नीलकंठ हैं शिव,जहर पचाते हैं, हारते नहीं

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नीलकंठ हैं शिव,जहर पचाते हैं, हारते नहीं

रमण रावल

कमोबेश पिछले एक साल से मध्यप्रदेश के राजनीतिक बीहड़ में एक जुमला पूरे कर्कश स्वर में गूंजता रहा कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले हटा दिया जायेगा याने चुनाव नये चेहरे के साथ लड़ा जायेगा। संयोग देखिये कि चुनाव संपन्न भी हो गये और वैसा कुछ नहीं हुआ। क्यों ? क्योंकि मप्र के मानस पटल पर कम-अस-कम भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को उनके जैसा या उनसे बेहतर कोई चेहरा नहीं मिला। ये भी संभावना हो सकती है कि ऐसा भाजपा के स्तर पर सोचा ही नही गया हो, लेकिन प्रयास पूर्वक प्रचारित किया जाता रहा कि उनकी बिदाई की जा रही है । इस भूलभूलैया में विपक्ष,समाचार माध्यम,कथित बुद्धिजीवी वर्ग विचरण करता रहा, किंतु निकास द्वार कहीं था ही नहीं, जो नजर आता। उधर, भाजपा नेतृत्व चुनाव की रणनीति बनाता रहा।

मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में ताकत झोंकती भाजपा!

इसमें कोई दो राय नहीं कि शिवराज सिंह चौहान की बिदाई की अटकलों को मैं भी मानता रहा और इस संभावना पर लिखा भी,ठोस तर्कों के साथ कि ऐसा क्यों हो सकता है। अब जबकि वैसा नही हुआ तो समझ आता है कि वे क्यों नहीं हटाये गये या क्यों नहीं हटाये जा सकते थे?

भाजपा के बारे में यह बात तो सर्व विदित है कि वह संगठन आधारित राजनीतिक दल है और प्रत्येक गतिविधि पूरी योजना बनाकर संचालित करता है । उसका सांगठनिक ढांचा विश्व राजनीति में बेजोड़ है। जो दल बूथ स्तर की संरचना पर सबसे ज्यादा जोर देता हो, उसकी संगठन क्षमता और समझ का लोहा माना जा सकता है। वह दुनिया का एकमात्र राजनीतिक दल है, जिसके पास दल के लिये कार्य करने वाले पूर्णकालिक,जीवनदायी,समर्पित,निष्ठावान व्यक्तियों की वृहद फौज है। वे ऐसे लोग हैं, जो गहरी सामाजिक समझ रखते हैं, लेकिन चंद अपवादों को छोड़कर उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा नहीं होती। भाजपा नेतृत्व या उनका पितृ संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ यदि चाहे तो उनकी राजनीतिक जिम्मेदारी निर्धारित कर देता है। बहरहाल।

नीलकंठ हैं शिव,जहर पचाते हैं, हारते नहीं

यहां यह जान लेते हैं कि शिवराज सिंह चौहान तमाम अफवाहों, संभावनाओं को नकार कर बरकरार क्यों रहे? आगे बढ़ने से पहले मैं इस संभावना को स्पष्ट करते चलूं कि मप्र में भाजपा की सरकार बनने पर आगामी लोकसभा चुनाव तक भी उनके मुख्यमंत्री बने रहने के भरपूर अवसर हैं। दरअसल, मप्र में सतत 20 वर्ष तक मुख्यमंत्री बने रहने से यह माना जाने लगा कि जनता व कार्यकर्ता उनसे ऊब गया है। यह भी कि प्रदेश का संचालन कैबिनेट नहीं बल्कि चंद अधिकारी कर रहे हैं। शिवराज खुद भी अनेक वरिष्ठ नेताओं,कार्यकर्ताओं की उपेक्षा करने लगे हैं। यह भी कि भाजपाइयों के ही काम उनकी सरकार में नहीं हो रहे । सबसे बड़ी दलील कि प्रदेश में सरकार विरोधी हवा ( एंटी इंकबेंसी) है। दरअसल, यह एक ऐसा जुमला है जो राजनीतिक गलियारों में मीडिया और बुद्धिजावी तबके द्वारा बहुतायत से प्रचारित-प्रसारित किया जाता है। ये ऐसा कयास है, जो कभी सही हो सकता है तो कभी गलत निकलता है। इसका ऐसा कोई पैमाना नहीं है कि कोई सराकर या मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री,सांसद,विधायक कितने समय तक रहेगा तो उसके विरोध में हवा चलने लगेगी। देश में अनेक ऐसे विधायक,सांसद हैं, जो 8-10 चुनावों से कायम हैं । कुछ ने दलबदल भी किया या कुछ एक ही दल से बरकरार हैं।

