राज- काज: असंतुष्ट भाजपा में ही नहीं, आरएसएस में भी बढ़े….
– विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा इस बार कई तरह की चुनौतियों का सामना करना रही है। पहली चुनौती तो यही कि पार्टी के उसके बड़े नेता बड़ी तादाद में नाराज होकर भाजपा छोड़ कांग्रेस में शामिल हो रहे हैं। यह सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा। 18 सितंबर को और कई नेताओं के पार्टी छोड़कर कांग्रेस में शामिल होने की खबर मिल रही है। 2003 के बाद पहली बार यह स्थिति है कि भाजपा नेता पार्टी छोड़ रहे हैं वरना अब तक कांग्रेस के नेता पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल होते थे। इससे हवा के रुख का अंदाजा लगता है।
दूसरी हैरानी की बात यह कि आरएसएस में भी असंतुष्ट बढ़ रहे हैं। संभवत: पहली बार संघ के चार पूर्व प्रचारकों अभय जैन, मनीष काले, विशाल बिंदल और डॉ सुभाष बारोट ने आरएसएस से अपने सारे रिश्ते खत्म कर भोपाल में नए दल ‘जनहित पार्टी’ के गठन का एलान कर दिया। कुछ समय से ये सभी ‘भारत हित रक्षा अभियान’ चला रहे थे। व्यापम घोटाले की जांच कराने हाईकोर्ट को 50 हजार पोस्ट कार्ड लिखकर भिजवाए थे। नए दल के गठन के साथ एलान किया गया है कि वे भाजपा के 5 लाख वोट काटेंगे। साफ है कि नाराजगी बड़ी है। ये प्रचारक संघ और भाजपा की काम की मौजूदा शैली से नाराज हैं। भाजपा को अपनों की इस चुनौती का भी सामना करना है।
यहां भी विकास पर भारी पड़ी धर्म की राजनीति….
– विकास पर धर्म की राजनीति कैसे भारी पड़ती है, इसका उदाहरण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सागर दौरे के दौरान भी देखने को मिल गया। वे 33 दिनों के अंदर सागर दौरे पर दो बार आए। पहली बार संत रविदास मंदिर निर्माण का भूमिपूजन करने और दूसरी बार बीना रिफायनरी में पेट्रो केमिकल काम्पलेक्स का भूमि पूजन करने। रविदास मंदिर निर्माण के लिए 100 करोड़ रुपए की राशि का प्रावधान किया गया है और पेट्रो केमिकल काम्पलेक्स पर 50 हजार करोड़ से ज्यादा की राशि खर्च की जा रही है। देखने लायक यह था कि प्रधानमंत्री मोदी जब संत रविदास के मंदिर का भूमिपूजन करने आए, तब बड़ी तादाद में भीड़ जुटी थी, जबकि अभी 14 सितंबर को बीना के कार्यक्रम में अपेक्षाकृत भीड़ बहुत कम थी। मंदिर कम राशि से बन रहा है लेकिन चूंकि वहां धर्म का तड़का था, इसलिए भीड़ ज्यादा थी। इसके विपरीत बीना में 50 हजार करोड़ से ज्यादा खर्च हो रहे हैं लेकिन वहां लोग कम पहुंचे। इसीलिए कहा जाता है कि विकास पर धर्म की राजनीति भारी पड़ती है। भीड़ मंदिर के लिए जुटी लेकिन विकास के लिए नहीं। हालांकि यहां भी प्रधानमंत्री मोदी ने धर्म का तड़का लगाया। उन्होंने सनातन धर्म को लेकर विपक्ष के इंडिया गठबंधन और कांग्रेस पर हमला बोला। इन्हें धर्म और संस्कृति का विरोधी ठहरा कर पार्टी की दिशा तय कर दी।
कमलनाथ जी, बार-बार यह कहना कितना उचित….?
– मीडिया से बातचीत में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने दो बातें फिर कहीं, जबकि बार- बार यह नहीं कहा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि यहां बड़े-बड़े कैमरे लेकर आप लोग आए हैं। सभी के हाथ में पेन और डायरी दिख रही है। सभी हमारी बात सुनकर लिख भी रहे हैं लेकिन आप में से कितने चैनल में यह दिखा पाएंगे? दिखाएंगे तो कितना दिखा पाएंगे, कहना मुश्किल है। इसी तरह लिखने वाले पत्रकारों से उन्होंने कहा कि आप लोग अखबारों में कितना लिख पाएंगे, यह सवाल है?
