कहानी : “अब नहीं करना आराम मुझे!”

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“अब नहीं करना आराम मुझे!”

रीता दास राम

बिलखती, तड़पती, टीसते दर्द को सहन करती रेणुका अपने आँसू को रोकने की कई बार कोशिश करती रही पर वह विफल थी। तीन दिनों पहले बीता हादसा जो अब गुजर चुका था वह उसे बार बार जी रही थी। वह उसे पुनः पुनः याद करती और वह समय उतनी ही पीड़ा के साथ उसके भीतर फिर गुजरता। वह भीतर ही भीतर टुकड़े-टुकड़े होती, टूटती बिखरती चली जा रही थी। पूरी आत्मीयता से जिसे अपने भीतर महसूस किया, जीया, हर पल का अनुभव इतनी जल्दी जीवन से कैसे रिक्त कर दें। सोचते-सोचते वह बेसुध हो जाती। कभी सुध-बुध खो शून्य में घूरती रहती। समझ ही न आता क्या .. कैसे .. समझाए खुद को।

रेणुका को अपने ऑफिस से पूरे एक हफ्ते की छुट्टी मिली है कि वह आराम कर सके। ठीक होकर फिर ऑफिस आए। पर आराम करने के लिए भी घर में रहना होगा। पूरा दिन बिताना होगा। वह तो पल पल भारी होता महसूस कर रही है। घर में रहना उसके लिए असहनीय होने लगा और वह तीन दिन के बाद ही ऑफिस जाने के लिए तैयार हो गई।

…     रेणुका एक प्राइवेट कंपनी में मेडिकल कोडर है। वह और उसके पति दोनों ही नौकरी करते हैं। पति भी एक कंपनी के अकाउंट सेक्शन में कार्यरत हैं। मध्यमवर्गीय घर में पले-बढ़े रेणुका और साहिल अपनी छोटी सी तनख्वाह को सहेजते जीवन की खुशियों को समेटने की कोशिश कर रहे हैं। दोनों ने कोई बहुत बड़े सपने नहीं पाले। दोनों अपनी मेहनत की कमाई से अपना छोटा सा घर खरीदना चाहते हैं। बैंक लोन, किश्तें, हर महीने का खर्च, छोटे-छोटे शौक-मौज, दवा-दारू, मेहमान और भविष्य में आने वाला नया मेहमान सभी का हिसाब लगा लिया था उन्होंने। तय था कि पूरी ईमानदारी से कंजूसी ना करते हुए भी वे अपने खर्चे निकाल ही लेंगे। सब ठीक चल रहा था। उन्होंने घर की बुकिंग की। दोनों अपनी छोटी सी दुनिया में खुश थे।

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रेणुका शादी के दूसरे साल से ही बच्चे की खुशी का इंतजार करने लगी थी। घर की इच्छा भी पूरी हो ही चुकी थी। पति-पत्नी दोनों मिलकर किश्त भर रहे थे। सब कुछ मन मुताबिक ही चल रहा था। इसी बीच ईश्वर ने उसे गर्भवती होने की खुशी देना भी स्वीकारा। साहिल और रेणुका बेसब्री से उसका के आने का इंतजार कर रहे थे। लगभग तीसरा महीना पूरा हो ही चुका था। रेणुका रोज ऑफिस जाती और अपना काम पूरा होते घर लौट आती। कंपनी की पीक-अप टैक्सी उसे घर छोड़ने आती। कंपनी ने नई पॉलिसी शुरू की जिसका फायदा रेणुका को मिल रहा था कि प्रेग्नेंट वुमन को कंपनी की प्राइवेट टैक्सी लाएगी और घर छोड़ने भी जाएगी। रेणुका आराम से ऑफिस आने-जाने लगी।

सुबह सुबह जल्दी उठ जाती। काम धीरे धीरे निपटाती। हड़बड़ी उसकी सेहत के लिए ठीक नहीं थी। साहिल भी उसका हाथ बटाता। कभी बर्तन माँज देता। कभी पानी भर देता। वह कपड़े धोती तो कपड़े सुखाता। खाना बनाती तो सब्जी काट देता। रोटी के लिए आटा तो वह रेणुका को गूँदने ही नहीं देता। कहता ‘जोर पड़ेगा’ और वह मुस्कुराकर मान जाती। हल्के काम निपटाया करती। भारी कामों के लिए खुद ही साहिल को आवाज देती। साहिल भी उसकी पुकार सुनते ही दौड़ा चला आता। चाहे कोई भी काम कर रहा हो वह सब छोड़-छाड़ कर उसकी मदद करने आता। रेणुका भी अपना पूरा ख्याल रखती। टाइम पर खाना खाती। सब्जी, फल, दूध, दवाई किसी को नहीं भूलती। उसे हर पल लगता कि वह अपने बच्चे को सहेज रही है। इस दुनिया में आने के लायक बना रही है।

