New CM Mohan Yadav: मोहन के रूप में मोदी का चयन MP में खनकेगा?
निरुक्त भार्गव का खास विश्लेषण
राजनीति विज्ञान में पी.एच.डी., प्रबंधकीय शिक्षा में मास्टर्स डिग्री और लॉ ग्रेजुएट के साथ-ही व्यावहारिक तकाजों और धरातल की हकीकतों से बखूबी अवगत—ऐसे मोहन यादव का सोमवार को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में चुना जाना साधारण घटना नहीं है. इसे किसी भी लिहाज से हलके में लिया जाना भी उचित नहीं होगा. भाजपा की अगले 10-15 सालों की राजनीति की सूरत इसमें देखी जा सकती है और आगामी आम चुनाव की रणनीति की खोज भी की जा सकती है. ‘अजात-शत्रु’ के रूप में उभरे मोहन यादव के लिए आने वाले छ: माह अनेकानेक चुनौतियां लेकर आने वाले हैं: आग के इस दरिये को पार कर ही दरअसल उनका, उनकी सरकार और उनकी पार्टी का भी भविष्य तय होगा!
इसमें तो कोई शक नहीं कि पिछड़ा बनाम अगड़ा की लड़ाई में शिवराज सिंह चौहान और प्रह्लाद पटेल चक्रव्यूह में उलझकर रह गए तो गोपाल भार्गव, कैलाश विजयवर्गीय और नरेन्द्र सिंह तोमर की भी सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई! पर, मोहन यादव का चयन कोई आसमानी-सुल्तानी घटना नहीं है! उन पर मोदी-शाह-नड्डा की तिकड़ी की पैनी निगाहें थीं, तो आरएसएस की छलनियां भी लगातार सक्रिय थीं. उनके पक्ष में सब-कुछ पौ-बारह हुआ, तो उसके पीछे उनके भीषण उच्च स्तर के राजयोग, अविरत पराक्रम और अथक प्रयासों का भी योग रहा है.
याद कीजिए जब दिग्विजय सिंह की 10 साला कांग्रेस सरकार का पतन हो रहा था 2003 में, तो किस तरह उमा भारती तीखे तेवरों के साथ एक आंधी बनकर आईं और सीएम की गद्दी पर बैठीं. न तो साध्वी को और न ही बड़ी कुर्सी को एक-दूजा भाए. खड़ाऊ मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर का शासन-काल भी बहुत उल्लेखनीय नहीं रहा. मगर 2005 का वर्ष जाते-जाते जब शिवराज जी वल्लभ भवन में विराजमान कर दिए गए, तब उनके गॉडफादर आडवाणी जी को भी यकीन नहीं था कि दुबला-पतला से ये व्यक्ति इतना लोकप्रिय साबित होगा!
प्रसंग अनगिनत हैं और सन्दर्भों की भी एक बड़ी श्रृंखला है, बखान करने के लिए, लेकिन मोटे तौर पर कुछ कारक समझ में आ रहे हैं वर्तमान की परिस्थितियों को समझने के: (1) जिन-जिन सूरमाओं के क्लेम फंसे हुए थे, उनको सिरे से नकार दिया गया; (2) जोड़-तोड़, तिकड़मबाजी और नज़राने पेश करने की प्रवृत्तियों को दरकिनार कर दिया गया; (3) उज्जवल संभावनाओं को टटोलते हुए जातिगत, क्षेत्र-वार और लॉयल्टी के लेवल पर भी चीज़ें फाइनल की गईं और उज्जैन संभाग और महाकाल जी के आंगन को सर-माथे रखा गया…
थोडा जिक्र “मोहन पुराण” का भी: (1) ये शख्स फुल-टाइम पॉलिटिशियन है; (2) बहुत जिद्दी और धुनी है; (3) विरोधी किसी भी केटेगरी का हो, उस की नस-नस को पकड़कर अपने अगले काम को अंजाम देता है; (4) विपरीत से विपरीत हालातों में भी घुटने नहीं टेकता है; (5) किसी भी पैमाने का सरकारी तंत्र हो, ये उसे अपने कार्यों और फैसलों पर हावी नहीं होने देता तथा (6) संस्कृति-पोषक, प्रयोगधर्मी, संस्कारधर्मी, सहकारधर्मी और अनुशासनधर्मी…