झूठ बोले कौआ काटे! ‘जौहर’ की फिर याद आई, राजनीति बाज नहीं आई

झूठ बोले कौआ काटे! जौहरकी फिर याद आई, राजनीति बाज नहीं आई

– रामेन्द्र सिन्हा

इजराइल पर आतंकी समूह हमास के दुर्दांत हमले के वीडियो देखने के बाद भारत में कभी जौहर की प्रचलित प्रथा की याद लोगों को आने लगी है। वहीं, 5 राज्यों के आसन्न विधानसभा चुनावों और 2024 के लोकसभा चुनावों में वोटों की फसल काटने के चक्कर में राजनीति बाज नहीं आ रही। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा आतंकवाद के मुद्दे पर इजराइल को भारत के समर्थन की घोषणा के विपरीत कांग्रेस और अनेक विपक्षी दलों ने फिलिस्तीन का समर्थन करने का फैसला किया है और पीएम मोदी की विदेश नीति की निंदा की है।

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इजराइल के वायरल वीडियो चिल्ला-चिल्लाकर आतंकियों की बर्बरता की गवाही दे रहे हैं। किबुत्ज रइम में आयोजित नोवा फेस्टिवल में सैकड़ों युवा जमा थे। सैकड़ों हमास आतंकी हथियारों के साथ सीमा बंदी तोड़ कर खेतों से होते हुए यहां पहुंचे और गोलियां चलानी शुरू कर दीं। कहीं पुरुषों को गोली मारकर, महिलाओं और बच्चों को कैद कर गाजा ले जाते देखा गया। बुजुर्गों को सीधे गोली मारी गई, तो कहीं महिलाओं को दरिंदगी का शिकार बनाया गया। गला तक रेते जाने के वीडियो वाइरल हुए। आतंकियों द्वारा लड़कियों से उनके दोस्तों की लाशों के बीच दुष्कर्म किए गए। बच्चों के खून से सने पालने व कारें और सड़कों पर एक के बाद एक दर्जनों शव देखे गए।

हमास आतंकियों ने दरिंदगी की हदें तब पार कर दीं जब उन्होंने एक महिला के शव को नग्न करके परेड करवायी। जिस महिला का निर्वस्त्र शरीर घुमाया गया, वह जर्मनी की शानी लौक का शरीर था, जो हमले के समय वहां पर पार्टी कर रही थी। आशंका तो यह भी जताई जा रही है कि इजराइल के भीषण जवाबी हमले से त्रस्त हमास बंधक इजराइलियों को जिंदा दफना सकता है।

दूसरी ओर, न्यूज एजेंसी के अनुसार, इजराइल पर 7 अक्तूबर को हुए हमले के दो दिन बाद कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) के प्रस्ताव में कहा गया, “सीडब्ल्यूसी मध्य पूर्व में छिड़े युद्ध पर अपनी निराशा और पीड़ा व्यक्त करती है, जहां पिछले दो दिनों में एक हजार से अधिक लोग मारे गए हैं। सीडब्ल्यूसी फिलिस्तीनी लोगों के भूमि, स्व-शासन और गरिमा और सम्मान के साथ जीने के अधिकारों के लिए अपने दीर्घकालिक समर्थन को दोहराती है। सीडब्ल्यूसी तत्काल युद्धविराम का आह्वान करती है और वर्तमान संघर्ष को जन्म देने वाले अनिवार्य मुद्दों सहित सभी लंबित मुद्दों पर बातचीत शुरू करने का आह्वान करती है।

महबूबा मुफ़्ती और असदुद्दीन ओवैसी जैसे भारतीय राजनेता भी इज़राइली लोगों की मौत पर चुप रहे। इजराइल की जवाबी कार्रवाई के बाद अब वे विक्टिम कार्ड खेल रहे हैं। शिव सेना के संजय राउत ने भी फ़िलिस्तीन के प्रति एकजुटता दिखाई और फ़िलिस्तीन को लेकर पिछली सरकार के फ़ैसलों को याद दिलाने की कोशिश की और वह दिवंगत अटल बिहारी वाजपेई के फ़ैसले का ज़िक्र करना नहीं भूले।