ऑफिस उसके घर से 15-20 किलोमीटर की दूरी पर था। ट्रेफिक की वजह से घंटे डेढ़-दो घंटे उसे घर पहुँचने और उतना ही समय उसे वापस घर आने में लग जाते। ऑफिस के सभी लोग भी उसे हर पल मदद करते। पहले दो महीने उसे उलटी की शिकायत हमेशा रहने लगी थी। कुछ भी खाती तो उल्टी का सेन्सेशन होता। कभी तो खाते-खाते ही भागकर बाथरूम चली जाती। वहाँ से आती तो खाना खाने का मन ही उतर जाता। स्वाद बदलने के लिए वह अक्सर कुछ खट्टी-मीठी टॉफी साथ में रखा करती। कभी अपने हाथ का खाना खाने का मन नहीं करता तो दोस्तों के टिफिन से खा लेती। दो कौर खाती और बस उसका खाना हो जाता। हर बार डरती कि कहीं एक और निवाला खाया तो सारा बाहर ना निकल आए। कभी कभी तो पूरा खाना अच्छे से खा लेती और ठीक पाँच मिनट बाद पूरा का पूरा उल्टी से बाहर। वह निढाल होकर बैठ जाती। कई बार उसके सहयोगी उसे छुट्टी लेकर घर जाने कहते पर वह ना जा पाती, सोचती ऐसा कितने दिन तक छुट्टी लेती रहेगी। उसे तो पूरे नौ महीने तक यह सबकुछ सहना है। तब जाकर एक नन्हें से प्यारे कोमल स्पर्श को वह हाथों में ले सकेगी जो सिर्फ और सिर्फ उसका होगा। वह ख्यालों में गुम हो जाती और सभी उसे उसके टेबल पर छोड़कर अपने-अपने काम में जुट जाते।

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रेणुका खुद को संभालती। कंप्यूटर पर अपने चार्ट डी कोड करने लगती। कभी-कभी चार्ट की संख्या तीन सौ से ज्यादा होती। ईज़ी वाले चार्ट वह तुरंत निपटा लेती। लेकिन हार्ड वाले चार्ट को करने में उसे समय लगता। वह धीरे-धीरे अपना काम निपटाती बैठी रहती। कभी-कभी सब चले जाते। जाते-जाते उसे हिम्मत देते कि आराम से काम पूरा कर लो फिर जाना। उसकी इमीजिएट बॉस प्रियंका ऑफिस में तब तक रहती जब तक वह घर नहीं चली जाती। चूँकि वह सबसे आखिर तक चार्ट कंप्लीट करते बैठी रहती है तो उस पर अतिरिक्त काम का बोझ भी बढ़ता रहता। सभी के चले जाने के बाद बॉस सभी के चार्ट पूरे हुए या नहीं यह चैक करती। कभी कुछ किसी का छुट गया हो तो खुद निपटाती या रेणुका को कहती कि कुछ चार्ट छुट गए है तो कर दो। दो चार चार्ट हो तो रेणुका को भी कोई परेशानी नहीं होती। रेणुका चाहती कि अगर चार्ट गलती से किसी से छूट गए हैं तो बॉस दूसरे दिन उन्हें करने दे जिसके चार्ट छूटे हैं। परंतु हर दिन का टारगेट हर दिन निपटाने के चक्कर में रेणुका पर बोझ बढ़ने लगता। सभी को हिदायत दी जाती कि खुद अच्छे से चैक करें चार्ट ना छोड़े पर दिन ढलते-ढलते शाम को जैसे सभी को घर भागने की जल्दी रहती और रेणुका फंस जाती। एक दिन, दो दिन करते रेणुका की हालत खराब होने लगी। ऐसा करते-करते हफ्ते हो गए। रेणुका ने बॉस से शिकायत की। बॉस पहले तो प्यार से काम खत्म करने की बात कह कर उसे मना लेती थी। धीरे-धीरे बॉस और उसके बीच तनाव बढ़ने लगा। बॉस दूसरे के काम का तनाव तो रेणुका को दे ही रही थी फिर उसके खुद के काम में जान बुझ कर गलतियाँ निकालने लगी। कोई-कोई चार्ट बिना गलती के उसे दोबारा चैक करने लगाती। अक्सर ऐसा करते रेणुका रूँआसी हो जाती।

