झूठ बोले कौआ काटे! राहुल फॉर्म में, लेकिन ‘इंडिया’ चेहरा विहीन

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झूठ बोले कौआ काटे! राहुल फॉर्म में, लेकिन इंडियाचेहरा विहीन

2024 के लोकसभा चुनाव को रोचक बनाने की कवायद के बावजूद विपक्षी ‘इंडिया’ गठबंधन तीसरी जुटान में भी अपना चेहरा घोषित कर पाने की स्थिति में नहीं दिख रहा, भले ही कांग्रेस नेता राहुल गांधी एक बार फिर पीएम मोदी और केंद्र सरकार पर अडाणी को लेकर हमलावर हैं। गठबंधन के नेता बार-बार दोहरा रहे कि I.N.D.I.A ही चेहरा है और प्रधानमंत्री कौन होगा लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद तय कर लिया जाएगा।

मुंबई की बैठक के दूसरे और अंतिम दिन आज सीटों के बंटवारे सहित गठबंधन के साझा न्यूनतम कार्यक्रम का मसौदा तैयार करने के लिए एक समन्वय समिति, एक सचिवालय की स्थापना, एक लोगो और पैनल की घोषणा होने की संभावना है। बैठक में कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे, और राहुल गांधी, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद और बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव, जनता दल (यूनाइटेड) के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह और मंत्री संजय झा, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान, राकांपा और शिवसेना के एक-एक धड़े के नेता शरद पवार तथा पूर्व सीएम उद्धव ठाकरे सहित अनेक नेता भाग ले रहे हैं।

 

‘इंडिया’ गठबंधन का पीएम उम्मीदवार कौन होगा, यह सवाल पूछे जाने पर ममता बनर्जी ने कहा, ” हमारा पीएम चेहरा ‘इंडिया’ होगा। हमारी प्राथमिक चिंता देश को बचाना है।” आप सांसद संजय सिंह ने कहा, “पीएम ‘इंडिया’ गठबंधन का होगा। अरविंद केजरीवाल देश को महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार से बचाने के लिए इंडिया गठबंधन में शामिल हुए हैं।” दूसरी ओर, बैठक से एक दिन पहले, महा विकास अघाड़ी दलों के संवाददाता सम्मेलन में उद्धव ठाकरे ने कहा कि हालांकि गठबंधन में शामिल दलों की अलग-अलग विचारधाराएं हैं, लेकिन गठबंधन देश और संविधान को बचाने के सामान्य लक्ष्य से प्रेरित है। एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने कहा कि गठबंधन एक वैकल्पिक मंच होगा जो देश में बदलाव लाएगा।

दो दिन पहले, राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने कहा कि I.N.D.I.A गठबंधन का पीएम उम्मीदवार कोई मायने नहीं रखेगा क्योंकि आगामी 2024 का चुनाव “मोदी बनाम मोदी” लड़ाई होगी… क्यों… क्योंकि मोदी ने अपने दो कार्यकाल के दौरान जो कुछ भी किया है, लोग उसकी आलोचना करेंगे।  उधर, बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती के किसी गठबंधन में शामिल नहीं होने की घोषणा से बौखलाए लालू यादव ने कहा- उनको बुलाए ही कहां हैं? तो, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने विपक्ष की बैठक पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा, ”मेरा इससे कोई लेना-देना नहीं है।”

भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा, “आप सभी जानते हैं कि मुंबई में जीएम (घमइंडिया मीटिंग) हो रही है। इन पार्टियों ने 20 लाख करोड़ रुपये के घोटाले और भ्रष्टाचार किए हैं।” उन्होंने ‘इंडिया’ को ‘स्वार्थी गठबंधन’ बताया और कहा कि यह ‘मजबूरी का गठबंधन है, ताकत का नहीं।’

उधर, बैठक में शामिल होने मुंबई पहुंचे राहुल गांधी ने अडाणी ग्रुप को लेकर केंद्र सरकार पर एकबार फिर बड़ा हमला किया। जेपीसी जांच की मांग करते हुए राहुल गांधी ने ‘द गार्जियन’ और ‘फाइनेंशियल टाइम्स’ का हवाला देते हुए कहा कि इसमें गौतम अडाणी के बारे में खबर है कि उनके परिवार से जुड़े व्यक्ति ने विदेशी फंड के जरिए अपने ही स्टॉक में निवेश करवाया। इसके तहत देश से करीब एक अरब डॉलर बाहर गया। यह पैसा अलग-अलग देशों से घूमते हुए अडाणी समूह के शेयरों में लगा और फिर इसकी कीमत बढ़ी। उन्होंने सवाल किया कि ये पैसा किसका है। ये अडाणी समूह का पैसा है या फिर किसी और का। कांग्रेस नेता ने आरोप लगाया कि इसका मास्टरमाइंड विनोद अडाणी हैं।

