मो-शा रणनीति : जीते तो मोदी की जीत , हारे तो चौहान की हार
चुनावी रण में 20 साल बाद भाजपा के लिया सब कुछ अलग है- प्रदेश का कोई ऐसा नेता नहीं जो पार्टी को फ्रंट से लीड कर रहा हो जबकि चुनाव स्टेट लेजिस्लेटिव असेंबली का है और भाजपा की यहां सरकार है I मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का भविष्य स्वयं अनिश्चित दिख रहा है हालांकि वे अपनी तरफ से स्थितियों को एक बार फिर से अपने अनुकूल बनाने के लिए जी जान से लगे हुए हैं I अनिल माधव दवे तथा विजेश लुनावत के असमय देहांत के पश्चात् जावली का अस्तित्व भी समाप्त है I वैसे भी इस बार भाजपा का थिंक टैंक दिल्ली में है, सब कुछ वहीँ से तय किया जा रहा है I इसलिए अगर जावली बन भी जाता तो उसका कोई मतलब नहीं था I
चुनाव के पहले जिस तरह से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को दिल्ली के थिंक टैंक में कोई स्थान नहीं मिला है और पार्टी ने उन्हें अगला सीएम फेस बनाने से परहेज किया है उससे पार्टी का एक तबका तो खुश है पर सीएम कैंप तथा सीएम के फॉलोवर्स इससे दुखी नजर आ रहे हैं I सीएम कैंप के एक नेता का मानना है कि इससे पार्टी को भारी नुकसान उठाना पड़ेगा I
पार्टी लीडरशिप इस समय कलेक्टिव लीडरशिप के सहारे चुनाव जीतना चाहती है पर इस कलेक्टिव लीडरशिप में भी प्रदेश के नेताओं का कोई रोल नहीं दिख रहा I जो कुछ भी तय हो रहा है वो मोदी और शाह तय कर रहे हैं और इस कलेक्टिव लीडरशिप में थोड़ा बहुत किसी का रोल है भी तो वे हैं पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा, राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन ) बी एल संतोष, राष्ट्रीय संयुक्त महामंत्री (संगठन ) शिव प्रकाश तथा प्रदेश भाजपा के प्रभारी भूपेंद्र यादव जो स्वयं केंद्रीय सरकार में मंत्री हैं I
शिवराज सिंह चौहान जो कि भाजपा नेताओं के बीच में मुख्यमंत्री के तौर पर सबसे ज्यादा कार्यकाल पूरा कर चुके हैं और यहां तक कि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के भी सीएम के तौर पर कार्यकाल के रिकॉर्ड को बीट कर चुके हैं, के लिए ये अपमानजनक स्थिति है I जिन लोगों ने चौहान को शीर्ष पर चढ़ते देखा है और देखा है कि कैसे वे विधान सभा तथा लोक सभा के चुनावों में अपने हिसाब से सब कुछ तय करते थे यहां तक कि भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष चुनाव के समय कौन हो वो भी वे तय करते थे उन्हें चौहान कि असहजता का अनुमान आसानी से हो सकता है I
10 वर्ष पूर्व भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष प्रभात झा ने अपने विदाई समारोह में पार्टी कार्यकर्ताओं, नेताओं तथा मीडिया के सामने कहा कि शिवराज सिंह चौहान ने उनके साथ ‘पोखरण’ कर दिया यानी कि उन्हें अँधेरे में रखकर नरेंद्र सिंह तोमर को अध्यक्ष बनवा दिया और उन्हें हटा दिया I ये 2013 चुनाव के एक वर्ष पूर्व घटित हुआ था I
10 वर्ष के बाद झा मुस्करा रहे होंगे कि इस चुनाव के पहले पोखरण चौहान के साथ हो गया और वे केंद्रीय नेताओं द्वारा बिलकुल अँधेरे में रखे गए कि ना सिर्फ उन्हें पार्टी का सीएम फेस घोषित नहीं किया जायेगा बल्कि उन्हें ये भी नहीं पता होगा कि उम्मीदवारों की लिस्ट में किसका नाम आएगा I
जिस तरह से केंद्रीय नेता बार बार मोदी और उनकी स्कीम का प्रचार कर रहे हैं उससे साफ़ लगता है की चुनाव में कोई फेस है तो वो सिर्फ मोदी हैं I प्रधान मंत्री तो दूर जिन्होंने अपने 25 सितम्बर के जम्बूरी मैदान की सभा में चौहान का या उनकी योजनाओं के नाम का एक बार भी उल्लेख नहीं किया, केंद्रीय मंत्री भी लाड़ली बहना स्कीम का जिक्र नहीं कर रहे जिसे भाजपा का एक वर्ग गेम चेंजर के तौर पर देख रहा है I
अमित शाह ने भोपाल में अपने दौरे के दौरान स्पष्ट रूप से लोगों से अपील किया कि वे 2024 में मोदी के नेतृत्व में सरकार बनाने के लिए जनादेश दें तथा 2023 में मध्य प्रदेश में मोदी के नेतृत्व में भाजपा सरकार बनाने के लिए जनादेश दें I मैसेज क्लियर था कि दोनों जगह मोदी कि सरकार I
सितम्बर 25 की पीएम की मीटिंग ने उस पिक्चर को और क्लियर कर दिया I
यानी कि मध्य प्रदेश में चुनाव जीतने कि स्थिति में मोदी के चेहरे की जीत और हार होने पर, इसे लिखने कि आवश्यकता नहीं है , कि वह चौहान की हार मानी जाएगी – पार्टी फोरम पर I