रेणुका ने अपने अन्य सहयोगियों से इस बारे में चर्चा की। कोई बॉस को गलत ठहराता, कोई उसकी शिकायत ऊपर तक पहुंचाने की बात करता। सभी प्रियंका के साथ हुआ अपना अपना अनुभव शेयर करते। कोई उसे खूसट कहता। कोई आलसी। जो अपने हिस्से का काम भी रेणुका पर लाद रही थी। विनीत ने सलाह दी,

“तुम अपना काम खत्म कर जल्दी निकल जाया करो, लेट तक क्यों बैठती हो?”

“क्या करूँ विनीत, मुझे उतना ही समय हो जाता है मैंने बहुत कोशिश करती हूँ हर बार। कोई हाफ डे की छुट्टी भी ले तो अंत में काम मेरे जिम्मे आता है और मुझे ही सहन करना पड़ता है।”

“तुम कुछ दिन की छुट्टी क्यों नहीं ले लेती?”

“छुट्टी तो उस दिन के लिए बचा रही हूँ जब मुझे आगे ज्यादा जरूरत पड़ेगी।”

“हाँ, बिलकुल। तुम्हें देख कर समझ रहा हूँ प्रेग्नेंट वूमेन को काम करना वाकई कितना मुश्किल है।”

“मुश्किल !…. चैलेंज है।”

“सही कह रही हो”

“फिर भी विनीत मैंने कितनी लेडिस को नौ महीने नौकरी करते देखा है और डिलीवरी के बाद बहुत जल्द काम पर वापस आते भी।”

“हाँ, पर सभी की स्थिति एक सी नहीं होती ना … !”

“सही कह रहे हो विनीत। मैंने तो सुना है प्रेग्नेंट वुमेन को नौकरी से हटा देने की साजिश भी रची जाती है।”

“सही कह रही हो … तरह तरह से उन्हें घेरे में लिया जाता है ताकि वे खुद ही काम छोड़ दें।”

“पर ऐसे कोई क्यों जॉब छोड़ दे भला ? आखिर इतना मजबूर करने का क्या कारण हो सकता है … ”

“कंपनी को उसकी सिक्युरिटी, डिलीवरी लीव, और कुछ सहूलियतें जो देनी पड़ती है, ऊपर से पेमेंट भी।”

“इसका मतलब तो यह हुआ कि पुरुष कर्मचारी ही काम के लिए सही है या बड़ी उम्र की महिलायें …. यह तो कोई बात ना हुईं !! आखिर युवा महिला पीढ़ी कहाँ जाए ?…. उनके साथ तो यह चीज़े रहेगी ही …. तो क्या वे सिर्फ प्रेग्नेंसी के कारण ‘अलिजेबल नहीं’ की केटिगरी में आ जाएगी …. “व्हाट अ बुल शीट”

“शांत हो जाओ रेणुका। इतनी भी स्थिति खराब नहीं। आजकल बहुत परिवर्तन हो रहे हैं। हो सकता है कंपनी में प्रेग्नेंट महिलाओं के लिए नए रूल रेगुलेशन या जाए”

“बिलकुल आने ही चाहिए” रेणुका ने कहा।

“रेणुका, तुम्हें प्रियंका ढूँढ रही है।” कैंटिन के अंदर आती हुईं रिया ने विनीत से बात करती रेणुका को देखा और कहा।

“क्या हुआ रिया ?… क्या खास कुछ पूछा तुमसे मेरे बारे में … ?”

“नहीं, खास तो कुछ नहीं। …. ‘रेणुका को देखा क्या?’ … बस यही पूछा प्रियंका ने।”

“जाओ रेणुका। पूछ लो क्या बात है … वरना बहाने मिल जाएंगे सुनाने के … ” विनीत ने कहा और अपने टेबल की ओर चला गया।

“हाँ हाँ, मिलती हूँ विनीत। …. थैंक्स रिया।” कहती रेणुका धीरे से उठी और प्रियंका के केबिन की ओर चल पड़ी। वह सोचने लगी कि शाम के अतिरिक्त काम को किस तरह टाले ताकि अन्यों के काम का बोझ उस पर ना आए।

“मे आय कम इन … ”

“रेणुका …. मैं तुम्हें ही ढूँढ रही थी। अच्छा हुआ तुम या गई। आज मुझे तुमसे कुछ मदद चाहिए … ” प्रियंका के यह कहते ही रेणुका का चेहरा उतर गया।

