वसुंधरा राजे के बिना भी चुनाव जीतने के मिथक को तोड़ना चाहता है भाजपा का शीर्ष नेतृत्व ?

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वसुंधरा राजे के बिना भी चुनाव जीतने के मिथक को तोड़ना चाहता है भाजपा का शीर्ष नेतृत्व ?

गोपेंद्र नाथ भट्ट

भाजपा का शीर्ष नेतृत्व इस बार राजस्थान विधान सभा में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के चेहरे को आगे किए बिना भी चुनाव जीतने के मिथक को तोड़ना चाहता है। शीर्ष नेतृत्व इससे पहले भी कई स्थापित नेताओं को नज़र अन्दाज़ कर गुजरात में भूपेन्द्र पटेल,उत्तराखण्ड में कई मुख्यमंत्री बदल कर अनंतोंगत्वा पुष्कर सिंह धामी, जाटलेंड हरियाणा में पहली बार एक पंजाबी मनोहर लाल खट्टर को मुख्यमंत्री बनाने आदि कई प्रयोग कर पुराने मिथकों को तोड़ चुका है।

प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी और केन्द्रीय गृह मंत्री के दौरों में वसुन्धरा राजे की लगातार अनदेखी इस बात का संकेत दे रही है कि पार्टी के शीर्ष नेतृत्व और वसुन्धरा राजे के बीच सब कुछ सामान्य नही चल रहा है। कोई न कोई ऐसी बात ज़रूर है जिसकी वजह से शीर्ष नेतृत्व भी राजे से खिंचा हुआ है। जबकि इस बार वसुन्धरा राजे ने आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के साथ पार्टी अध्यक्ष प्रधानमंत्री गृह मंत्री और संगठन मंत्री सहित सभी केन्द्रीय नेताओं से मेल मिलाप करने में कोई कसर बाकी नही रखी और वे अपनी पुत्र वधु के अस्वस्थ होने के बावजूद पार्टी के प्रमुख कार्यक्रमों में भी मौजूद रही। हाल ही केन्द्रीय जल शक्ति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत और उससे पूर्व प्रदेश के पूर्व संगठन मंत्री प्रकाश चन्द्र के साथ उनकी मुलाक़ातें भी चर्चा में रही।

राजस्थान में पार्टी नेतृत्व ने वसुन्धरा राजे का विकल्प खोजने की शुरुआत आरएसएस की राजस्थान इकाई की मदद से काफी अर्से पहले ही शुरू कर दी थी और वसुन्धरा के घोर विरोधी डॉ सतीश पूनियां को प्रदेश भाजपा का अध्यक्ष बना कर आग में घी डालने का काम किया था। बाद में भाजपा नेतृत्व ने पार्टी में वसुन्धरा विरोधी हर बड़े नेता घनश्याम तिवारी, ओम बिरला, भूपेन्द्र यादव,गजेन्द्र सिंह शेखावत, अर्जुन राम मेघवाल,कैलाश चौधरी, डॉ किरोड़ी लाल मीणा,नारायण पंचारिया आदि को बहुत अधिक तवज्जो और पद दिए ।

कालान्तर में डॉ सतीश पूनियां के कार्यकाल में पार्टी में विभिन्न गुटों की खाई और अधिक चौड़ी होने पर लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला के चेले चितौड़गढ़ के सांसद सी पी जोशी को प्रदेश भाजपा का अध्यक्ष बनाया गया।साथ ही प्रदेश की राजनीति से वसुन्धरा राजे को दूर करने के लिए उन्हें दूसरी बार भाजपा का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया गया लेकिन वहाँ भी उन्हें कोई काम नही दिया गया। उन्हें नाम मात्र की जिम्मेदारी के रूप में एक बार झारखण्ड अवश्य भेजा गया था । जहां उन्होंने कुछ दिन पार्टी के पक्ष में प्रचार किया।