झूठ बोले कौआ काटेः

‘इंडिया’ गठबंधन में शामिल विपक्षी दलों का दावा है कि वे “भारत के विचार की रक्षा”, “संविधान की रक्षा” और “नफरत और हिंसा को हराने” के लिए एकजुट हुए हैं, इसलिए ये मोर्चा खोला गया। यह भी सही है कि ज्यादातर क्षेत्रीय दलों का समाज के निचले तबके में बड़ा समर्थन आधार है। लेकिन, भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी को हराने के लिए क्या यह पर्याप्त है। ऐसी सत्ताधारी पार्टी और उसके गठबंधन को चुनौती देना क्या इतना आसान है जो चुनावी तौर पर अत्यंत प्रभावशाली है और उसके पास एक लोकप्रिय प्रधानमंत्री है।

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“मोदी बनाम कौन?” इस सवाल का 2019 में भाजपा और उसके सहयोगियों द्वारा बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया गया था, जब किसी भी विपक्षी दल ने पीएम उम्मीदवार को पेश नहीं किया था। ऐसे उम्मीदवार को खड़ा करना बहुत मुश्किल है जो मोदी के खिलाफ लड़ सके। बेंगलुरु की बैठक में ही कांग्रेस ने प्रधान मंत्री पद के चेहरे के किसी भी दावे, या गठबंधन के नेता की आवश्यकता से भी इनकार कर दिया था। लेकिन, वे मोदी को घेरने के लिए छद्म आक्रमण का सहारा ले सकते हैं। जैसा कि राहुल गांधी ने दो विदेशी अखबारों की रिपोर्ट की आड़ में कल अर्थात् 31 अगस्त को किया। विपक्षी गठबंधन मुद्रास्फीति, बेरोजगारी, क्रोनी पूंजीवाद और अर्थव्यवस्था के कुप्रबंधन जैसे मुद्दे उठा कर मोदी की लोकप्रियता को नुकसान पहुंचाने का प्रयास करेगा।

आंकड़ों में देखें तो ‘इंडिया’ गठबंधन में शामिल 26 विपक्षी दल सामूहिक रूप से 10 राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश में सत्ता में हैं। उनके पास लोकसभा में 542 में से 142 और राज्यसभा में 245 में से 98 सांसद हैं। जबकि, केंद्र में सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए), जिसका नेतृत्व भाजपा कर रही है, उसके लोकसभा में 332 सांसद हैं (अकेले भाजपा के 301 सहित), और राज्यसभा में 111 हैं, जिनमें भाजपा के 92 सांसद हैं।

विश्लेषकों का मानना है कि अकेले एकजुट विपक्ष भाजपा के खिलाफ लड़ने के लिए पर्याप्त नहीं हो सकता है। पेंसिल्वेनिया विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, भारत के ग्रामीण क्षेत्रों और कस्बों में 42 प्रतिशत और शहरों में 35 प्रतिशत मध्यम वर्ग ने 2019 के चुनावों में भाजपा और उसके सहयोगियों को वोट दिया। इसके विपरीत, शोध पत्र में साझा किए गए आंकड़ों के अनुसार, कांग्रेस और उसके गठबंधन सहयोगियों को ग्रामीण क्षेत्रों में मध्यम वर्ग का 26 प्रतिशत, कस्बों में 25 प्रतिशत और शहरों में 30 प्रतिशत वोट मिला था।

हाल-फिलहाल, 11 पार्टियां, जिनके कुल मिलाकर 91 सांसद हैं (लोकसभा और राज्यसभा मिलाकर), वर्तमान में न तो एनडीए और न ही ‘इंडिया’ गठबंधन के साथ हैं। पिछले संसदीय चुनावों में इन दलों का संयुक्त वोट शेयर लगभग 13 प्रतिशत था। यदि ये राजनीतिक समूह ‘इंडिया’ या एनडीए को समर्थन देते हैं तो वे निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं। हालांकि, सबसे अधिक सीटों वाली दो पार्टियां, वाईएसआरसीपी और बीजद का झुकाव भाजपा की ओर माना जाता है क्योंकि उन्होंने संसद में प्रमुख कानूनों पर सत्तारूढ़ दल को अपना समर्थन दिया है।

यही नहीं, कुछ प्रश्न जो अनुत्तरित हैं, वे हैं कि क्या आप और कांग्रेस दिल्ली और पंजाब में सीट-बंटवारे की व्यवस्था पर सहमत होंगे, क्या सपा और राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) कांग्रेस के लिए उत्तर प्रदेश में पर्याप्त संख्या में सीटें छोड़ने पर सहमत होंगे। और, क्या तृणमूल कांग्रेस पश्चिम बंगाल में वाम मोर्चा और कांग्रेस के लिए सीटों का बलिदान करेगी। कुछ सहयोगी दलों ने पहले ही कड़ा रुख अपनाने का संकेत दे दिया है। आप ने मध्य प्रदेश और राजस्थान में चुनावी दौड़ से हटने की पेशकश की थी, बशर्ते कांग्रेस दिल्ली और पंजाब से हट जाए।

