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अपनी भाषा अपना विज्ञान:इन्दु देश और चन्द्र विज्ञान
वैदिक युग के यज्ञों की अग्नि से लेकर चंद्रयान के रॉकेट की अग्नि तक एक निरंतरता है। हमारे ऋषि वैज्ञानिक थे। आज के वैज्ञानिक भी ऋषि हैं। चांदी जैसे चमकने वाले चंद्रमा की कलाओं ने प्रागैतिहासिक काल से मनुष्य को मुग्ध, आल्हादित,रोमांचित और कौतुहल से पूर्ण प्रश्नालू किया है।
चंद्रमा हम पर क्या असर डालता है?
सागर और झीलों में ज्वार भाटा लाता है। शायद मनुष्यों के दिमाग से संधारित मनोवस्था पर भी असर डालता है। हमारी काल गणना (कैलेंडर) चंद्रमा की गतियों से निर्धारित होते हैं।
वैदिक काल में चंद्रमा के लिए “सोम” शब्द प्रयुक्त है जिसके दूसरे अर्थ भी हैं – एक पौधा, उसका पेय पदार्थ सोमरस, चंद्रमा के ज्ञान का सार सार।
ऋग्वेद के दसवें मंडल के पुरुष सूक्त में तथा उपनिषदों में चंद्रमा द्वारा ‘मन’ पर पड़ने वाले प्रभावों का उल्लेख है।
चीन तथा पूर्वी एशिया में भारत को ‘इंदु’ कहते थे – जिसका एक पर्यायवाची है – चंद्रमा। चीनी यात्री ह्वेन सांग जिसने नालंदा विश्वविद्यालय में अध्ययन किया था, ने भारत के इंदु नाम की महिमा में कहा था कि इस देश में मिलने वाले ज्ञान का प्रकाश चांदनी जैसा कोमल तथा ताजगी भरने वाला है।
भारत के चंद्रायन मिशनों की प्रमुख उपलब्धि रही है चंद्रमा की मिट्टी और पत्थरों में पानी होने के अप्रत्यक्ष प्रमाणों की खोज। पानी उस रूप में नहीं जैसा हम जानते हैं। लेकिन पानी के अणु और हाइड्रोक्सिल रेडिकल।
पानी का फार्मूला है H२O.
हाइड्रोजन के दो और ऑक्सीजन का एक परमाणु मिलकर Water का एक अणु बनता है।
इसका एक अंश OH – (हाइड्रोक्सिल मूल) स्वतंत्र अस्तित्व में नहीं होता लेकिन रासायनिक क्रियाओं में सक्रिय रहकर अनेक यौगिकों में समाहित होता रहता है। विशेष कर कार्बन युक्त यौगिक (Organic Compound) जो आगे चलकर जीवन का आधार बनते हैं।
चंद्रमा पर वायुमंडल नहीं है, इसलिए उल्कापात अधिक होते हैं। संभव है कि अन्य ग्रहों और एस्टेरॉइड के पिंडों में कार्बनिक यौगिकों के अंश रहे हो और उन्होंने चंद्रमा के माध्यम से धरती पर जीवन के आविर्भाव में कुछ योगदान दिया हो।
चंद्रयान-१ में एक यंत्र था: Moon Mineralogy Mapper (MMM या M3) चंद्रमा खनिज मानचित्रक
MMM ने चंद्रमा पर पानी और हाइड्रोक्सिल मूल होने का प्रमाण कैसे प्राप्त किया था?
सतह पर परावर्तित होने वाली सूर्य किरणों का स्पेक्ट्रोफोटोमीटर द्वारा विश्लेषण करके।
पानी के इस अति सूक्ष्म अवशेषों का स्रोत क्या रहा होगा?
उल्कापात? ज्वालामुखी ?
चंद्रमा की भूमध्य रेखा के समीप एक विशालकाय खड्ड (Crater) में OH – धारी खनिजों की बहुतायत मिली थी। जिस Meteor या उल्का की टक्कर से यह Crater बना होगा, शायद उसमें पानी के अंश हो. या फिर उल्का की टक्कर के विस्फोट से चंद्रमा की गहराई की कुछ प्राचीन चट्टानें ऊपर आ गई हो?