याने ये मसला अटकलबाजी से अधिक कुछ नहीं । इस पर मोहर तब लगेगी जब मप्र में भाजपा सरकार कायम रहेगी। यदि सरकार नहीं रहती है तो इस शब्द को हवा देने वाले आंधी बना देंगे। रही बात शिवराज की तो वे भले ही प्रदेश के सर्वमान्य भाजपा नेता भले ना हों, सबसे अधिक लोकप्रिय,चर्चित तो हैं। वे अपने दल में एकमात्र ऐसे नेता हैं, जो करीब 45 लाख लाड़लियों के मामा हैं, करीब एक करोड़ तीस लाख बहनों के भाई हैं और ये तथ्य निर्विवाद है। यह रिश्ता क्या कहलाता है और क्या गुल खिलायेगा, यह भी इस बार के परिणामों से तय हो जायेगा।

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शिवराज सिंह चौहान भाजपा के अकेले ऐसे नेता हैं, जो चुनाव से पहले भी पूरा प्रदेश नाप चुके थे और चुनाव में सर्वाधिक 165 सभायें लेकर उन्होंने यह साबित भी किया कि वे जनता के बीच सर्वमान्य भी हैं। उन्होंने अपनी दमदार उपस्थिति के सबूत देने का सिलसिला जनवरी से ही प्रारंभ कर दिया था, जब 8,9,10 जनवरी को इंदौर में प्रवासी भारतीय दिवस कार्यक्रम हुआ। इससे लगे-लगे ग्लोबल मीट भी हुई और ये दोनों ही आयोजन भव्य,व्यवस्थित,प्रभावी और व्यापक प्रचारित भी रहे। इनमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी,विदेश मंत्री एस.जयशंकर व राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू भी शामिल हुईं। इन आयोजनों ने शिवराज सिंह चौहान को राष्ट्रीय और वैश्विक पहचान दी।

इसके बाद ही एक तरफ शिवराज को हटाये जाने के अंदेशे उमड़ते रहे और दूसरी तरफ शिवराज ने हनुमानजी की तरह अपनी सारी शक्ति समेट कर प्रदेश की जनता के लिये जन कल्याणकारी योजनाओं घोषित करने और तत्परतापूर्वक उन्हें लागू करने में लगा दी। लक्ष्य स्पष्ट था, विधानसभा चुनाव में विजय सुनिश्चित करना। यह वाकई ताज्जुब की बात है कि चारों तरफ उनके व राष्ट्रीय नेतृत्व के बीच असहमति,विवाद,अनबन की अटकलों के बावजूद शिवराज विचलित नहीं हुए । इस दरम्यान उनके कुछ बयान ऐसे भी आये, जिनसे नैपथ्य में विवाद की लहरें उठती प्रतीत हुईं, किंतु सतह पर पतवारें थामे नौका को तेजी से खेते हुए आगे बढ़ते शिवराज दिखाई दिये। जब शिवराज ने कहा कि वे फिनिक्स हैं, अपनी ही राख से फिर जिंदा हो उठेंगे तो हलचल मची। फिर उन्होंने कहा कि देख लो, आ गया हूं मैं। यह भी कि नेतृत्व मुझे जो भी जिम्मेदारी देगा, मैं निभाऊंगा,वगैरह-वगैरह।

चुनाव प्रचार के बीच भी एक समय ऐसा आया, जब लगा कि शिवराज धीमे हो गये हैं, लेकिन थोड़े से विराम के बाद उन्होंने फिर से ताकत झोंक दी। एक बात जरूर कहना चाहूंगा कि जिन अधिकारियों के रवैये से दल के मंत्रियों-नेताओं की नाराजी रही,उन्होंने शिवराज की मंशा के अनुरूप अपनी जवाबदारी को निभाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। वे उन घोषणाओं के अमल पर इतने तत्पर रहे कि शिवराज दूरदराज के दौरों से प्रवास ककर भोपाल लौटते तो वहां की गई घोषणाओं की नोट शीट उनकी टेबल पर तैयार रहती।