इसी तरह, ममता बनर्जी ने 14 मई को कहा कि अगर कांग्रेस पश्चिम बंगाल में अपनी आकांक्षाओं का “बलिदान” करती है तो टीएमसी उसका समर्थन करने के लिए तैयार है। केरल में भी कुछ ऐसा ही पेच है। तमिलनाडु जैसे राज्यों में ऐसी समस्याएं कम गंभीर हैं जहां द्रमुक जैसी पार्टी की कांग्रेस या वामपंथी दलों से कोई गंभीर प्रतिस्पर्धा नहीं है। लेकिन, गठबंधन सहयोगियों द्वारा शासित राज्यों में से कई में वोटों के बंटवारे के लिए मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए कहीं अधिक मशक्कत करनी होगी।

जबकि, पीएम मोदी की लोकप्रियता का हाल ये है कि अप्रैल, 2023 में अमेरिकी कंसल्टिंग फर्म ‘मॉर्निंग कंसल्ट’ की ओर से जारी की गई ग्लोबल लीडर की अप्रूवल लिस्ट में पीएम मोदी सबसे अधिक 75 प्रतिशत की अप्रूवल रेटिंग के साथ लोकप्रिय नेताओं की लिस्ट में टॉप पर थे। पीएम मोदी की लोकप्रियता के आगे अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन, फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सनक की रेटिंग बेहद फीकी रही। इसके बाद, आस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका, ग्रीस और अमेरिका जैसे देशों के दौरे में भी पीएम मोदी का जलवा बरकरार रहा।

अनुच्छेद 370, राम मंदिर, समान नागरिक संहिता जैसे मुद्दों पर केंद्र सरकार की छवि ने विपक्ष के अनेक तथाकथित धर्मनिरपेक्ष नेताओं को हिंदू धर्म स्थलों के आगे शीश झुकाने को भी मजबूर कर दिया है। साथ ही मुस्लिम वोट बैंक के लिए उनका मोह सर्वज्ञात है। आरोप यह भी है कि सीबीआई-ईडी की चपेट में आने के चलते विपक्ष के बड़े नेता एक झंडे के नीचे आने को एकजुट हुए हैं। भ्रष्टाचार के आरोपों में कुछ जेल में हैं, तो कुछ जमानत पर हैं। शरद पवार अप्रैल में ही कह चुके हैं कि सुप्रीम कोर्ट की तरफ से जांच की घोषणा के बाद अमेरिका स्थित शॉर्ट सेलर हिंडनबर्ग रिसर्च की अडाणी ग्रुप के खिलाफ आरोपों की जेपीसी जांच का कोई महत्व नहीं है। ऐसी स्थिति में मोदी को टॉरगेट करना इतना आसान नहीं। मतदाता जानना चाहेंगे कि मौजूदा भाजपा गठबंधन या मोदी की तुलना में ‘इंडिया’ गठबंधन क्या विकल्प पेश कर रहा है। हां, यह तय है कि 2024 का मुकाबला रोचक होगा।

और ये भी गजबः

फरवरी, 2023 में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की भारी लोकप्रियता उन पर सबसे बड़े राजनीतिक हमले के बावजूद बरकरार थी। आरोप वही था अडाणी समूह को अनुचित लाभ देना। विपक्षी दलों ने तब तीन दिनों तक संसद को ठप रखा और गौतम अडाणी द्वारा स्थापित व्यापार समूह की जांच की मांग करते हुए सड़क पर विरोध प्रदर्शन किया। अडाणी का जिक्र किए बिना, मोदी ने संसद में कहा कि “देश में 1.4 अरब लोगों का आशीर्वाद मेरा सुरक्षा कवच है और आप इसे झूठ और गालियों से नष्ट नहीं कर सकते”, जबकि विपक्षी सांसदों ने “अडाणी-अडाणी” का नारा लगाया। रॉयटर्स के साथ साझा किए गए पोलिंग एजेंसी सी-वोटर के डेटा से तब साफ हुआ कि प्रधानमंत्री के लिए समर्थन कम नहीं हुआ है, हालांकि सर्वेक्षण में अडाणी मुद्दे का जिक्र नहीं किया गया था। तब सर्वेक्षण में शामिल लोगों में से लगभग आधे लोग प्रधान मंत्री के रूप में मोदी के काम से “बहुत संतुष्ट” थे और 30% ने कहा कि वे “कुछ हद तक संतुष्ट” थे। आंकड़ों से पता चलता है कि नवंबर 2022 से दोनों रेटिंग समान स्तर के आसपास घूम रही थी। जनवरी में, सी-वोटर द्वारा इंडिया टुडे पत्रिका के लिए साल में दो बार आयोजित मूड ऑफ द नेशन ओपिनियन पोल में 72% उत्तरदाताओं ने मोदी के प्रदर्शन को “अच्छा” बताया, जो पिछले साल अगस्त में 66% था। और, आज भी पीएम मोदी की लोकप्रियता का ग्राफ चंद्रयान 3 की तरह उछालें मार रहा। उनके प्रशंसकों का मानना है कि मोदी है तो मुमकिन है।