राजनीतिक पण्डित बताते है कि अपनी लगातार उपेक्षा से वसुन्धरा राजे और उनके समर्थक पार्टी आलाकमान से बहुत नाराज़ हों रहें है । भाजपा नेतृत्व भी राजस्थान सहित अन्य प्रदेशों के आसन्न विधान सभा चुनावों से पूर्व वसुन्धरा राजे और उनके समर्थकों की इस नाराज़गी से घबराया हुआ है। इस स्थिति को सम्भालने के लिए बुधवार को पार्टी के चाणक्य और केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा ने जयपुर पहुँच कर प्रदेश कोर कमेटी की बैठक ली है । देर रात तक चली इस बैठक में विधानसभा चुनाव को लेकर रणनीति तैयार करने और संभावित उम्मीदवारों के नामों पर भी चर्चा की गई। उम्मीदवारों के नामों को अंतिम रूप एक और और बैठक होंगी।

इस बैठक में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे भी शामिल हुई । इसके अलावा बैठक में भाजपा के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बी संतोष , राष्ट्रीय महासचिव ,प्रदेश प्रभारी अरुण सिंह , भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी , केन्द्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत,केंद्रीय मंत्री और भाजपा प्रदेश चुनाव प्रभारी प्रहलाद जोशी ,  राज्य मंत्री अर्जुनराम मेघवाल, नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़, केंद्रीय किसान कल्याण राज्य मंत्री कैलाश चौधरी, सह प्रभारी विजया राहटकर,प्रतिपक्ष उप नेता डॉ सतीश पूनिया, प्रदेश संगठन महामंत्री चन्द्रशेखर, चुनाव संचालन समिति के संयोजक नारायण पंचारिया, चुनाव प्रचार समिति के सह संयोजक कुलदीप बिश्नोई, गुजरात के पूर्व उप मुख्यमंत्री नितिन पटेल राष्ट्रीय प्रवक्ता और सांसद कर्नल राज्यवर्धन सिंह सहित आदिवासी सांसद कनक मल कटारा तथा कोर कमेटी के अन्य सदस्य भी उपस्थित रहें ।

बैठक में पार्टी में गुटबाज़ी के कारण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सभाओं में कई जगह निर्धारित संख्या के अनुरूप कार्यकर्ता नहीं पहुंचने की बात को लेकर नड्डा और शाह ने अपनी नाराजगी जताई। बैठक में यह भी कहा गया कि पार्टी में विभिन्न गुटों की आपसी खिंचतान के चलते कई जगह परिवर्तन यात्रा के दौरान स्थानीय नेताओं का विरोध भी झेलना पड़ा। इसके साथ ही प्रदेश स्तर के नेताओं के मध्य चल रही आपसी प्रतिस्पर्धा को लेकर भी नड्डा एवं शाह ने प्रदेश के नेताओं को नसीहत दी है। पूर्व सीएम वसुंधरा राजे के मामले पर अलग से बातचीत होने की बात भी सामने आई है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सभाओं में राजस्थान की कद्दावर भाजपा नेता और दो बार की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के साथ पार्टी के शीर्ष नेतृत्व द्वारा जैसा व्यवहार किया जा रहा है उसकी चर्चा न केवल राजस्थान में हो रही है वरन देश भर में भी यह एक गंभीर चर्चा का विषय बन गया है। वसुंधरा राजे भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष होने के साथ ही एक लोकप्रिय महिला नेत्री भी है। फिर भी पार्टी उनके मुक़ाबले बहुत जूनियर नेताओं को प्रोत्साहन दे रही है। वसुन्धरा राजे ने राजस्थान में भाजपा को हर बार रिकॉर्ड जीत दिलाई है।

वे प्रदेश की पहली महिला मुख्यमंत्री बनी और एक बार नही दो बार लोकसभा की सभी पच्चीस सीटों पर भाजपा के सांसद जीता कर लोकसभा में भेजने तथा संसद के दोनो सदनों में सभी सांसद भाजपा के जीता कर और इन सदनों में कांग्रेस के लिए सूखापन के हालात लाने का उन्होंने कीर्तिमान बनाया था।आज भी राजस्थान विधानसभा में पार्टी के विधायकों में अधिकांश विधायक वसुंधरा राजे समर्थक ही है। वसुंधरा राजस्थान में एक प्रभावशाली राजनीतिक ताकत है लेकिन एक कमजोरी है कि वे अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी गुट की वरिष्ठ नेता मानी जाती है जिसे भाजपा का वर्तमान शीर्ष नेतृत्व पसन्द नही करता हैं।इस गुट के माने जाने वाले केन्द्रीय रक्षा मंत्री राज नाथ सिंह ,मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री शिव राज सिंह चौहान सहित कुछ गिने चुने नेता ही अब मुख्य धारा में है बाकी सभी या तों पार्टी के मार्ग दर्शक मण्डल में है अथवा मुख्य धारा से अलग कर दिए गए है।