कमलनाथ जी, सवाल यह भी है कि क्या आपको बार-बार मीडिया से यह बात कहनी चाहिए? बिल्कुल नहीं। आप जैसे वरिष्ठ नेता के लिए यह शोभा नहीं देता। दूसरा, आपने कहा कि मीडिया को मुझसे शिकायत रहती है कि मैं समय नहीं देता। फिर बोले यह सच है, यह डिपार्टमेंट मैंने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को दे रखा है। यह भी कहा कि मैं तो नहीं मिलूंगा क्योंकि मेरे पास समय नहीं है। मुझे प्रदेश का दौरा करना है। हां, मेरी जगह आप सुरजेवाला जी से मिल सकते हैं। वे हमेशा उपलब्ध रहेंगे। सुरजेवाला जी उपलब्ध रहेंगे, यहां तक तो ठीक है, लेकिन आपका यह कहना बिल्कुल गलत है कि मेरे पास समय नहीं है और यह काम मैैंने मुख्यमंत्री को सौंप रखा है। यह कहने की बजाय मीडिया से न मिलने की शिकायत आपको दूर करना चाहिए।
खुद को अपमानित महसूस कर रहे हैं भूरिया….!
– विधानसभा चुनावों के मद्देनजर आदिवासी नेता कांतिलाल भूरिया को प्रदेश कांग्रेस चुनाव अभियान समिति का प्रमुख बनाया गया है। यह दायित्व बेहद महत्वपूर्ण होता है। 2003 में भाजपा जब उमा भारती का चेहरा आगे कर दस साल से जमी दिग्विजय सरकार के खिलाफ चुनाव लड़ रही थी, तब शिवराज सिंह चौहान भाजपा की चुनाव अभियान समिति के प्रमुख थे और 2008 में जब कांग्रेस 15 साल से सत्ता में काबिज भाजपा सरकार के खिलाफ मैदान में थी, तब प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ के साथ चुनाव अभियान समिति के प्रमुख ज्योतिरादित्य सिंधिया थे। साफ है कि यह पद प्रदेश अध्यक्ष, नेता प्रतिपक्ष जैसा महत्वपूर्ण होता है।
इस बार भूरिया को इस समिति का प्रमुख बनाया गया। उद्देश्य आदिवासी वर्ग में एक संदेश देना भी था, लेकिन भूरिया को यह अहसास भी करा दिया गया कि आपकी कोई हैसियत नहीं है। भूरिया ने सभी जिलों में समिति के प्रभारी नियुक्त कर उनकी सूची जारी की थी। समन्वय के लिए भी प्रदेश प्रभारी बनाए थे। सूची बाहर आई, अखबारों में छपी। किसी नाम पर ज्यादा आपत्ति भी नहीं थी, लेकिन किसी ने कमलनाथ के कान में जाने क्या फूंका कि आनन-फानन सूची निरस्त करने का फरमान जारी हो गया। तब से ही भूरिया खुद को अपमानित महसूस कर रहे हैं। क्या ऐसा करना जरूरी था?
अठारह को ऐसा क्या बड़ा करने वाली है कांग्रेस….
– कांग्रेस में प्रत्याशी चयन को लेकर विवाद है। दिल्ली में दो दिन चली स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक में नेता प्रतिपक्ष डॉ गोविंद सिंह और अरुण यादव जैसे नेताओं की राय को तवज्जो न दिए जाने की खबर है। बावजूद इसके कांग्रेस के अंदर अठारह तारीख की बड़ी चर्चा है। कहा जा रहा है कि कांग्रेस इस दिन कुछ बड़ा करने वाली है। कमलनाथ के खास पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा ने कहा है कि 18 सितंबर को बड़ी तादाद में नेता भाजपा छोड़ेंगे और कांग्रेस ज्वाइन करेंगे। हालांकि आने- जाने को लेकर दलों के नेता जो घोषणाएं करते हैं, आमतौर पर वे कम ही सच होती हैं। तो फिर कांग्रेस ऐसा क्या करने वाली है। इसे लेकर उत्सुकता है। 18 के तिलिस्म को हर कोई जानना चाहता है। कांग्रेस कुछ नई गारंटियों की घोषणा कर सकती है, क्योंकि भाजपा उसकी पहले की गारंटियों को छीनती जा रही है।
सिलेंडर भी 5 सौ की बजाय साढ़े 4 सौ में देने का आदेश जारी हो गया है। एक चर्चा यह भी है कि कांग्रेस प्रत्याशियों की पहली सूची जारी कर सकती है। सर्वे के कारण कुछ एमएलए पर विवाद है। हारी सीटों को लेकर दिग्विजय सिंह कसरत पूरी कर चुके हैं और स्क्रीनिंग कमेटी भी इन पर चर्चा कर चुकी है। हालांकि रणदीप सुरजेवाला ने कहा है कि हम जन आक्रोश यात्राओं के बाद प्रत्याशी घोषित करेंगे। इसलिए क्या होगा कोई नहीं जानता, लेकिन 18 सितंबर का इंतजार हो रहा है।
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