“क्या हुआ ?” रेणुका ने कुछ ठहर कर पूछा।

“कुछ खास नहीं। आज मैं घर जल्दी निकल रही हूँ। तुम सबके बाद जाती हो तो एक बार सभी से कह देना की अपना काम पूरा खत्म करके जाए।” प्रियंका के यह कहते ही पहली बार रेणुका के चेहरे पर मुस्कान आई कि आज कोई उसके पीछे किच-किच करने वाला नहीं होगा।

“जी ठीक है। आप निश्चिंत हो कर जाएँ। मैं ऑफिस टाइम के आधा घंटा पहले सभी से कह दूँगी।” कहकर रेणुका अपने टेबल पर आ गई। शाम उसे काफी रिलेक्स लगा। उसने समय से अपना काम निपटाया और कंपनी टैक्सी से घर आ गई। घर आने के एक घंटे बाद ही प्रियंका का कॉल आया। सभी के नाम लेकर पूछने लगी कि किसने कितना काम किया। रेणुका इस जानकारी से अनभिज्ञ थी सो उसने अनभिज्ञता जताई। परेशानी भरे लफ्जों के साथ फोन कट गया। रेणुका पूरी रात तरह-तरह के विचारों से जूझती रही कि कल जाने कैसे-कैसे सिचवेशन को फ़ेस करना पड़ेगा।

दूसरे दिन तय समय पर उठकर रेणुका ने अपने घरेलू काम निपटाए और ऑफिस जाने के लिए तैयार हुईं। तैयार होते-होते उसे चक्कर आने लगे और वह वहीं बैठ गई। थोड़ी देर आराम कर, उसने जूस लिया। कुछ अंगूर खाए और फिर निकलने ही वाली थी कि बाथरूम की ओर मुड़ गई। उसकी वोमिटिंग देख साहिल परेशान हो गया।

“आज ऑफिस मत जाओ डियर।”

“जाना ही होगा यार। वरना प्रियंका की नाहक ही नाराजगी सहन करनी पड़ेगी। …  पर ये चक्कर उफ्फ़ !… यह तो रुके … !” रेणुका सर पकड़कर वहीं स्टूल में बैठ गई। साहिल ने उसे सहारा देकर बेड तक पहुंचाया और उसे लिटा दिया। बाहर खड़ी कंपनी की टैक्सी को उसने जाने के लिए कहा और भीतर रेणुका के पास आकर बैठ गया।

“थोड़ा सो जाओ तुम। … तुम जब बेटर फ़ील करोगी मैं तभी ऑफिस के लिए निकालूँगा। ठीक है। … अब तुम निश्चिंत होकर सो जाओ।” रेणुका के सर को सहलाता साहिल बिना आवाज के न्यूज़ चैनल देखने लगा। साथ ही वह ऑफिस से आते व्हाटसप मेसेज को ध्यान से पढ़ने लगा। उसने व्हाटस्प मेसेज देकर ही अपने बॉस को अपनी स्थिति बयान की ताकि रेणुका डिस्टर्ब ना हो। आधा घंटे सो कर उठने के बाद रेणुका ठीक थी।

दोनों तैयार होकर निकल पड़े। साहिल रेणुका को ऑफिस ड्रॉप कर आगे निकल गया। लेट ऑफिस पहुँचने की सजा तो मिलनी ही थी। रेणुका, प्रियंका के केबिन में गई। अपने लेट आने का कारण बताया। प्रियंका ने उसे सुना। कुछ नहीं कहा। रेणुका अपने टेबल पर आकर अपना काम करने लगी। लंच ब्रेक में भी रेणुका अपने काम में लगी रही। बस अपने टेबल पर चाय बिस्किट मँगवा लिया। उसकी तो जैसे भूख ही मर गई थी। वह आज टाइम पर घर के लिए निकलना चाहती थी ताकि घर जाकर आराम कर सके। पाँच बजे ऑफिस छूटने का समय है। वह रोज साढ़े पाँच तक बैठी रहती। आज वह समय पर अपनी जगह से उठी। वाशरूम से फ्रेश होकर आई। देखा आधे लोग निकल चुके है। बचे हुए भी डोर से बाहर जा रहे हैं। उसने अपना बैग उठाया ही था कि पीछे से आवाज आई।

“रेणुका !!” प्रियंका ने आवाज दी।

“जी कहें … ”