राजनीतिक पंडितों का मानना है कि आज राजस्थान में कांग्रेस में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और भाजपा में वसुंधरा राजे के मुकाबले लोकप्रियता वाला और कद का कोई नेता नहीं है।वसुंधरा राजे के पक्ष में अन्य नेताओं के मुक़ाबले एक बात यह भी है कि वे महिलाओं में बहुत लोकप्रिय हैं। साथ ही उनकी स्वीकार्यता सभी जातियों और धर्मों के लोगों में है।

वसुंधरा राजे जनसंघ और भारतीय जनता पार्टी को एक छोटे से वृक्ष से बहुत बड़ा वट वृक्ष बनाने में अभूतपूर्व योगदान प्रदान करने वाली ग्वालियर की राजमाता स्वर्गीय विजया राजे सिंधिया की बेटी है। सभी लोग इस तथ्य से भली भाति अवगत है कि स्वर्गीय विजया राजे सिंधिया ने कोई सरकारी पद लिए बिना जीवन पर्यंत पार्टी और देश की सेवा की। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सभी गुरुजी भी उन्हें बहुत ही सम्मान देते थे। वसुंधरा राजे हमेशा कहती है कि राजनीति में उनका आदर्श और प्रथम गुरु उनकी माता ही रही है और वे उनके अधूरे कार्यों और सपनों को पूरा करने के लिए ही राजनीति में है।

वसुंधरा राजे के बारे में कहा जाता है कि वे अपने आत्म सम्मान के साथ कभी कोई समझौता नहीं करती लेकिन वे भाजपा के साथ इसलिए मजबूती से जुड़ी हुई है कि भाजपा उनकी माता द्वारा बनाई गई पार्टी है। पूर्व उपराष्ट्रपति भैरों सिंह शेखावत के आग्रह पर राजस्थान की राजनीति में आने से पहले उनकी रुचि सदैव केन्द्र की राजनीति में ही रही और उन्होंने प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के मंत्रिपरिषद में कई अहम मंत्रालयों की जिम्मेदारी भी संभाली। उनके काम करने का अंदाज और प्रशासनिक क्षमताओं का कोई सानी नहीं है।

वसुंधरा राजे को अपने विचारों की दृढ़ता और मजबूती के साथ बेटूक बाते कहने के लिए भी जाना जाता है तथा उन्हें अपनी धुन एवं जिद्द का पक्का माना जाता है। वे एक अच्छी रणनीतिकार और लीक से हट कर काम करने वाली नेता है। उनकी फर्राटेदार अंग्रेजी और प्रशासनिक दबदबे से छोटे से बड़े सभी अफसर घबराते है। वे जितनी सख्त प्रशासक है उतनी ही संवेदनशील एवं मानवीय गुणों से सम्पन्न एक धर्म परायण नेता भी है। इस बार उन्होंने अपने स्वभाव में काफी बदलाव किया है तथा भाजपा सहित आरएसएस के सभी बड़े नेताओं से मिल कर अपना पक्ष रखने में कोई कमी नही रखी है।

वसुंधरा राजे जातियों की संकीर्ण धारणाओं को नहीं मानती और कहती है कि वे दो ही जातियों को मानती है । एक जाति महिला ओं की हैं और दूसरी जाति पुरूषों की । इसके अलावा दुनिया में कोई जाती नही हैं।
राजनीति के जानकार मानते है कि
वसुंधरा राजे जैसी नेता की मौजूदगी के बावजूद प्रदेश में भाजपा द्वारा प्रदेश में मुख्यमंत्री के लिए उनको चेहरा नहीं बनाना भाजपा का अचरज भरा निर्णय है।

