Election Fever : Rau Seat अभी तक यहां से जो भी जीता ‘जीतू’ ही जीता!

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Election Fever : Rau Seat अभी तक यहां से जो भी जीता ‘जीतू’ ही जीता!

हेमंत पाल का राजनीतिक विश्लेषण

विधानसभा क्षेत्रों के परिसीमन के बाद 2008 से वजूद में आई इंदौर शहर की राऊ विधानसभा सीट पर पहला चुनाव भाजपा नेता जीतू जिराती ने जीता था। तब उन्होंने निकटतम प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस उम्मीदवार जीतू पटवारी को 3,821 मतों के अंतर से हराकर इस सीट से पहला विधायक चुने जाने की उपलब्धि हासिल की। इसके बाद 2013 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के जीतू पटवारी ने भाजपा के जीतू जिराती को 18,559 मतों से हराकर पुराना हिसाब चुकता कर दिया। राऊ सीट के मतदाताओं ने तीसरी बार (2018) में हुए चुनाव में फिर जीतू पटवारी को जिताया।

दिलचस्प तथ्य यह कि तीनों चुनाव में ‘जीतू’ ने ही जीत का झंडा फहराया। जीतू पटवारी और जीतू जिराती में समानता यह भी है कि दोनों के पिताओं का पहला नाम भी रमेशचंद्र है। यही नहीं, अलग-अलग पार्टियों के दोनों ही नेता उस खाती समुदाय से ताल्लुक रखते हैं, जिसके मतदाता राऊ विधानसभा क्षेत्र में किसी भी उम्मीदवार की चुनावी हार-जीत तय करने में बड़ी भूमिका निभाते हैं।

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इंदौर की राऊ विधानसभा सीट के मतदाताओं ने ‘जीतू’ नाम के उम्मीदवार को ही जिताने में दिलचस्पी दिखाई। यह चुनावी इतिहास लगातार तीन बार दोहराया। मध्यप्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष जीतू पटवारी ने इस सीट पर 2018 में वरिष्ठ भाजपा नेता मधु वर्मा को नजदीकी अंतर से हराया था।उतार-चढ़ाव भरे चुनावी मुकाबले में पटवारी ने 1,07,740 मत हासिल किये, जबकि वर्मा के हिस्से में 1,02,037 वोट आए थे। इस सीट पर 2,475 मतदाताओं ने नोटा के विकल्प का इस्तेमाल किया, यानी उन्होंने इस सीट से चुनाव लड़ने वाले कुल 10 उम्मीदवारों में से किसी को भी अपने मत के योग्य नहीं माना।

इस सीट से पिछला चुनाव कांग्रेस ने जीता और जीतू पटवारी विधायक बनने के बाद कमलनाथ सरकार में मंत्री भी बने। इसलिए तय था कि पार्टी उन्हें फिर से टिकट देकर मैदान में उतारेगी और वही हुआ भी! उनका मुकाबला पिछली बार के उम्मीदवार भाजपा के मधु वर्मा से है। जबकि, पहले माना जा रहा था कि इस बार भाजपा फिर जीतू जिराती या फिर किसी और को मौका देगी। लेकिन, भाजपा ने 39 उम्मीदवारों वाली अपनी पहली लिस्ट में ही मधु वर्मा को मौका देकर सबको चौंका दिया था। पिछला चुनाव हारे मधु वर्मा पर उम्र का तकाजा और इलाके पर उनकी पकड़ कमजोर असर करती दिखाई दे रही है।