चंद्रयान-1 पर एक और उपकरण था Miniature Synthetic Aperture Radar (Mini – SAR) (संश्लेषित सूक्ष्म छिद्र रडार) जिसने चंद्रमा के उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव पर जमी हुई बर्फ होने के संकेत दिए थे। एक अनुमान के अनुसार इस बर्फ-पानी की मात्रा 600 मिलियन मीट्रिक टन हो सकती है। भविष्य में चंद्रमा पर शोध हेतु मानव बस्तियां तथा आर्थिक गतिविधियों के लिए यह जानकारी महत्वपूर्ण हो सकती है।
चंद्रयान-3 पर तथा उससे निकल कर सतह पर चलने वाले रोवर “प्रज्ञान” पर अनेक यंत्र लगे है –
- Laser Induced Breakdown Spectroscopy (LIBS)
लेजर किरणों द्वारा चंद्रमा की मिट्टी को जलाकर धुआं पैदा करना और उस धुएं/ वाष्प की रासायनिक संरचना जानने के लिए स्पेक्ट्रोस्कोपी विधि का उपयोग करना। (वर्णक्रम दर्शी यंत्र)
- Alpha Particle X-ray Spectrometer (APXS)
चंद्रमा की सतह पर पत्थरों में ऐसे अनेक तत्वों की उपस्थिति और मात्रा को नापता है जो प्राय: पानी या हाइड्रोक्सिल से सम्प्रक्त रहते हैं जैसे कि सोडियम, मैग्नीशियम, एल्युमिनियम, सिलिकॉन, कैल्शियम, टाइटेनियम लोह तत्व आदि।
- Surface Thermophysical Experiment (ChaSTE)
विक्रम लैंडर पर स्थापित इस यंत्र द्वारा चंद्रमा की सतह की ताप-संचार क्षमता (Thermal Conductivity) और तापमान माप कर पानी और बर्फ की उपस्थिति का अनुमान लगाया जाएगा।
- Laser Retroreflector Array (LRA)
विक्रम लैंडर पर स्थापित इस यंत्र में लगे अनेक दर्पण धरती तथा कक्षा में स्थापित उपग्रहों से आने वाली लेजर किरणों को परावर्तित करके चंद्रमा की सतह पर दूरियों को मापने का काम करेंगे – ताकि उन स्थानों तक पहुंचने में सुविधा हो जहां पानी मिलने की संभावना हो।
पानी और बर्फ की उपस्थिति के अन्वेषण के यह प्रयास मानव जाति की इस समझ को बढ़ाने में योगदान देंगे कि ब्रह्मांड में जीवन का अविर्भाव कैसे हुआ होगा क्योंकि “बिन पानी सब सुन” है।
यह सब बेसिक साइंस है। आधारभूत विज्ञान है जिसकी तात्कालिक उपयोगिता दूर-दूर तक नजर नहीं आती। फिर भी करना अनिवार्य है, इसके बिना प्रगति संभव नहीं,
यह कौन सी विधा है?
परा-विद्या?
जिसके द्वारा ब्रह्म ज्ञान प्राप्त होता है। आत्मज्ञान।
या अपरा-विधा?
जो तमाम बातों या पदार्थो से संबंध रखती है।
चंद्रमा पर चहल कदमी करने वाला “प्रज्ञान”, हमें जो “अपरा-ज्ञान” प्रदान करेगा वह अंततः “परा-ज्ञान” को पोषित करेगा।
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डॉ अपूर्व पौराणिक
Qualifications : M.D., DM (Neurology)
Speciality : Senior Neurologist Aphasiology
Position : Director, Pauranik Academy of Medical Education, Indore
Ex-Professor of Neurology, M.G.M. Medical College, Indore
Some Achievements :
- Parke Davis Award for Epilepsy Services, 1994 (US $ 1000)
- International League Against Epilepsy Grant for Epilepsy Education, 1994-1996 (US $ 6000)
- Rotary International Grant for Epilepsy, 1995 (US $ 10,000)
- Member Public Education Commission International Bureau of Epilepsy, 1994-1997
- Visiting Teacher, Neurolinguistics, Osmania University, Hyderabad, 1997
- Advisor, Palatucci Advocacy & Leadership Forum, American Academy of Neurology, 2006
- Recognized as ‘Entrepreneur Neurologist’, World Federation of Neurology, Newsletter
- Publications (50) & presentations (200) in national & international forums
- Charak Award: Indian Medical Association
Main Passions and Missions
- Teaching Neurology from Grass-root to post-doctoral levels : 48 years.
- Public Health Education and Patient Education in Hindi about Neurology and other medical conditions
- Advocacy for patients, caregivers and the subject of neurology
- Rehabilitation of persons disabled due to neurological diseases.
- Initiation and Nurturing of Self Help Groups (Patient Support Group) dedicated to different neurological diseases.
- Promotion of inclusion of Humanities in Medical Education.
- Avid reader and popular public speaker on wide range of subjects.
- Hindi Author – Clinical Tales, Travelogues, Essays.
- Fitness Enthusiast – Regular Runner 10 km in Marathon
- Medical Research – Aphasia (Disorders of Speech and Language due to brain stroke).