“कहाँ जा रही हो ? आज तुम पहले ही इतनी लेट आई हो और इतनी जल्दी जा रही हो ? कुछ और चार्ट कर लो। यह टारगेट करो उसके बाद चली जाना।”

“पर मैंने तो अपने सभी चार्ट पूरे खत्म कर दिए। कुछ बचा नहीं है। तभी मैं उठी हूँ। आज लेट आई हूँ इसलिए लंच ब्रेक भी नहीं लिया ताकि घर जल्द जाकर आराम कर सकूँ … आप जानती तो है मेरी हालत।”

“सभी इसी तरह अपनी-अपनी तकलीफें बताता रहेगा तो मैं क्या कर सकती हूँ। सबकी कोई ना कोई प्रॉब्लेम है। कोई बीमार है किसी के घर शादी है। किसी को पैरेंट्स को लेकर हॉस्पिटल जाना है। किसी को कहीं और तो किसी को और कहीं … ”

“पर आज मेरी सेहत ठीक नहीं है …. आपको बताया था मैंने !”

“…. तुम्हें अभी 75 चार्ट निपटाने होंगे। अभी। मैं कुछ नहीं जानती।” कहती प्रियंका तेजी से अपने कैबिन की ओर चली गई। थकी-हारी रेणुका वापस अपने टेबल पर गई और काम करने लगी। कुछ देर वह काम करती फिर उठकर घूमने लगती। उसे असहनीय तकलीफ होने लगी। उसे लगा बस थोड़े ही देर बाद वह घर चली जाएगी। चार- पाँच बार उठकर वह टहलती रही। फिर काम में लग जाती। उसे डेढ़ घंटे लेट हो गए घर पहुँचने में। दिन भर चक्कर आते रहे। कई दिनों से खाना भी मुश्किल से खा पा रही थी। घर पहुँचते ही ही वह बेड पर पड़ते ही बेहोश हो गई।

उसकी आँख खुली जब साहिल ने उसके मुँह पर पानी के छींटे मारे और उसे जगाया। साहिल पहले ही घर आ चुका था। अपनी हालत देख कर वह कांप कर रह गई। कमर के नीचे बेड लाल हो चुका था। खून बह रहा था। साहिल हैरान परेशान सा उसे देखे जा रहा था। वह अपना बच्चा खो चुकी थी। घुटी हुईं एक दर्दनाक चीख मार कर वह पुनः बेहोश हो गई। साहिल ने एम्बुलेंस बुलाया। पड़ोसन आँटी की मदद से साहिल रेणुका को हॉस्पिटल ले गया। जिसे जाना था वह तो जा चुका था पर रेणुका … अब भी बेहोश थी। डॉक्टर ने उसे तेजी से ऑपरेशन थियेटर के अंदर लिया। आँटी और साहिल वेट करते रहे।

“ज्यादा स्ट्रेस, फिजिकल वर्क और कमजोरी से बच्चा नहीं रहा। आप इनके … ”

“जी, मैं रेणुका का हसबैन्ड … ”

“आपको इनका बहुत ख्याल रखना होगा। कल छुट्टी मिल जाएगी पर घर में बेड रेस्ट। वन वीक नो जॉब, नथिंग … ओके ?”

“येस डॉक्टर ” साहिल ने हामी भरी और डॉक्टर दूसरे पेशेंट को देखने चली गई। नर्स ने दवाइयों की लिस्ट पकड़ाई और लाने के लिए मेडिकल स्टोर की ओर इशारा किया। दूसरे दिन रेणुका हॉस्पिटल से घर आई। रेणुका के ऑफिस में साहिल ने पहले ही खबर कर दी थी। फोन प्रियंका का ही आया था जो साहिल ने उठाया। रेणुका के साथ हुआ हादसे को सुनकर वह अवाक हो सॉरी ही कह पाई थी कि साहिल को फोन काटना पड़ा डॉक्टर जो सामने खड़े थे।

आज रेणुका को घर में छोड़ पड़ोस की आँटी को बता कर साहिल ऑफिस के लिए निकले। रेणुका अब ठीक है। दवाइयों ने असर दिखाया। दिन भर घर में वह छत ताकती रही। आँटी कुछ देर उसके पास आकर बैठी, बतियाती रही फिर उठकर उसे आराम करने के लिए कहकर चली गई। पूरा दिन रेणुका का घर में मन ना लगा। उसने ना चाहते हुए भी फोन खोलकर देखा। प्रियंका का लंबा सा सॉरी नोट उसके आँख के सामने था। उसका मन किया मोबाइल को खींच कर दीवार पर दे मारे और वह बुक्का फाड़ का रो पड़ी। उसके रोने की आवाज सुनकर पड़ोस की आँटी भागती हुईं आई। दौड़ कर उसे सीने से लगाया और रोते रहने दिया। कुछ समय बाद रुलाई सिसकियों में बदलती गई। आँटी साहिल के घर आते तक बैठी रही।

