Condemnation of Sarpanch Husbands : सरपंच पतियों के दखल की HC ने निंदा की!
Allahabad : उत्तर प्रदेश में महिला ग्रामप्रधानों (सरपंचों) के पतियों के प्रतिनिधि के रूप में काम करने की प्रथा की इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आलोचना की है। कहा कि इस तरह का हस्तक्षेप राजनीति में महिलाओं के लिए आरक्षण प्रदान करने के उद्देश्य को कमजोर करता है। एक ‘प्रधानपति’ (एक महिला ग्राम प्रधान के पति) द्वारा दायर रिट याचिका को खारिज करते हुए, न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने कहा कि एक ‘प्रधानपति’ के पास ग्राम सभा के कामकाज में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है।
‘प्रधानपति’ शब्द उत्तर प्रदेश में बहुत लोकप्रिय और व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। इस शब्द का उपयोग महिला ग्रामप्रधान (सरपंच) के पति के लिए किया हाई कोर्ट ने कहा कि अनधिकृत प्राधिकारी होने के बावजूद ‘प्रधानपति’ महिला ग्राम प्रधान का काम करता है। यानी उसका पत्नी अनधिकृत रूप से महिला ग्रामप्रधान के अधिकारों का उपयोग करता है।
हाई कोर्ट ने कहा कि ऐसे कई उदाहरण हैं, जहां एक महिला ग्राम प्रधान रबर स्टांप की तरह काम करती है। सभी व्यावहारिक उद्देश्यों के लिए सभी प्रमुख निर्णय तथाकथित ‘प्रधानपति’ द्वारा लिए जाते हैं और निर्वाचित प्रतिनिधि सिर्फ मूकदर्शक की तरह काम करते हैं। वर्तमान रिट याचिका स्थिति के लिए एक ज्वलंत उदाहरण है। न्यायमूर्ति शमशेरी ने कहा कि अदालत को पता है कि उत्तर प्रदेश में महिला प्रधान हैं, जो अपनी शक्ति, अधिकारों, कर्तव्यों और कानूनी दायित्वों का प्रभावी ढंग से प्रयोग कर रही हैं और संबंधित गांव के लिए बहुत अच्छा काम कर रही हैं। लेकिन, मौजूदा मामले में ऐसा नहीं लगता।
यह रिट याचिका बिजनौर जिले की नगीना तहसील के मदपुरी गांव की ग्राम प्रधान कर्मजीत कौर के माध्यम से दायर की गई। रिट याचिका के साथ निर्वाचित ग्राम प्रधान ने अपने पति को यह रिट याचिका दायर करने के लिए अधिकृत करने के पक्ष में कोई प्रस्ताव नहीं था, लेकिन याचिका के साथ हलफनामे में कौर के पति सुखदेव सिंह ने शपथ ली। अदालत ने कहा कि प्रधान की हैसियत से याचिकाकर्ता के पास अपने निर्वाचित पद से मिले अपने अधिकारों, कर्तव्यों और दायित्वों को अपने पति या किसी अन्य व्यक्ति को सौंपने की कोई शक्ति नहीं नहीं है। ‘प्रधानपति’ के काम में उसके हस्तक्षेप का कोई अधिकार नहीं है।
कोर्ट ने कहा कि ग्राम सभा यदि इस तरह के कृत्य की अनुमति देती है, तो यह न केवल महिला सशक्तिकरण के उद्देश्य को विफल कर देगा, बल्कि महिलाओं को आगे आने और राजनीति की मुख्य धारा में शामिल होने और सामाजिक, सामाजिक क्षेत्रों में उनकी भागीदारी बढ़ाने के लिए विशिष्ट आरक्षण प्रदान करने में भी आपत्ति होगी। यह राष्ट्र के आर्थिक और सांस्कृतिक विकास में बाधक है।