राजनीतिक पंडित भजपा के शीर्ष नेतृत्व द्वारा किसी नेता को मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं बना प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चेहरे पर सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लडने का निर्णय लिए जाने को पार्टी का अंदरूनी मामला बताते है लेकिन वसुंधरा राजे जैसी नेता को साइड लाइन कर चुनाव जीतने की बात को जोखिम और अति आत्म विश्वास से भरा निर्णय भी बता रहे है। खास कर हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में विधान सभा चुनाव हारने के बाद पार्टी द्वारा उससे कोई सबक नहीं लेना भी बता रहे है। यदि विधान सभा में वसुंधरा राजे के समर्थक विधायकों को टिकट नहीं मिलता है तो राजस्थान में भाजपा का अंतर्कलह और अधिक मुखर हो सकता है तथा यदि पार्टी के बागी चुनाव मैदान में उतरेंगे तो हालात और अधिक बदतर हो सकते है। वयोवृद्ध नेता कैलाश मेघवाल,देवी सिंह भाटी, सूर्यकांता व्यास, राम किशोर मीणा आदि कई नेता अपने भावी मंसूबों की झलक प्रदर्शित कर चुके है। हालाँकि वसुन्धरा समर्थक देवी सिंह भाटी का भाजपा में शामिल होना राजे गुट के लिए सकूँन भरा माना जा सकता है फिर भी कतिपय भाजपा विधायक मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की देश भर के चर्चित योजनाओं की सार्वजनिक रूप से प्रशंसा करते हुए भी सुने गए है।

राजनीतिक जानकार यहां तक कहने लगे है कि भाजपा राजस्थान में अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार कांग्रेस को सजी सजाई विजय की थाली परोसने जा रही है। हालाकि कांग्रेस में भी गहलोत और पायलट गुट है लेकिन भाजपा में एक दो नहीं वरन मुख्यमंत्री के कई दावेदारों ने पार्टी में कई गुट बना दिए है।
फिर भी भाजपा में एक वर्ग का मानना है कि प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी इस बार राजस्थान के चुनाव की कमान खुद सम्भाल रहें है । ऐसी परिस्थिति में कोई नेता चूँ भी नही कर सकता और भाजपा को पी एम मोदी के अलावा किसी और चेहरे की जरुरत नही है तथा भाजपा वसुन्धरा राजे के चेहरे को आगे किए बिना भी राजस्थान ने विधान सभा चुनाव जीतने में पूरी तरह सक्षम है।

इधर वसुंधरा राजे महिला आरक्षण बिल के समर्थन में अपने जयपुर निवास पर आयोजित महिलाओं के एक कार्यक्रम में स्पष्ट कर चुकी है कि वे राजस्थान छोड़ कही नही जाएंगी और राजस्थान में रह कर ही राजस्थान के लोगों की सेवा करेंगी। पिछले विधानसभा चुनाव से पहले अशोक गहलोत ने भी ऐसा ही भावनाओं से भरा बयान दिया था कि “मैं थासे दूर कोनी…. “ और उसका परिणाम सभी ने देखा कि उन्होंने न केवल प्रदेश में कांग्रेस को जीत दिलाने में अपना अभूतपूर्व योगदान दिया वरन अपनी वरिष्ठता तथ्य अनुभव के बलबूते पर प्रदेश में तीसरी बार मुख्यमंत्री भी बने।

वसुंधरा राजे के ताजा बयान में छिपी भावनाओं और गूढ रहस्य को सही अर्थों में समझने तथा उसके प्रदेश की राजनीति में होने वाले असर को लेकर राजनीतिक क्षेत्रों में कई तरह के कयास लगाए जा रहे है। देखना होगा कि आने वाले दिनों में प्रदेश की राजनीति , मरुधरा के रंगों को और कितने रंगों से रंग रंगीला बनाएगी?

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पिछलें ग्यारह महीनों में अपनी दसवीं यात्रा पर गाँधी जयंती के दिन मेवाड़ के प्रसिद्ध धार्मिक स्थल साँवरियाँ सेठ धाम पर आ रहें है। साँवरियाँ सेठ मंदिर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सांसद सी पी जोशी का इलाक़ा हैं । यह देखना दिलचस्प होंगा कि इस प्रधानमंत्री मोदी की इस यात्रा में भी वसुन्धरा राजे केवल मंच की शोभा ही बढ़ायेगी अथवा अन्य किसी भूमिका में दिखेगी?