रेणुका की सूनी-सूनी निगाहें कभी साहिल को देखती, कभी घर को, कभी अपने ऑफिस बैग को … फट पड़ी रेणुका।

“नहीं चाहिए आराम … अब क्यों करना है आराम … जब जरूरत थी तब तो नहीं मिला … अब नहीं करना आराम मुझे। कल जा रही हूँ ऑफिस। नहीं रोकोगे तुम मुझे। नहीं रहना घर में। ये घर, चार दीवारें काटने को दौड़ती है। यह खाली समय चुभता है। नहीं रह सकती मैं …. कल से ऑफिस जा रही हूँ।” रेणुका ने फैसला लेकर भावावेश और रोष में कहा। साहिल ने सहानुभूति भरा हाथ उसके कंधे पर रखा ही था कि कोमलता से बिलखने लगी रेणुका।

“जैसी तुम्हारी मर्जी जान !… बस अपनी सेहत पर भारी मत पड़ने देना।” रेणुका ने साहिल को आँखों के इशारे से ‘हाँ’ कहा और दोनों ने रात का खाना साथ खाया।

सुबह साहिल ने उसे पूरे एहतियात के साथ ऑफिस छोड़ा यह कहते हुए कि “तुम चाहो तो यह जॉब छोड़ सकती हो”। रेणुका ऑफिस की सीढ़ियाँ चढ़ी इस निश्चय के साथ कि “अब तो यह जॉब नहीं छोड़ना मुझे।” प्रियंका खुद रेणुका के टेबल पर आई। हाथ पकड़कर गिड़गिड़ाते हुए रेणुका से माफ़ी माँगी और उसे घर जाकर आराम करने कहा।

प्रियंका को गहरी आँखों से देख रेणुका मन ही मन सोचने पर मजबूर हुईं कि ‘तुम्हारे माफी मांगने से किसी की गई हुईं जान तो वापस नहीं आ जाएगी ना!’ और आहिस्ते से ठंडे अंदाज में प्रियंका को मना किया और अपने काम पर लग गई।

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– रीता दास राम

नाम :- डॉ. रीता दास राम संप्रति : कवयित्री/ लेखिका
शिक्षा : एम.ए., एम फिल, पी.एच.डी. (हिन्दी) मुंबई विश्वविद्यालय, मुंबई.
जन्म :- 1968 नागपूर. वर्तमान आवास : मुंबई
पता :- 34/603, एच॰ पी॰ नगर पूर्व, वासीनाका, चेंबूर, मुंबई – 400074.
मो॰ न॰ – 09619209272. ई मेल :- [email protected]
कविता संग्रह :-
1. “तृष्णा” प्रथम कविता संग्रह 2012.
2. “गीली मिट्टी के रूपाकार” दूसरा काव्यसंग्रह 2016 में प्रकाशित।
कहानी संग्रह :-
1. “समय जो रुकता नहीं” 2021.

सम्मान :-
1. ‘शब्द प्रवाह साहित्य सम्मान’ 2013, तृतीय स्थान ‘तृष्णा’ को उज्जैन।
2. ‘अभिव्यक्ति गौरव सम्मान’ – 2016 नागदा में ‘अभिव्यक्ति विचार मंच’
नागदा की ओर से 2015-16।
3. ‘हेमंत स्मृति सम्मान’ 2017 गुजरात विश्वविद्यालय अहमदाबाद में
‘गीली मिट्टी के रूपाकार’ को ‘हेमंत फाउंडेशन’ की ओर से।
4. ‘शब्द मधुकर सम्मान-2018’ मधुकर शोध संस्थान दतिया, मध्यप्रदेश,
द्वारा ‘गीली मिट्टी के रूपाकार’ को राष्ट्र स्तरीय सम्मान।
5. साहित्य के लिए ‘आचार्य लक्ष्मीकांत मिश्र राष्ट्रीय सम्मान’ 2019, मुंगेर,
बिहार से।
6. ‘हिंदी अकादमी, मुंबई’ द्वारा ‘महिला रचनाकार सम्मान’ 2021 की
घोषणा।