National Medical Humanities Award : बेंगलुरु के फार्माकोलॉजिस्ट डॉ नारायण कृष्णप्पा सम्मानित

शोध पत्र प्रकाशन में डॉ प्रसाद पटगांवकर ने प्रथम और डॉ जयदीप सिंह चौहान को दूसरा पुरस्कार

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Indore : इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (इंदौर) और पौराणिक एकेडमी ऑफ मेडिकल एजुकेशन ने शनिवार को दिल्ली के नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ उपरीत धालीवाल और बेंगलुरु के फार्माकोलॉजिस्ट डॉ नारायण कृष्णप्पा को 2020 और 2021 के ‘राष्ट्रीय चिकित्सा मानविकी पुरस्कार’ से सम्मानित किया। उनके साथ डॉ प्रसाद पटगांवकर ने शोध पत्र प्रकाशन में प्रथम पुरस्कार प्राप्त किया और डॉ जयदीप सिंह चौहान को उसी श्रेणी में 2020 के लिए दूसरा पुरस्कार मिला।

इसी तरह, डॉ नितीशा गोयल ने 2021 में एक चिकित्सा अनुसंधान प्रकाशन के लिए पहला पुरस्कार जीता, उसके बाद डॉ यूसुफ सैफी को दूसरा पुरस्कार और डॉ कामायनी गुप्ता को तीसरा पुरस्कार मिला। डॉ कमलेश बडोनिया, डॉ अभिक सिकंदर, डॉ अद्वैत प्रकाश, डॉ एकता सिंह साहू और डॉ सुमित्रा यादव को मेरिट का प्रमाण पत्र मिला। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि एमजीएम मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ संजय दीक्षित थे। समारोह की अध्यक्षता आईएमए इंदौर के अध्यक्ष डॉ सुमित शुक्ला ने की। डॉ अपूर्व पौराणिक ने वार्षिक पुरस्कारों के बारे में जानकारी दी और कार्यक्रम की मेजबानी डॉ संजय लोंधे ने की।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ उप्रीत धालीवाल ने कहा कि मेडिकल प्रोफेशन के लिए मानविकी चेतना (ह्यूमैनिटी कांशसनेस) का विकसित होना जरूरी है। इस बात को कोरोना वायरस के दौरान और भी अधिक महसूस किया गया। जब एक के बाद एक दूसरी लहर के दौरान शासन व्यवस्थाएं लाचार व असहाय प्रतीत हो रही थी। तब डॉक्टर से सहायक स्वास्थ्यकर्मी, सफाईकर्मी सब के सब दिन-रात अपने काम पर डटे रहे। उन्होंने जिम्मेदारी की बड़ी कीमत चुकाई। भावनात्मक, शारीरिक, आर्थिक दृष्टि से यहां तक कि जीवन तक का सर्वोच्च बलिदान किया।

चिकित्सा शिक्षा में मानविकी के समावेश का होना जरुरी होता है। विभिन्न मेडिकल कॉलेज अपने-अपने स्तर पर प्रयोगधर्मी होते हैं। वे नए-नए आयाम अपनाते हैं। लेकिन, सभी के मूल सिद्धांत और भावना समान होते हैं। मेडिकल की लंबी श्रम साध्य टेक्निकल पढ़ाई के बंद कमरे में मानवीय की खिड़की खोल देने से ताजी हवा का झोंका आता है, जो मन और सोच में मृदुलता लाती है। डॉ धालीवाल ने कहा कि यदि इंदौर के मेडिकल कॉलेजों का प्रबंधन, फैकल्टी और छात्र ह्यूमैनिटीज का कार्यक्रम शुरू करना चाहें, तो वे बार-बार यहां आकर अपना मार्गदर्शन देने के लिए तत्पर रहेगी। डॉ धालीवाल ने घोषणा की, कि पुरस्कार की राशि का उपयोग वे मेडिकल ह्यूमैनिटीज के प्रोजेक्ट में करेंगी।

बेंगलुरु के डॉक्टर नारायण कृष्णप्पा ने बताया कि उनके करियर में अनेक मोड़ आए। जनरल प्रैक्टिशनर, फार्माकोलॉजिस्ट प्राध्यापक, हड्डी रोग विशेषज्ञ और अब लाइफ़ स्टाइल मैनेजमेंट स्पेशलिस्ट। उन्होंने कहा की मैंने हमेशा महसूस किया कि मरीजों के इलाज और उन्हें समझने-समझाने की क्रियाओं के बीच गहरी खाई है। निदान और इलाज अपने आप में वैज्ञानिक तथ्यों और टेक्नोलॉजी पर आधारित है। दूसरी और मरीज और परिजनों की चिंताओं, भावनाओं, अपेक्षाओं आदि को समझना और उन्हें समझाना एक नितांत भिन्न किस्म का कौशल है, जो हमारी चिकित्सा शिक्षा में शरीक नहीं है।

अधिष्ठाता डॉ संजय दीक्षित ने कहा कि ह्यूमैनिटीज के शिक्षण, प्रशिक्षण, अभ्यास के प्रकल्प को कॉलेज प्रशासन द्वारा सभी प्रकार का सहयोग प्रदान किया जाएगा। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की इंदौर शाखा के अध्यक्ष डॉ सुमित शुक्ला ने कहा कि मानविकी के विषयों से रूबरू होना और उनमें दखल रखना न केवल मेडिकल स्टूडेंट, बल्कि प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टरों के लिए भी जरूरी है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन इन दोनों पुरस्कारों से जुड़कर सार्थकता महसूस कर रहा है। विज्ञान और शोध दोनों मानविकी के लिए अनिवार्य है। शोध पत्र विजेताओं निशा गोयल तथा अन्य ने कहा कि इस पुरस्कार से भविष्य और उच्च कोटि के जनरल में प्रकाशित करवाने की प्रेरणा मिली है।