समाजवादी पार्टी के नेता यासर शाह ने एक कदम आगे बढ़ते हुए एक्स पर ट्वीट किया, ”अगर भक्त फिलिस्तीन के खिलाफ सिर्फ इसलिए खड़े हैं क्योंकि वहां मुस्लिम हैं। हम भी फ़िलिस्तीन के साथ सिर्फ़ इसलिए खड़े हैं क्योंकि वहां मुसलमान हैं।” भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के महासचिव सीताराम येचुरी ने कहा, संयुक्त राष्ट्र को फिलिस्तीनियों के वैध अधिकारों को सुनिश्चित करना चाहिए, सभी इजरायली अवैध बस्तियों और फिलिस्तीनी भूमि पर कब्जे को वापस लेना चाहिए और ‘दो राष्ट्र-राज्य’ समाधान को लागू करना चाहिए।

भाजपा सांसद तेजस्वी सूर्या ने ‘एक्स’ पर लिखा, “इजराइल युद्ध पर कांग्रेस का सीडब्ल्यूसी प्रस्ताव इस बात का उत्कृष्ट उदाहरण है कि कैसे भारतीय विदेश नीति कांग्रेस की अल्पसंख्यक वोट बैंक की राजनीति की बंधक थी, जब तक कि मोदी (पीएम) नहीं बन गए।” कांग्रेस पर कटाक्ष करते हुए सूर्या ने आगे कहा, “… अगर हम 2024 में सतर्क नहीं रहे तो चीजें कितनी जल्दी शून्य पर वापस चली जाएंगी, इस बात को याद रखें।” असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने भी कांग्रेस की आलोचना की और पार्टी के बयान को पाकिस्तान और तालिबान की सोच से मिलता जुलता बताया।

झूठ बोले कौआ काटेः

हमास की बर्बरता के वाइरल वीडियोज ने भारत की सदियों पुरानी जौहर प्रथा की याद लोगों को दिला दी है। दरअसल, भारत में आजादी से पहले सदियों से राजघरानों की परंपरा चली आ रही थी लेकिन मुगल, तुर्क, यूनानी घुसपैठियों ने भारत में लूट के उद्देश्य से आक्रमण करना शुरू किया।

भीषण युद्ध होता, सैकड़ों लोग मारे जाते। आक्रमणकारी राजा को हराने या मारने के बाद उनके राज्य पर कब्जा कर लेते थे और राज्य में मौजूद सभी स्त्रियों को अपना गुलाम बनाकर उनका शोषण करते थे। जीत जाने पर हमलावर जब तक रनिवास तक पहुंचते, उससे पहले ही रानियां ज़हर खा कर अपने प्राण त्याग देतीं। इतने खूनी संघर्ष के बाद जब हमलावर रानी और रनिवास की स्त्रियों को मरा हुआ पाता तो गुस्से में पागल होकर रानी के मृत शरीर के साथ क्रूरता की सारी हदें पार करने लगता था। अपने शरीर के साथ ऐसा आचरण न हो, इसके लिए रानियों ने अग्नि कुंड मे जल कर प्राण त्याग देना ही श्रेष्ठ समझा, जिससे नीच हमलावर राजा को उनका मृत शरीर भी प्राप्त न हो सके, मिले तो सिर्फ़ राख। इसी प्रथा को जौहर नाम दिया गया।

जौहर शब्द फारसी शब्द का अरबी अनुवाद है। अरबी में जौहर का अर्थ रत्न, आभूषण और महत्व से है। जौहर करने वाली रानियां विशाल अग्निकुंड में पूरा श्रृंगार कर आत्मदाह करती थीं। अलाउद्दीन खिलजी की बुरी नज़र से बचने के लिए रानी पद्मावती ने 16 हज़ार राजपूत वीरांगनाओं के साथ चित्तौड़ के क़िले मे 1305 ई० में जौहर किया। कहते हैं सन् 1306 ई. में जालौर के दुर्ग में हुए जौहर के साथ जालौर का ऐसा कोई घर नहीं था जिसमें जौहर कुंड न जला हो। रानी पद्मिनी और रानी कर्णावती के नेतृत्व में हुई जौहर की घटनाएं भी इतिहास में दर्ज हैं। आज समझ में आ रहा है कि जीते जी ऐसी मृत्यु का वरण करने के कारण क्या थे?