एक और बात, जो मुझे लगती है कि मप्र में चुनाव के परिणाम चाहें जो आयें, शिवराज का प्रभाव कम नहीं होने वाला। अगले वर्ष लोकसभा चुनाव हैं और प्रदेश की खाक छानने में शिवराज का कोई सानी नहीं । अनेक बार खुद की छवि भाजपा से ऊपर होने का संदेश देने वाली देह भाषा के बावजूद उन्हें दरकिनार करने का हाल-फिलहाल तो मप्र में भाजपा नहीं सोच सकती,ऐसा लगता है।

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रमण रावल

 

संपादक - वीकेंड पोस्ट

स्थानीय संपादक - पीपुल्स समाचार,इंदौर                               

संपादक - चौथासंसार, इंदौर

प्रधान संपादक - भास्कर टीवी(बीटीवी), इंदौर

शहर संपादक - नईदुनिया, इंदौर

समाचार संपादक - दैनिक भास्कर, इंदौर

कार्यकारी संपादक  - चौथा संसार, इंदौर

उप संपादक - नवभारत, इंदौर

साहित्य संपादक - चौथासंसार, इंदौर                                                             

समाचार संपादक - प्रभातकिरण, इंदौर      

                                                 

1979 से 1981 तक साप्ताहिक अखबार युग प्रभात,स्पूतनिक और दैनिक अखबार इंदौर समाचार में उप संपादक और नगर प्रतिनिधि के दायित्व का निर्वाह किया ।

शिक्षा - वाणिज्य स्नातक (1976), विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन

उल्लेखनीय-

० 1990 में  दैनिक नवभारत के लिये इंदौर के 50 से अधिक उद्योगपतियों , कारोबारियों से साक्षात्कार लेकर उनके उत्थान की दास्तान का प्रकाशन । इंदौर के इतिहास में पहली बार कॉर्पोरेट प्रोफाइल दिया गया।

० अनेक विख्यात हस्तियों का साक्षात्कार-बाबा आमटे,अटल बिहारी वाजपेयी,चंद्रशेखर,चौधरी चरणसिंह,संत लोंगोवाल,हरिवंश राय बच्चन,गुलाम अली,श्रीराम लागू,सदाशिवराव अमरापुरकर,सुनील दत्त,जगदगुरु शंकाराचार्य,दिग्विजयसिंह,कैलाश जोशी,वीरेंद्र कुमार सखलेचा,सुब्रमण्यम स्वामी, लोकमान्य टिळक के प्रपोत्र दीपक टिळक।

० 1984 के आम चुनाव का कवरेज करने उ.प्र. का दौरा,जहां अमेठी,रायबरेली,इलाहाबाद के राजनीतिक समीकरण का जायजा लिया।

० अमिताभ बच्चन से साक्षात्कार, 1985।

० 2011 से नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने की संभावना वाले अनेक लेखों का विभिन्न अखबारों में प्रकाशन, जिसके संकलन की किताब मोदी युग का विमोचन जुलाई 2014 में किया गया। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को भी किताब भेंट की गयी। 2019 में केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के एक माह के भीतर किताब युग-युग मोदी का प्रकाशन 23 जून 2019 को।

सम्मान- मध्यप्रदेश शासन के जनसंपर्क विभाग द्वारा स्थापित राहुल बारपुते आंचलिक पत्रकारिता सम्मान-2016 से सम्मानित।

विशेष-  भारत सरकार के विदेश मंत्रालय द्वारा 18 से 20 अगस्त तक मॉरीशस में आयोजित 11वें विश्व हिंदी सम्मेलन में सरकारी प्रतिनिधिमंडल में बतौर सदस्य शरीक।

मनोनयन- म.प्र. शासन के जनसंपर्क विभाग की राज्य स्तरीय पत्रकार अधिमान्यता समिति के दो बार सदस्य मनोनीत।

किताबें-इंदौर के सितारे(2014),इंदौर के सितारे भाग-2(2015),इंदौर के सितारे भाग 3(2018), मोदी युग(2014), अंगदान(2016) , युग-युग मोदी(2019) सहित 8 किताबें प्रकाशित ।

भाषा-हिंदी,मराठी,गुजराती,सामान्य अंग्रेजी।

रुचि-मानवीय,सामाजिक,राजनीतिक मुद्दों पर लेखन,साक्षात्कार ।

संप्रति- 2014 से बतौर स्वतंत्र पत्रकार भास्कर, नईदुनिया,प्रभातकिरण,अग्निबाण, चौथा संसार,दबंग दुनिया,पीपुल्स समाचार,आचरण , लोकमत समाचार , राज एक्सप्रेस, वेबदुनिया , मीडियावाला डॉट इन  आदि में लेखन।