Geeta Distribution Campaign : खुद के पैसे से गीता बांटने का ऋषि कर्म करने वाला शिक्षक!
रुड़की से कर्मयोगी की रिपोर्ट
Rudhki (Uttarakhand) : यहां के एक शिक्षक ने श्रीमद्भागवत गीता वितरित करने का अभियान चला रखा है। ये शिक्षक उस अभिनव अभियान से स्व प्रेरणा से शामिल हुए हैं। वे खुद गीता खरीदकर उसे पहुंचाने में जुटे हैं। शिक्षक के गुरुतर दायित्व के अलावा वे हर साल अपनी आय में से करीब सवा लाख रुपए की श्रीमद्भागवत गीता लेकर उसे नि:शुल्क वितरित करने के काम में सक्रिय हैं। उनका मानना है कि गीता हमें जीवन व मृत्यु के यथार्थ का बोध कराती है।
श्रीमद्भागवत गीता को जितनी बार पढ़ा जाए जीवन दर्शन की समझ उतनी ही समृद्ध होती है। हमने गीता को शपथ लेने और आस्था का विषय तो बनाया, लेकिन सही मायनों में उसके मर्म का अंगीकार नहीं किया। सिर्फ उसे ईश्वरीय वाणी का दर्जा दिया। विद्वानों का मानना है कि गीता में वेद व उपनिषदों का सार है। ताकि साधारण व्यक्ति संस्कृत भाषा की रचना होने के कारण इस उच्च कोटि के ज्ञान से वंचित न रह जाये। देश-दुनिया में लाखों लोग निरंतर जीवनोपयोगी ज्ञान के अध्ययन-मनन से जुटे हैं।
प्रवीण कुमार रुड़की के निकट हरिद्वार जनपद के राजकीय पूर्व माध्यमिक विद्यालय, बेहड़की, इकबालपुर में शिक्षक हैं। शिक्षिका मां के पुत्र प्रवीण को घर में बचपन से धार्मिक वातावरण मिला। फिर वे भारतीय संस्कृति-जीवन संवर्धन से जुड़े संगठनों मसलन योगदा सोसाइटी, संस्कार भारती आदि में सक्रिय हुए। इससे उन्हें लगा कि आज भौतिक जीवन की जद्दोजहद में जुटे लोग देववाणी गीता के व्यावहारिक लाभ से वंचित हो रहे हैं, तो उन्होंने इसे घर-घर पहुंचाने का मन बनाया। उन्होंने फैसला किया कि वे अपनी आय से करीब सवा लाख रुपए की भगवद्गीता को गीता प्रेस से खरीदकर जन-जन को इसकी महिमा से परिचित कराएंगे।
आध्यात्मिक रुझान के प्रवीण को कॉलेज में पढ़ाई के दौरान स्वामी विवेकानंद के शिकागो संबोधन के सौ साल पूरे होने पर हुए विशेष कार्यक्रम से जुड़ने का अवसर मिला। उनका साहित्य पढ़ा और राजयोग-कर्मयोग आदि का अध्ययन-मनन किया। अध्यात्म की ओर गंभीरता बढ़ी। आध्यात्मिक गुरु वीके आनंद के सान्निध्य में यह दृष्टि और समृद्ध हुई। फिर हरिद्वार में योगदा सोसाइटी के अंतर्गत केशवाश्रम से जुड़ने का मौका मिला। योगदा सोसाइटी में सपत्नीक दीक्षा ली। ओशो, श्रीश्री रविशंकर के अभियान से जुड़ने के साथ तमाम धार्मिक यात्राएं की और गीता ज्ञान के प्रति अगाध श्रद्धा उत्पन्न हुई।
आपदा में अवसर की धारणा के चलते कोरोना महामारी के दौरान स्कूल व सामाजिक जीवन से दूर रहने को अवसर बनाते हुए उन्होंने गीता का गहन-विशद् अध्ययन किया। फिर इस अद्भुत ज्ञान का अंगीकार करके इसे जन-जन तक पहुंचाने का संकल्प लिया। गीता बांटने का यह ऋषिकर्म जुलाई 2021 में शुरू हुआ। सबसे पहले उन्होंने इसके लिए एक लाख दस हजार रुपए निकाले। फिर उनका जन्म दिन आया तो उनकी प्रोफेसर पत्नी डॉ़ प्रीति अग्रवाल ने इस पुनीत कार्य के लिए उन्हें एक लाख रुपए दिये। इस अभियान को गति देने के लिए अमेरिका में उनके रिश्तेदार रवि ने एक लाख बीस हजार का योगदान दिया। हाथ में एक पूंजी आने के बाद उन्होंने इस अभियान को तेज करने का निर्णय लिया। यहां तक कि प्रवीण ज्योतिष कार्य से जो आय होती है, वह भी इसी काम में लगा देते हैं।
अपने इस अभियान में डॉ प्रवीण गीता बांटने के लिये सार्वजनिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक,धार्मिक व खेल प्रतियोगताओं के दौरान अवसर तलाशते हैं। कुछ गीता स्टाल में रख देते हैं और कोई भी स्वेच्छा से नि:शुल्क ले जा सकता है। एक क्रिकेट टूर्नामेंट का आयोजन हुआ तो गीता की आठ सौ प्रतियां वहां वितरित की। वे विभिन्न स्कूलों में मेधावी छात्रों को अधिक नंबर आने तथा पाठ्य सहगामी क्रियाओं में जीतने वाले विद्यार्थियों को गीता सम्मान चिन्ह के रूप में वितरित करते हैं। प्रवीण बताते हैं कि वे लोगों को गीता के महत्व से अवगत कराते हैं। उन्हें जीवन में सुख-दुख के बंधन से मुक्त होने की राह गीता के जरिये बताते हैं। मृत्यु जीवन का सत्य है। जिससे हर व्यक्ति भयभीत रहता है। गीता हमें बताती है कि हम इस भय से मुक्त होकर कैसे निर्भय जीवन जी सकते हैं।