चुनावी माहौल : इंदौर संभाग 37 में से 25 सीटें महंगाई और आदिवासियों पर केंद्रित! 

शहरी और ग्रामीण इलाकों में मुद्दे अलग-अलग, पर दोनों ही निर्णायक!  

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चुनावी माहौल : इंदौर संभाग 37 में से 25 सीटें महंगाई और आदिवासियों पर केंद्रित! 

 

– हेमंत पाल

 

मध्य प्रदेश की राजनीति में इंदौर संभाग की 37 विधानसभा सीटें हमेशा ही महत्वपूर्ण रही हैं। भाजपा और कांग्रेस दोनों ही हर चुनाव में इस क्षेत्र की सीटों पर खासा जोर लगाती है। जिसके हिस्से में यहां की ज्यादा सीटें आती हैं, सत्ता की चाबी उसी के पास जाती है। 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को इंदौर संभाग में 28 सीटें मिली थी, जबकि कांग्रेस 8 सीटों पर सिमटी थी। एक सीट निर्दलीय के खाते में गई थी। लेकिन, 2018 में इस पूरे क्षेत्र की तस्वीर बदल गई। 2008 व 2013 के विधानसभा चुनावों से उलट 2018 में संभाग की 25 विधानसभा सीटें सीधे प्रभावित नजर आई।

पेट्रोल-डीजल के बढ़ते दाम, महंगाई और आदिवासी मुद्दे सत्ताधारी पार्टी के लिए परेशानी बन गए। 8 में से सात जिलों की शहरी सीटों को छोड़कर शेष सीटों पर ये मुद्दे गरमाए रहे। जबकि, 6 शहरी सीट वाले इंदौर शहर में इन तीन मुद्दों के अलावा अन्य स्थानीय मुद्दे असरदार रहे। इंदौर जिले में विधानसभा की कुल 9 सीटें हैं। इनमें 6 सीटें शहरी इलाके में हैं और 3 सीटें ग्रामीण (देपालपुर, सांवेर और महू) हैं।

 

14 सीटों पर किसान निर्णायक

मालवा-निमाड़ में नाराज किसानों को साधने के लिए सरकार ने हरसंभव कोशिशें कर रही है। लेकिन, उपज के दाम, दूध उत्पादकों की स्थिति और किसानों को मिलने वाली सहायता की प्रक्रिया मुद्दा बनी हुई है। संभाग के बड़वाह, महेश्वर, खरगोन, सेंधवा, पानसेमल, सरदारपुर, बदनावर, राऊ, महू, कसरावद, भीकनगांव, बड़वानी, मनावर और धरमपुरी सीटों पर किसान मतदाताओं को साधने में दोनों दल जुटे हैं।

 

शहरी सीटों पर महंगाई मुद्दा

चुनाव के पहले पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों और खाने-पीने के सामान के महंगा होने से भाजपा की मुसीबतें बढ़ गई हैं। शहरी क्षेत्र की विधानसभा सीटें जिन्हें भाजपा अपना वोट बैंक मानती रही है, वहां महंगाई खासी चर्चा है। इंदौर की 6 विधानसभा सीटों के साथ ही धार, खंडवा, बुरहानपुर, बड़वानी आदि सीटों पर पार्टियां इन मुद्दों से जूझ रही है। कार्यक्रमों और चौपालों पर चर्चाओं के दौरान आम जनता दोनों ही दलों के नेताओं को सवालों के कटघरे में खड़ा कर देती है।

 

11 सीटों पर आदिवासियों का प्रभाव

संभाग की 11 सीटें ऐसी हैं जो आदिवासी बहुल होने के साथ-साथ जयस सहित अन्य आदिवासी संगठनों की बढ़ती गतिविधियों से चर्चाओं में है। इन सीटों में अलीराजपुर, जोबट, झाबुआ, पंधाना, भीकनगांव, भगवानपुरा, राजपुर, गंधवानी, कुक्षी, थांदला, पेटलावद सीटों पर अभी तक कांग्रेस और भाजपा के बीच ही मुकाबला होता आया है। पर, 2018 में ‘जयस’ तीसरी शक्ति के रूप में सामने आई!

कांग्रेस ने हवा का रुख भांपते हुए मनावर की सीट ‘जयस’ के संरक्षक डॉ हीरालाल अलावा को सौंप दी, पर इस शर्त पर कि वे कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ेंगे! कांग्रेस प्रयोग सही निकला और डॉ अलावा ने यहाँ जीत दर्ज की। अब 2023 के चुनाव में भाजपा यहां किसी भी तरह अपनी सीटें बढ़ाने के फार्मूले पर काम कर रही है, तो कांग्रेस विरोध की आंच में अपना फायदा देख रही है।

कांग्रेस ने अभी अपने उम्मीदवार घोषित नहीं किए, इसलिए चुनाव के अखाड़े में जोड़ीदार कौन होगा, अभी कहा नहीं जा सकता। लेकिन, इस बार के चुनाव में कोई भी रिस्क लेना नहीं चाहता। 2018 में मध्यप्रदेश की राजनीति में जो हुआ, उसे दोनों पार्टियों ने सबक की तरह लिया है। क्योंकि, हर बार कोई ज्योतिरादित्य सिंधिया पांसा पलट दे, ये जरुरी नहीं! यही वजह है कि कांग्रेस और भाजपा दोनों ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने की जुगत में लगी हैं।

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हेमंत पाल

चार दशक से हिंदी पत्रकारिता से जुड़े हेमंत पाल ने देश के सभी प्रतिष्ठित अख़बारों और पत्रिकाओं में कई विषयों पर अपनी लेखनी चलाई। लेकिन, राजनीति और फिल्म पर लेखन उनके प्रिय विषय हैं। दो दशक से ज्यादा समय तक 'नईदुनिया' में पत्रकारिता की, लम्बे समय तक 'चुनाव डेस्क' के प्रभारी रहे। वे 'जनसत्ता' (मुंबई) में भी रहे और सभी संस्करणों के लिए फिल्म/टीवी पेज के प्रभारी के रूप में काम किया। फ़िलहाल 'सुबह सवेरे' इंदौर संस्करण के स्थानीय संपादक हैं।

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