इजराइल में 7 अक्तूबर के आतंकी हमले ने बर्बरता करने में न जाति देखी न राष्ट्रीयता। उनके लिए सब काफिर ही तो थे, चाहे दुश्मन इजराइली हों, या फिर नेपाली, अमेरिकी, जर्मन, ब्रिटिश हों या कोई और।

बोले तो, फ़िलिस्तीन और इज़राइल के मुद्दे को मुस्लिम समुदाय की भावनाओं से भी जोड़कर देखा जाता है। और इस अंतरराष्ट्रीय संकट के बीच, जब भारत में पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव और बाद में 2024 में लोकसभा चुनाव होंगे, तो आतंकवाद के मुद्दे पर भाजपा, कांग्रेस और ‘इंडिया’ गठबंधन के अन्य दलों के बीच जुबानी जंग शुरू हो गई है। भाजपा ने हमास के हमले की तुलना मुंबई पर 26/11 के आतंकवादी हमलों से की। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि कांग्रेस अपने मुस्लिम वोट बैंक खोने के डर से आतंकी संगठन हमास की खुलकर आलोचना नहीं कर रही है।

दूसरी ओर, राजनीतिक पर्यवेक्षकों के मुताबिक, इजराइल संकट पीएम मोदी और भाजपा के लिए एक बड़ा अवसर लेकर आया है। पीएम मोदी ने भारत का रुख स्पष्ट कर दिया है कि वह किसी भी तरह के आतंक को बर्दाश्त नहीं करेगा। संदेश यह भी साफ है कि मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद भारत आतंकवादी हमलों से सुरक्षित हो गया और सबसे बढ़कर शांति से अपने त्योहार मना रहा है। ट्रेंडिंग हैशटैग ‘भारत इजराइल के साथ खड़ा है’ दिखाता है कि लोग किस तरह से आतंकी मुद्दे को उठा रहे हैं और इसे इस बात के संकेत के रूप में देखा जा सकता है कि 2024 के लोकसभा चुनावों में वोट कैसे बदल सकते हैं।

और ये भी गजबः

हमास का नामोनिशां मिटाने के लिए इजराइल की सैन्य राजनीति कैबिनेट ने हमास के खिलाफ युद्ध की आधिकारिक घोषणा करते हुए लगभग 50 सालों बाद अनुच्छेद 40 एलेफ को लागू कर दिया है। 8 अक्टूबर को इज़रायली राजनीतिक-सुरक्षा कैबिनेट ने 1973 के बाद पहली बार आधिकारिक तौर पर युद्ध की घोषणा करने के लिए अनुच्छेद 40 एलेफ़ को लागू किया। एलेफ़, हिब्रू लिपि का पहला अक्षर है, जो ब्रह्मांड की उत्पत्ति का प्रतीक है।

इसमें कहा गया है, “गाजा पट्टी से एक जानलेवा आतंकवादी हमले में इज़राइल राज्य पर थोपा गया युद्ध कल (शनिवार, 7 अक्टूबर 2023) सुबह 06:00 बजे शुरू हुआ।” अनुच्छेद 40 एलेफ़ का पहली बार उपयोग 1973 में योम किप्पुर युद्ध के दौरान किया गया था, जिसे अक्टूबर युद्ध या रमज़ान युद्ध के रूप में भी जाना जाता है, जो लगभग 19 दिनों तक चला था। इसकी शुरुआत 6 अक्टूबर, 1973 को हुई और 25 अक्टूबर, 1973 को युद्धविराम के साथ समाप्त हुआ।

योम किप्पुर युद्ध एक संघर्ष था जो इज़राइल और मिस्र और सीरिया के नेतृत्व वाले अरब राज्यों के गठबंधन के बीच हुआ था। इसकी शुरुआत यहूदी धर्म के सबसे पवित्र दिन योम किप्पुर से हुई, जो 1973 में इस्लामी पवित्र महीने रमज़ान के 10वें दिन के साथ मेल खाता था। योम किप्पुर के दौरान इजराइल को चुनौती देने में मिस्र और सीरिया का सैन्य जमावड़ा और आत्मविश्वास, यह मानते हुए कि एक आश्चर्यजनक हमले से उन्हें फायदा मिलेगा, कम पड़ गया। दोनों पक्षों के बीच अधिकांश संघर्ष सिनाई प्रायद्वीप और गोलान हाइट्स में हुआ, दोनों पर 1967 में इज़राइल ने कब्ज़ा कर लिया था।