सरताज…एक स्थापित नाम…

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सरताज…एक स्थापित नाम…

मध्यप्रदेश की राजनीति का एक दिग्गज चेहरा 12 अक्टूबर 2023 को 83 वर्ष की उम्र में अलविदा कह गया। ऐसा व्यक्तित्व जिसने संघर्ष के युग में जब अवसर मिला, तब मध्यप्रदेश में कमल खिलाने का काम किया। अटल-आडवाणी के युग का यह नेता नर्मदापुरम यानि होशंगाबाद में भाजपा का चेहरा बनकर स्थापित हो गया था। संसदीय क्षेत्र को कांग्रेस मुक्त कर दिया था। तो अर्जुन सिंह जैसे कांग्रेस के दिग्गज नेता को हराकर राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आ गए थे। जब विधानसभा चुनाव मैदान में उतरे तो सिवनी मालवा से कांग्रेस के दिग्गज नेता हजारीलाल रघुवंशी को चारों खाने चित्त कर दिया था। पर जब भाजपा ने 2018 में उम्र का हवाला देते हुए टिकट नहीं दिया, तो खफा होकर भाजपा छोड़ कांग्रेस में शामिल हो गए थे।
यह कद्दावर नेता थे सरताज सिंह। वह केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री रहे, तो मध्यप्रदेश में वन और लोक निर्माण विभाग मंत्री रहे। उसूल के पक्के ऐसे कि मंत्री रहते हुए भी होटल का हिसाब-किताब खुद रखते थे। सादगी भी ऐसी कि मंत्री रहते भी कभी कोई दिखावा नहीं किया। कांग्रेस ने सिवनी मालवा की उनकी सीट की जगह नर्मदापुरम से डॉ. सीतासरन शर्मा के खिलाफ मैदान में उतारा, पर राजनीति में वह अपने इस शिष्य से चुनाव हार गए थे। कांग्रेस में सरताज का मन कभी नहीं लगा। और वह कहते थे कि कांग्रेस पार्टी में संगठन कमजोर है। इसके बाद वह साल 2020 में फिर बीजेपी में शामिल हो गए थे। बीजेपी में शामिल होने के बाद पहली बार पूर्व केंद्रीय मंत्री सरताज सिंह सिवनी मालवा पहुंचे थे, तब उन्होंने कहा था कि वे एक कार्यकर्ता की तरह पार्टी में काम करते रहेंगे। और भाजपा के एक कार्यकर्ता से उदित हुआ उनका सफर एक कार्यकर्ता के रूप में ही अस्त हो गया।सरताज सिंह ‘बाबू जी’ के नाम से पहचाने जाते थे। सरताज सिंह 5 बार के सांसद और 2 बार के विधायक थे।
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भाजपा के सबसे पुराने नेताओं में से एक सरताज सिंह चुनावी राजनीति में अजेय माने जाते थे। भारत-पाकिस्तान के विभाजन के बाद सरताज सिंह का परिवार इटारसी आकर बस गया था। 1960 में उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन किया था। इसके बाद वे विष्णु कामथ के संपर्क में आए और उन्होंने सक्रिय राजनीति में कदम रखा। 1971 में सरताज सिंह इटारसी नगर पालिका के कार्यवाहक नगर पालिका अध्यक्ष बने। वे अटल बिहारी वाजपेयी की 13 दिन की सरकार में केंद्रीय मंत्री रहे। 2008 से 2016 तक मप्र सरकार में मंत्री रहे। 1951 से लेकर 1984 तक होशंगाबाद-नरसिंहपुर संसदीय क्षेत्र कांग्रेस का गढ़ मानी जाती थी, यहां से कांग्रेस प्रत्याशी लगातार जीतते चले आ रहे थे। 1991 में होने वाले चुनाव के पहले यानि 1989 में अटल बिहारी वाजपेयी ने सेठानीघाट पर एक सभा की थी। इस दौरान उन्होंने कार्यकर्ताओं के साथ वन टू वन बात की और लोगों से चर्चा की।
अपने उद्बोधन के दौरान उन्होंने कार्यकर्ता में ऐसा जोश भरा कि लोकसभा चुनाव में इसका असर दिखा। कांग्रेस के दिग्गज नेता रामेश्वर नीखरा 1980 और 1984 से लगातार लोकसभा चुनाव जीतते आ रहे थे, लेकिन उन्हें पहली बार सांसद का चुनाव लड़ रहे सरताज सिंह ने हरा दिया दिया था। सरताज सिंह 1989 से 1999 तक होशंगाबाद लोकसभा क्षेत्र से लगातार चार बार सांसद चुने गए। इस दौरान सरताज सिंह ने कांग्रेस नेता रामेश्वर नीखरा के साथ ही कांग्रेस के दिग्गज नेता अर्जुन सिंह को हराया। अर्जुन सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ने के लिए पार्टी सरताज सिंह को टिकट देने में असमंजस में थी। सरताज जी को भरोसा था कि वह चुनाव जीत जाएंगे। अंततः टिकट के संदर्भ में सरताज जी की अटल जी से मुलाकात हुई। अटल जी ने पूछा कि सरदार जी आप अर्जुन सिंह से चुनाव जीत जाएंगे, भरोसा है। सरताज ने बोला कि 101 परसेंट जीतकर सीट आपको भेंट करूंगा। अटल जी ने तुरंत आश्वस्त किया कि जाइए आप चुनाव की तैयारी कीजिए और अंततः अपने भरोसे पर सरताज जी खरे उतरे। और तब अटल ने उन्हें केंद्रीय मंत्री पद से नवाजा था। 1999 में सरताज सिंह ने लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ा। 2004 में वे फिर लोकसभा सांसद चुने गए। 2008 और 2013 का विधानसभा चुनाव उन्होंने जीता था।
भाजपा में स्थापित नाम सरताज सिंह उसूलों के पक्के ईमानदार नेताओं में गिने जाते थे। जो मन में रहता था, वह बोलने में संकोच नहीं करते थे। ऐसे नेता मिल पाना अब दुर्लभ हो गया है। सरताज के साथ मध्यप्रदेश में एक युग की विदाई हुई है। सरताज सिंह जी को विनम्र श्रद्धांजलि…।