आमने सामने ला दिया है।
आपको बता दें कि देश के 71 शहरों में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू है। देश के 19 महानगरों की आबादी 20 लाख से ज्यादा है। इनमें से 14 महानगरों में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू है।
20 लाख से ज्यादा आबादी वाले 5 शहर जिनमें अभी पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू नहीं है उसमें मध्य प्रदेश के भोपाल व इंदौर, बिहार का पटना और उत्तर प्रदेश के कानपुर और गाजियाबाद शामिल हैं। जबकि 34 शहर ऐसे हैं जिनकी आबादी 10 से 20 लाख के बीच है, इनमें से 26 शहरों में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू हो चुकी है।
प्रदेश के 2 महानगरों में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू करने के पहले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने जिस तरीके से प्रदेश की कानून एवं व्यवस्था की स्थिति के लिए पुलिसिंग की तारीफ की है, उससे IAS Lobby के कान खड़े हो गए हैं। हालांकि अभी यह तय होना बाकी है कि मध्य प्रदेश में पुलिस कमिश्नर प्रणाली देश के अन्य महानगरों जैसी ही होगी या उसमें अपनी जरूरत के हिसाब से कुछ बदलाव भी किए जाएंगे, लेकिन यह तय है कि जिन शहरों में इसे लागू किया जाएगा वहां पुलिस आयुक्त प्रशासनिक निर्णय लेने में सक्षम होगा।
इस प्रणाली को लागू करने के पीछे सरकार की मंशा भी यही है कि जनता का राहत पहुंचाने के उद्देश्य से कानून व्यवस्था से जुड़ी तमाम चुनौतियों को तत्काल निपटाया जा सके।
यह प्रणाली लागू होने के बाद पुलिस को धारा 144 लागू करने के लिए कलेक्टर के आदेश का इंतजार नहीं करना पड़ेगा। इसके अलावा धरना, रैली की अनुमति, जिला बदर, रासुका की कार्रवाई भी बगैर किसी प्रशासनिक अधिकारी की अनुमति के पुलिस आयुक्त कर सकेंगे। विशेषज्ञों का मानना है कि बढ़ती आबादी और अपराधों के नित्य नई चुनौतियों के बीच पुलिस आयुक्त प्रणाली भोपाल व इंदौर जैसे बड़े शहरों के लिए जरूरी हो गई है।
राजधानी की कानून व्यवस्था संभाल चुके पूर्व वरिष्ठ पुलिस अधिकारी का मानना है कि दोनों शहरों में वर्षों से एसएसपी व्यवस्था लागू है लेकिन अपराध से जुड़े कई मामलों में निर्णय अभी भी जिला प्रशासन के भरोसे होते हैं और इसका फायदा कहीं न कहीं अपराधी उठा लेते हैं। आयुक्त प्रणाली लागू होने से कई स्तर पर मजिस्ट्रेट के अधिकार पुलिस को मिल जाएंगे जिससे गंभीर मामलों में तत्काल निर्णय लिए जा सकेंगे।
प्रतिबंधात्मक धाराओं में कार्रवाई के बाद अपराधी को संबंधित पुलिस अधिकारी के सामने समय-समय पर पेश होना जरूरी होगा। यह प्रणाला फायदेमंद है या नहीं, यह जानने के लिए एक रिपोर्ट काफी है जो बताती है कि लखनऊ और गौतमबुद्ध नगर में 13 जनवरी 2020 को यह व्यवस्था लागू की गई थी। 1 वर्ष बाद दोनों शहरों में लागू प्रणाली की समीक्षा में अपराधों में गिरावट देखी गई थी और साथ ही पुलिस को दिए गए अतिरिक्त अधिकारों के चलते शांति व्यवस्था को बेहतर बनाने में भी इस प्रणाली को कारगर पाया गया था।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के लिए अभी भी रास्ता उतना आसान नहीं होगा जितना दिख रहा है। इस फैसले के लिए आईएएस अधिकारियों ने गोलबंदी कर ली है। वे इस फैसले को बदलवाने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ेंगे। IAS Lobby के पास विधानसभा के शीतकालीन सत्र तक का ही समय है।
Also Read: Politico-Web -बिरसा के कंधे पर शिवराज का राजनीतिक कद बढ़ा
एक बार प्रस्ताव विधानसभा में पारित हो गया तो इस रोकना आसान न होगा। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ऐसे हालात से निपटने में माहिर हैं। वैसे जबतक यह प्रणाली भोपाल व इंदौर में लागू न हो जाए तब तक कुछ भी हो सकता है क्योंकि अंग्रेजी में एक कहावत है- ‘There are too many slips between cup & lips.’